Dream to real journey - 16 in Hindi Science-Fiction by jagGu Parjapati ️ books and stories PDF | कल्पना से वास्तविकता तक। - 16

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कल्पना से वास्तविकता तक। - 16


अगर आप इस धारावाहिक को पूरा पढ़ना चाह्ते हैं, तो आपको हमारी प्रोफाइल पर इसकी पूरी सीरीज शुरुआत से मिल जाएगी।
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अगर हमारे मन में किसी भी चीज़ को पाने या किसी भी कार्य को करने की इच्छा प्रबल है तो उस तक पहुंचने के रास्ते भी बन ही जाते हैं। मंजिल मिलने के बाद फर्क नहीं पड़ता कि रास्ता कितना बड़ा था क्यूंकि तब हमें उम्मीद होती है कि आखिर में ये रास्ता हमें मंजिल तक पहुंचा ही देगा।
जग्गू ने भी सच ही कहा है कि
“कुछ मन्नतों से भी मिल जाए तो अच्छा ही होगा ,
बिन मिले जिंदगी गुजारना भी कहाँ तक ही अच्छा होगा। “
नित्य और युवी अब बहुत हद तक संभल चुके थे, नित्य ने ग्रमिल के साथ हुई अपनी पूरी बात, उस से जैसे भी बन पड़ा उसने युवी को समझाने की कोशिश की थी। युवी को ज्यादा कुछ तो समझ नहीं आया था लेकिन इतना तो वो भी समझ गयी थी कि उसके बाकी साथी भी सही सलामत है। युवी को भी ये जानकर भारी राहत मिली थी कि कल्कि और नेत्रा बिल्कुल ठीक है। भले ही युवी यहाँ पर बुरी तरह उलझी हुई थी लेकिन फिर भी उसके मन के एक कोने में नेत्रा और कल्कि के लिए चिंता ने घर कर रखा था।
अब तो बस युवी बार बार एक ही बात सोच रही थी कि वहाँ से आजाद कैसे हुआ जा सकता है, वो कभी एक दिशा में भाग रही थी तो कभी दूसरी दिशा में, लेकिन नतीज़न वो जिस भी तरफ जाती उसी तरफ वो अदृश्य दीवार उनकी राह रोककर खड़ी हो जाती। नित्य की नजरे भी युवी के कदमो का ही अनुसरण कर रही थी। वो चुपचाप बैठा हुआ युवी को ही देख रहा था। उसे भी मालूम था कि युवी बेक़ार ही कोशिश कर रही थी लेकिन वो ये भी जानता था कि युवी बिना कोशिश किये हार मानने वालों में से बिल्कुल भी नहीं थी।
कुछ देर बाद युवी भी कोशिश करके थक जाती है और नित्य के बगल में आकर बैठ जाती है। नित्य उसको देख कर मुस्कुरा देता है। युवी भी मासूम थका हुआ सा चेहरा बनाते हुए अपना सर दोनों घुटनों के ऊपर झुका लेती है।
“ ना चिक्क्र युवी “ ( चिंता मत करो युवी ) नित्य ने युवी के सर पर अपना हाथ फेरते हुए कहा।
युवी ने कुछ पल के लिए नित्य की आँखों में आँखें डालकर देखा, वो दोनों ही एक दूसरे की तरफ देखकर हल्का सा मुस्कुरा रहे थे। दोनों को ही अपनी धड़कनें आमतौर से थोड़ी तेज चलती हुई महसूस हो रही थी।इतनी उलझी हुई सी हालत में भी ये पल उन दोनों को ही सुकून दे रहे थे।
“नित्य अस्तु ग्रमिल, नित्य वसु ग्रमिल?? “(नित्य मैं ग्रमिल , नित्य क्या तुम ग्रमिल को सुन पा रहे हो ) अचानक से गूंजी आवाज से नित्य का ध्यान युवी की तरफ से हटा।
“ग्रमिल वसु नित्य “ नित्य ने बेमन से आँखें बंद करते हुए हड़बड़ाहट में कहा। उसको आज पहली बार ग्रमिल की आवाज सुनकर अच्छा नहीं लगा था। ( इसको भी अभी टपकना था बीच में) नित्य ने ग्रमिल कि आवाज सुनते ही मन ही मन में खुद से कहा, लेकिन वो गलत था क्योंकि ग्रमिल का यूँ बीच में आना उस समय बेहद जरूरी था।क्यूंकि उनकी मंजिल वो रास्ता नहीं था जिस रास्ते पर उस समय नित्य ठहरा हुआ था। ये सच है कि कभी कभी रास्ते मंजिल से भी ज्यादा खुबसूरत होते हैं लेकिन रास्तों का दस्तूर ही गुज़र जाना होता है। लेकिन पूरी जिंदगी सफर में गुजार देना किसको ही पसंद होता है ?
