camel and jackal in Hindi Short Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | ऊंट और गीदड़

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ऊंट और गीदड़

1.
ऊंट और गीदड़

एक जंगल में ऊंट और गीदड़ रहते थे। वे पक्के मित्र थे। ऊंट सीधा - सादा तथा गीदड़ बहुत दुष्ट था। गीदड़ ने कहा, "कि पास में एक मीठे गन्ने का खेत है, आओ गन्ने खाने चलें।" ऊंट बोला, "अगर खेत के मालिक ने हमें देख लिया तो बहुत मारेगा।" गीदड़ ने उसकी एक न मानी। दोनों गन्ने खाने के लिए चल दिए । गीदड़ का पेट जल्दी भर गया और उसने कहा, "मुझे हुक हुकी आ रही है।" यह सुनकर ऊंट ने कहा, "खेत का मालिक आ जाएगा और हमें दंड देगा। गीदड़ नहीं माना और उसने हुआ - हुआ करना शुरु कर दिया। खेत का मालिक डंडा लेकर आया। गीदड़ तो भागकर छिप गया और ऊंट को मालिक ने डंडे से खूब पीटा। ऊँट वहाँ से भागने लगा। भागते - भागते रास्ते में एक नदी पड़ी गीदड़ को ऊंट ने अपनी पीठ पर बैठा लिया और नदी पार करने के लिए नदी के बीच में पहुँचे तो ऊंट ने कहा- "मित्र मुझे तो लुट - लुटी आ रही है।" गीदड़ बोला, "अगर तुमने ऐसा किया तो मैं डूब जाऊँगा।" लेकिन ऊंट नहीं माना। वह उसे सबक सिखाना चाहता था। वह नदी के बीच में जाकर लौटने लगा। गीदड़ पानी में गिरकर मर गया।

शिक्षा : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए।

-दिनेश कुमार कीर

2. दादा और पोते का रिश्ता

ये प्रेम थोड़ा अलग है इसमें हंसी मजाक,
थोड़ा रूठना मनाना और थोड़ी शरारतें शामिल हैं,
यहां न कोई मतलब है ना कोई स्वार्थ है और न कोई भेद है,
यहां सिर्फ एक मोह का बंधन है ।
वो बहुत पुरानी एक कहावत है कि इंसान को असल से प्यारा सूद (ब्याज) लगता है शायद दादा पोते के प्रेम को देखकर ही यह कहावत किसी ने बनाई होगी, क्योंकि एक पिता को अपने बच्चो से ज्यादा प्यारे अपने नाती पोते होते हैं या कह ले कुदरती उनका लगाव एक दूसरे से बहुत ज्यादा होता है, क्यूंकि एक की उम्र परिपक्व तो दूसरे की नटखट । लाड दुलार, खट्टी मीठी बहस, रूठना फिर मनाना एक दूसरे को याद करके आंसू बहाना। बाहर से कड़क दिखने वाले दादा जी का चुपके चुपके अपने पोते की परवाह करना, उसकी उदासी पर उदास होना मगर उसकी उदासी को दूर करने के जतन करना।
उसको बातों में उलझा कर, उसकी उलझनों को सुलझाना,
उसके चेहरे से उसके मन के भाव जान लेना,
अपने हिस्से की मिठाई चुपके से उसके हाथ में थमा देना,
और वहीं पोते का अपने दादा का ख्याल रखना उनकी एक आवाज में दौड़ते हुए उनके पास आना ।
यदि दादा घर में न दिखाई दें तो मायूस हो जाना,
जब कोई साथ न खेले तो दादा को ही अपना साथी बना मस्त हो जाना, शिकायतें लगा अपने बड़ों की दादा से डांट लगवाना,
कुछ चाहिए हो तो दादा को थोड़ा फिर मस्का लगाना
कभी गांव या खेतों में दादा के पीछे पीछे दौड़ते जाना, कभी उनकी लाठी पकड़ उनकी नकल करना ।
नाराज हो दादा तो अपने हाथ से उन्हें खाना खिलाना और पोते के प्यार को देख दादा की नाराजगी का दूर हो जाना।
पोते बड़े होकर जब दूर चले जाते हैं तो दादा का आधा मन तो अपने साथ ही ले जाते हैं तब बूढ़ी आंखो को बस इंतजार रहता है हर वक्त अपने पोते के आने का...
कितना स्नेह से परिपूर्ण रिश्ता है जिसमे तनिक भी छल नही, केवल प्रेम और प्रेम।