Ramchandra's job in Hindi Fiction Stories by Dikeshwar Sahu books and stories PDF | रामचन्द्र की नौकरी

Featured Books
Categories
Share

रामचन्द्र की नौकरी

सिद्धेश्वरी ने देखा कि उसका बड़ा बेटा रामचंद्र धीरे-धीरे घर की तरफ आ रहा है। रामचंद्र मां को बताता है कि उसे अच्छी नौकरी मिल गई। मध्यमवर्गीय परिवार था पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक रहे थे जिनका देहांत 3 वर्ष पहले ही हो चुका था, पेंशन के कुछ रुपए महीने में आ जाया करते थे। गांव में उनकी कुछ पुश्तैनी जमीन भी थी जहां कुछ फसले और सब्जियों को उगाने का काम होता था।

रामचंद्र को बिजली विभाग में एक बड़े अफसर का पद मिला था उसकी एक छोटी बहन थी सरिता जो पढ़ने में काफी होशियार थी। नौकरी मिल जाने के समाचार से मां और बहन दोनों का हृदय आनंद से सारा बोर हो गया था मोहल्ले में मिठाई बांटी गई, घर में उत्सव का माहौल बनना स्वाभाविक था।

अभी 1 वर्ष ही हुआ था पंडित जी रिश्ते लाना शुरू कर चुके थे । सुनीता नाम की एक सुशील लड़की से रामचंद्र का विवाह तय हुआ दोनों पक्षों की सहमति हुई तत्पश्चात शुभ मुहूर्त पर उनकी शादी विधि विधान से संपन्न हो गई।

नववधू संग घर में कुछ माह ही बीते थे कि रामचंद्र को डाक से पत्र आया आपका तबादला रांची झारखंड कर दिया गया है 10 दिवस की भीतर आपको अपना कार्य भार ग्रहण करना है। रामचंद्र उदासीन था किंतु सुनीता अति आनंदित दिखाई दे रही थी ,इसका कारण था कि रांची से सुनीता का मायका कुछ किलोमीटर दूर पर ही था सो उसका खुश होना स्वाभाविक था।

यह बात उसने अपनी मां और बहन को बताया और भारी मन के साथ उनसे विदा लिया और निकल पड़े नए ठिकाने की ओर नए शहर.. रांची स्टेशन

नौकरी के साथ साथ उसका घर आना तो कम हो गया था लेकिन हर माह अपनी मां के पास पैसे जरुर भेज दिया करता था ।

समय बितता गया अब रामचंद्र के व्यवहार में कुछ बदलाव आने लगा, पहले हर माह नियमित पैसे भेजने में जरा भी देर न होती थी, अब धीरे धीरे अंतराल बढ़ता जा रहा था । और साथ ही मा का इंतजार भी.

एक समय के बाद उसने घर में पैसे भेजना बिलकुल ही बंद ही कर दिया। सरिता की पढ़ाई में भी व्यवधान उत्पन्न होने लगा । उसके कॉलेज की फीस जमा करने के लिए पैसे कम पड़ने लगे लेकीन मां ने उस वर्ष किसी तरह फीस का इंतजाम कर लिया ।

लंबे समय बाद

एक दिन अचानक राम चंद्र की टैक्सी से घर पहुंचा , वह घर पर आया, अपनी मां से बहुत सारी बाते भी की ,मां भी उसे देखकर गदगद हुई चलो देर सबेर इसको हमारी याद आई तो सही । मां को जरा भी संशय नही हुआ उसके काले मंसूबों का । क्योंकि मां तो मां होती है वो अपने ही पुत्र को दोहरे नजर से भला कैसे देख सकती है?

