सहारा -5उन की जगह चाय बनाने के लिए अलका रसोई में जाना चाहती थी पर आरती ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया. ‘‘बहू, तुम्हारे पापा के हाथ की बनी स्पेशल चाय पीने की मुझे तो लत पड़ गई है. बना लेने दो उन्हीं को चाय,’’ आरती के मुंह से निकले इन शब्दों ने अलका और मोहित के मनों की उलझन को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था.
‘‘मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा है,’’ उन चारों बुजुर्गों को कुछ देर बाद बच्चा बन कर राहुल के साथ हंसतेबोलते देख अलका ने धीमी आवाज में मोहित के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की. ‘‘कितने खुश हैं चारों,’’ मोहित भावुक हो उठा, ‘‘इस सुखद बदलाव का कारण कुछ भी हो पर यह दृश्य देख कर मेरे मन की चिंता गायब हो गई है. ये सब एकदूसरे का कितना मजबूत सहारा बन गए हैं.’’
‘‘पर ये चमत्कार हुआ कैसे?’’ अपनी मां के टखने में आई मोच वाली घटना से अनजान अलका एक बार फिर आश्चर्य से भर उठी. इस बार अलका की आवाज उस के पिता के कानों तक पहुंच गई. उन्होंने तालियां बजा कर सब का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया और फिर बड़े स्टाइल से गला साफ करने के बाद स्पीच देने को तैयार हो गए.
‘‘हमारे रिश्तों में आए बदलाव को समझने के लिए अलका और मोहित के दिलों में बनी उत्सुकता को शांत करने के लिए मैं उन दोनों से कुछ कहने जा रहा हूं. मेरी प्रार्थना है कि आप सब भी मेरी बात ध्यान से सुनें. ‘‘अपनी अतीत की गलतियों को ले कर अगर कोई दिल से पश्चात्ताप करे तो उस के अंदर बदलाव अवश्य आता है. जब नीरज अपनी पत्नी व बेटी को ले कर अलग हुआ तब मीना और मुझे समझ में आया कि हम ने अलका को किराए के मकान में जाने की शह दे कर बहुत ज्यादा गलत काम किया था.‘‘बढ़ती उम्र की बीमारियों के शिकार बने हम चारों मायूस व दुखी इनसानों के दिलों में एकदूसरे के लिए बहुत सारा मैल जमा था. इस मैल को दूर कराने का मौका संयोग से हमें मिल गया. ‘‘मनों का मैल मिटा तो वक्त ने यह सिखाया और दिखाया कि हम चारों एकदूसरे का मजबूत सहारा बन सकते हैं. आपस में अच्छे दोस्तों की तरह सहयोग शुरू करने के बाद आज हम सब अपने को ज्यादा सुखी, खुश और सुरक्षित महसूस करते हैं.
‘‘बेटी अपने घर चली जाए और बेटाबहू किसी भी कारण से इस बड़ी उम्र में मातापिता को सहारा देने को…उन की देखभाल करने को उपलब्ध न हों तो पड़ोसी, मित्र व रिश्तेदार ही उन के काम आते हैं. हम रिश्तेदार तो पहले ही थे, अब पड़ोसी व अच्छे मित्र भी बन गए हैं,’’ भावुक नजर आ रहे उमाकांत ने आगे बढ़ कर महेशजी को उठाया और फिर दोनों दोस्त हाथ पकड़ कर साथसाथ खड़े हो गए. ‘‘पड़ोसी कैसे?’’ मोहित ने हैरानी से पूछा.
‘‘तुम दोनों को सरप्राइज देने के लिए हम ने यह खबर अभी तक छिपाए रखी थी कि इस के ठीक ऊपर वाले फ्लैट में हम ने पिछले हफ्ते शिफ्ट कर लिया है,’’ उमाकांत ने बताया. ‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा है,’’ मोहित ने इस खबर की पुष्टि कराने को अपने पिता की तरफ देखा.
‘‘यह बात सच है, बेटे. पुराना फ्लैट बेच कर ऊपर वाला फ्लैट खरीदने का इन का फैसला समझदारी भरा है. पड़ोसी होने से हम एकदूसरे के सुखदुख में फौरन शामिल हो जाते हैं. ‘‘इस के अलावा हमारी उचित देखभाल न कर पाने के कारण अब तुम बच्चों को किसी तरह के अपराधबोध का शिकार बनने की कोई जरूरत नहीं है. सब से ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अब हमारा अकेलापन दूर भाग गया है. आपसी सहयोग के कारण हमारा जीवन ज्यादा खुशहाल और रसपूर्ण हो गया है,’’ महेशजी का चेहरा जोश व उत्साह से चमक उठा था.‘‘आप सब को इतना खुश देख कर मेरा मन बहुत ज्यादा हलकापन महसूस कर रहा है लेकिन…’’ ‘‘लेकिन क्या?’’ अपने बेटे को यों झटके से चुप होता देख आरती चिंतित नजर आने लगीं.
‘‘इस अलका बेचारी का मायका और ससुराल तो अब ऊपरनीचे के घर में हो गए. ये ससुराल वालों से रूठ कर अब कहां जाया करेगी?’’ मोहित के उस मजाक पर सब ने जोर से ठहाका लगाया तो अलका ने शरमा कर अपनी मां व सास के पीछे खुद को छिपा लिया था |