पुण्य -
सुबह का खूबसूरत नजारा था । चारों तरफ हरे - भरे पेड़ - पौधे पास में प्यारी सी बहती नदी चिड़ियों की चहचहाहट थी ।
आरुष अपने मित्रों के साथ प्रतिदिन सुबह - सुबह टहलने के लिए घर से बाहर जाता था और यह प्यारा नज़ारा हर रोज अपनी आंँखों से देखता था । उसके बाद घर जाकर नहा - धोकर तैयार होकर समय से स्कूल उन्ही दोस्तों के साथ चला जाता था ।
एक दिन की बात है । आरुष सुबह टहलते - टहलते बहुत दूर अपने दोस्तों के साथ निकल गया । लौटते - लौटते स्कूल जाने में बहुत देर हो गयी । सभी दोस्तों ने निश्चय किया कि आज बहुत देर हो गयी है, इसलिए आज हम लोग स्कूल नहीं जायेंगे । परन्तु आरुष ने कहा, "एक तो हम लोगों ने गलती की कि हम लोग टहलते - टहलते बहुत दूर निकल गये । वापस आते - आते देर हो गयी और दूसरी गलती स्कूल न जाकर करेंगे । मैं तो स्कूल जरूर जाऊंँगा, भले ही स्कूल में डांँट पड़ जाये । तुम भी लोग तैयार होकर जल्दी से आओ ! स्कूल चलते हैं सब साथ में, जैसे रोज जाते हैं अगर तुम लोग नहीं आये तो कल से मैं तुम लोगों के साथ टहलने नहीं जाऊंँगा ।" आरुष की बात सुनकर सभी दोस्तों ने स्कूल जाने के लिए हामी भरी । सभी दोस्त घर जाकर जल्दी - जल्दी तैयार हुए और स्कूल के लिए रवाना हो गये । स्कूल पहुंँचते ही आरुष और उसके दोस्तों ने देखा कि प्रार्थना सभा समाप्त हो गयी थी । कक्षाएँ लग चुकी थीं । शिक्षक ने पूछा, "बच्चों इतनी देर क्यों हो गयी ?" आरुष ने तुरन्त जवाब देते हुए कहा कि - " सर जी, क्षमा करें ! आज सुबह - सुबह हम लोग टहलते - टहलते बहुत दूर निकल गये थे । वापस आते हुए देर हो गयी । बहुत जल्दी - जल्दी तैयार होकर हम लोग आये हैं । आज के लिए क्षमा कर दीजिए । आगे ऐसा नहीं होगा ।" शिक्षक ने मुस्कुराते हुए कहा, " ठीक है बेटा ! कोई बात नहीं, आगे से ध्यान रखना । तुम सब प्रतिदिन समय से आते हो, इसलिए आज छोड़ रहा हूंँ । प्यारे बच्चों ! अब आप अपनी - अपनी कक्षा में जाओ ।"
आरुष अपने दोस्तों को देखकर मुस्कुराया और कक्षा में चला गया । आरुष के दोस्तों ने भी आरुष को दिल से धन्यवाद कहा कि, "स्कूल में अनुपस्थित होने से आज आरुष ने बचा लिया ।" सच में आरुष सच्चा मित्र है, क्योंकि यह अच्छाई की तरफ हम सभी को ले जाता है ।
आरुष को भी बड़ी प्रसन्नता हुई कि उसने खुद के साथ अपने दोस्तों को भी गलती करने से बचा लिया । वास्तव में सच्चा दोस्त वही है, जो गलती करने से रोके और अच्छाई की तरफ ले चले । विद्यालय प्रतिदिन जाना, मन लगाकर पढ़ना पुण्य का काम है हम सबको यह पुण्य का काम करना चाहिए और अपने दोस्तों को भी इस पुण्य में भागीदार बनाना चाहिए ।
संस्कार सन्देश : - हमें सदैव अच्छाई के रास्ते पर चलना चाहिए और अपने मित्रों को भी सही राह पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए ।