हिन्दू मुस्लिम दोनों समुदायों में तनाव बढ़ रहा था। नवाब ने हज़रत अब्बास की दरगाह देखते हुए उस स्थान पर भी जाने का मन बनाया जहाँ हिन्दुओं ने प्रतिरोध में अपनी दुकानें बन्द कर रखी थीं। शरफ़ुद्दौला ग़ुलाम रज़ा खाँ को प्रधान वज़ीर से निर्देश मिला कि बाज़ार को सजाया जाए। पर दूकानें बन्द होने के कारण रज़ा खाँ को बाजार को सजाने में कठिनाइयाँ आईं। दोपहर में जब बादशाह हाथी पर सवार होकर बाजार से गुज़रे, उनकी हीरे की अँगूठी गिर गई। एक महिला को मिली। उसने बादशाह तक अँगूठी पहुँचा दी। बादशाह ख़ुश हुए। उस महिला को दस हजार रुपये का इनाम दिया। जब बादशाह महमूदनगर रोड के पास पहुँचे तो हुसैनी नाम के व्यक्ति ने जोर से चिल्लाकर कहा,‘अली नक़ी खाँ के दोस्त कायम अली ने मेरे घर पर कब्ज़ा कर लिया है।’ बादशाह ने उसे बुलाकर सुना और दुखी हुए। आदेश दिया कि सज़ा के तौर पर कायम अली का घर ध्वस्त कर दिया जाय। हुसैनी को पाँच हजार अपया घर बनाने के लिए दिलवाया। अलीनक़ी खाँ बादशाह की पत्नी ख़ासमहल के बड़े पिता थे किन्तु बादशाह ने इसका कोई ख़्याल नहीं किया। न्याय में किसी तरह का हस्तक्षेप उन्हें बर्दास्त न था। मीरमेंहदी घर के निकट मंदिरों के पास पड़ी खाली ज़मीन को हथियाना चाहते थे। वे प्रधान वज़ीर की जाँच में दोषी पाए गए। उन्हें घर में ही नज़र बन्द कर दिया गया। बादशाह ने सम्पूर्ण घटना क्रम पर दुख प्रकट किया। कहा कि अपनी नई उम्र और अनुभवहीनता के कारण उन्होंने गलत अधिकारियों पर विश्वास कर लिया। उन्होंने मंदिरों के सम्पत्ति की प्रतिपूर्ति कराई।
हिन्दू आक्रोशित थे ही। इसी बीच रईसों और राजकुमारों में भी आक्रोश पनपने लगा। बादशाह ने शाही खर्च कम करने के लिए रईसों और राजकुमारों की पेंशन में कमी कर दी थी। पेंशन को कम कर तर्क संगत बनाया गया था। यद्यपि यह कार्य न्यायोचित था पर रेजीडेन्ट ने इसे ‘अन्यायपूर्ण’ बताकर रईसों से वाह वाही लूटी। रईसों का हौसला बढ़ा और उसमें कुछ ने मिलकर बादशाह के हत्या की साज़िश रच डाली।
छह अप्रैल की रात में दस बजे एक सशस्त्र घुड़सवार दो पैदलों के साथ मछली दरवाज़े में घुसा। अन्य दरवाज़ों को पार करते हुए वह महल के द्वार तक पहुँच गया और आँगन से होते हुए सिंहासन कक्ष के सामने पहुँचा। यहाँ चोबदार ने रोका क्योंकि इस द्वार से घोड़े पर सवार होकर गुज़रना मना था। घुड़सवार ने तुरन्त चोबदार पर आक्रमण कर एक हाथ काट दिया। तीन-चार सिपाही जो पहरे पर थे दौडे़, घायल हुए किन्तु घुड़सवार को परलोक पहुँचा दिया तथा दोनों पैदलों को बन्दी बना लिया।
