कहते हैं कि "सपने वो नही जो रात को सोने के बाद आए, सपने तो वो होते हैं जो खुली आंखों से देखे जाए "जिनको अपना लक्ष्य बनाए जाए, जिनको पूरा करने की चाह में दिन रात कड़ी मेहनत की जाए। उनको पाने के लिए अपने शरीर को लोहे सा मजबूत और सूरज सा तपाना पड़ता हैं। तब जाकर कहीं सपने पूरे हो पाते हैं। यूं ही नहीं मंजिल मिल जाती है जरा सा चलने से, कोसो दूर जाना पड़ता है अपनी मंजिल पाने के लिए।
हम सब कभी न कभी बचपन में एक ख्वाब देखते हैं। वो ख्वाब और इच्छाएं धीरे धीरे हमारा लक्ष्य बन जाती हैं। उनको पाने की तड़प में हम दिन रात लगातार काम करते हैं, मेहनत करते हैं और हिम्मत व जुनून के साथ हम आखिर अपनी मंजिल को पा ही लेते हैं। ईश्वर ने इस संसार में सभी को कुछ न कुछ विशेष गुण अवश्य दिया है। उन्होंने हमारे अंदर जो प्रतिभा और हुनर भेजा है, बस उसी को हमे तराशना होता है और आगे बढ़ना है। यदि इस संसार में अपनी एक अलग पहचान बनानी है तो औरों से अलग हटकर, खुद पर यकीन कर और सबसे महत्वपूर्ण ईश्वर पर विश्वास रख कर ही संभव हो सकता है।
इसी तरह से एक लड़की (निशा) की कहानी है। जो हमेशा अपने बचपन से सपना देखा करती थी कि वो एक दिन एक बड़ी डॉक्टर बनेगी और लोगो का इलाज करेगी। वह अपने इस सपने को पूरा करने के लिए हर रोज मन लगाकर पढ़ाई करती और दिन रात बस अपने सपनों के पूरा होने का इंतजार करती। अपनी पूजा में वह ईश्वर से बस अपने सपनों को ही मांगती, अपनी मेहनत का सच्चा परिणाम ही मांगती।
धीरे धीरे समय बीता..... निशा बडी हुई और और अब वह कॉलेज जाने के लिए तैयार थी। लेकिन यहां एक समस्या ने आकर उसका रास्ता रोक दिया। आखिर मंजिलो तक पहुंचने के लिए कुछ कठिनाइयों का सामना तो हर किसी को करना ही पड़ता है, तभी जाकर मंजिल मिल पाती हैं। निशा ने भी अपने सपनों की राह में अनेक समस्याओं का सामना किया। निशा के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी उसकी विकलांगता। निशा बचपन से ही व्हीलचेयर पर थी। वह पूर्ण रूप से स्वतंत्र चल नही पाती थी। लेकिन बावजूद इसके वह कभी भी खुद को कमजोर नहीं मानती थी। वह खुद को हर हाल मे कामयाब बनाना चाहती थी, दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती थी।
लेकिन मंजिल तक जाने का सफर कहां आसान होता है। राह में अनेक कठिनाइयां आती हैं, जो रास्ता रोक लेती हैं , लेकिन हारता वही है जो रुक जाता है और थक जाता है। इरादे अगर नेक हो और दिल में लक्ष्य को भेदने का जूनून हो तो सब कुछ सम्भव है। इसी तरह निशा भी कड़ी मेहनत और लगन के साथ अपने लक्ष्य को भेदने का प्रयास कर रही थी। हर चुनौती का सामना पूरी हिम्मत के साथ कर रही थी। वो अब अपने डॉक्टर बनने के सपने को पूरा करने में बस कुछ ही क्षण दूर थी। जब निशा डॉक्टर के प्रशिक्षण के लिए आई, तो उसे ये कहकर वहां अस्पताल में दाखिल होने नही दिया गया क्योंकि वह एक विकलांग हैं। वह लोगो का इलाज और उनकी देखभाल कर पाने में सक्षम नहीं हैं।
