honor father in Hindi Motivational Stories by Dr. Pradeep Kumar Sharma books and stories PDF | पिता का सम्मान

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पिता का सम्मान

पिता का सम्मान

रामपुर शहर के एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार का युवक रमेश कुमार यू.पी.एस.सी. की परीक्षा पास कर जब अपने शहर में ट्रेन की स्लीपर क्लास के कोच से नीचे उतरा, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उसके स्वागत के लिए क्षेत्र के विधायक और कलेक्टर सहित सैकड़ों की भीड़ प्लेटफार्म पर उमड़ पड़ी थी। आखिर हो भी क्यों नहीं, वह जिले से पहला ऐसा व्यक्ति था, जो यू.पी.एस.सी. परीक्षा पास कर आई.ए.एस. एवार्ड के लिए चुना जो गया था। मिनट भर भी नहीं लगा, जब वह फूल माला से लद-सा गया था। लोकल न्यूज चैनल और मीडिया के लोग लाइव टेलीकास्ट कर रहे थे। स्थानीय युवा ही नहीं बड़ी संख्या में युवतियाँ भी अपने लोकल हीरो के साथ सेल्फी ले रहे थे। पर उसकी आँखें इस भीड़ में किसी को खोज रही थीं। किसी तरह उसने दूर कोने में नजर दौड़ाई, तो पाया उसके एवरग्रीन हीरो नम आँखों से उसे देख रहे हैं। वह दौड़कर उनके पास गया और पैर छूकर आशीर्वाद लिया। पिता ने उसे गले से लगा लिया।
"पापा, आपकी आँखों में आँसू ? सब खैरियत तो है न ? मम्मी ठीक तो है न ?" रमेश ने एक साथ सवालों की बौछार कर दी।
"सब ठीक है बेटा, वह बावली कल से न जाने तेरी पसंद के क्या-क्या पकवान बनाने में लगी हुई है।" पिता ने बताया।
"चलो, जल्दी घर चलें।" रमेश ने कहा।
"ऐसे कैसे जल्दी चलें रमेश जी ? आप इस क्षेत्र से बने पहले आई.ए.एस. अफसर हैं। आपको तो हम एक शानदार जुलूस के साथ पूरे शहर में घुमाते हुए आपके घर ले जाएँगे। ऑफ्टरऑल आप युवाओं के हीरो हैं। आपसे क्षेत्र के बाकी बच्चे प्रेरित होंगे। देखिए, हमने पूरी तैयारी कर ली है। उधर देखिए, दुल्हन की तरह सजी हुई गाड़ी आपकी प्रतीक्षा कर रही है। इधर ये बैंड बाजा वाले तैयार खड़े हैं। स्टेशन के बाहर हजारों की भीड़ इस अवसर पर नाचने को तैयार खड़े हैं। क्यों कलेक्टर साहब ?" विधायक महोदय ने कलेक्टर साहब की ओर देखते हुए कहा।
"हाँ हांँ, बिल्कुल। आप चलिए हमारे साथ।" कलेक्टर साहब ने भी उनकी हांँ में हाँ मिलाते हुए कहा।
"सर, मैं बहुत आभारी हूंँ आप सबका, कि आप सबने मेरे लिए इतना सोचा और किया। पर मैं अपने वादे से बंधा हुआ हूंँ। तीन दिन पहले तक, जब मैं आप सबके लिए एक गुमनाम था, तब मुझे स्टेशन छोड़ने आए मेरे पिताजी और उनके कुछ रिक्शा चालक मित्रों को मैंने को वचन दिया था कि आई.ए.एस. बनने के बाद मैं उनके रिक्शे पर ही बैठकर घर लौटूँगा और मैं ही उनका अंतिम सवारी बनूँगा; क्योंकि उसके बाद उन्हें दुबारा रिक्शा चलाने नहीं दूँगा।" रमेश ने बताया।
"ये तो और भी अच्छी बात है। आप अपना वचन जरूर निभाइए। पर आज जुलूस तो पूरे शहर में निकाली जाएगी। इससे आपके पिताजी थक नहीं जाएंँगे ?" विधायक महोदय ने कहा।
"साहब, मैं एक बाप हूँ। बाप अपने बेटे को कभी बोझ नहीं समझता। जीवनभर मैं लोगों का बोझ ढोकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया हूँ, और आज जब मेरा बेटा ये मुकाम हासिल किया है, तो भला कैसी थकान। इसकी सफलता से मैं कितना सम्मानित महसूस कर रहा हूँ, वह शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।" पिता ने छलक आए आँसुओं को पोंछते हुए कहा।
"वाकई, आप दोनों पिता-पुत्र लोगों के लिए एक आदर्श हैं। इसलिए हमने भी यह डिसाइड किया है कि आज हम भी आपकी तरह ही अलग-अलग रिक्शों में बैठकर जुलूस निकालते हुए आपको अपने घर पहुँचाएँगे। क्यों एम.एल.ए. साहब ?" कलेक्टर साहब ने विधायक महोदय की ओर देखते हुए कहा।
"बिल्कुल। शुभस्य शीघ्रम।" विधायक महोदय ने पूरे उत्साह के साथ बैंड पार्टी से कहा, "बजाओ रे।"
फिर क्या था, पिता के रिक्शे पर पुत्र और अन्य दो रिक्शों में विधायक और कलेक्टर बैठे हजारों की भीड़ नाचते-झूमते शहर में जुलूस निकल पड़ी।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़