“नित्य असि काग़जा कृत्य मिशेल “ ( नित्य हमें शायद ये पता चल गया है कि मिशेल को कैसे खत्म किआ जा सकता है। ) नित्य के कानों में एक बार फिर से ग्रमिल के कहे शब्द गूंज रहे थे।
“काग़जा ग्रमिल ?”( और वो कैसे ग्रमिल ) नित्य ने उत्साह से भरते हुए पूछा।
“श्रुतबे नित्य ,मिशेल अणि सप्ता पगहा........... “ ( सुनो नित्य ,हमें पता चल है कि मिशेल के को सात हिस्सें है ......) और कहते कहते ही ग्रमिल नित्य को अंत से लेकर शुरुआत तक की वो सब बातें बता देता है जो भी उन्होंने अब तक मिशेल के बारें में जानने का दावा किया था। अब तक का सब कुछ जानकार नित्य की आँखें खुल गयी थी और वो भी बड़ी गहराई से कुछ सोच रहा था। ग्रमिल ने उस से कहा था कि जो हिस्सा मिशेल के सबसे करीब है उसको उसे और युवी को संभालना है। लेकिन अब वो ये सोचकर थोड़ा परेशान हो गया था कि इतनी बातें वो युवी को समझायेगा कैसे ? उसे याद आ रहा था कि थोड़ी देर पहले एक छोटी सी बात भी वो युवी को समझा नहीं पाया था। उसने अपनी यही उलझन ग्रमिल के सामने भी रखी।
ग्रमिल भी ये सुनकर थोड़ा परेशान हो गया था क्यूंकि अगर नित्य अभी उनके पास होता तो जिली उनको आसानी से हिंदी सीखा सकता था लेकिन मलाल ये था कि वो इस समय उनसे काफी दूर थे।नेत्रा ने भी ग्रमिल के चेहरे पर आते जाते भावो को भांप लिया था।
“क्या हुआ ग्रमिल ?” ग्रमिल के उतरे हुए से चेहरे को देखकर नेत्रा ने पूछा।
“ वो कुछ नहीं नेत्रा जी, नित्य ने कहा कि वो सब संभाल तो लेंगे, लेकिन शायद उसको अकेले ही सब संभालना पड़ेगा। “
“क्यों ऐसा क्यों ? युवी को क्या हुआ ,वो ठीक तो है न ? वो मदद क्यों नहीं कर सकती ?” नेत्रा ने अचानक ही ग्रमील पर एक साथ कई सवाल दाग दिए।
“ हाँ जी! नेत्रा जी युवी बिल्कुल ठीक है, उसको कुछ नहीं हुआ है। “
“तो फिर, फिर क्यों मदद नहीं करेगी वो “
“ समस्या ये है युवी को हमारी भाषा नहीं आती है और नित्य को आप सब की , तो वो सब उसको इतनी आसानी से समझायेगा कैसे ?” ग्रमिल ने भारी परेशानी से अपनी बात नेत्रा के सामने रखते हुए कहा।
“ अरे बस इतनी सी बात...... ये भी कोई चिंता करने वाली बात हुई भला, चिंता करनी है तो इस बात की करो मिशेल की पहले टांग तोड़नी है या उसका मुहं बिगाड़ना है ?” कल्कि ने उन दोनों के बिच में पड़ते हुए कहा।
“ कल्कि तू कभी सीरियस भी होती है या नहीं ?” नेत्रा ने उसको फटकार लगाते हुए कहा।
“ नहीं ,लेकिन होती भी हूँ…. देखो अब भी मैं सीरियस ही हूँ बस तुम्हे नहीं लग रहीं हूँ वो बात अलग है…. ,मैं तो बस ये कह रही थी कि इस बात पर इतना परेशान होने की ज़रूरत क्या है ? क्या हुआ अगर नित्य को हिंदी नहीं आती लेकिन ग्रमिल को तो आती है ना “ कल्कि ने अपनी आँखों में चमक भरते हुए कहा।
