Chand ki Chhaya me dahaad - 2 in Hindi Horror Stories by HDR Creations books and stories PDF | चांद की छाया में दहाड़ राजस्थान की रहस्यमयी कहानी - 2

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चांद की छाया में दहाड़ राजस्थान की रहस्यमयी कहानी - 2

*अध्याय 2: अतीत के पन्नों को पलटना**

जयंत अपने चाचा रविंद्र के साथ गुफा में लौटा, उसके दिमाग में सवालों का जाल घूम रहा था। रविंद्र मशाल जलाकर गुफा की दीवारों पर बने चित्रों की ओर इशारा किया। ये चित्र प्राचीन राजवंश के शासनकाल के दृश्यों को दर्शाते थे, साथ ही कुछ विचित्र प्रतीकों को भी दिखाते थे।

"ये प्रतीक पीढ़ियों से चले आ रहे हैं," रविंद्र ने समझाया। "वे उस शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे राजवंश ने हासिल करने की कोशिश की थी, वही शक्ति जिसने श्राप को जन्म दिया।"

जयंत ने सोचा, "तो श्राप असली था?"

"हाँ," रविंद्र ने पुष्टि की। "लेकिन यह किसी देवता का क्रोध नहीं था, बल्कि सत्ता की अंधी खोज का परिणाम था। उन्होंने एक अज्ञात इकाई के साथ समझौता किया, अंधेरे की ताकतों के साथ, शक्ति के बदले में। यही वह शक्ति है जिसने वेयरवूल्फ का रूप धारण कर लिया।"

"लेकिन वह समझौता कब टूटा?" जयंत ने पूछा।

"मुझे नहीं पता," रविंद्र ने स्वीकार किया। "मेरे पिता, राजा, ने शायद सोचा था कि उसने उस शक्ति को नियंत्रित कर लिया है, लेकिन वह गलत था। इसने उसे अंदर से खा लिया और श्राप को जन्म दिया। शायद उसने इसे रोकने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा।"

"तो असली खतरा अभी भी मौजूद है?" जयंत की आवाज में चिंता झलक रही थी।

"मुझे डर है कि हाँ," रविंद्र ने कहा। "वह इकाई, जिसने समझौता किया था, शायद अभी भी सक्रिय है, अंधेरे में छिपकर इंतजार कर रही है। हमें उसका असली रूप और उसका उद्देश्य पता लगाना होगा, नहीं तो यह खतरा कभी दूर नहीं होगा।"

जयंत ने दृढ़ निश्चय किया। "हम ऐसा ही करेंगे, चाचा। हम अतीत के रहस्यों को उजागर करेंगे और इस बुराई को हमेशा के लिए खत्म कर देंगे।"

**अध्याय 3: छिपे हुए मकबरे की खोज**

जयंत और रविंद्र ने अगले कुछ दिन पुराने ग्रंथों और गांव के इतिहास का अध्ययन करने में बिताए। उन्होंने उन कहानियों और किंवदंतियों को खंगाला, जिनमें अजीब प्रतीकों और अंधेरे शक्तियों का उल्लेख था। धीरे-धीरे, उन्हें एक सुराग मिला - जंगल की गहराई में छिपा एक प्राचीन मकबरा, जिसके बारे में कहा जाता था कि वहां राजवंश के गुप्त रहस्य दफन हैं।

उन्होंने एक जोखिम भरी यात्रा शुरू की, घने जंगल से गुजरते हुए और जंगली जानवरों से बचते हुए। आखिरकार, उन्हें एक उजाड़ पहाड़ी पर एक छिपा हुआ प्रवेश द्वार मिला। मशालें जलाकर, वे अंधेरे और नमी से भरे मकबरे में उतर गए।

मकबरे की दीवारों पर भित्ति चित्र बने हुए थे, जो भयानक अनुष्ठानों और अजीब प्राणियों को दर्शाते थे। अंत में, उन्हें एक कक्ष मिला, जिसके केंद्र में एक पत्थर का ताबूत रखा था। ताबूत पर वही प्रतीक उकेरा हुआ था, जो गुफा में और चित्रों में देखा था।

उन्होंने सावधानी से ताबूत खोला और अंदर एक पुराना चर्मपत्र पाया। चर्मपत्र पढ़ने पर, उनके रोंगटे खड़े हो गए। इसने उस अज्ञात इकाई के साथ किए गए समझौते और इसके भयानक परिणामों का विस्तृत विवरण दिया।

... साथ ही, उसमें इस इकाई को बुलाने का एक शक्तिशाली मंत्र भी लिखा था, लेकिन साथ ही साथ उसे वापस भेजने का एक जटिल अनुष्ठान भी था। जयंत और रविंद्र समझ गए कि यही असली खतरे को खत्म करने का रास्ता है।

