mutual cooperation in Hindi Children Stories by दिनेश कुमार कीर books and stories PDF | एक - दूसरे का सहयोग

Featured Books
Categories
Share

एक - दूसरे का सहयोग

किसान

बहुत दिनों की बात है । एक गाँव में एक किसान रहता था । उसका स्वभाव बहुत अच्छा था । वह सबकी मदद करता था । किसान के पास एक गाय थी । किसान को गाय बहुत प्रिय थी । खेती का काम करने के बाद किसान दिन - रात गाय की सेवा करता था ।
एक दिन किसान अचानक बीमार हो गया । किसान बीमार हो जाने के कारण वह गाय की सेवा करने में असमर्थ हो गया । गाय के सिवा किसान के पास और कोई नहीं था । किसान के बीमार हो जाने पर आस - पास के लोगों ने किसान की खूब मदद की, क्योंकि किसान बहुत नेक था। वह हर किसी के दुःख-सुख में काम आता था। किसान के घर के पास सोनू नाम का एक बालक रहता था।
सुबह का वक़्त था । अनीश विद्यालय जा रहा था उसने देखा कि बीमार किसान अपनी गाय को चारा दे रहा है । उसे बड़ा तरस आया । उसने किसान की मदद करने की ठानी, पर उसे ये भी याद था कि खुद का नुकसान करके किसी का फायदा करना ठीक नहीं है । विद्यालय न जाकर वह खुद का नुकसान करता । वह विद्यालय चला गया । छुट्टी होने के बाद अपने अभिभावक की अनुमति लेकर उसने किसान की मदद की गाय को चारा खिलाया । फिर साफ -सफाई की । किसान नन्हे बच्चे का साथ पाकर बहुत खुश हुआ ।
अनीश को जब समय मिलता वह अपने अभिभावक से पूछ - कर किसान की मदद करने के लिये आ जाता ।
उसके अभिभावक भी किसान के लिये दवाई और भोजन देने के लिए अनीश के साथ ही आ जाते । अच्छी देख - रेख की वजह से किसान जल्द ही ठीक हो गया । किसान ने एक दिन अनीश से पूछा - "बेटा ! तुमको मेरी मदद करके क्या मिला ?" अनीश ने प्यार से जवाब दिया - "मदद करना पुण्य का काम है । विद्यालय में अध्यापक हमें अक्सर बताते हैं कि हमें खुद की मदद के साथ - साथ दूसरों की मदद भी करना चाहिए ।
संस्कार सन्देश :- हमें सदैव एक - दूसरे का सहयोग करना चाहिए ।




झूठ और सच
प्रखर और रंजन दोनों सहपाठी थे। वे कक्षा- 8 में पढ़ते थे। प्रखर एक बुद्धिमान लड़का था। वह सत्य में विश्वास करता था। वह कभी झूठ नहीं बोलता था, जबकि रंजन झूठ बोलने में विश्वास करता था। वह मानता था कि झूठ बोलने से सारे काम बनते हैं। हम झूठ बोलकर, बहाना बनाकर कहीं भी जा सकते हैं। कोई भी कार्य कर सकते हैं। इसी बात को लेकर एक दिन उन दोनों में बहस छिड़ गयी।
प्रखर बोला-, "सत्य से कोई भी चीज बड़ी नहीं होती है। सत्य सभी जगह समाया हुआ है। जो सत्य की राह पर चलते हैं, वे कभी जीवन में असफल नहीं होंते हैं।" यह सुनकर रंजन ने कहा कि-, "तुम जीवन का एक ही पहलू जानते हो। तुम्हें दूसरे पहलू का अनुभव नहीं है। जब कभी कोई बात नहीं मानता या कहीं जाने नहीं देता अथवा कोई चीज हमें नहीं मिलती तो झूठ का सहारा लेकर हम आसानी से इन कार्यों में सफल हो सकते हैं।" प्रखर ने कहा कि-, "लेकिन जब झूठ पकड़ा जाता है तो फिर हम पर कोई भी विश्वास नहीं करता और सभी हमसे मुँह फेल लेते हैं।" रंजन ने कहा कि-, "मैं ये नहीं मानता। मुझे तो झूठ बोलने से ही आज तक सफलता मिली है, इसलिए मैं झूठ को ही सर्वोपरि मानता हूँ।" प्रखर ने उत्तर दिया कि-, "यह तो समय ही बताएगा कि झूठ और सच में कौन बड़ा है?" यह कहकर दोनों अपने-अपने घर चले गये। कक्षा- आठ की वार्षिक परीक्षा के बाद दोनों दोस्त अलग-अलग जगह जाकर आगे की पढ़ाई करने लगे। प्रखर सत्यवादी होने के कारण सबका प्रिय बन गया और रंजन झूठ बोलने के कारण सबकी नफरत का पात्र बना। प्रखर उच्च शिक्षा पाकर शिक्षा विभाग में उच्च पद पर तैनात हुआ, जबकि रंजन झूठ के आश्रय में पल-बढ़कर कुमार्ग पर चल पड़ा।
वर्षों बाद आज प्रखर अपने गाँव आया था। आते ही वह सबसे मिलकर अपने दोस्त रंजन के पास गया। रंजन उसे देखते ही गले मिला और एक ओर शान्त खड़ा हो गया। प्रखर ने जब उसके मौन रहने का कारण पूछा और कहा कि-, "घर पर सब ठीक तो है?" रंजन गहरी सांस लेकर बोला-, "भाई! कुछ मत पूछो! यह सब मेरी जिद और नासमझी का फल है। तुम जीते और मैं हारा। आज मैं समझा कि सच कड़वा जरुर होता है, लेकिन सभी को अपना बनाने और सुखकर जीवन देने में समर्थ है। झूठ के कारण मैं हर जगह पकड़ा गया और अब कोई भी मेरी बात पर विश्वास नहीं करता है। कोई मेरी सहायता नहीं करता है।" प्रखर ने उसके कन्धे पर हाथ रखकर कहा कि-, "यूँ निराश नहीं होते मेरे दोस्त। मैं हूँ न। तुमने समाज में जो मान-सम्मान खोया है, वह सच को अपनाकर तुम जरुर प्राप्त कर लोगे, ऐसा मुझे विश्वास है।" यह कहकर प्रखर जब शहर गया तो रंजन को अपने साथ लिवा गया। प्रखर ने उसे एक छोटी सी दुकान किराए पर दिलवा दी और उधार सामान खरीदकर दिलवा दिया।
समय बदला। रंजन सही सामान उचित मूल्य पर बेचता और ग्राहकों से प्रेमपूर्वक वर्ताव करता। इससे वह सभी का प्रिय बन गया और वह कुछ ही सालों में धनी व्यक्ति बन गया और अपनी पत्नी और बच्चों को भी वहाँ अपने साथ ले गया। धीरे-धीरे समाज में उसका खोया हुआ मान-सम्मान वापस लौटने लगा।
संस्कार सन्देश - हमारे सामने कितना ही बड़ा संकट हो, फिर भी हमें झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए।