Ghatotkach in Hindi Mythological Stories by Renu books and stories PDF | घटोत्कच

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घटोत्कच

घटोत्कच महाभारत के प्रमुख पात्रों में से एक है। कुंती के पुत्र भीम का राक्षस पुत्र घटोत्कच था। द्रौपदी के अतिरिक्त भीम की एक अन्य पत्नी का नाम हिडिंबा था, जिससे भीम का परमवीर पुत्र घटोत्कच उत्पन्न हुआ था। घटोत्कच ने ही इन्द्र द्वारा कर्ण को दी गई अमोघ शक्ति को अपने ऊपर चलवाकर अर्जुन के प्राणों की रक्षा की थी। हिडिम्बा राक्षसी के गर्भ से भीमसेन के द्वारा घटोत्कच की उत्पत्ति हुई थी। घट-हाथी का मस्तक उत्कच= केशहीन। इसका मस्तक हाथी के मस्तक जैसा और केश-शून्य होने के कारण यह घटोत्कच नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह असल में मिश्र संतान था, इस कारण इसमें मनुष्यों और राक्षसों की विशेषताएँ विद्यमान थीं। भीमसेन के साथ हिडिम्बा का संयोग वन में हो गया था और वहीं घटोत्कच का जन्म हुआ था। फलतः पाण्डवों को राज्य की तथा संतान की प्राप्ति होने से पहले इसकी प्राप्ति हो गई थी। वनवास के समय पाण्डवों को इससे और इसके जाति-भाइयों से बड़ी सहायता मिली थी। यह पाण्डवों को अपना आत्मीय समझता था और वे भी इस पर पुत्र जैसा स्नेह रखते थे।

दुर्योधन द्वारा बनवाये गये लाक्षागृह से सुरंग के रास्ते निकलकर पाण्डव अपनी माता के साथ वन के अन्दर चले गये। कई कोस चलने के कारण भीमसेन को छोड़कर शेष लोग थकान से बेहाल हो गये और एक वट वृक्ष के नीचे लेट गये। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं, इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौटकर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे, अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे।

उस वन में हिडिम्ब नाम का एक भयानक असुर का निवास था। मानवों का गंध मिलने पर उसने पाण्डवों को पकड़ लाने के लिये अपनी बहन हिडिम्बा को भेजा, ताकि वह उन्हें अपना आहार बनाकर अपनी क्षुधा पूर्ति कर सके। वहाँ पर पहुँचने पर हिडिम्बा ने भीमसेन को पहरा देते हुये देखा और उनके सुन्दर मुखारविन्द तथा बलिष्ठ शरीर को देखकर उन पर आसक्त हो गई। उसने अपनी राक्षसी माया से एक अपूर्व लावण्मयी सुन्दरी का रूप बना लिया और भीमसेन के पास जा पहुँची। भीमसेन ने उससे पूछा, 'हे सुन्दरी! तुम कौन हो और रात्रि में इस भयानक वन में अकेली क्यों घूम रही हो?' भीम के प्रश्न के उत्तर में हिडिम्बा ने कहा, 'हे नरश्रेष्ठ! मैं हिडिम्बा नाम की राक्षसी हूँ। मेरे भाई ने मुझे आप लोगों को पकड़कर लाने के लिये भेजा है, किन्तु मेरा हृदय आप पर आसक्त हो गया है तथा मैं आपको अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूँ। मेरा भाई हिडिम्ब बहुत दुष्ट और क्रूर है, किन्तु मैं इतनी सामर्थ्य रखती हूँ कि आपको उसके चंगुल से बचाकर सुरक्षित स्थान तक पहुँचा सकूँ।'

इधर अपनी बहन को लौटकर आने में विलम्ब होता देखकर हिडिम्ब उस स्थान पर जा पहुँचा, जहाँ पर हिडिम्बा भीमसेन से वार्तालाप कर रही थी। हिडिम्बा को भीमसेन के साथ प्रेमालाप करते देखकर वह क्रोधित हो उठा और हिडिम्बा को दण्ड देने के लिये उसकी ओर झपटा। यह देखकर भीम ने उसे रोकते हुये कहा, 'रे दुष्ट राक्षस! तुझे स्त्री पर हाथ उठाते लज्जा नहीं आती? यदि तू इतना ही वीर और पराक्रमी है, तो मुझसे युद्ध कर।' इतना कहकर भीमसेन ताल ठोंककर उसके साथ मल्ल युद्ध करने लगे। कुन्ती तथा अन्य पाण्डवों की भी नींद खुल गई। वहाँ पर भीम को एक राक्षस के साथ युद्ध करते तथा एक रूपवती कन्या को खड़ी देखकर कुन्ती ने पूछा, 'पुत्री! तुम कौन हो?' हिडिम्बा ने सारी बातें उन्हें बता दी। अर्जुन ने हिडिम्ब को मारने के लिये अपना धनुष उठा लिया, किन्तु भीम ने उन्हें बाण छोड़ने से मना करते हुये कहा, 'भैया! आप बाण मत छोड़िये, यह मेरा शिकार है और मेरे ही हाथों मरेगा।' इतना कहकर भीम ने हिडिम्ब को दोनों हाथों से पकड़ कर उठा लिया और उसे हवा में अनेकों बार घुमा कर इतनी तीव्रता के साथ भूमि पर पटका कि उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।

हिडिम्ब के मरने पर वे लोग वहाँ से प्रस्थान की तैयारी करने लगे, इस पर हिडिम्बा ने कुन्ती के चरणों में गिरकर प्रार्थना करने लगी, 'हे माता! मैंने आपके पुत्र भीम को अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया है। आप लोग मुझे कृपा करके स्वीकार कर लीजिये। यदि आप लोगों ने मझे स्वीकार नहीं किया तो मैं इसी क्षण अपने प्राणों का त्याग कर दूँगी।' हिडिम्बा के हृदय में भीम के प्रति प्रबल प्रेम की भावना देखकर युधिष्ठिर बोले, 'हिडिम्बे! मैं तुम्हें अपने भाई को सौंपता हूँ, किन्तु यह केवल दिन में तुम्हारे साथ रहा करेगा और रात्रि को हम लोगों के साथ रहा करेगा।' हिडिम्बा इसके लिये तैयार हो गई और भीमसेन के साथ आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। एक वर्ष व्यतीत होने पर हिडिम्बा का पुत्र उत्पन्न हुआ। उत्पन्न होते समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच रखा गया। वह अत्यन्त मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया।

हिडिम्बा ने अपने पुत्र को पाण्डवों के पास ले जाकर कहा, 'यह आपके भाई की सन्तान है, अतः यह आप लोगों की सेवा में रहेगा।' इतना कहकर हिडिम्बा वहाँ से चली गई। घटोत्कच श्रद्धा से पाण्डवों तथा माता कुन्ती के चरणों में प्रणाम करके बोला, 'अब मुझे मेरे योग्य सेवा बतायें।? उसकी बात सुनकर कुन्ती बोली, 'तू मेरे वंश का सबसे बड़ा पौत्र है। समय आने पर तुम्हारी सेवा अवश्य ली जायेगी।' इस पर घटोत्कच ने कहा, 'आप लोग जब भी मुझे स्मरण करेंगे, मैं आप लोगों की सेवा में उपस्थित हो जाउँगा।' इतना कह कर घटोत्कच उत्तराखंड की ओर चला गया।