1.
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक्ाना लिबास में
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मेरे साथ तुम भी चला करो
नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो
ये ख़िज़ाॉँ की जर्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है।
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो
2.
धुंआ बन बन के उठते हैं हमारे ख्वाब सीने से
परेशान हो गए ऐ ज़िन्दगी घुट घुट के जीने से
हमें तुफ़ान से टकरा के दो दो हाथ करने हैं।
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से
चले तो थे निकलने को, पलक पर थम गये आंसू
छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से।
दुआ से आपको अपनी वो मालामाल कर देगा
लगाकर देखिए तो आप भी मुफलिस को सीने से
मुझे रोते हुए देखा, दिलासा यूँ दिया माँ ने
उतर आएगी आंगन में परी चूपचाप जीने से
अगर होता यही सच तो समंदर हम बहा देते
"सीमा" होगा न कुछ हासिल कभी ये अश्क पीने से
3.
हमारे बाद तुम्हें अपनां बनाने कौन आयेगा?
रूलाने तो सब आयेंगे हंसाने कौन आयेगा?
बड़ी मुश्किल है चाहत की सभी कसमें सभी रस्में
करेंगे प्यार सभी लेकिन निभाने कौन आयेगा
कहीं मजबूरियां होंगी कहीं तन्हाईयां होंगी
तुम्हें हर मोड़ पे रास्ता दिखाने कौन आयेगा?
जरूरत हर किसी को होगी तेरी मैहरबानी की
सितम सह कर तुम्हें मनाने कौन आयेगा?
हमारे बाद तुम्हें अपना बनाने कौन आयेगा?
रूलाने तो सब आयेंगे हंसाने कौन आयेगा?
4.
बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा
अब ज़हन में नहीं है पर नाम था भला सा
अबरु खिंचे खिंचे से आंखें झुकी झूकी सी
बातें रुकी रुकी सी लहजा थका थका सा
अल्फाज़ थे कि जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाए जंगलों में जिस तरह रास्ता सा
ख़वाबों में ख़्वाब उसके यादों में याद उसकी
नींदों में घुल गया हो जैसे कि रतजगा सा
5.
अजीब सी धुन बजा रखी है जिंदगी ने मेरे कानोंमें,
कहाँ मिलता है चैन पत्थर के इन मकानों में।
बहुत कोशिश करते हैं जो खुद का वजूद बनाने की
हो जाते हैं दूर अपनों से नजर आते हैं बेगानों में।
हस्ती नहीं रहती दुनिया में इक लबे दौर तक,
आखिर में जगह मिलती है उन्हें कहीं दूर श्मशानों में।
न कर गम कि कोई तेरा नहीं,
खुश रहने की राह है मस्ती के तरानों में
जान ले कि दुनिया साथ नहीं देती,
कोई दम नहीं होता इन लोगों के अफसानों में।
क्यों रहता है निराश अपनी ही कमजोरी से
झोंक दे सब ताकत अपनी करने को फतह मैदानों
खुद को कर दे खुदा के हवाले ऐ इंसान
कि असर होता है आरती और आजाना में,
करना है बसर तो किसी की खिदमत में कर
वर्ना क्या फर्क है तुझमें और शैतानों में।
करना है तो कर गुंजर कुछ किसी और की खातिर
बन जाएं अलग पहचान तेरी इन इंसानों में
बन जाए अलग पहचान तरी इन इसानो में
6.
तेरी चाहत भूल गयी है जीवन को महकाना अब
मेरी भी इन तस्वीरों ने छोड़ दिया शरमाना अब
जो इक बात बयां होती थी तेरी-मेरी नज़रों से
कितना मुश्किल है उसको यूँ लफ्ज़ों में समझाना अब
मेरी गलियों से अब उसने आना-जाना छोड़ दिया
छोड़ दिया है मैने भी हर आहट पे घबराना अब
दिल की कब्र बनाकर मैं जिस दिन से जीना सीखी हूँ
भूल गयी हूँ उस दिन से ही चाहत पे मर जाना अब
उसने जब से फूलों से सजना-संवरना छोड़ दिया
बागीचे में कम दिखता है कलियों का मुरझाना अब
याद तुम्हारी आये तो मैं नज़में लिखने लगतीहूँ
आता है मुझको भी देखो यादों को बहलाना अब
साथ थे जब तो हम दोनों की एक कहानी होती थी
दोनों का है अपना-अपना रूहानी अफ़साना अब