बुलबुल जो बात बताना चाह रही थी, वह बताने के लिए उसे शब्द नहीं मिल रहे थे और बात शुरू करने से पहले उसके होंठ भी काँप रहे थे। लेकिन फिर भी उसे बताना तो था ही तब उसने कहा, “जीजी आपको बहुत शांति और धैर्य से मेरी बात सुननी होगी। प्लीज जीजी आप नाराज मत होना। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है लेकिन जीजी अनजाने में। मैंने जानबूझकर वह गलती नहीं की। मैं बहुत बड़े चक्रव्यूह में फंस गई हूँ, वहाँ से बाहर कैसे निकलूं, मुझे उसका कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा है। अब आप ही कोई रास्ता निकालो।”
“बुलबुल रात गई और बात गई, भूल जाओ उस बात को।”
बुलबुल ने चौंकते हुए पूछा, “जीजी किस बात को?”
“बुलबुल जिस दिन प्रतीक तुम्हारे साथ झगड़ा करने वहाँ आया था; मैंने तो उसी दिन सब कुछ सुन लिया था। सब कुछ जान भी लिया था पर तीर तो कमान से छूट चुका था। बुलबुल तुम मेरे गोविंद की पत्नी बन चुकी थीं और मैं यह भी जान गई थी कि यह सब भाग्य का खेल है। क्योंकि यह सब तो तुम भी नहीं चाहती थीं और प्रतीक भी नहीं। रहा सवाल मेरा तो इसमें तुमसे ज़्यादा गलती प्रतीक की है। तुमने तो सही समय पर अपने पाँव पीछे खींच लिए लेकिन प्रतीक तो उस दिन भी …,” इतना कहकर वह चुप हो गई।
निर्मला के मुँह से यह सुनकर बुलबुल के आश्चर्य का ठिकाना ना था। वह सोच रही थी जीजी को तभी से सब कुछ पता है उसके बाद भी उनका व्यवहार मेरे साथ कितना अच्छा है। गर्भावस्था के इस समय में भी वह कितने कठिन हालातों से गुज़र रही हैं। बुलबुल ऐसे समय में उन्हें और परेशान नहीं करना चाहती थी लेकिन उसके पास कोई और रास्ता नहीं था।
तब उसने हिचकिचाते हुए कहा, “लेकिन जीजी समस्या तो अभी और भी है।”
“बुलबुल यह राज़ तो राज़ ही रहेगा तुम डरो नहीं।”
“यह राज़ तब राज़ रहता जीजी अगर मैं …”
“अगर तुम क्या बुलबुल? बताओ बुलबुल क्या बात है?”
“जीजी मैं प्रेगनेंट हूँ।”
“क्या … क्या…?” यह क्या कह रही हो बुलबुल?
“हाँ जीजी।”
“हे भगवान कैसे धर्म संकट में डाल रहा है हमारे परिवार को? प्रतीक जानता है?”
“नहीं जीजी, उसे कुछ भी नहीं पता। जीजी मुझे भी कहाँ पता था वरना मैं शादी ही नहीं करती। मुझे भी अभी कुछ दिन पहले ही पता चला है,” कहते हुए बुलबुल की आँखें आँसुओं से भीगने लगीं।
उसने फिर कहा, “जीजी आई एम सॉरी।”
निर्मला का दिल यह सुनकर टूट रहा था लेकिन अब मामला पूरे परिवार की इज़्ज़त के साथ ही साथ गोविंद की ख़ुशियों का भी था। इस बात से गोविंद और प्रतीक के बीच नफ़रत भी हो सकती थी।
निर्मला ने अपने आँसू पोछ कर बुलबुल को चुप कराते हुए कहा, “रो मत बुलबुल।”
बुलबुल निर्मला के गले से लिपट गई फिर उसने पूछा, “जीजी अब क्या करें? बुलबुल अब हमारा एक ही सहारा है और वह है माँ।”
“माँ …? यह क्या कह रही हो जीजी।”
“हाँ बुलबुल सिर्फ़ माँ ही हैं जो इस समस्या का समाधान ढूँढ सकती हैं।
लेकिन हम उन्हें कैसे …”
“मैं बताऊँगी तुम डरो नहीं। तुम्हें कुछ नहीं होगा। गोविंद को भी कुछ नहीं पता चलेगा। तुम जाओ अपने कमरे में जाकर आराम करो। मैं माँ से बात करूंगी और हाँ गोविंद को यह उदास चेहरा और आँसू मत दिखने देना।”
“थैंक यू जीजी आप बहुत अच्छी हैं।”
जाते-जाते उसने फिर कहा, “जीजी मुझे माफ़ कर देना यह सब अनजाने में हो गया है।”
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः