वैदेही अपनी जगह रूक जाती है , जिससे अधिराज उसके पास पहुंचने लगता है , , ,...
अब आगे............
वैदेही रुककर बिना पलटे कहती हैं....." अधिराज ये सारंगी न बजाया करो , , हम अपने आप को रोक नहीं पाती , हमें और भी कार्य होता है.... लेकिन आपकी ये सारंगी हमें तड़पा देती है...."
अधिराज बिना कुछ बोले धीरे धीरे वैदेही के बिल्कुल करीब पहुंच चुका था , , ठीक उसके पीछे जाकर एक हाथ से उसकी पतली कमर को पकड़कर अपने करीब खींच लेता है, , और दूसरे हाथ से उसके बालों को हटाते हुए , अपने होंठों को वैदेही के कानों के पास ले जाकर धीरे से कहता है...." हम तुमसे बेहद प्रेम करते हैं , ये तुम जानती हो फिर क्यूं हमें इतना तड़पाती हो , , क्यूं आने में इतना देरी करती हो , , अगर तुम समय से नहीं आओगी तो हमें ये सारंगी बजानी तो पड़ेगी न...."
वैदेही अधिराज की बात सुनकर उससे दूर होने की कोशिश करती है लेकिन अधिराज ने अपनी पकड़ और कस ली , ,
वैदेही उसकी पकड़ से छुटने की कोशिश करते हुए कहती हैं.." अधिराज हमें जाना है , .."
" नहीं वैदेही , , अभी नहीं , अब जब हम चाहेंगे तब ही तुम जाओगी...."
" अधिराज आप बहुत हठी हो रहे हैं..... हमें औषधि खोजने भी जाना है...."
" हम तुम्हें औषधि की जगह ले जाएंगे , किंतु अभी नहीं...अभी तो हम आपके श्रृंगार के लिए कुछ उपहार लाए हैं...."
वैदेही एक्साइटेड होकर पूछती है....." क्या है अधिराज...?..."
अधिराज अपने हाथों को आगे करते हुए कहता है...." ये पीले फूल , आपको पक्षीलोक के ये पीले फूल पसंद है इसलिए हम इन्हें आपके लिए लाए हैं...."
वैदेही खुश होकर कहती हैं......" अधिराज , ये फूल हमें हमारे प्रेम की निशानी है इसलिए केवल आपके कारण ही हमें ये पीले फूल पसंद है , , अब जल्दी से इन्हें हमारे बालों में भी लगा दो..."
" बिल्कुल वैदेही...."
अधिराज फूल वैदेही के बालों में लगाने के बाद अपनी उंगलियों को वैदेही की गर्दन पर फेरने लगा , उसे एक एक एहसास से वैदेही सिहर उठी , , वो धीरे धीरे अपने होंठों से वैदेही की गर्दन को चूमने लगता है , , जिससे वैदेही उसके आगोश में खो जाती है......
अधिराज उसे अपनी तरफ घुमाकर उसके गुलाबी होठों को चूमने लगता है , , दोनों एक दूसरे में खो चुके थे , इसलिए मौसम ने भी अपना रुख बदल लिया , अचानक आसमान में काले बादल छा गए और तेज हवाएं चलने लगी और आसपास लगे पेड़ों को हिलाने लगी जिससे उसपर से फूल आ आकर अधिराज और वैदेही पर बरसने लगे , , मानो प्रकृति भी उनके प्रेम से खुश थी , ,
वैदेही ये सुहावना मौसम देखकर अधिराज से दूर होकर उन हवाओं के साथ झुमने लगी..... लेकिन अधिराज का उसका दूर जाना बिल्कुल पसंद नहीं आया , इसलिए वो गुस्सा होने का दिखावा करते हुए वहां से जाने लगा....
जिसे देखकर वैदेही समझ चुकी थी अधिराज उसके खुद से दूर करने की वजह से गुस्से में जा रहा है.... वैदेही जल्दी से अपने दोनों हाथों से अपने घाघरे को पकड़ते हुए उसके पीछे पीछे भागते हुए आवाज लगाती है......" अधिराज रूक जाइए , हमसे भूल हो गई.... रूकिए तो सही...."
अधिराज गुस्से का दिखावा करते हुए कहता है....." जाओ तुम इस वातावरण में ही , , हमें तुमसे कोई बात नहीं करनी...."
