through the windows of the eyes in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | अंखियों के झरोखों से

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अंखियों के झरोखों से

1.
शहंशाह की तरह जीते थे कुछ साल पहले हम भी
एक लड़की क्या आई जिंदगी में मेरी दुनिया तबाह कर दी!!

2.
न जाने कौन सी मोड़ पर दगा दे जाए जिंदगी
इसलिए हर दिन यारो मुस्कुराकर जिया करो!!

3.
ख्वाहिश थी ताऊम्र उसे अपना बनाकर रखने की
मगर एक उंचे मकान वाले ने मेरी खुशियाँ खरीद ली!!

4.
कुछ रिश्तें आजकल, ऐसे होतें जा रहे है।
न ही साथ छोड़ें जा रहे है, न ही निभाये जा रहे है।
केवल वो हमारे फोन लिस्ट में है और हम उनके।।

5.
अपने वजूद पर हमको इतना तो यकीन है
कोई छोड़ तो सकता है मगर भूला नहीं सकता!!

6.
सबसे ज्यादा चाहने वाला कब साथ छोड़ दे कोई नहीं जानता,
एक चेहरें पर रखते है कई चेहरें कोई क्यों नहीं पहचानता।।

लाख समझाये माता - पिता आजकल के बच्चों को,
जब तक न लगे ठोकर माता - पिता की बात कोई नहीं मानता!!

7.
जिम्मेदारियों को लेकर चुपचाप पड़ा हूँ इन बेजान शहरों में,
लाख मुश्किलें आयीं मगर कभी भी कुछ नहीं कहा घरवालों से!!

8.
चेहरे अजनबी हो जाए तो कोई बात नहीं,
मगर रवैये अजनबी हो जाए तो बहुत तकलीफ देते हैं!!

9.
सोचा था पूजेंगे ताऊम्र जिसको खुदा की तरह,
मगर जाने क्यों वही शख्स हमारे दामन पे दाग लगा गया!!

10.
लोग हमपर ऐ खुदा उठाते हैं अंगुलियां,
जाने क्यों लोग खुद को ही नहीं बदलते!!

11.
जिम्मेदारियां इतनी तकलीफ क्यों देती है,
अगर बेटा हो उदास तो माँ भी रो देती है!!

बाईस साल तक जिस बेटे को पालती - पोषती है,
बुढ़ापे के दिनों में माँ उसी बेटे को खो देती है।।

12.
ऐ खुदा वो हमको याद आना छोड़ दे
मैं ताऊम्र खुश रहने कि उसे दुआऐं दूंगा!!

13.
मोहब्बत में हमको केवल मजबूरियाँ और रूसवाईया मिलीं
उसे अच्छा शौहर मिला और अच्छा घर मिला!!

14.
ज़िन्दगी में यहाँ भरा हुआ सभी के गम है,
किसी के पास ज्यादा तो किसी के पास कम है !!

कोई नहीं यहाँ जो कहे कि हम खुश है,
किसी को धन का गम है तो किसी का सनम है।।

15.
उसके साथ जीने की न जाने कितनी उम्मीदें किया होगा,
आज जो उसके बिना जी तो रहा है अफ़सोस मर मर कर!!

16.
अजीब तरह से गुज़र रही है ऐ हमारी जिंदगी,
बस गम के अलावा जाने और कुछ मिलता क्यों नहीं !!

17.
ऐ शहर, ऐ काम, ऐ जिल्लते, ऐ मजबूरियाँ
हम अपने गाँव में होतें तो माता - पिता के साथ होतें!!

18 तुम ऐसे कैसे बदल सकतीं हो

कभी हम आपको गुस्से में गर कुछ कह देता था
तो तुम हमसे बात तक नहीं करती थी यहा तक,
तुम मेरा नम्बर तक ब्लॉक कर देती थी

तुम्हें जिन्स और टाप्स इतने पंसद होने के बाद भी
तुम जब भी हमसे मिलने आती थी
सर्ट और सलवार ही हमारी खुशी के लिए पहनकर आती थी

तुम ऐसे कैसे बदल सकतीं हो कुछ तो मजबूरियाँ घर की रहीं होगी

19.
साल भी बदल गया और मेरा यार भी
और जो नही बदली वो बस हमारी किस्मत!!

20.
जब हुआ था हम पर घात तो मुश्किल था संभलना
इसलिए हमको छोड़ना पड़ा गली मोहल्ले में टहलना!!

वो दौर और था दिनेश वो तौर और था
जब इक झलक महबूब को देखने सुबह होता था निकलना।।