कहानी एक गरीब मेहंदी और बुद्धिमान किसान के बारे में है। बहुत ज्यादा कठिन परिश्रम करने के बाद किस ₹50 एक बैल को खरीदने के लिए इकट्ठे करता है। खेतों का काम सुचारू रूप से करने के लिए वह सोचता है कि वह दूसरे किसान की सहायता से एक बैलों का जोड़ा खरीदेगा। किस बल खरीदने के लिए वार्षिक पशु मेले में जाता है। ₹50 की छोटी रकम के कारण किसान एक अच्छी फसल का बैल खरीदने में असफल होता है। इसलिए वह एक अच्छी नस्ल का एक बूढ़ा बैल खरीद लेता है। घर वापसी के समय किस को एक दूसरा किसान अपने घर में रात्रि आतिथ्य के लिए कहता है। उसे किसान का घर "ठगी का घर है"। दूसरा किसान पहले किस को देखकर समझ जाता है कि यह किसान तो भोला भाला है इसे हम लूट लेते हैं। उसे ठग के चार बेटे हैं जो ठगी में निपुण है। वे तुरंत किसान को एक मूर्ख के रूप में पहचान जाते हैं तथा उसको धोखा देने के लिए षड्यंत्र रचते हैं। वे किसान दोबारा खरीदे गए नए बैल को बेचने का प्रस्ताव रखते हैं । वे अपने ताऊ को अपनी तरफ से कीमत निर्धारण करने वाला पंच बनाते हैं । इस प्रकार वे किसान को फसाते हैं। पंच किसान को अपनी वाणी की चतुर्ता द्वारा अपने शब्दों में बांध देता है । बैल को काफी गौर से देखने के बाद पंच कहता है की "प्यारे चौधरी तुम्हारे ढांडे की कीमत ढाई रुपए है"। अपने शब्दों में बंधा होने के कारण किसान को वह सौदा मंजूर करना पड़ता है। वह घर की तरफ वापस लौटता है। वह ठगा हुआ महसूस करता है तथा सारी कहानी अपनी पत्नी को बताता है। वह उनको एक सबक सिखाने का निर्णय करता है इसलिए वह एक औरत का वेश धारण करता है और किसान के बेटों को आपस में लड़वाता है। अपनी कपट कूटनीति के हिस्से के मुताबिक, वह औरत का वेश बदलकर ठग के चारों बेटों को यह कहकर शहर भेजता है "जो कोई भी पहले मेरे लिए शहर से बनारसी साड़ी, सहारनपुर के आम और शहरी मिठाई लाएगा मैं उसकी हो जाऊंगी" । चारों बेटे शहर के लिए रवाना हो जाते हैं। फिर वह ठग को पीटता है और उसके खजाने से ₹500 निकलता है। फिर वह वहां से चला जाता है। अगले दिन किस ठग के दर्द को कम करने वाले हकीम का वेश बदलता है तथा उसके घर जाता है। फिर से वह किसान के चारों बेटों को जंगल की चारों दिशाओं में जड़ी बूटियां लाने के लिए भेज देता है। फिर से वह किसान को पीटता है और उसके खजाने से ₹200 निकलता है वहां से ही चला जाता है । फिर वह जंगल की ओर जाता है। रास्ते में उसे एक गडरिया दिखाई देता है। वह गडरिये को ठग किसान के दरवाजे पर जाकर यह बोलने को कहता है "तो बुड्ढे मेरा ढांढा ढाई रुपए का है"। किसान के इन शब्दों को सुनकर ठग के बेटों ने समझा कि वही किसान फिर से आया है। वह उसको सबक सिखाने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ते हैं और बहुत दूर चले जाते हैं। फिर किसान तीसरी बार ठग के घर पर आता है। इस बार ना तो वह किसान को पीटता है और ना ही उसके पैसे निकलता है। इसके विपरीत वह ठग को अपनी नाक से धरती पर लाइन खींचने को कहता है कि वह कभी भी ठगी में शामिल नहीं होगा और किसी भी भोले भाले व्यक्ति को नहीं लूटेगा। अपने बेटों को सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाएगा। ठग किसान वैसा ही करता है जैसा किसान कहता है वह कहता है कि वह अपने बेटों सहित ठगी छोड़ देगा।
इस प्रकार कहानी यह विचार घर लाती है कि मासूम किसान मूर्ख नहीं होते।
कहानी "मासूमियत "और " बुद्धिमानी " दोनों का एक साथ अस्तित्व दर्शाती है
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी व्यक्ति को अपने से कमजोर नहीं समझना चाहिए और सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए किसी व्यक्ति को लूटने नहीं चाहिए ।