“ तुम कहना क्या चाहती हो मैं समझी नहीं......” नेत्रा ने कहा ” या शायद मैं समझ गयी” नेत्रा ने फिर से सोचते हुए कहा।
“ वाह कल्कि वह मानना पड़ेगा तेरे दिमाग को तो। “ नेत्रा ने कल्कि को शाबाशी देने के लहजे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
“अरे आप दोनों मुझे भी तो बताओ कि क्या कहा? क्या समझ आया ? और करना क्या है ?” ग्रमिल ने दोनों की तरफ मासूम भाव से देखते हुए कहा। ग्रमिल का चेहरा देखकर दोनों की ही हंसी छूट जाती है ।
“ तो हमारे नन्हे मुन्ने ग्रमिल हम दोनों ये कह रहे थे कि नित्य को तो हिंदी आती नहीं है तो क्यों ना तुम्हे ही उड़ा कर वहां भेज दिया जाए। “ कल्कि ने उसकी गर्दन के इर्द गिर्द अपना हाथ घुमाते हुए कहा।
“क्या मुझे उड़ा कर ,क्या आप सच में ऐसा कर सकती है कल्कि जी ? “ ग्रमिल ने अचरज से कल्कि की तरफ देखते हुए पूछा।
“ बिल्कुल, कल्कि सब कर सकती है ग्रमील “ खुद की तारीफ़ में कल्कि ने अपनी शर्ट का कॉलर ऊपर उठाते हुए कहा। उसकी ये हरकत देखकर नेत्रा हल्का सा मुस्कुरा देती है।
“ग्रमिल तुम भी किसकी बातों पर यकीन कर रहे हो मैं बताती हूँ तुम्हे पूरी बात “ नेत्रा ने ग्रमील के मासूम से चेहरे पर तरस खाते हुए कहा।
“ देखो तुम्हें जो भी कहना है तुम वो सब नित्य को हमारी भाषा में बता दो और उस से कहो कि जैसा मैं बोल रहा हूँ तुम बिल्कुल वही युवी को बोल दो , नित्य भले ही तुम्हारी बात ना समझ पाए लेकिन युवी तो समझ जाएगी ना। “
“ हां सही कहा ,ये बात मेरे दिमाग में क्यों नहीं आई?” ग्रमिल ने सोचते हुए कहा।
“ जहाँ ये बात आनी चाहिए थी ना वो पार्ट मिसिंग है तुम्हारा “ कल्कि ने कहा।
“ जी “
“ कुछ नहीं ,तुम नित्य से बात करो यार “ कल्कि ने पहली बात को टालते हुए कहा।
“ एक मिनट तुम बात मत करो नित्य से “ नेत्रा ने कहा ।
“लो ,अब तेरे दिमाग में क्या चल रहा है?” कल्कि ने झल्लाते हुए कहा।
“ दिमाग में कुछ नहीं चल रहा है…. बस सोच रहीं हूँ कि देखा जाए तो बेसिकली हूँ तो मैं भी विथरपी वासी ही ना, तो अगर ग्रमिल बात कर सकता है तो मैं भी तो कर सकती होउंगी ना “ नेत्रा ने सोचते हुए कहा।
“ देखा जाए तो लॉजिकली तुम्हारी बात में दम तो है,तुम तो हो वीथ्रपियन भई, चलो मान लिया लेकिन युवी…. युवी तो प्योर अर्थियन है ना वो तो नहीं कर सकती न ये तुम्हारी तरह मन से मन की बात “ कल्कि ने अपने वही चिर परिचित लहज़े से कहा।
“ शायद तुम कुछ भूल रही हो कल्कि… “ नेत्रा ने कहा।
“अच्छा और मैं क्या भूल रही हूँ नेत्रा ?” कल्कि ने नेत्रा की नकल करते हुआ कहा।
“ ये “ नेत्रा ने कल्कि की तरफ हाथ से इशारा करते हुए कहा।
“मतलब “
“ मतलब ये कि तुम्हे क्या लगता है कि तुम्हारे शरीर की त्वचा का और बालों का रंग यूँ जामुनी क्यों हुआ होगा ? कभी सोचा है ? “
“ हाँ ये तो जब विथरपी पर नित्य ने वो सब ..... “ कल्कि ने विथरपी पर किये वो अलग अलग तरह के योग कलाओं को याद करते हुए कहा।
“हाँ और वो सब पता है क्यों करवाया गया था हमसे ? “ नेत्रा ने कहते हुए कल्कि की तरफ देखा।
“ताकि हमारी तरंगे भी विथरपी वासियों जितनी मज़बूत हो सके, और ये हमारे शरीर का बदला रंग इसी बात की निशानी है कि हमारी तरंगे भी अब विथरपी वासियों जितनी ही मजबूत है। तो अगर ये बात कर सकते है तो हम भी जरूर कर सकते है। “ इतना कहते कहते नेत्रा पुरे विश्वास के साथ आँखें बंद कर लेती है। ग्रमिल और कल्कि दोनों ही अजीब नजरों से नेत्रा को देखते रह जाते है। उनके पास भी उसकी बात को नकारने की कोई ठोस वजह नहीं थी।
“युवी क्या तुम तक मेरी आवाज पहुंच रही है ? मैं नेत्रा युवी ,मुझे सुनने की कोशिश करो युवी। “ नेत्रा ने मन ही मन में युवी को याद करते हुए कहा।
और अचरज की बात ये थी कि नेत्रा का अंदाजा सही था ,उसका विश्वास भी सच था ,क्यूंकि दूसरी तरफ युवी के पास भी नेत्रा की आवाज पहुंच गई थी।
“युवी अगर तुम मुझे सुन पा रही हो तो मुझसे बात करने की कोशिश करो युवी, युवी क्या तुम मुझे सुन पा रही हो ?” कल्कि ने फिर से युवी से बात करने की कोशिश में मन ही मन कहा।
दूसरी और युवी के कानो में भी नेत्रा की आवाज़ गूंज रही थी ,लेकिन उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो वापिस उस से बात कैसे करे ? वो बात करने की कोशिश में नेत्रा को मन ही मन ध्यान करके नेत्रा को आवाज लगाती है।
“ नेत्रा “
दूसरी तरफ नेत्रा के चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई थी ,क्यूंकि उसको मंजिल भले मिली हो या ना मिली हो लेकिन मंजिल तक पहुंचने का रास्ता जरूर मिल गया था हाँ उसको भी युवी की आवाज सुनाई दे रही थी ।
क्रमशः
तो दोस्तों ये था हमारी कल्पना का अगला भाग..... उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगा। तो अगर पसंद आये या कुछ भी कमी लगे तो आप सब समीक्षा लिखकर जरूर बताएं। पढ़कर समीक्षा लिख दिया करो दोस्तों मुझे लिखने के बाद एक आप सभी की समीक्षाएं ही तो होती है जिनका इंतज़ार रहता है। तो मिलते है अगले भाग पर तब तक पढ़ते रहिये ,समीक्षाएं लिखते रही और स्नीकर्स देते रहिये। .....
© jagGu prajapati ✍️