भाग -5
भूखा शब्द सुनते ही रेणु को वो रात याद आ गयी जब वो पहली बार मुंबई आयी थी और कैसे उसका समान और पैसे सब चोरी हो गए थे और कितने दिनों तक उसे भूखा रहना पड़ा था. इतनी भूख तो उसने कभी अपने गाँव में भी नहीं देखी थी. फिर कैसे उसे काशी मिली, उस दिन सच में ईश्वर का रूप बनकर काशी उसके जीवन में आयी थी. उसे अचानक अपनी सारी आपबीती याद आ गयी और उसकी आँखों में नमी छा गयी. फिर उसने अपनी आँखों को दुपट्टे से हल्का पौंछते हुए कहा 'चलो अब मैं चलती हूँ, आप को काम की जरूरत हो तो बताना हाँ'. हाँ हाँ...! बिलकुल आदि ने मुसकुराते हुए कहा, 'वैसे मेरे घर का काम करने वाला अब भी कोई नहीं है '. रेणु यह सुनकर मुसकुरा दी और बोली वो तो दिख ही रहा है. कहते हुए ऊपरी माले की ओर बढ़ गयी.
वह जब ऊपर पहुंची तो वह आंटी उसे बाहर ही मिल गयी. उन्होंने रेणु को देखा और फिर शुरू हो गयी तुम ? अब तुम यहाँ क्या लेने आयी हो ? जब तुमने काम मांगा था तब मैंने तुम्हें तुरंत काम दिया था ना और तुम काम छोड़कर चली गयी....! अब क्या लेने आयी हो ? जी, अब भी मैं उसी काम के लिए आयी हूँ. इस बार मुझे आपकी सारी शर्तें मंजूर हैं पर आपको भी मेरी एक बात माननी होगी. अच्छा मालिक कौन है तू या मैं...? सुन यहाँ वही होगा जो मैं चाहूंगी...! काम कर सकती हो तो करो, नहीं तो चलती बनो...! अरे आप एक बार मेरी बात तो सुनले मेरी माँ...! इस बार रेणु का स्वर भी थोड़ा ऊंचा हो गया था. उसका स्वर ऊंचे होते ही आंटी जी एकदम से शांत हो गयी. रेणु ने खुद पर नियंत्रण किया और वापस धीमी अर्थात सामान्य आवाज़ में बोली, मैं सिर्फ इतना चाहती हूँ कि जितनी देर आपकी बेटी सोएगी मैं अपनी मन मर्जी से बाहर जा आ सकती हूँ .क्यूंकि मेरा काम तो वैसे भी आपकी बिटिया की देखभाल ही करनी है ना ? कोई और काम नहीं करूंगी मैं, अगर कभी किया भी तो उसका पैसा अलग से लगेगा। अब आप बताओ मंजूर है तो बोलो, नहीं तो कोई बात नहीं. जरा देर सोचकर आंटी ने हाँ कह दिया. रेणु ने कहा क्या मैं आपकी बेटी से मिल सकती हूँ...? आंटी ने हाँ में गर्दन हिलाते हुए उसे अंदर आने के लिए कहा.
लेकिन अचानक एक उड़ता हुआ बर्तन आकर रेणु के सर पर लगा. बर्तन की चोट से रेणु को थोड़ी चोट लग गयी और माथे से खून बहने लगा. रेणु समझ गयी यह काम करना उसके लिए आसान नहीं होगा. फिर भी उसने हिम्मत करी और आगे बड़ी, उसे पास आता देख 'भूमिजा' ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी. माँ ....माँ.....! रेणु फिर भी उसके पास आयी और उसे शांत करने की कोशिश करने लगी. बहुत कोशिश करने के बाद भी जब वह शांत नहीं हुई तब जाने क्यूँ रेणु को पास रखे फोन को देखते हुए कोई गाना बजाने का मन हुआ तो रेणु ने आंटी से उस पर गाना बजाने के लिए कहा. क्यूंकि रेणु ने महिला ग्रह उद्योग में लोगों के पास मोबाइल देखा जरूर है पर उसके पास हैं नहीं है तो उसे ठीक से चलना नहीं आता. उसने भूमिजा के हाथ पकड़े और गाना बजाने के लिए कहा. भूमिजा अपने आप को रेणु के चंगुल से छुड़ाने की पुर ज़ोर कोशिश कर रही है यहाँ तक के उसने एक बार रेणु को अपने दांतों से काट भी लिया रेणु दर्द से कराह उठी पर तब भी रेणु ने उसके हाथ नहीं छोड़े. मोबाइल पर गाना बजने लगा “गुड़िया रानी बिटिया रानी पारियों की नगरी से एक दिन राजकुंवर जी आएंगे” और थोड़ी ही देर में भूमिजा एकदम से शांत हो गयी. रेणु ने अपने दुपट्टे से आँसू पौछे और उसे खाने के लिए चॉकलेट दी. तभी आंटी का स्वर ऊंचा होने ही वाला था अरे...! यह क्या कर रही हो, मेरी बेटी यह सब कुछ नहीं खाती.
