और कुटिया से बाहर आते ही रावण ने उसका अपहरण कर लिया
रावण सीता को पुष्पक विमान से लंका ले गया था।साम्यवादी विचारधारा के औऱ अपने को प्रगतिशील कहने वालों के तर्क आपने सुने होंगे
कुछ इतिहासकारों ने यह सिद्ध करने कि कोशिस कि की लंका आज जो है वे त्रेता युग की नही है।वो तो आसपास ही थी।कहने का ।मतलब वे यह बात मानने को तैयार नही की त्रेता या द्वापर युग मे इतनी प्रगति थी।उस समय विमान या हेलीकॉप्टर जैसे भी साधन थे।
कपिल सिब्बल जेसो ने तो यह भी कहा राम काल्पनिक थे।यह चरित्र साहित्यकारों ने घडा है।वे भूल जाते है
क्या सीता,दसरथ,वाल्मीकि सब काल्पनिक थे।बीस से ज्यादा देशों में राम को पूजा जाता है।काल्पनिक चरित का इतना विस्तार नही होता।राम हमारी आस्था हैऔर हमारी आस्था पर चोट करने वाले हमारी संस्कृति,विरासत के दुश्मन है।
रावण सीता को आकाश मार्ग स लंका ले जा रहा था।सीता राम का नाम लेकर पुकार रही थी।साथ ही उसने अपनी निशानी के तौर पर अपने गहने और वस्त्र के टुकड़े नीचे फेके थे।ताकि राम उन चिन्हों के सहारे उसे खोज सके।उस तक पहुंच सके।सीता ने जो चिन्ह गिराए थे वो ऐसी जगह गिराए थे जिन्हें कोई देख सके।जैसे आश्रमो पर,कुएं पर जहा लोग पानी भरने के लिए आते हैं।सीता ने वस्त्र एक पर्वत पर गिराए थे जहाँ पर 5 वानर बैठे हुए थे।
जटायु ने सीता के पुकारने की आवाज सुनी थी।और वह सीता को बचाने के लिए ततपर हो गया।वह रावण को पहचान गया
"है दुष्ट रावण तू अपने आप को वीर कहता है।तू एक अबला नारी को जबर्दस्ती ले जा रहा है यही है तेरी वीरता,"जटायु ने रावण को ललकारा था,"सीता को छोड़ दे
रावण ने सीता को नही छोड़ा तब जटायु उससे भिड़ गया।दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ।जिसमें जटायु घायल हो गया।रावण ने घयल जटायु के तलवार से दोनों पंख काट दिये थे।और वह फिर सीता को लेकर लंका के लिए चल दिया था।
राम ने हिरन को मार दिया था।तब हिरन अपने असली रूप में आ गया।उसने सत्य बता दिया था।राम जब हिरन को मारकर वापस लौट रहे थे तब रास्ते मे लक्ष्मण मिल गए थे।
"लक्ष्मण तुम यहाँ।मैं तो तुम्हे सीता के पास छोड़कर आया था,"लक्ष्मण को देखकर राम आस्चर्य से बोले,"तुम अच्छी तरह जानते हो।इस जंगल मे चारो तरफ राक्षसों का डेरा है।हमारी कुटिया इन दुष्ट लोगो से घिरी हुई है।और तुम सीता के अकेला छोड़कर आ गए
"भैया
"मुझसे भैया मत कहो,"लक्ष्मण कि बात को काटकर उसे धिककरते हुए बोले,"तुमने मेरी आज्ञा की अवेहलना की है।"
"मैं क्या करता भैया।माता सीता के आदेश को कैसे टाल देता।मेरे लिए तो जैसे आप है वैसे ही भाभी माँ है"लक्ष्मण माफी मांगते हुए बोले,"मैं भाभी को अकेला छोड़ना नहीं चाहता था।पर उनकी बात को टाल न सका।"
"सीते राम कुटिया की तरफ बेहवास से भागे थे।उन्हें अनिष्ट की चिंता सता रही थी।लक्ष्मण भाई के पीछे पीछे भाग रहे थे।राम ने कुटिया पर आकर ही दम ली थी।कुटिया के बाहर ही सीता बैठी रहती थी।बाहर न देखकर वह अंदर गए थे।अंदर कुटिया खाली थी।न बाहर न अंदर सीता का कही भी पता नही था
"सीते, सीते
और राम हताश होकर बैठ गए।मारीच की आड़ में