लेकिन रामचंद्र कुछ अलग ही विचार लेकर इस बार घर आया था इधर उधर की कुछ बातें की , थोड़ा मन को बहलाया, लेकिन जैसे ही प्यार भरी बातें खत्म हुई रामचंद्र के चालक दिमाग ने अपना पैसा फेंका उसने मां को इस बात पर राजी कर लिया कि हम गांव की पुश्तैनी जमीन और घर को बेचकर शहर में बस जाएंगे और सरिता भी वहीं शहर के कॉलेज में पढ़ने जाएगी ।रामचंद्र की यह बातें सुनकर मां अत्यंत ही आनंदित हुई और उसने बिना सोचे समझे खुशी खुशी हामी भर दी।

रामचन्द्र दस्तावेज बनवाकर शहर से ही ले आया था, तो सब काम तीन दिनों में निपट गया जमीन और घर उसने गांव के धन्ना सेठ को बेच दिया। अपनी मनमोहक बातों से रामचंद्र ने मां को और सरिता को ऐसा फसाया था कि मां भी खुश थी सरिता भी खुश थी उन्हे किंचित भी संदेह न हुआ और तीनों स्टेशन की ओर रवाना हुए

7 घंटे की लंबी यात्रा के बाद तीनो और रांची के स्टेशन में पहुंच गए रामचंद्र ने बोला मां चलो हम पहले थोड़ा खाना खा लेते हैं उसके बाद घर की ओर चलेंगे । टेबल पर बैठकर तीनों खाना खा ही रहे थे कि अचानक रामचंद्र को फोन आया वह उठकर गया बात करने पर, लौट कर वापस नहीं आया।

बहुत देर हो गई, अभी तक रामचंद्र का कुछ पता नहीं वेटर ने उन्हें बिल थमा दिया सरिता ने बिल चुकाया और दोनो मां बेटी रेस्टोरेंट के बाहर निकले । फिर भाई रामचंद्र को फोन लगाने की कोशिश की गई शायद उन्हें उम्मीद थी कि रामचंद्र किसी जरूरी काम में फंस गये होंगे और कुछ समय बाद आ जाएंगे।

पर ऐसा नहीं था कुछ समय बाद रामचंद्र को फोन मिलाया उसने फोन उठाया और उधर से आवाज आई

"मेरा तुम लोगों से अब कोई रिश्ता नहीं है दोबारा मुझे फोन मत करना"

अब सरिता और मां को समझ आने लगा था कि भैया का इतने समय बाद आना और यह अचानक प्रेम उमड़ जाना , यूं ही नहीं था सरिता ने मां को समझाया जो बेटे के इस आघात से पूरी तरह टूट चुकी थी उन्हे समझ आ रहा था कि उसके पुत्र ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा । घर जमीन सब बिकवा दिया और उन्हें रास्ते पर ले आया।

बहुत हिम्मत बांधकर मां बेटी दोनों जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत करने के सफर पर निकलती है, शहर में एक किराए का कमरा लेती है, मां को खेती और सब्जियों की थोड़ी बहुत समझ थी इसलिए बाजार में सब्जियों की एक दुकान शुरू किया जो धीरे-धीरे ही सही पर उनके लिए डूबते को सहारा के समान सिद्ध हुई। मंडी से सब्जी लाना फिर उसे बाजार में बेचने जाना इससे उनका काम अच्छे से चलने लगा।

सरिता जो पढ़ने में काफ़ी कुशाग्र बुद्धि की थी उसने अपने घर से ही एक सामान्य ट्यूशन क्लास पढ़ाना शुरू किया। पहले पहल तो कुछ बच्चों ने आना शुरू किया फिर उन बच्चों के सुझाव से उसके मित्रों ने भी आना शुरू किया। अंग्रेजी एवं गणित में कुशलता बच्चों की बीच उसकी लोकप्रियता का एक मुख्य कारण बनी । इन दोनों विषयों पर उसकी पकड़ कमाल की थीं। परंतु लोकप्रिय होने का संबंध आर्थिक स्थिति के सुधरने से कुछ खास रहा नहीं। कोचिंग सामान्य रूप से ही चल रहा था ,जो जीवन को एक सामान्य स्तर से चलने के लिए पर्याप्त धन की पूर्ति करने में सक्षम थी।