वैदेही उसके पीछे पीछे चलते हुए ही कहती हैं....." हमें आपका साथ चाहिए अधिराज , प्रकृति का नहीं , , वापस आइए न हम अब आपसे दूर नहीं जाएंगी...."
वैदेही की बातों से अधिराज मुस्कुरा रहा था लेकिन उसकी तरफ ध्यान न देते हुए , वो ऊपरी पहाड़ी पर चढ़ने लगता है , जिससे वैदेही बड़ी मुश्किल से चिढ़ते हुए उसके पीछे जाते हुए कहती हैं....." और कितना दूर तक चलाओगे अधिराज, , वापस आ जाओ , अन्यथा हम गिर जाएंगी , फिर मत आना हमें बचाने...."
अधिराज ऊपरी मन से कहता है....." हां हां जाओ नहीं आएंगे बचाने , ..."
वैदेही हंसते हुए अपने आप से कहती हैं......" आप दिखावा अच्छा कर लेते हैं , , तो फिर अब हमारी बारी है , , आपका गुस्सा कैसे शांत करना है हम जानती है..." इतना कहकर वैदेही अचानक चिल्लाती है...." आह....! अधिराज , बचाइए हमें , इस सांप ने हमें डंस लिया..."
अधिराज वैदेही की आवाज सुनकर अपने आप से कहता है...." हमें पता है , ये सब तुम्हारा स्वांग(नाटक) है , हम इतनी जल्दी नहीं आने वाले..."
जब वैदेही को लगता है उसके इस नाटक से अधिराज पर कुछ असर नहीं हुआ तो वो दर्द का नाटक करते हुए और चिल्लाती है...." आह ..; आप , हमें नहीं बचाओगे..."
अधिराज वैदेही से कहता है....." तुम अपना स्वांग बंद करो वैदेही , हम तुमसे कोई बात नहीं करना चाहते , इसलिए जाओ तुम औषधि ढूंढ़ने....."
वैदेही गुस्से में पैर पटकते हुए कहती हैं...." अब बस भी करो अधिराज , इतना भी क्या गुस्सा करना ,.. हम बता रहे हैं कल से हम आपको नहीं मिलेंगे फिर...जा रहे हैं हम..."
वैदेही अभी तक जिस पल का नाटक कर रही थी उसे क्या पता था वो नाटक सच हो जाएगा..... वैदेही जैसे ही पीछे मुड़कर जाने लगी तभी अचानक उसका पैर एक काले सांप पर पड़ जाता है , जिससे गुस्से में आकर वो सांप वैदेही के पैर को डंस कर वहां से चला जाता है.....
वैदेही अबकी बार सच के दर्द से चिल्ला उठी...." आह..!...." अधिराज को इस बार भी वैदेही के कराहने की आवाज को झूठा समझकर उसे अनदेखा कर देता है...
लेकिन वैदेही तो सच में कराह रही थी , , उसके आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा जिसकी वजह से वो खुद को न संभाल पाई और वही जमीन पर गिर पड़ी , , ढलान होने की वजह से वैदेही नीचे की तरफ गिरने लगी , , ...
अधिराज अभी भी गुस्से में दूर मुंह फेरे खड़े होकर कहता है......" वैदेही , , तुम्हारा स्वांग पूरा हो गया हो तो हम जा रहे हैं...."
दूसरी तरफ से कोई आवाज न आने के कारण अधिराज मुड़कर देखता है , और वैदेही को गिरते देख तुरंत अपने बड़े बड़े सफेद पंखों को फैलाकर उड़ते हुए उसके पास जाकर उसे संभालते हुए , उसे गोद में उठाकर वापस झरने के किनारे आकर उसे अपनी बाहों में ही भरे हुए उसके गालों पर थपथपाते हुए उठाता है.....
" वैदेही , , उठो , देखो इस तरह का स्वांग हमें बिलकुल पसंद नहीं है , उठो वैदेही , , हम नाराज़ नहीं है तुमसे वैदेही उठो...."
वैदेही की तरफ से कोई हलचल न मिलने की वजह से अधिराज गुस्से में कहता है....." बहुत हो गया वैदेही , , हमें तुम्हारा ये स्वांग बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा है... वैदेही उठो....."
.............to be continued...........
क्या यही वजह थी वैदेही के मरने की ....?
क्या अधिराज अपने प्यार को दोबारा पाने में सफल होगा...?...या माणिक उसे हमेशा के लिए उससे अलग कर देगा...?...