निशा ने जब यह सब सुना तो, वह अन्दर से पूरी तरह टूट गई। उसे अपने दिव्यांग होने पर बहुत दुख होने लगा। निशा, जो खुद को हमेशा डॉक्टर बनते हुए देखना चाहती थी, आज उसका वह सपना टूट गया, बिखर गया। जो कभी खुद को कमजोर नहीं मानती थी, आज उसे खुद पर शर्म आने लगी थी। लेकिन ईश्वर जब जीवन में अनेक विपत्तियां देते हैं तो उनसे लड़ने के लिए संघर्ष भी साथ में देते हैं। क्योंकि अगर लक्ष्य को प्राप्त करना है तो रास्ता बदलना चाहिए, लक्ष्य नहीं .... और लोगो की देखभाल करना।
निशा को बचपन से ही किताबे पढ़ने का बहुत शौक था। बड़े बड़े लेखकों, विद्वानों और वीर महापुरुषों की कहानियों को वो बड़े ही चाव से पढ़ती थी और उनसे बहुत सा ज्ञान प्राप्त करती थी। एक दिन निशा ने जब हरिवंश राय बच्चन जी की कविता "कोशिश करने वालो की कभी हार नहीं होती "पढ़ी तो उसे पढ़ने के बाद अपने जीवन में एक नई प्रेरणा मिली। निशा अब एक बार फिर उठकर खड़े होना चाहती थी। जीवन में एक नई पहचान बनाना चाहती थी। इसलिए निशा ने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपना रास्ता बदला।
निशा ने जब यह जाना कि उसके जैसे और भी बहुत से दिव्यांग बच्चे है, जो स्कूल नही जा पाते हैं। क्योंकि अक्सर स्कूलों में वो विशेष साधन इन बच्चों के लिए उपयुक्त नहीं हो पाते, जिनकी उन्हें बहुत जरूरत है। निशा ने यह भी जाना कि बहुत से ऐसे बच्चे है जो गरीबी के कारण उचित शिक्षा प्राप्त नही कर पाते। इन सभी बातो को जानकर अब उसने अपना मन फिर लोहे सा मजबूत बनाया।
निशा ने अब यह दृढ़ निश्चय कर लिया कि वह देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक UPSC (यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन) को पार कर लोगो की आगे बढ़ने में मदद करेगी। UPSC की इस परिक्षा को पास करना कोई सरल काम नही है। देश में हजारों की संख्या में विद्यार्थी आते हैं, इस परीक्षा से गुजरने के लिए। इसी तरह निशा ने भी निर्णय किया कि वो भी इस परीक्षा को पार कर एक दिन अपने लक्ष्य को जरूर प्राप्त करेगी। बस इसी आशा के साथ निशा upsc की परीक्षा को पार करने के लिए गई।
UPSC की परीक्षा के तीन चरणों में से सबसे पहले चरण यानी प्रीलिम्स को तो निशा ने पार लिया, लेकिन परीक्षा के दूसरे चरण यानी mains की परीक्षा में निशा कुछ अंको से पीछे रह गई। लेकिन निशा ने अभी हार नही मानी थी। वह तो दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि चाहे जो हो जाए, लेकिन इस बार वह अपने लक्ष्य को जरूर प्राप्त करेगी और अंतिम समय तक पीछे नहीं हटेगी।
इसी इच्छाशक्ति के साथ निशा ने एक बार फिर खुद को परीक्षा के लिए तैयार किया। एक बार फिर निशा ने और अधिक कड़ी मेहनत और लगन के साथ mains की परीक्षा देने आई। इसका परिणाम यह हुआ कि निशा ने देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक UPSC की परीक्षा को आखिरकार पार कर ही दिख लाया और अब उसका सपना पूरा हो ही गया। जिसके लिए उसने इतने लम्बे समय से इंतजार किया था और जिस सपने के पूरे होने की चाह में वह दिन रात कड़ी मेहनत करती थी।
हमारे सपने पूरे हो सकते हैं अगर हम कड़ी मेहनत और लगन के साथ अपना कार्य करे तो, सब मुमकिन है। इस जीवन में सब कुछ सम्भव हो सकता है यदि हम खुद पर और सबसे महत्वपूर्ण ईश्वर पर विश्वास रखें तो कुछ भी हो सकता है।
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