सब बढ़िया चल रहा था कुछ रूपए पैसे की बचत भी हो रही थी। अभी सुख के कुछ दिन बीते ही थे की सरिता को एक और झटका लगने वाला था उसकी मां अचानक बेहोश होकर बाज़ार में गिर पड़ी थी ,आसपास के लोगों ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया और सरिता को फोन लगा कर खबर दिया। सरिता ने अस्पताल में आ कर देखा कि उसकी मां पहले से असामान्य हो गई थी

डॉक्टर साहब ने बताया कि कि उनके दाहिने भाग को लकवा मार गया है , इस कारण उसके पैर, हाथ और मुंह असामान्य हो गया था। एक माह तक सिद्धेश्वरी देवी अस्पताल में भर्ती रही उसके इलाज में काफी खर्चा हुआ ,कुछ पैसे जो बचत के थे वह खर्च हुए और बाकी पैसे सरिता ने पास पड़ोसियों से उधार लिया। काफी कर्ज बढ़ चुका था।

एक समय बाद डॉक्टर ने उन्हें डिस्चार्ज कर घर ले जाने का सूझाव दिया, कुछ दवाइयों की लिस्ट दे दी और घर पर ही रह कर सही से देखभाल करने की हिदायत दी।

मां की देखभाल करना और घर का सारा काम करना यह सारी जिम्मेदारी अब सरिता के कंधों पर आ गई थी।

सिद्धेश्वरी की सब्जी दुकान भी बंद हो गई थी और पिछले एक माह से ट्यूशन क्लासेस भी बंद थी। घर के कामों से और मां की देखभाल के बाद ट्यूशन के लिए मुश्किल से ही समय मिल पा रहा था।

जिसका असर यह हुआ बच्चों की संख्या ट्यूशन में धीरे-धीरे कम होने लगी,बच्चे दूसरे कोचिंग सेंटर का रुख अपनाने लगे।एक दिन ऐसा भी आया कि सिर्फ तीन ही बच्चे दिखाई दिए जो उसके पड़ोसी के बच्चे थे। सरिता निराशा से भारती जा रही थी धीरे-धीरे उसे सारे रास्ते बंद होते दिखाई दे रहे थे।

रामचंद्र की नौकरी सरकारी विभाग में लग जाने के कारण उनके पिता की पेंशन भी रुक गई थी घर की आर्थिक स्थिति बत से पत्थर होती जा रही थी राशन पानी के लिए भी उनके पास पैसे नहीं थे उधारी देने वाले तकादा मारना शुरू कर चुके थे। इस सब से सरिता मानसिक रूप से काफी परेशान हो चुकी थी उसकी मनोदशा अत्यंत ही शिथिल हो चुकी थी।

अभी तक का सारा खर्च उधारी के पैसे से ही चल रहा था वो भी धीरे धीरे खत्म हो रहा था। कुछ ही दिनों बाद मकान मालिक किराया वसूल करने स्वयं सरिता के घर पहुंच गए कारण यह था की 1 महीने हो गए थे दूसरा महीना लगने को था लेकिन किराया अभी तक उसके पास नहीं पहुंचा था।

रमेश बाबू उनके इस हालत से परिचित थे लेकिन किराया ही उनके लिए आजीविका के एकमात्र साधन था। सो किराया लेना उनकी विवशता थीं।

रमेश बाबू द्वारा कमरे के पर्दे को हटाते हैं वहां पर्दा टूट कर नीचे गिर जाता है, घर के दरवाजे गायब थे जो संभवत कुछ रुपयों के लिए बेच दिये गए थे।

अंदर का दृश्य देखकर रमेश बाबू के होश उड़ गए वह विचलित हो उठे और दहाड़ मार कर रोने लगे उसकी आवाज सुनकर आसपास के लोग भी इकट्ठा हुए कमरे में सिद्धेश्वरी देवी अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसके पैर के पास एक कोने में सरिता मृत अवस्था में पड़ी हुई थी सिद्धेश्वरी नम आंखों से अपनी बेबसी जाहिर कर रही थी।