इस घटना के दो ही दिन बाद प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला पर भी आक्रमण हो गया। वे अपनी सवारी पर राजमहल जा रहे थे। गोलागंज में इमामबाड़ा मलिकाए ज़मानी की दीवार के पास पहुँचे ही थे कि चार व्यक्ति उनकी सवारी के सामने आ गए। उनमें से एक तफ़ज्जुल ने घोड़ों की रास पकड़ ली और चिल्लाया कि मुझे अपने बकाया वेतन का भुगतान चाहिए। वज़ीर को लगा कि कोई बरख़ास्त सिपाही होगा जिसका वेतन कुछ बाकी हो। तब तक तीन लोग रथ के दाहिनी ओर आ गए। वज़ीर के नौकर हुलास को लगा कि ये चारों मालिक को घेर रहे हैं। उसने मना किया। उनमें से एक ने हुलास पर गोली चला दी, पर वह बच गया। पर तुरन्त ही फ़ज़ल अली ने उसको गोली मार दी। लेकिन उसने गिरते गिरते तीसरे आदमी हैदर ख़ान को घायल कर दिया। घायल हैदर ख़ान तलवार निकाले हुए रथ में घुस गया। वज़ीर ने उसका दाहिना हाथ, जिसमें तलवार थी, पकड़ लिया और उसे बाई तरफ ढकेला। पर ऐसा करने में वे स्वयं उसी पर गिर पडे़। तफ़ज्जुल उसकी सहायता को आया पर वज़ीर ने उसे बाँए हाथ से पकड़ लिया। इस गुत्थम गुत्थी लड़ाई में उसका एक साथी और आ गया और अपनी तलवार से वज़ीर के बाँए हाथ पर घाव कर दिया जिससे उनका हाथ ढीला पड़ गया। वज़ीर को पता नहीं चल सका कि कब उनके सहायक अमान अली सैय्यद को घाव लगा पर ज़मीन से उठते हुए उन्होंने उसे घायल अवस्था में सड़क पर देखा। दूसरा सहायक शाह मीर, जो घायल हो चुका था, बीस गज़ दूर चिल्लाकर लोगों को बुला रहा था कि गुंडे वज़ीरे आज़म को मार रहे हैं। तब तक चारों आक्रमणकारियों ने वज़ीर को घेर लिया और कहा कि यदि किसी ने उन पर आक्रमण नहीं किया तो वे मारेंगे नहीं। तफ़ज्जुल और अली मुहम्मद ने अपनी तलवारें वज़ीर के सीने पर रख दीं। फ़ज़ल अली और हैदर ख़ान सड़क पर पहरेदारी करते रहे। वज़ीर ने आदेश किया कि जो लोग घेर का खडे़ हैं, वे दूर हो जाएँ। अधिक खून बह जाने से अब वे खड़े होने की स्थिति में नहीं थे। सड़क के किनारे एक ऊँचे चबूतरे पर लेटने की उन्हें अनुमति दी गई। तफ़ज्जुल और अली मुहम्मद उनके सीने पर तलवारें रखकर बैठ गए।
रेजीडेन्ट ने जब इस घटना के बारे में सुना, उन्होंने छावनी को आदेश भिजवाया कि दो बन्दूकों सहित एक पलटन अपने साजो-सामान सहित मौक़े पर पहुँचे। अपने सहायक लेफ्टिनेंट बर्ड के साथ वे भी मौक़े पर पहुँचे और देखा कि वज़ीर के मकान की सँकरी गली में भीड़ इकट्ठा है। एक ऊँचे चबूतरे पर वज़ीर दो गुण्डों से घिरे हुए हैं जिन्होंने अपनी तलवारें उनके सीने पर लगा रखी हैं। लेफ्टिनेंट बर्ड उस स्थान की ओर बढ़े जहाँ वज़ीर लेटे थे। घायल करने वालों ने कहा-अच्छे आदमी अब सरकार में नियुक्ति नहीं पाते हैं। हमारे पास जीविका का कोई साधन नहीं है। उसे पाने के लिए ही हमने यह काम किया है। उन्होंने वज़ीर से पचास हज़ार रुपये की माँग की तथा रेजीडेन्ट से यह लिखित आश्वासन भी माँगा कि