चलो कुछ नए ख्वाब बुनते हैं...
थोड़ा सा मैं...
उसमें हल्का सुराख हो चुका है..
उससे जा कर लिपट जाएँ...
फिर से एक दूसरे को सुनते हैं...
8.
एहसासों से बनती है चाहतों से मिलती है
रूह से रूह जुड़े तब कहीं मोहब्बत पनपती है
पावस की आस में चातक की मृगतृष्णा है
बरसी जो बूंदे तो पिपासा उसकी उतरती है
मयूरा नाचता है तो अश्रु मयूरी पीती है
पैरो की थिरकन से कहानी एक बनती है
कोयल की कुहू की दुनिया दीवानी है
काली सी रंगत की बोली मिष्ठी सी लगती है
कहीं रांझा भटकता है कहीं हीर तड़पती है
मोहब्बत हो तो सबकी आंखें बरसती है
अजीब किस्सा है अजब इसका फसाना है
एक इश्क की खातिर दुनिया तरसती है
9.
श्रृंगार भी तब जंचता है,
जब किसी को सोचकर ,
कोई मन से संवरता है,
जब दर्पण में दिखाई देता है ,
अक्स उसका,
तो रूप ,
और भी ज्यादा निखरता है,
काजल भरे नैनो में ,
उतर आती है, हया की लाली सी,
जब उसकी आंखो में ,
शरारत भरा कोई रंग उभरता है,
दिल बाग बाग सा हो जाता है, उस वक्त
जब वो आंखो ही आंखो में,
चुपके से तारीफ करता है,
छुपा लेती हूं चेहरा तब अपने हाथों से अपना,
जब बार बार उसको सोच मन मचलता है..!
श्रृंगार भी तब जंचता है ,
जब किसी को सोचकर,
कोई मन से संवरता है...!
10.
इश्क़ की ख़ुशबूएँ उड़-उड़ कर मेरी ओर आ रही,
हर बेज़ुबान चीज़ मुझे तेरी मौजूदगी दिखा रही
हरेक हिचकी मेरे अंदर बसे तेरे वजूद को गहरा रही,
मानती ही नहीं, ये हवा भी तेरी ही बात बता रही
जाने क्यूँ आज मुझे ये कायनात इतना सजा रही?
सच है क्या तुम्हारा आना? या एक आरज़ू उकसा रही
यक़ीन कहूँ या वहम इसे? ज़रूर एक ख़्वाब मुझमें उतार रही
है कुछ तो बात आज में, जो ये ज़िंदगी मुस्कुरा रही।