भाग 19
पिछले भाग में आपने पढ़ा की जगत रानी रज्जो को बांझ कहते हुए मन्दिर ले जाने से मना कर देती है। रज्जो को जय का दोस्त रतन तसल्ली देता है की वो जरूर मां बनेगी। अब आगे पढ़े।
रज्जो के उठ कर रसोई में जाते ही दबे स्वर में जय रतन से बताने लगा, "यार अब तू ही बता की मैं अम्मा का क्या करू..? जब भी वो मुझे अकेले पाती हैं, दूसरी शादी की बात करती है। अब तू ही बता… क्या बच्चा नहीं हो रहा तो मैं दूसरी शादी कर लूं..? रज्जो जिसे सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन दे कर ब्याह कर लाया हूं उसे एक औलाद की खातिर छोड़ दूं.…? मैं अम्मा को कभी भी किसी भी बात पर पलट कर जवाब नही देता। पर इस बार ऐसी बात कह दी अम्मा ने की मुझे जवाब देना ही पड़ा। मैने कह दिया की अम्मा… ! सुन लो बच्चा हो या ना हो मैं रज्जो को नही छोडूंगा। और दूसरी शादी ……? वो तो कभी नही करूंगा। फिर मन लो तुम्हारी बात मान कर दूसरी शादी कर भी लूं, उसे भी बच्चा नहीं हुआ तो फिर मेरी तीसरी शादी करोगी…….? अगर भगवान को देना होगा तो रज्जो ही मां बनेगी। भगवान को नही देना होगा तो दूसरी शादी पर भी नही देंगे। शायद इसी वजह से अम्मा मुझसे इतनी ज्यादा खफा हैं और भड़ास निकाल दी रज्जो पर।"
रतन जय को समझाने लगा, "यार ! तुम दोनो इतने निराश मत हो। भौजी की गोद जरूर भरेगी। तुम देखना मेरी बात सच होगी एक दिन। पर वादा मत भूलना मेरी बेटी को बहू बनाना होगा।"
रतन की बातों से जय को थोड़ा सहारा मिला। वो मुस्कुराते हुए बोला,"हां भई तुम्हारी बेटी को ही बहू बनाऊंगा। वादा रहा। पर पहले भगवान संतान का मुंह तो दिखाएं।"
तभी रज्जो चाय और पानी लेकर आ गई। कुछ बातें उसने भी सुन ली जय और रतन की। पर वो खुद को अनजान ही जाहिर करती रही।
जय और रतन साथ बैठ कर चाय पीने लगे। रज्जो भी वहीं जमीन पर बैठ कर दोनो की बातें सुन रही थी। साथ में थाली में चावल भी लेकर बिन रही थी।
तभी पूजा निपटा कर जगत रानी, गुलाबो विजय और बच्चों को लेकर मंदिर से वापस आ गई।
रतन ने जगत रानी को देखा तो उठ कर उनके पांव छूने लगा और पूछा, "कैसी हो अम्मा…? हो गई पूजा..?"
जगत रानी रतन को उलाहना देते हुए बोली, खुश रह बेटा। पर आज अम्मा की याद तुझे कैसे आ गई..? अच्छा … तेरा दोस्त आया है ना। तभी तेरे दर्शन हो गए। वरना तू तो बगल के गांव में रह के परदेसी हो गया है।"
फिर जगत रानी बोली, "जाना मत रतन। अभी प्रसाद देती हूं। खा कर तब जाना।"
रतन बोला, "हां अम्मा..! बैठा हूं। ले आओ प्रसाद। खा के तभी जाऊंगा।"
अम्मा को देख रज्जो पल्लू खींचती हुई अंदर अपने कमरे में चली गई इस डर से को कहीं अम्मा फिर से और कुछ ना कह दे।
जगत रानी अंदर गई और प्रसाद निकाल कर सबको देने लगी। बच्चो को प्रसाद देकर जय और रतन के लिए खुद थाली में ले कर बाहर आ गई।
रतन को प्रसाद देते हुए बोली, "तेरे तो दो बेटे हैं ना रतन।"
रतन बोला, "हां ….अम्मा..! "
जगत रानी बोली, "अब सब का भाग्य हमारे जय जैसा थोड़े ना है। अब देखो विजू ही जय से कितना छोटा है..? पर तीन बच्चे का बाप बन गया।"
फिर कुछ देर रुक कर जगत रानी बोली, "बेटा..! तू इसे समझा ना। रज्जो तो मां बनने से रही। ये दूसरी शादी को राजी हो जाए। तो इसका भी वंश डूबने से बच जाए।"
जगत रानी की बात सुन रतन अम्मा को समझाते हुए बोला, "अम्मा…! अभी कौन सी उमर बीत गई है इन दोनों की…? किसी को जल्दी औलाद का सुख दे देता है भगवान, और किसी को देर से। जल्दी ही इन्हे भी औलाद का सुख भगवान देंगे। आप देखना अम्मा….!"
