Tadap Ishq ki - 37 in Hindi Love Stories by Miss Thinker books and stories PDF | तड़प इश्क की - 37

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तड़प इश्क की - 37

...... पंचमणि में वैदेही..........


अचानक आई आवाज से विक्रम हैरान रह गया....

" कौन हो तुम...?... सामने आओ..."

....अब आगे......

विक्रम के चिल्लाते ही एक छोटी तितली अंदर आती है जो थोड़ी ही देर में अपने असली रूप में आ चुकी थी , जिसे देखकर विक्रम दांतों को भिंच के गुस्से में कहता है..." माद्रिका...."
माद्रिका अपने शक को यकीन में बदलते हुए कहती हैं..." मुझे लग ही रहा था तुम कोई साधारण इंसान नहीं हो , हममें से ही कोई हो , अब ये और बता दो तुम आखिर हो कौन..?.."
विक्रम एक शातिराना अंदाज में हंसते हुए कहता है..." तुम तो ऐसे पूछ रही हो , जैसे छोटे बच्चे को लोलीपॉप देकर पूछते बेटा आपका नाम क्या है..."
विक्रम के इस बात से माद्रिका (तानिया) उसे गुस्से में घूरते हुए कहती हैं..." पता तो मैं कर लूंगी, , बस इतना ध्यान रखना , वैदेही केवल अधिराज की है तुम उससे दूर रहो ..."
इतना कहकर माद्रिका वहां से चली जाती है और विक्रम उसे जाते देख हंसते हुए कहता है..." वैदेही किसकी होगी , ये वक्त बताएगा लेकिन मैं तुम्हें अपने रास्ते में नहीं आने दूंगा , तुम जैसी शातिर कीट को नियंत्रित करना मैं अच्छे से जानता हूं..."
उधर अधिराज शशांक से चिंता जाहिर करते हुए कहता है..." शशांक तुम मां को लेकर इंसानी दुनिया में जाओ , हम यहां से अपने विशेष सैनिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा कर आते हैं..."
अधिराज की बात मानकर शशांक राजमाता रत्नावली को लेकर इंसानी दुनिया में पहुंचता है , जहां वो अपने रहने की व्यवस्था करता है....
इधर विक्रम किसी और ही ख्यालों में था....
अपने आप से बातें करते हुए कहता है...." मुझे याद है एकांक्षी जब तुम पंचमढ़ी आई थी...."
फ्लैशबैक.....
वैदेही आज सुबह जल्दी उठकर कहीं जाने के लिए तैयार हो रही थी , जिसे देखकर उसकी मां पूछती है..." आज कहां जा रही हो , इतनी भौंर में , अधिराज तो आज आयेंगे नहीं..."
वैदेही अपनी आंखों में काजल लगाते हुए कहती हैं..." मां ! हमें स्मरण है, तभी तो हम औषधि के लिए पंचमणि जा रहे हैं , जब अधिराज होते हैं , तो वो हमें कहां औषधि के लिए जाने देते हैं और आपको तो पता है, हमारे पास औषधि कितनी कम है..."
" ठीक है ,अपना ध्यान रखना..."
वैदेही अपने आप से कहती हैं..." आप निश्चित रहिए मां, वहां युवराज माणिक है जो हमारी सहायता अवश्य करेंगे..."
वैदेही अपनी मां की आज्ञा से पंचमणि के लिए चल देती है , .......
काफी देर चलने के बाद आखिरकार उसे पंचमणि की सीमा में प्रवेश कर लिया था , ज्यादा चलने की वजह से उसके चेहरे पर थकान साफ देखी जा सकती थी लेकिन अपने काम के प्रति कमी नहीं आने की वजह से उसके अंदर आत्मविश्वास जागृत था.....
वैदेही पंचमणि की सीमा से काफी अंदर आ चुकी थी , अचानक उस सुनसान रास्ते में एक हलचल पैदा हुई ...
वैदेही अचानक हुई पक्षियों की कलरव से थोड़ी परेशान होने लगी तभी एक विशालकाय सांप उसके सामने था , उसे देखकर वैदेही काफी डर चुकी थी, वो विशालकाय सांप उसके पूछता है...." तुम कौन हो...?...और यहां पंचमणि क्यूं आई हो...?..."
वैदेही पहले ही उसके रूप से काफी डर चुकी थी, उसमें भी वो विशालकाय सांप उसके सामने आता जा रहा था ....
वैदेही जोर जोर से चिल्लाते हुए कहती हैं...." हम तो साधारण सी उपचारिका हैं, हमें खाकर तुम्हारा पेट नहीं भरेगा.."
तभी वो विशालकाय सांप अपना रूप बदलता है, जिसे देख वैदेही हैरानी से कहती हैं...."आप.."

..........to be continued........
आखिर कौन है ये विशालकाय सांप..?