लेकिन अनुष्ठान आसान नहीं था। इसके लिए दुर्लभ सामग्रियों की जरूरत थी और इसे पूर्ण शुद्धता के साथ करना जरूरी था। उन्हें गांव लौटना पड़ा और ग्रामीणों की मदद लेनी पड़ी। कुछ ग्रामीण डरते थे, लेकिन ज्यादातर ने उनकी बात मानी और मदद के लिए आगे आए।

सामग्री जुटाने और अभ्यास करने में हफ्तों लग गए। आखिरकार, पूर्णिमा की रात, वे जंगल के उसी मकबरे में लौट आए। उन्होंने अनुष्ठान शुरू किया, मंत्रों का जाप किया और प्रतीकों को बनाया। हवा में ऊर्जा तेज हो गई, मकबरा अजीब सी रोशनी से भर गया।

अचानक, जमीन हिली और ताबूत फट गया। अंधेरे से एक भयानक आकृति निकली, उसकी आंखें लाल थीं और उसका रूप विकृत था। यह वही शक्ति थी जिसने वेयरवूल्फ का रूप धारण किया था।

जयंत और रविंद्र घबराए नहीं। उन्होंने अपना ध्यान बनाए रखा और अनुष्ठान जारी रखा। ग्रामीणों ने भी पूरा जोर लगाकर मंत्रों का जाप किया। धीरे-धीरे, अंधेरे की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। वह गरज कर चिल्लाया और उन पर झपटने की कोशिश की, लेकिन अनुष्ठान की शक्ति ने उसे रोक दिया।

अंत में, आखिरी मंत्र के साथ, एक तेज रोशनी चमकी और अंधेरे की शक्ति चीखते हुए वापस ताबूत में समा गई। ताबूत फिर से सील हो गया और मकबरे में शांति छा गई।

जयंत और रविंद्र थक गए थे, लेकिन साथ ही राहत और खुशी का अनुभव कर रहे थे। उन्होंने गांव को बचा लिया था और पीढ़ियों पुराने श्राप को तोड़ दिया था। हालांकि, उन्हें पता था कि उनकी कहानी यहीं खत्म नहीं होती। अतीत के रहस्यों को उजागर करना और यह सुनिश्चित करना था कि यह खतरा फिर कभी वापस न आए, यह उनकी निरंतर जिम्मेदारी थी।

*अध्याय 4: अतीत के घाव, भविष्य के खतरे**

अंधेरे को वापस सील करने के बाद, जयंत और रविंद्र कुछ समय के लिए शांति से रहे। गाँव ने खुशियाँ मनाईं, मानो सदियों का बोझ हल्का हो गया हो। जयंत अथक परिश्रम करता रहा, ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान करता रहा और अपने पिता के पदभार को पूरी ईमानदारी से संभाला। मगर रविंद्र हमेशा चिंतित रहता था। अंधेरे को तो हटा दिया गया था, लेकिन उसके बारे में अभी भी बहुत कुछ जानना बाकी था।

एक हवादार रात को, रविंद्र ने जयंत को गुफा में बुलाया, जहां उन्होंने उस प्राचीन चर्मपत्र का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि उस खास इकाई के बारे में बहुत कम जानकारी थी, बस यही पता था कि वो अज्ञात और अत्यंत शक्तिशाली है। चर्मपत्र में एक चेतावनी भी दी गई थी - "अंधेरा लौट सकता है, एक नए रूप में, एक अप्रत्याशित शत्रु के साथ। सतर्क रहें, युवा मुखिया, सतर्क रहें।"

ये शब्द जयंत को परेशान करने लगे। उसने ग्रामीणों को सतर्क कर दिया और रक्षा उपायों को मजबूत किया गया। मगर कुछ ही हफ्तों बाद, गांव की सीमा पर अजीब घटनाएं घटने लगीं। मवेश गायब हो गए, फसलें नष्ट हो गईं, और जंगल से अजीब रोशनी और भयानक आवाजें सुनाई देने लगीं। डर का साया फिर से गांव पर छा गया।

एक रात, जयंत को एक रहस्यमयी पत्र मिला। उसमें लिखा था, "तुम्हें सच्चाई जाननी है? आओ जंगल के दिल में, जहां नदी नृत्य करती है और चंद्रमा चुप रहता है। तुम्हारे सवालों के जवाब मिलेंगे, लेकिन सावधानी से चलो, युवा मुखिया।"

जयंत को पता था कि यह खतरनाक होगा, लेकिन सच्चाई जानने की ज्वाला उसके अंदर तेज थी। उसने उस रात ही रविंद्र को अपनी योजना बताई, और उन दोनों ने अगली सुबह गुप्त स्थान की ओर प्रस्थान किया।

उन्होंने दिनों तक सफर किया, घने जंगल से होते हुए, जंगली जानवरों से बचते हुए, और प्राकृतिक जालों को पार करते हुए। अंत में, उन्होंने एक छिपी हुई घाटी की खोज की, जहां नदी का पानी संगीत की तरह बहता था और चंद्रमा कभी नहीं चमकता था।