इससे पहले की उनका स्वर ऊंचा हो पता रेणु ने उन्हें धीरे बोलने का इशारा करते हुए कहा क्या कर रही हैं आप....! आपने देखा नहीं कितनी मुश्किल से वो शांत हुई है वो और एक आप हैं चिल्ला चिल्लाकर बात करने की वजह से ही शायद उसका भी सुर ऊंचा ही रहता है. शांत रहिए ना आप और हाँ...अब आप भूमिजा की सारी ज़िम्मेदारी मुझे सौंपकर चिंता मुक्त हो जाइए, कहते हुए वह वापस भूमिजा के पास उसके कमरे में जा पहुंची. उसके खाने, कपड़े, खिलौने, दवाइयाँ, आदि कहाँ रखी है. उसकी दिनचर्या क्या है, उसे क्या पसंद हैं, क्या ना पसंद है कि सम्पूर्ण जानकारी रेणु ने आंटी से पूछ -पूछकर एक कापी में लिख लिया. इतना तो पढ़ी लिखी थी रेणु, एक मास्टर खुद अपने अपने बच्चों को इतना भी अशिक्षित नहीं रखता कि वीएच जरूरत पड़ने पर एक पत्र भी ना लिख सकें इसलिए रेणु के बाबा ने उसे इतना तो पढ़ा ही दिया था कि वह कोई सूची बना सके या पत्र लिख सके.तभी तो पैसों के साथ रेणु अपनी माँ के नाम एक पत्र भी भेजा करती थी. कहने का अर्थ यह है कि रेणु के लिए काला अक्षर भैंस बराबर नहीं था. खैर भूमिजा से मिलकर रेणु को यह बहुत अच्छे से समझ आ गया था कि बहुत मुश्किल काम था यह उसके लिए क्यूंकि भूमिजा एक ऐसी बच्ची थी जो सुबह से यदि रोना शुरू कर दे तो सारा दिन रोती ही रहती थी और यदि हंस दे तो सारा दिन हँसती ही रहती थी. चिल्लाचौंट ऊंची आवाज़ें उसे जरा भी पसंद नहीं आती थी. मीठा खाना उसे बेहद पसंद था, जिसके कारण उसका वजन बहुत तेजी से बढ़ रहा था. नए लोगों से उसे डर लगता था. पर अब धीरे -धीरे वह रेणु को अपनी सहेली जैसा या बड़ी बहन जैसा मानने लगी थी.
अब वह अपनी माँ से अधिक बात रेणु कि सुना करती थी. रेणु की आर्थिक हालात भी अब पहले से बहुत बेहतर हो चले थे. गाँव में भी उसके माँ बाबा की हालात अब पहले से बहुत बेहतर हो चुके थे. गाँव के वैध जी द्वारा अब उसके बाबा का इलाज जड़ी बूटियों के तेल की मालिश आदि भी शुरू हो चुकी थी. जीवन ठीक से चलने लगा था. इस सब के बीच जब भी रेणु को समय मिलता वह आदि के घर जाकर उसका भी काम बस यूं ही कर दिया करती. ना जाने क्यूँ अब उसके मन में आदि के प्रति भावनाएं बदल चूंकि थी. अब उसे आदि से प्यार हो चला था आदि को भी अब रेणु पसंद आने लगी थी. देखने में तो रेणु सुंदर थी ही सही इसलिए भी शायद उसके माँ बाबा उसे अकेले शहर भेजने से घबरा रहे थे. लेकिन आदि उसके हाथ का बना खाना, उसका रख रखवा आदि को पसंद आने लगा था. वह उसके लिए तोहफे लाने लगा था, उसकी पसंद के कपड़े पहनकर रेणु का रूप रंग और भी निखरने लगे थे. यूं भी जब कोई इंसान प्यार में होता है तो उसका रूप रंग एक अलग ही तरह से खिलने लग जाता है. (रेणु और आदि) के साथ भी वैसा ही हो रहा था. आदि तो पहले ही देखने में बहुत ही अच्छा था. रेणु भी अब उसके प्यार में निखरने लगी थी. समय को जैसे पंख मिल गए थे. आंटी भी रेणु के काम से बहुत खुश थी. भूमिजा भी अब पहले के मुक़ाबले ज्यादा शांत और सभ्य तरीके से रहना सीखने की कोशिश करने लगी थी. समय बिता भूमिजा तेरह 13 साल की हो गयी और उसका (रजो धर्म) अर्थात मासिक चक्र आना तय था. सो आया. जब आंटी ने भूमिजा को खून में सना पाया तो उनके तो प्राण ही निकल गए. पहले उन्हें लगा कि शायद रेणु की लापरवाही के कारण उसे कोई चोट पहुंची है और उन्होंने आव देखा ना ताव और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाना शुरू कर दिया.