रतन जगत रानी की शादी वाली बात का विरोध करते हुए कहा।
रतन की बातें जगत रानी को अच्छी नहीं लगी। वो अनमानी सी हो गई रतन की बातों से। रतन भांप गया की जगत रानी के मनोभाव को उसके चेहरे से। इसलिए उसे चले जाना ही उचित लगा।
वो उठा और जगत रानी के पैर छूते हुए बोला, "अच्छा अम्मा..! चलता हूं काफी समय हो गया आए। मां को बिना बताए ही चला आया था।"
जगत रानी भी यही चाहती थी। रतन की हां में हां मिलाते हुए बोली, "हां.. हां..! बेटा जाओ। तुम्हारी अम्मा राह देखती होगी।"
रतन को बाहर तक छोड़ने जय भी आया। रतन ने जय को समझाया की अम्मा की बातों पर ज्यादा ध्यान ना दे। बस रज्जो भौजी को खुश रक्खे। बाकी सब वो ऊपर वाला बैठा है ना ठीक करने को।
दूसरे दिन ही जय रज्जो को लेकर लखीमपुर चला गया। इस बार जाते वक्त जगत रानी ने जय से एक बार भी नही पूछा की, "अब वो दुबारा कब आएगा…? या आज रुक जाए कल चला जाए। जय मां के व्यवहार से बहुत आहत हुआ। उसने मन ही मन निर्णय लिया की अब वो घर जल्दी नही आयेगा।
विश्वनाथ जी दो दिन बाद गए। क्योंकि अभी उनकी छुट्टी बाकी थी। और कुछ वजह भी था। उनके सेवा निवृत्ति का समय पास आ रहा था।अब बस चार साल ही बचे थे। इसी समय में वो एक नया घर बनवाना चाहते थे। जिसमे दोनो भाई आराम से रह सके। घर दो हिस्सो मे बनवाना चाहते थे वो। अगर आगे चल के दिनो भाईयो की ना बने तो वो अलग अलग रह सके। घर एक दिन में तो बन नही जायेगा। उसके लिए सब कुछ धीरे धीरे करना होगा।
वो नए घर की जगह चुन कर उस पर विजय की देख रेख में काम शुरू करवा कर चले गए। इन सब का श्रेय जगत रानी श्याम को देती। उसके आने से ही घर में तरक्की हो रही है। श्याम बहुत ही शुभ है इस घर और इस घर के लोगों के लिए।
सास जगत रानी में चाहे लाख बुराई हो, गुलाबो भले ही उन्हें ना पसंद करती हो। पर जब श्याम की बात आती ओर जगत रानी को उसकी तारीफ करते सुनती तो खुशी से फूल कर कुप्पा हो जाती। श्याम के दबे रंग को देख जो थोड़ी उलझन होती वो समाप्त हो जाती की चलो… भले ही सांवला है तो क्या हुआ..? भाग्यवान तो है।
अगले भाग मे पढ़े क्या रतन ने जो बात रज्जो के लिए कही थी वो सच हुई…? क्या विश्वनाथ जी का घर बनवाने का सपना पूरा हो पाया..? क्या रज्जो और गुलाबो के बीच का फासला मिटा या बढ़ता ही गया…? ये जानने के लिए पढ़ते रहे "गुलाबो तू ऐसी तो ना थी" का अगला भाग।