स्वातंत्रयोत्तर हिंदी उपन्यास साहित्य की विविध आयाम -
(क)-उपन्यास क्या है-
उपन्यास हिंदी गद्य की एक आधुनिक विधा है इस विधा का हिंदी में प्रदुर्भाव अंग्रेजी साहित्य के प्रभाव के रूप में हुआ लेकिन इसका अर्थ कदापि नही की इससे पहले भारत मे उपन्यास जैसी कोई विधा नही थी ।
उपन्यास विधा का उद्भव विकास पहले यूरोप में हुआ बाद में बांग्ला साहित्य के माध्यम से इस विधा का हिंदी साहित्य में आई।
लाला श्री निवास दास का परीक्षा गुरु (1888 ) इंसा अल्ला खां द्वारा रचित रानी केतकी की कहानी तथा श्रद्धा राम फिल्लौरी कृत भाग्यवती आदि को हिंदी के प्रथम उपन्यास के रूप में मान्यता प्राप्त है।
(ख)-
हिंदी उपन्यास के विकास क्रम को तीन भागों में बांटा जा सकता है
1-प्रेम चंद्र पूर्व हिंदी उपन्यास
2- प्रेम चंद्र युगीन हिंदी उपन्यास
3-प्रेम चंददोत्तर हिंदी उपन्यास।। तीनो ही दौर के उपन्यासों कि
भूमिका अपरिहार्य है भारत मे स्वतंत्रता के पूर्व एव स्वतंत्रता के बाद।
(ग)-
उपन्यास को मुख्यतः पांच भागो में विभक्त किया जा सकता है ---
उपन्यास शब्द उप उपसर्ग और न्यास पद के योग से बना है जिसका अर्थ है उप -समीप न्यास-रखना स्थापित रखना (निकट कि वस्तु) स्प्ष्ट है वह वस्तु या कृति जिसे पढ़कर पाठक को ऐसी अनुभूति हो कि उसी के जीवन की सत्यता को उसी कि भाषा भाव मे लिखा गया है।उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है।
(घ)-उपन्यास कि परिभाष-
(A)- गुलाब के अनुसार-
उपन्यास जीवन का चित्र है प्रतिबिंब नही है क्योंकि प्रतिबिंब कभी पूरा नही हो सकता ।मानव जीवन इतना पेचीदा एव जटिल है कि उसका प्रतिबिंब सामने रखना जटिल एव असंभव है।
उपन्यासकर जीवन के निकट से निकट आता है और उसे जीवन मे बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है विशेषता यह है कि जहाँ वह छोड़ता है वही वह जोड़ता भी है जो उसकी अपनी कल्पना होती है।
(B)-श्याम सुंदर दास के अनुसार-
उपन्यास मनुष्य के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा है।
(C)-हडसन के अनुसार -
उपन्यास में नामो एव तिथियों के अतिरिक्त और सब बातें सच होती है इतिहास में नामो एव तिथियों के अतिरिक्त कोई बात सच नही होती।
(च )-उपन्यास को मुख्यतः पांच भागो में विभक्त किया जा सकता है ---
1-सांमजिक उपन्यास ।
2-तिलस्मी या अय्यारी के उपन्यास ।
3-जासूसी उपन्यास।
4- प्रेमाख्यात्मक उपन्यास।
5-ऐतिहासिक उपन्यास।।
(छ)-उपन्यास कि विशेषताएं-
1- यह विस्तृत होती है।
2- उपन्यास जीवन के विविध पक्षो का समावेश होता है।
3-उपन्यास वास्तविकता एव कल्पनाओं का कलात्मक मिश्रण है।
4- कार्य कारण श्रृंखला का निर्वहन किया जाता है ।
5-उपन्यास में मॉनव जीवन के सत्य का उद्भव उद्घाटन होता है।
6-जीवन कि समग्रता का चित्र इस प्रकार उपस्थित किया जाता है कि पाठक उसकी अंतर्वस्तु तथा पत्रों से अपना तदत्मिकरण कर सके।।
(ज)-
उपन्यास का विकास
1-भारतेंदु युग 1882
2-द्विवेदी युग -(1900-1918)
3- प्रेमचन्द्र युग -1919-1936
4-प्रेमचन्दोत्तर युग -1937 के बाद।
परतंत्रता कालीन भारत का वातावरण कुछ ऐसा था भावुक संवेदनशील साहित्यकार के लिए अपरिचित रहना संम्भवः नही था अतः आधुनिक काल 1857 से आज तक स्वातंत्र्योत्तर या स्वात्रोत्तरपूर्व उपन्यासकारों ने अपने युग समय कि राजनीतिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक धार्मिक एव साहित्यिक परिस्थितियों से प्रभावित होकर उपन्यास साहित्य की रचना की आधुनिक काल कि विभिन्न परिस्थितियों का आंकलन निनमवत है -
(झ)-
भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम के विविध आयाम-
अंग्रेजो के 200 वर्षो के लंबे शासनकाल के दैरान भारत वर्ष में अपने शासन कि बुनियाद मजबूत कर ली लंबे शासनकाल में भारतीय जनता का हर तरह से शोषण किया शोषण से व्यथित होकर भारतीय जनता ने पराधीनता के दंश को महसूस किया भारत राष्ट्र को परतंत्रता के बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए राष्ट्र में राष्ट्रीय उन्नयको चिंतकों द्वारा अनेको अभियान स्वतंत्रता क्रांति के परिपेक्ष्य में चलाए गए या यूं कहा जाय कि राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन चलाया गया अतः उसके विविध आयाम घटनाओं जैसे कांग्रेस का अभ्युदय उसके बिभन्न अधिवेशन ,जलियांवाला बाग हत्याकांड, बंगाल अकाल ,अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन,नमक सत्याग्रह,डंडी मार्च,चंपारण सत्यग्रह ,काकोरी ,नौव जवान क्रांतिकारियों कि शहादत आदि का वर्णन है।
