Muje Nyay Chahiye - 4 in Hindi Women Focused by Pallavi Saxena books and stories PDF | मुझे न्याय चाहिए - भाग 4

Featured Books
Categories
Share

मुझे न्याय चाहिए - भाग 4

भाग- 4  

हाँ खैर यह बात तो मैं भी बखूबी समझता हूँ. ऐसा है तो फिलहाल मैं आपको इतना नहीं दे पाऊँगा. जी कोई बात नहीं, रेणु को फिर पैसे लौटाने की चिंता सताने लगी.. इस महीने तो उसने एडवांस लेकर किसी तरह अपने गाँव में अपने माँ बाबा को पैसे भेज दिये थे. लेकिन यदि उसे जल्द ही कोई काम ना मिला तो अगले महीने क्या होगा, उसकी माँ ऐसों की राह देख रही होगी और पैसे नहीं पहुंचेंगे तो बाबा को भी कितनी तकलीफ होगी, कितना दुख होगा. वह बेचारे तो अपना दुख चाहकर भी किसी से कह नहीं पाते, सोचते सोचते रेणु का चेहरा उतर गया और उसने वापस जाने की ओर कदम बढ़ा दिये तभी उस नवयुवक ने रेणु से कहा सुनो, एक काम है यदि तुम करना चाहो तो ? सुनकर रेणु के चेहरे पर मुस्कान खिल उठी. हाँ हाँ क्यूँ नहीं बताइये ना क्या करना होगा मुझे ? ऊपर वाले माले पर एक आंटी जी रहती हैं उनके एक बच्ची है जो ज़रा...कहते कहते वह चुप हो गया. जरा क्या ? उसने काशी की ओर देखा, काशी ने इशारा समझते हुए कहा पागल है क्या ? नहीं नहीं...! ऐसा नहीं है, आप भी ना कैसे बोल रही हैं पागल नहीं लेकिन हाँ पूरी तरह ठीक भी नहीं है. आप मिल लो, आप लोगों को खुद ही समझ में आ जाएगा माजरा क्या है .

मैं समझ गयी. चल काशी, पर तू सुन तो सही बाद में सुनूँगी. तू अभी चल मेरे साथ और सुनिए पैसे वाली पार्टी है, यदि आपने काम के लिए हाँ कह दिया तो हो सकता है आपको कहीं और काम करने की जरूरत ही ना पड़े. रेणु उसे देखती हुई आगे बढ़ गयी और उसने उस माले पर जाकर दरवाजे पर दस्तक दी. अंदर से आवाज आयी कौन है ? कहते हुए एक अधेड़ उम्र की महिला ने दरवाजा खोला और बहुत ही चिढ़े हुए स्वर में पूछा. कौन हो तुम ? क्या चाहिए ? देखो हमें कुछ नहीं लेना है, बाद में आना. कहकर वह महिला बिना ही कुछ सुने दरवाजा बंद करने लगी. तब रेणु ने कहा जी सुनिए तो सही...! पर उस महिला ने उस वक़्त उनकी एक ना सुनी और उनके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया. किन्तु इस बार काशी ने एक बार फिर दरवाजे पर दस्तक दी और दरवाजा तुरंत खुल गया. वही महिला बाहर आयी और चिल्लाते हुए बोली, तुम दोनों गयी नहीं अभी तक यहाँ से, कहा न मैंने मुझे कुछ नहीं चाहिए, जाओ यहाँ से ...! आंटी एक बार आप हमारी बात सुन तो लीजिये.