उन्हें बिना किसी प्रताड़ना के कानपुर (कम्पनी क्षेत्र में) जाने की अनुमति मिले। रेजीडेंट ने लिखित समझौते से इन्कार किया और कहा कि यदि वे वज़ीर को क़त्ल करने की कोशिश करेंगे तो उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा किन्तु यदि वे वज़ीर को कोई और नुक़सान नहीं पहुँचाएँगे तो उनकी ज़िन्दगी बचा दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि वे उन चारों को बेलीगारद ले जाने को तैयार हैं जहाँ न तो उन्हें कै़द किया जाएगा और न क़ैदी की तरह उन्हें अवध हुकूमत को सौंपा जाएगा। जहाँ तक रुपये देने का प्रश्न है यह निर्णय वज़ीर को ही करना है। वज़ीर के निर्देश पर उनके रिश्तेदारों ने पचास हज़ार रुपये चार हाथियों पर रखवाकर मँगवाया। रुपये आने पर बेली गारद के डाक्टर लोगिन को वज़ीर के घावों की दवा करने की अनुमति दी गई। रुपयों से लदे हाथियों को आक्रमणकारियों ने अपने कब्ज़े में लिया और बेलीगारद की ओर बढ़ गए। रेजीडेन्ट ने उन चारों को बेलीगारद के कमरे में जगह दी। तीन आक्रमणकारी घायल थे, उन्हें भी चिकित्सा सुविघा उपलब्ध कराई गई। रुपयों की रखवाली के लिए एक पहरेदार भी नियुक्त किया। वज़ीर पर इस आक्रमण का उद्देश्य क्या था? इसका निश्चित पता तो न लग सका, पर शहर में तरह-तरह की अफ़वाहें उड़ती रहीं। हर आदमी इसी घटना की चर्चा करता रहा। ख़बर मिलने पर बादशाह ने आक्रमणकारियों को गिरफ़्तार करने के लिए सिपाहियों को भेजा पर रेजीडेन्ट ने मना कर दिया।
दोपहर में रेजीडेन्ट महोदय बादशाह से मिले। प्रधान वज़ीर पर आक्रमण से वे बहुत नाराज़ थे। चाहते थे कि आक्रमणकारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए। रेजीडेन्ट ने बताया कि वे उनकी सुरक्षा का वचन दे चुके हैं और उनके वचन की रक्षा की जानी चाहिए। प्रधान वज़ीर ने भी बादशाह को लिखा कि आक्रमणकारियों से नियमित मुकदमे के पहले किसी प्रकार का दुर्व्यवहार न किया जाय। इस पर बादशाह शान्त हुए। बाद में चारों को नियमित मुकदमे के लिए अवध हुकूमत को सौंपा गया। मुंशी जहूरुद्दीन, मौलवी सिताब अली, मुखलिस हुसेन अमीन और मुंसिफुद्दौला को मुकदमे का भार सौंपा गया। इस अदालत ने तफ़ज्जुल हुसैन, हैदर ख़ान और फ़ज़ल अली को दोषी पाया। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा दी गई। अली अहमद पीलीभीत का था उसे इस शर्त पर छोड़ा गया कि हाकिम उसके चाल चलन की निगरानी करते रहेंगे।
प्रधान वज़ीर को स्वस्थ होने में एक माह से अधिक लग गया। आठ अप्रैल को वे घायल हुए थे। मई की तेरह तारीख को वे बादशाह के दर्बार में उपस्थित हुए। उनके साथ डा0 लागिन भी थे। बादशाह खुश हुए। प्रधान वज़ीर को खि़लअत अता की तथा डा0 लागिन तथा उनके सहायकों को प्रधान वज़ीर की अच्छी सेवाओं के लिए इनाम दिया।