उनके चिल्लाने की वजह से अब तक शांति से बैठी भूमिजा बहुत ज़ोर से डर गयी और वो भी चिल्लाने लगी. ज़ोर ज़ोर से रोने लगी क्यूंकि उस मासूम को समझ ही नहीं आया कि हुआ क्या जो अचानक से उसके आसपास इतना शोर होने लगा था. उस समय रेणु नीचे आदि के पास ही थी. आज उनके बीच की यह दूरियाँ एक अलग ढंग से कुछ और हद तक कम होने ही वाली थी कि आंटी की आवाज ने उनके रंग में भंग डाल दिया. रेणु भागकर ऊपर पहुंची और आंटी से पूछने लगी क्या हुआ ? आंटी ने रोते हुए उसे अंदर जाने को कहा. रेणु ने एक बार आंटी को देखा और एक बार अंदर देखा और फिर भागकर भूमिजा के पास पहुंची तो देखा उसके कपड़ों में खून लगा हुआ है और वो ज़ोर ज़ोर से रोये जा रही हैं. रेणु ने जब ध्यान से देखा तो उसे बात समझ में आयी उसने किसी तरह इस बार भी गाने के माध्यम से और अपनी आवाज से भूमिजा को शांत किया. उसकी आवाज सुनकर धीरे-धीरे वह शांत हो गयी. रेणु ने उसके कपड़े बदलकर पेड लगा दिया. यह ज्ञान भी उसे काशी ने दिया था और इस बारे में उसे अवगत कराया था तब से रेणु हमेशा अपने पर्स में एक दो पेड रखकर ही चलती थी. यह सब होने के बाद रेणु ने बाहर आकार आंटी से कहा क्या आंटी आप भी ना ...! आपको भी पता है न क्या हुआ....! इसमें इतना हंगामा खड़ा करने की क्या जरूरत थी ??
जानती है आप वह बेचारी आपके चिल्लाने के चक्कर में कितना सहम गयी है उसकी सिसकियाँ बंद होने का नाम नहीं ले रही थी. बड़ी मुश्किलों से मैंने उसे सुलाया. तभी आंटी रोते हुए रेणु से बोली अब क्या होगा रेणु....? अब तो यह और भी ज्यादा परेशानी का सबब बन गयी हैं. क्या मतलब ? मैं कुछ समझी नहीं ? आप कहना क्या चाहती हो ? यह तो केवल तीन चार दिन की समस्या है न, 'मैं संभाल लूँगी आप चिंता ना करो'. अरे पागल लड़की अब यह जवान हो गयी ना, अब इसका पहले से भी अधिक ध्यान रखना पड़ेगा ताकि कोई इसकी ऐसी हालात देखकर इसका गलत फायदा ना उठा ले. ना जाने ईश्वर लड़की जात को ऐसी समस्या देता ही क्यूँ है और देता भी है तो कम से कम दिमाग ही ठीक दे. अब यह लड़की जात और ऊपर से दिमागी रूप से कमजोर यह कम था जो अब ऊपर से यह परेशानी, हमारी तो किस्मत ही खराब है इसकी जगह लड़का होता तो भी ठीक था कम से कम यह सब परेशानियाँ तो न झेलनी पड़ती मुझे...! रेणु आंटी की बातें सुनकर थोड़ा हैरान थी कि बड़े शहर के बड़े लोगों के दिल कितने छोटे होते हैं जो अपनी ही बच्ची के विषय में ऐसा सोचते हैं. उस समय तो उसने कुछ नहीं कहा बस इतना ही बोली मैं और पेड लेकर आती हूँ तब तक आप शांत रहो और उसका ध्यान रखो मैं यूं गयी और यूं आयी. कहते हुए रेणु नीचे उतर गयी...