घाटी में एक बूढ़ा साधु बैठा था, उसकी आंखें ज्ञान से भरपूर थीं। उसने जयंत और रविंद्र को पहचाना और उन्हें शांति से बैठने का इशारा किया। फिर उसने कहानी सुनाई, प्राचीन इकाई के बारे में, खतरनाक समझौते के बारे में, और अंधेरे के अनेक रूपों के बारे में।

साधु ने बताया कि वह इकाई किसी विशिष्ट रूप में बंधी नहीं है, वो किसी को भी अपने उद्देश्यों के लिए प्रयोग कर सकती है। वर्तमान खतरा कोई राक्षस नहीं है, बल्कि एक इंसान है, जो अंधेरे की शक्ति से छुआ गया है, और जिसने गांव को तबाह करने की योजना बनाई है।

सच्चाई जानकर जयंत स्तब्ध रह गया। उसे अब समझ आ गया था कि असली दुश्मन कौन है। साधु ने उन्हें रास्ता दिखाया, किस तरह अंधेरे से छुए इंसान को पहचानना है और उसे रोकना है। एक बार फिर, जयंत और रविंद्र को एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ा, लेकिन इस बार उनके पास सच्चाई, साहस और गांव का समर्थन था।

निश्चित रूप से! कहानी को रहस्यमयी अंत के साथ आगे बढ़ाते हैं...

जयंत और रविंद्र ने साधु से विदा ली, उनके कदम हल्के थे लेकिन मन चिंतित था। साधु के शब्द उनके कानों में गूंज रहे थे - "अंधेरे से छुआ हुआ" एक ग्रामीण हो सकता है, कोई जिसे वे जानते और भरोसा करते थे। इस संदेह का जहर उनके दिलों में धइक रहा था।

गाँव लौटकर, उन्होंने चुपके से रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया। हर ग्रामीण पर नजर रखी, उनकी हर बात, हर हरकत को परखा। दिन बीते, हफ्ते गुजरे, पर कोई भी संदिग्ध नहीं लगा। अविश्वास का घुन गाँव के माहौल को खराब करने लगा। कुछ ग्रामीणों ने जयंत और रविंद्र पर ही शक करना शुरू कर दिया।

एक रात, पूर्णिमा का चाँद जंगल के ऊपर चमक रहा था, गाँव में अचानक आग लग गई। आग तेजी से फैली, चीख-पुकार मच गई। जयंत और रविंद्र आग बुझाने में जुट गए, पर मन में ये सवाल कचोट रहा था - क्या ये कोई दुर्घटना थी या फिर "अंधेरे से छुआ हुआ" अपना खेल खेल रहा था?

जब आग पर काबू पा लिया गया, गाँव के बुजुर्ग ने उन्हें बुलाया। उसके पास जली हुई मिट्टी में मिला एक अजीब प्रतीक था, वही प्रतीक जो गुफा और चर्मपत्र में देखा था। जयंत और रविंद्र का दिल दहल गया। क्या उनका शक सही था? क्या ये प्रतीक किसी को पहचानने की कुंजी था?

अगले कुछ दिनों में, उन्होंने ग्रामीणों से पूछताछ की, प्रतीक को दिखाया। हर किसी ने अनभिज्ञता जताई। मगर एक बात ने उनका ध्यान खींचा - गाँव की नदी के किनारे अक्सर एकाकी बैठने वाला, मूक-बधिर वृद्ध व्यक्ति, जिसका अतीत अज्ञात था, प्रतीक को देखते ही बेचैन हो गया था।

उन्होंने उस वृद्ध से संपर्क किया, इशारों में बात करने की कोशिश की। वृद्ध ने कुछ तस्वीरें खींचीं, जो गाँव के बाहर एक गुफा और एक अज्ञात व्यक्ति को दर्शाती थीं। क्या यही "अंधेरे से छुआ हुआ" था?

जयंत और रविंद्र उस गुफा की ओर दौड़े। अंदर जाने पर, उन्होंने भयानक मंत्र और काली कला के निशान देखे। तब अचानक, अंधेरे से एक आकृति सामने आई - वह अज्ञात व्यक्ति जो तस्वीरों में था। उसके हाथ में वही प्रतीक चमक रहा था।

"तुम कौन हो?" जयंत ने पूछा।

आकृति ने हंसते हुए कहा, "मैं वही हूँ जिसकी तलाश कर रहे हो। जिसने गाँव को बचाने का नाटक किया, वही अब इसे नष्ट कर देगा!"

जयंत और रविंद्र स्तब्ध रह गए। असली खतरा उनके सामने खड़ा था, वह व्यक्ति जिस पर कभी शक नहीं किया था। लेकिन क्यों? उसका असली मकसद क्या था?

Story Ended