क्या है ? जल्दी बोलो टाइम खोटी नहीं करने का रे बाबा. मेरा नाम रेणु हैं और यह काशी हैं. हाँ तो मैं क्या करूँ...? जी मैं काम की तलाश में हूँ. और मुझे पता चला है आपको अपनी बेटी के लिए एक सहयोगी की तलाश है. हाँ है तो सही, पर काम बहुत मुश्किल है पर यदि तुमने कर लिया तो महीने का 6 से 7 हजार तक दूंगी और बाकी रहना खाना अलग छुट्टी एक दिन की भी नहीं मिल सकती तुमको. बीच में अगर एडवांस की जरूरत पड़ी कभी या कोई परेशानी हुई तब भी पैसों से सहायता कर दूँगी, पर शर्त यही है कि छुट्टी नहीं मिलेगी तुमको. 'जी मंजूर है'. एक मिनिट रुको मेरी कुछ शर्तें भी हैं पहले वो सुन लो बाद में सोचकर बताना. रेणु और काशी ने एक दूसरे की तरफ देखा और बोली जी कहिए. पहली बात वो कोई साधारण बच्ची नहीं है. वह दिमागी रूप से ठीक नहीं है. दूसरी बात उसके बाद भी मैंने उसे बहुत प्यार से पाला पोस कर बड़ा किया है. मैं किसी भी कीमत पर उसे दुखी नहीं देख सकती और एक बात मैंने आज तक कभी उस पर हाथ भी नहीं उठाया है और मैं भी नहीं चाहूंगी कि कोई उस पर हाथ उठाए या बहुत ऊंची आवाज़ में उससे बात करे.

अच्छा और कितने बजे आना होगा सुबह 7 से शाम के 10 तक तो तुमको यहाँ रहना ही पड़ेगा. सुबह से ? हाँ क्यूँ ? नहीं चलेगा ? तो पहले बोलना था ना फालतू टाइम खराब किया मेरा...हुम्म पता नहीं कहाँ कहाँ से चले आते हैं, कहते हुए उस महिला ने एक बार फिर उनके मुंह पर दरवाजा बंद कर दिया. रेणु फिर से उदास हो गयी. काशी ने कहा कोई बात नहीं रे, अभी तू टेंशन मत ले. मैं हूँ ना, कुछ न कुछ तो हो ही जाएगा. अभी चल वापस चलते हैं. दोनों घर वापस लौट आयी रेणु के दिमाग में अगले महीने कि चिंता लगातार चलती रही. अगले दिन फिर दोनों ग्रह उद्योग पहुंचे. रेणु की ट्रेनिंग पूरी होने में एक महीने शेष थे. कुछ ही दिनों में रेणु पूरा काम सीख चुकी थी आचार बनाने से लेकर पैकिंग तक सभी कुछ, अब बारी थी आचार के बिकने की जितना ज्यादा बिकेगा उतना ही ज्यादा मुनाफा और उसी हिसाब से तनख्वाह मिलेगी. इस काम के चलते रेणु को रहने खाने के साथ-साथ पैसों का जुगाड़ तो हो गया पर वह इतना पैसा नहीं कमा पा रही थी गाँव अच्छे से पैसा भेज सके.

उसने अपना सारा हाल एक पत्र में अपनी माँ को लिख भेजा ताकि कम पैसे पाकर वह ज्यादा निराश ना हो. यूं भी बाबा की थोड़ी पेंशन तो मिलती ही थी उस पर रेणु कहीं न कहीं से थोड़ी बहुत जुगाड़ कर एक से दो हज़ार तो भेज ही देती हैं. गाँव में रेह रहे उसके माँ बाबा के लिए काफी था धीरे-धीरे अब उसके गाँव वाले घर की हालत सुधारने लगी थी. लक्ष्मी ने पैसा जोड़ जोड़कर घर पहले से अच्छा कर लिया था. वरना पहले तो उनका घर एक झोंपड़ी की तरह ही दिखाई देता था. इधर जब कुछ महीनों तक रेणु को मनचाहा पैसा मिलना प्रारम्भ ना हुआ तो उसने एक बार काशी से बात की, कि यदि वह उस महिला के घर में जाकर ही रहने लगे तो कैसा रहेगा. ऐसा करते हुए उसे यहाँ का काम छोड़ना पड़ेगा. क्या यह ठीक होगा या नहीं ? अभी उसे कंपनी का एडवांस भी चुकाना है. माँ को पैसा भेजने के चक्कर में रेणु वो एडवांस अब तक लौटा नहीं पायी है. काशी ने कहा मुझे थोड़ा टाइम दे, मैं सोचकर बताती हूँ. काशी ने अगले दिन मैनेजर से बात की तो मैनेजर भड़क गया और बोला देखो काशी मैंने तुम्हारे कहने पर इस लड़की रेणु को रख तो लिया था. लेकिन अब मैं इसे बिना पैसा चुकाए यहाँ से जाने की अनुमति नहीं दे सकता.