वाजिद अली शाह इस घटना से चिन्तित थे। यदि प्रधान वज़ीर सुरक्षित नहीं है तो आम लोग कैसे सुरक्षित रहेंगे। उन्हें लगने लगा कि प्रधान वज़ीर सचमुच चुस्ती से काम करने में सक्षम नहीं हैं। नाज़िम, आमिल भी कुछ बेकाबू हो रहे थे। यह शिकायत आ रही थी कि रिश्वत के कारण राजस्व प्राप्तियों में बाधा आ रही है। इधर अली नक़ी खाँ अपनी भतीजी ख़ासमहल तथा अन्य तरीकों से नवाब पर दबाव बना रहे थे कि उन्हें प्रधान वज़ीर के पद पर नियुक्त कर दिया जाए। वली अहद रहते हुए शाह नक़ी खां के चंडूल सिर को देखकर मज़ाक में कहा करते थे कि एक दिन आप ज़रूर वज़ीर बनेंगे। अब वज़ीर नहीं प्रधान वज़ीर बनने का मौक़ा था। किसी के भी सत्ताधरी हो जाने पर उनके निकट के लोग सत्ता में भागीदारी के लिए प्रयास करने लगते हैं। अच्छा प्रशासक हर निर्णय लेते समय सावधान रहता है कि ग़लत लोग प्रशासन में न आ जाएँ। वाजिद अली शाह के भी निकटवर्ती लोग सत्तासीन होने के लिए तड़प रहे थे। उसमें अली नक़ी खाँ भी थे। पर उन्हें नियुक्ति देने के पहले प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला को हटाना था। इस काम के लिए रेजीडेन्ट से भी मशविरा करना ज़रूरी था।
रेजीडेन्ट के लोग शाह से सम्बन्धित एक एक ख़बर को उन तक पहुँचाते। कुछ ऐसी ख़बरें भी रेजीडेन्ट तक पहुँच जातीं जो तथ्य से परे होतीं। 31 मई 1847 को रेजीडेंट ने गवर्नर जनरल को रिपोर्ट भेजी जिसमें यह बताया गया कि प्रधान वज़ीर और वकील को हटाकर नए वज़ीर अली नक़ी खाँ और वकील के रूप में अमीर हैदर को नियुक्त करने का प्रयास हो रहा है। गवर्नर जनरल ने उस रिपोर्ट के उत्तर में रेजीडेंट को लिखा कि वे प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला को पूरी तरह सहयोग करें। महामहिम को समझाने की कोशिश करें कि वे वर्तमान वज़ीर को बनाए रखें। यदि वर्तमान वज़ीर को हटाया जाता है तो एक तरह का संभ्रम पैदा होगा जो अवध हुकूमत और वहाँ की जनता के लिए उचित नहीं होगा। इसी सन्दर्भ में 18 जून को रेजीडेंट ने नवाब को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने वर्तमान वज़ीर को सहयोग देने की बात की और शिकायत की कि नवाब के बहुत से प्रिय लोग सत्ता में आ गए हैं। क्या आप सोचते हैं हाजी अली शरीफ़ जो एक मामूली गवैया हैं कमांडर बनने के योग्य हैं? इस सन्दर्भ में महामहिम ने मुझसे कोई राय भी नहीं ली। क्या गुलाम रज़ा (गवैया) ने एक नई पलटन बनाने के लिए आदेश नहीं दिया है? क्या यह सच नहीं है कि सिपाहियों की भर्ती में हर एक से सोलह रुपये लिए जा रहे हैं? कुतुब अली, जिसके जन्म और व्यवसाय का कोई पता नहीं है तथा जो सरकारी काम काज में बिलकुल