सहारा -3मोहित ने एक भगौने पर ढकी तश्तरी को हटाया और बोला, ‘‘वाह, मटरपनीर की सब्जी बनी है. लगता है मां सारा लंच तैयार कर के गई हैं.’’ ‘‘डाक्टर के यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए वे तो 3 घंटे पहले घर से चली गई थीं. आज लंच में तुम दोनों को मेरे हाथ की बनी सब्जियां खाने को मिलेंगी,’’ किसी छोटे बच्चे की तरह गर्व से छाती फुलाते हुए महेशजी ने उन दोनों को बताया.
‘‘आप ने खाना बनाना कब से सीख लिया, पापा?’’ मोहित हैरान हो उठा. ‘‘घर के सारे काम करने का हुनर हम आदमियों को भी आना चाहिए. तुम बहू से टे्रनिंग लिया करो. अब मैं तुम्हें इलायची वाली चाय बना कर पिलाता हूं.’’
‘‘चाय मुझे बनाने दीजिए, पापा,’’ अलका आगे बढ़ आई. ‘‘अगली बार तुम बनाना. तुम्हारे हाथ की बनी चाय पिए तो एक अरसा हो गया,’’ महेशजी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा तो अजीब सी भावुकता का शिकार हो उठी अलका को अपनी पलकें नम होती प्रतीत हुई थीं.
तभी किसी ने बाहर से घंटी बजाई तो मोहित दरवाजा खोलने के लिए चला गया. ‘‘अलका, तुम्हारे पापा आए हैं,’’ कुछ देर बाद मोहित की ऊंची आवाज अलका के कानों तक पहुंची तो वह भागती सी ड्राइंगरूम में पहुंच गई.
‘‘आप, यहां कैसे?’’ अलका अपने पिता उमाकांत को देख खुशी से खिल उठी. ‘‘तुम लोगों के आने की खुशी में रसमलाई ले कर आया हूं,’’ राहुल को गोद से उतारने के बाद उमाकांत ने अपनी बेटी को छाती से लगा लिया.
‘‘उमाकांत, रसमलाई का मजा खाने के बाद लिया जाएगा. अभी चाय बन कर तैयार है,’’ महेशजी रसोई में से ही चिल्ला कर बोले. ‘‘ठीक है, भाईसाहब,’’ उन्हें ऊंची आवाज में जवाब देने के बाद उमाकांत ने हैरान नजर आ रहे अपने बेटीदामाद को बताया, ‘‘हम दोनों एकदूसरे के बहुत पक्के दोस्त बन गए हैं. रोज मिले बिना हमें चैन नहीं पड़ता है.’’
‘‘यह चमत्कार हुआ कैसे?’’ इस सवाल को पूछने से मोहित खुद को रोक नहीं सका. ‘‘यह सचमुच चमत्कार ही है कि इस घर में हमारा स्वागत अब दोस्तों की तरह होता है, मोहित,’’ सस्पेंस बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराते हुए उमाकांत उस के सवाल का जवाब देना टाल गए थे.
तभी करीब 2 महीने पहले घटी एक घटना की याद उन के मन में बिजली की तरह कौंध गई थी.
अपने बेटेबहू के अलग हो जाने से मीना बहुत ज्यादा दुखी और परेशान थीं. बेखयाली में घर की सीढि़यां उतरते हुए उन का पैर फिसला और दाएं टखने में मोच आ गई. डाक्टर की क्लिनिक में उन की मुलाकात महेश और आरती से हुई. आरती की कमर का इलाज वही डाक्टर कर रहा था.
तेज दर्द के कारण तड़प रही मीना का आरती ने बहुत हौसला बढ़ाया था. उस वक्त उन्होंने मीना के खिलाफ अपने मन में बसे सारे गिलेशिकवे भुला कर उन्हें सहारा दिया था. अपने बेटे से बहुत ज्यादा नाराज मीना ने उसे अपनी चोट की खबर नहीं दी थी. डाक्टर को दिखाने के बाद कुछ देर आराम करवाने के लिए महेशजी व आरती उन दोनों को अपने घर ले आए थे.
मीना का सिर भी दीवार के साथ जोर से टकराया था. वहां कोई जख्म तो नहीं हुआ पर सिर को हिलाते ही उन्हें जोर से चक्कर आ रहे थे.