मेरे ऊपर भी कोई है जिसे मुझे जवाब देना होता है. तुम समझती क्यूँ नहीं हो ?? और फिर उसने भी तो स्वीकार नामे पर हस्ताक्षर किए थे न वह भी अपनी मर्जी से किसी ने कोई जबरदस्ती नहीं कि थी उसके साथ, 'जी मैं जानती हूँ' और इतने समय से आप भी उससे थोड़ा बहुत तो जाने ही लगे होंगे. वह बेईमान लड़की नहीं है. वह बहुत ही समझदार और मेहनती लड़की है. जिस तरह आप मुझ पर भरोसा करते हैं, एक बार उस पर भी करके तो देखिये. ओह काशी ...! ठीक है, लेकिन इस बात का पता मालिक को नहीं लगना चाहिए. क्यूंकि अगर मेरी नौकरी पर बात आयी ना तो मैं तुम सब की नौकरी भी नहीं रहने दूंगा. हाँ....हाँ ...! आप उसकी चिंता मत कीजिये. काशी ने जब यह खबर रेणु को सुनाई तो रेणु की जान में जान आयी और फिर अगली सुबह ही रेणु वहाँ जा पहुंची पर उसने सोचा उस युवक से मिलले एक बार. जाने क्या जादू हैं उसके व्यक्तित्व में कि रेणु का मन तब से उसकी सूरत और सीरत में ही अटका हुआ था. कहीं न कहीं अपनी निजी परेशानियों के बावजूद भी उस नव युवक का आकर्षक रंग रूप, माथे पर लाल चन्दन का टीका और हाथों में बंधा वो मोटा सा कलावा, वो गठीला बदन रह रहकर रेणु की आँखों में घूम जाया करता था. उसने ऊपर जाने से पहले एक बार रुककर उसके दरवाजे पर भी दस्तक दी और तुरंत ही दरवाजा खुल गया, तो रेणु एकदम से चौंक गयी।

अरे आप, क्या हुआ काम मिला आपको ? जी, रेणु अब भी उसका मनमोहक चेहरा देखकर विस्मित सी हुई जा रही है. हैलो ...! कहाँ खो गयी. जी ...जी वो मैं...! बस यूं ही, मैंने कुछ पूछा आपसे ? जी पता नहीं. पता नहीं मतलब ? जी वो मेरा मतलब हैं कि उस दिन तो मैंने माना कर दिया था. अब पता नहीं उन्होंने किसी ओर को रख लिया हो शायद अब तो उस बात को काफी समय हो गया ना...हाँ यह बात तो है. आप का काम कैसा चल रहा है...? रेणु ने पूछा 'बस ठीक ही है'. ओह अच्छा मतलब मामला ठंडा जान पड़ता है. नहीं ऐसा भी नहीं है, एक दो प्रोजेक्ट हैं जिनकी शूटिंग शुरू होने वाली है तो अभी कुछ कहा नहीं जा सकता. अरे आपने अपना नाम तो बताया ही नहीं मेरा नाम आदित्य है प्यार से लोग मुझे आदि कह कर बुलाते हैं. अच्छा रेणु ने मुसकुरा के कहा और आपका ...? जी मेरा नाम रेणु है. मैं गाँव से यहाँ काम की तलाश में आयी थी. घर पर माँ बाबा की तबीयत और घर के हालात ठीक नहीं है. बाबा को लकवा मार गया तब से घर की माली हालात और भी ज्यादा बिगड़ गयी थी और मेरे कोई और भाई बहन भी नहीं हैं ना, जो उनका ख्याल रख सकें. बस इसलिये मुझे ही यह कदम उठाना पड़ा.

अरे वाह...! यह तो बहुत ही अच्छा किया आपने, जो आप यहाँ चली आयी. यह मुंबई नगरी कहने को माया नगरी ज़रूर हैं, लेकिन कभी किसी को भूखा नहीं सोने देती.

आगे रेणु को वो काम मिला या नहीं और कैसे उसकी ज़िंदगी अपने संघर्षों के साथ आगे बढ़ती रही...जानने के लिए पढ़ते रहिए और जुड़े रहिए इस संघर्ष भरी यात्रा के साथ...जारी है ....