अनुभवहीन है, को बैतुल इज़्न अदालत में नियुक्ति दी गई है जिसकी नई मुहर ‘हुक्म-ए-सुल्तान सरे-नोश्त आलम अस्त’ है। क्या यहाँ के लोगों का इससे कोई भला होगा? क्या महामहिम के इस क़दम से वज़ीर की विरोधी शक्तियाँ अधिक शक्तिशाली नहीं हांगी? पर रेजीडेन्ट को कुछ गलत सूचनाएँ भी मिलती रहीं। जिस हाजी अली शरीफ़ का उल्लेख किया था, वह एक नीग्रो था जिसका गाने बजाने से कोई सम्बन्ध नहीं था। रेजीडेन्ट ने उड़ती हुई ख़बरों में जो सुना, वही लिख दिया।
नवाब वाजिद अली शाह इस पत्र से अधिक दुखी हुए। उन्होंने 26 जून के अपने पत्र में लिखा कि रसीउद्दौला राजा यूसुफ अली ख़ान की तरह एक अनुभव हीन बच्चा नहीं है और न उसकी नियुक्ति के पीछे किसी महिला का हाथ है। उसके पिता रामपुर के नवाब अहमद अलीख़ान के यहाँ एक सम्मानित पद पर थे। कुतबुद्दौला की अदालत बैतुल इज़्न अन्य अदालतों की तरह है जो राजस्व बकायेदारों के मामलों की छानबीन करेगी। यह आदेश प्रघान वज़ीर को स्थानापन्न करने के लिए जारी नहीं किया गया है यद्यपि वज़ीर की तरफ से राजस्व वसूली के सम्बन्ध में कई असावधानियाँ हुई हैं। रेजीडेंट को महामहिम के इस उत्तर से आश्चर्य हुआ। उन्होंने पुनः एक पत्र लिखा- मुझे आश्चर्य हो रहा कि आपने उस वज़ीर के प्रति असंतोष व्यक्त किया है जिसकी प्रशंसा आप इसके पहले करते रहे हैं।
नवाब ने अपने पिता अमहद अली शाह तथा केप्टन जे. एस. शेक्सपियर के कई पत्रों का हवाला देते हुए बताया कि प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला अपने कामों में पहले भी असफल रहे हैं। उन्हें राजस्व प्राप्तियों की कमी का ज़िम्मेदार बताया गया। यह भी कहा गया कि आमिलों से वे रिश्वत लेते रहे हैं जिससे हुकूमत का भय समाप्त हो गया है। सेना में भी उनके रिश्तेदारों और आश्रितों ने विखंडन की स्थिति ला दी है।
नवाब वाजिद अली शाह सत्तासीन होने के चार महीने बाद तक प्रघान वज़ीर के क्रिया कलापों को देखते रहे, पर लगान वसूली में कमी और अवघ हुकूमत की गिरती प्रतिष्ठा ने उन्हें विचलित कर दिया। उन्होंने मन बनाया कि प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला को हटा देना ठीक ही होगा। उस समय प्रधान वज़ीर के सामने अनेक चुनौतियाँ होती थीं। उन्हें नवाब और उनके प्रिय लोगों को सन्तुष्ट करना होता था। इसके अतिरिक्त उन्हें रेजीडेन्ट की अपेक्षाओं पर भी खरा उतरना होता था। कभी-कभी शाह और रेजीडेन्ट के अपेक्षाओं की दिशाएँ अलग होतीं और प्रधान वज़ीर को विद्रोही तालुकेदारों से भी निपटना होता था। ये तालुकेदार अपनी दबंगई के बल पर लगान देने में आनाकानी करते थे। नाज़िमों और आमिलों को लगान वसूली के लिए ऐसे तालुकेदारों से युद्ध करना पड़ता। बहुत-सी लड़ाइयाँ लगान वसूली को ही लेकर होतीं। इस समय जब अमीनुद्दौला को नवाब हटाना चाहते हैं, रेजीडेंट उनका समर्थन कर रहे हैं। धीरे -धीरे यह ख़बर उड़ने लगी कि प्रधान वज़ीर हटाए जाएँगे। इसकी ख़बर प्रधान वज़ीर को भी मिलती रही। 3 जुलाई को प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला राजमहल गए। वित्त मन्त्री महाराजा बालकृष्ण और मीर मुंशी राजाकुन्दन लाल के साथ वे नवाब से मिलने के लिए प्रतीक्षारत थे। थोड़ी देर बाद मुसाहिबुद्दौला बाहर आए और बताया कि महाराजा बालकृष्ण और राजा कुन्दन लाल को बादशाह बुला रहे हैं। दोनों बिना प्रधान वज़ीर के अन्दर जाने से हिचक रहे थे। इसके पहले सभी साथ-साथ जाते थे। दूसरी बार जब फिर बुलावा आया, प्रधान वज़ीर ने इन दोनों से कहा कि आप लोग जाइए। वे लोग अन्दर गए। नवाब ने अपने कंचुकी अंजामुद्दौला को दस बजे ही रेजीडेंट के पास भेज दिया था। वे पत्र ले गए थे जिसमें प्रधान वज़ीर अमीनुद्दौला की बर्ख़ास्त गी तथा उनकी जगह अली नक़ी खाँ की नियुक्ति का प्रस्ताव था। रेजीडेंट ने तुरन्त नवाब से भेंट करना चाहा और नवाब का पत्र लेकर ग्यारह बजे राजमहल पहुँच गए। नवाब ने बातचीत में अली नक़ी खाँ का समर्थन किया, रेजीडेन्ट गवर्नर जनरल का पत्र भी साथ लाए थे। उसे पढ़कर सुनाया। इस पत्र में गवर्नर ने अमीनुद्दौला का समर्थन किया था। रेजीडेंट ने नवाब से अनुरोध किया कि वे अपना निर्णय बदल दें। नवाब ने कहा कि अब निर्णय बदलना सम्भव नहीं है। रेजीडेंट ने नवाब को चेताया कि इस नियुक्ति से यदि कोई ग़लत परिणाम आते हैं तो सारी ज़िम्मेदारी आप की होगी। यह भी बताया कि गवर्नर जनरल की इच्छा के विपरीत आपका निर्णय उन सन्धियों का भी उल्लंघन है जो कम्पनी और अवध हुकूमत के बीच हुई हैं।
दोपहर में दरोगा शेख अकबर अली को एक चोबदार ने आकर बताया कि प्रधान वज़ीर को बरख़ास्त कर दिया गया है। सभी अधिकारी और कर्मचारी भौचक्के थे। हवा में बात ज़रूर थी पर इतनी जल्दी निर्णय हो जायगा इसकी संभावना लोग नहीं देख रहे थे। प्रधान वज़ीर समर्थक उनके कार्यों को स्मरण करने लगे। उन्होंने अमीनाबाद बाज़ार बसाया और भी कई काम किए पर अब वे पैदल थे। जब उन्होंने ख़ुद इस्तीफ़ा देने की पेशकश की तब उन्हें बने रहने के लिए कहा गया किन्तु अब कुछ ही दिनों में पासा बिलकुल पलट गया।
नवाब ने अमीनुद्दौला के सम्बन्ध में रेजीडेन्ट की बात नहीं मानी, पर प्रशासन में कुछ छोटे-मोटे परिवर्तन किए। उसी दिन मीर मेंहदी को बर्ख़ास्त कर दिया गया जिनके संरक्षण में कुछ मन्दिरों को ढहा दिया गया था। फ़रजन्द अली को भी शहर के डिप्टी दरोगा के पद से हटा दिया गया। सेना में भ्रष्टाचार के खि़लाफ़ सख़्त आदेश प्रसारित किया गया।