(त)-
स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित उपन्यासों का परिचय-
स्वतंत्रता संग्राम से प्रभावित होकर स्वतंत्रता कालिन औन्यासिक रचनाएं की गई जिनमे चंद हसीनों के खातून,गोदान,कर्मभूमि,रंगभूमि, वरदान,गमन ,काया कल्प,प्रेमाश्रम ,चंद्रकांत, जागरण,मनुष्यानंद,बुधुआ कि बेटी,सरकार तुम्हारी आँखों मे,सत्याग्रह,सुनीता,मुक्तिबोध, त्यागपत्र,मेरा देश ,राम रहीम ,गांधी टोपी, पुरुष और नारी ,दो पहलू ,निमंत्रण, टेढेमेढे रास्ते,हृदयमन्थन,चलते चलते,पतवार, सुखदा, विवर्ध,जयवर्धन,कल्याणी,आत्म दाह,निशिकांत, गांधीवादी चबूतरा, बलि का बकरा,दादा कामरेड ,देश द्रोही,शेखर -एक जीवनी,पार्टी कामरेड ,चढ़ती धूप,नई ईमारत, अल्का, मनुष्य के रूप ,विसर्जन, झूठा सच,मशाल,सती मैया का चौरा ,बीज,बलचनमा, बाबा बटेश्वर नाथ, रति नाथ की चाची, रंगमंच ,प्रतिशोध,मृत्युकिरण ,रक्त मण्डल,सफेद शैतान ,निर्वासित, जय यात्रा,मैला आँचल, स्वाधिनता के पथ पर,अमरबेल, भंवर जाल, डॉ शेफाली, शेष अवशेष ,प्रत्यागत,विद्या, बयालीस ,अप्सरा, अलका, कुल्लीभाल,आत्मदाह,घृणा मयी ,मुक्तिपथ, पथिक,चढ़ती धूप,विषाद मठ,गिरती दीवारे, महाकाल, स्वराज्यदान,देश कि हत्या,स्वतंत भारत,अनबुझी प्यास,मुक्ति के बंधन,बयालीस के बाद ,संक्रांति, इंसान,पूरब और पश्चिम, बुझते दीप, ज्वाला मुखी,भूले विसरे चित्र,रूप जीवा,दो दुनियां, रेन अंधेरी,अपराजित, तमश आदि उपन्यासों का प्रतिबिंब एव सांकेतिक रूप से परिचय परिचय दिया गया है।
(थ)-
आधुनिक उपन्यासों में स्वतंत्रता संग्राम का चित्रण-
आधुनिक हिंदी उपन्यासों में स्वतंत्रता संग्राम का वर्णन 1857 से 1960 तक के हिंदी उपन्यासों में निरूपित भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का चित्रण वर्णन आलेखित किया गया है क्योंकि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कि वास्तविकता का अस्तित्व सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कि क्रांति से होती है और अंत भारत पाकिस्तान धर्म के नाम पर बटवारा एव महात्मा गांधी जी कि मृत्यु होती है इन्ही दो धारा प्रवाहों में विभाजित हिंदी उपन्यासों का चित्रण वर्णन किया गया है।
भरतीय स्वतंत्रता संग्राम एव
(द)-
आधुनिक हिंदी उपन्यासों का मूल्यांकन-
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कि प्रमुख घटनाओं एव वादों गांधीवाद ,आश्रम स्थापना,आतंकवाद,ग़दर आंदोलन, राजनीतिक डकैतियां ,काकोरी ट्रेन कांड,अधिकारी वर्ग कि हत्याएं,समाजवाद, मजदूर आंदोलन,चौरी चौरा हिंसात्मक हत्याकांड, कृषक आंदोलन,ग्राम्य जागरण,नारी जागरण,अछूतोद्धार आंदोलन, हिन्दू मुस्लिम ऐक्य,स्वदेश प्रेम ,स्वभाषा प्रेम,स्वदेशी वस्तु का प्रचार,नमक सत्याग्रह, कांग्रेस अधिवेशन, जालियां वाला बाग हत्याकांड, रोलेट एक्ट साइमन कमीशन विरोध,बंगाल अकाल,भारत पाकिस्तान विभाजन,महात्मा गांधी हत्या, आदि विभिन्न घटनाओं के परिपेक्ष्य में आधुनिक हिंदी उपन्यासों कि समीक्षा की गई है ।इस शोध लेख में घटनाओं एव चरित्र को प्रधानता दी है ।प्रेम चंद्र पूर्व युग,प्रेम चंद युग,एव प्रेमचन्त्रोत्तर कालीन उपन्यासों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम कि प्रमुख घटनाओं और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिबिरों से प्रभावित आधुनिक हिंदी उपन्यासों कि समीक्षा की गई है।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का उपन्यासों पर प्रभाव रेखांकित करना इस लेख का अंतर्मन है ।राष्ट्रीय आंदोलन में वैचारिक दृष्टि से योग देने वाले उपन्यासकारों के योगदान के महत्व कि प्रमानितकता प्रमाणित करना लेख के मन विचारों का आत्म बोध है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।