जुलाई पाँच को अमीनुद्दौला से मुहर ले ली गई और उनकी जगह अली नक़ी खाँ प्रघान वज़ीर के रूप में काम करने लगे। यद्यपि रेजीडेन्ट ने इन्हें इस पद पर स्वीकार नहीं किया था। रेजीडेन्ट और नवाब के बीच सौमनस्य घटता गया। रेजीडेन्ट ने सम्पूर्ण ब्यौरे को लिखकर गवर्नर जनरल के पास भेज दिया। वे बेलीगारद में रहते हुए लाट साहब के निर्देश की प्रतीक्षा करने लगे। अन्ततः चौबीस जुलाई को लाट साहब का पत्र आया जिसमें कहा गया कि यदि नवाब का विश्वास वर्तमान प्रधान वज़ीर से उठ गया है तो उन्हें किसी ऐसे सुयोग्य आदमी को इस पद पर नियुक्त करना चाहिए जिस पर रेजीडेन्ट को आपत्ति न हो। लाट ने यह भी इंगित किया कि रेजीडेन्ट को केवल परामर्श ही नहीं देना है, बल्कि नवाब को बाध्य भी करना है कि वे उन्हें स्वीकार भी करें। उन्होंने चेतावनी भी दी कि किसी अनिच्छित परिणाम के लिए ब्रिटिश सरकार महामहिम को ही उत्तरदायी मानेगी। गवर्नर जनरल का पत्र प्राप्त हो जाने पर रेजीडेन्ट ने अली नक़ी खाँ की नियुक्ति पर सहमति जताई। पाँच अगस्त को उन्होंने महाउलमहाम (प्रधान वज़ीर) का पद भार ग्रहण किया और जैसा कि परम्परा थी उसी दिन उन्होंने रेजीडेन्ट से मिलकर सम्मान प्रकट करते हुए कृतज्ञता ज्ञापित की। वे रेजीडेन्ट से मिलकर बाहर निकले। अपनी बग्घी पर बैठे जा रहे थे। थोड़ी दूर निकल आने पर देखा-एक लँगड़ा आदमी चबूतरे पर बैठा ढोलक बजा रहा था और एक साँवली स्वस्थ बालिका दिलक़श आवाज़ में एक झूमर गा रही थी-
यहि ठइयाँ टिकुली हेराइ गई गोइयाँ
कुँअना पै हेरयों जगतिया पै हेरयों
महरा से पूछत लजाइ गइउँ गोइयाँ।
बगिया मा हेरयों बगैचा मा हेरयों
मलिया से पूछत लजाइ गइउँ गोइयाँ।
उसे घेर कर खड़े लोग प्रधान वज़ीर की सवारी देखकर सम्मानपूर्वक किनारे हो गए। एक चोबदार ने एक इकन्नी लँगड़े आदमी के ज़मीन पर फैले अँगौछे पर डाल दिया। प्रधान वज़ीर निकल गए तो अन्य दर्शकों ने भी कुछ पाई, आटा, चावल, अँगोछे पर डाला। लड़की ने अँगोछा उठाया और लँगड़े आदमी को पकड़ा दिया। दोनों दूसरे मुहल्ले की ओर बढ़ गए। वज़ीर-ए-आज़म सोचते रहे-यह लड़की टिकुली खोज रही है। किसी को बताने में उसे शर्म महसूस हो रही है। मुझे तो शाही और कम्पनी हुकूमत के बीच यक़ीन बहाल करना है। यह यक़ीन ही गर इस टिकुली की तरह खो गया तो मैं भी क्या किसी से कुछ कह पाऊँगा? लोग यही समझेंगे कि वज़ीर-ए-आज़म कामयाब नहीं हुए। यक़ीन का बना रहना कितना ज़रूरी है इसे मैं ही जानता हँ। इंशाअल्लाह देखना है कि टिकुली बचती है या खो जाती है....या रब देखना। सोचते विचारते उनकी बग्घी घर के दरवाजे़ पर पहुँच गई।
वे इत्मीनान से उतरे और अंदर दाखि़ल हो गए।
मन में लड़की की बात गूँजती रही-
यहि ठइयाँ टिकुली हेराय गई गोइयाँ........