Chand ki Chhaya me dahaad - 1 in Hindi Horror Stories by HDR Creations books and stories PDF | चांद की छाया में दहाड़ राजस्थान की रहस्यमयी कहानी - 1

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चांद की छाया में दहाड़ राजस्थान की रहस्यमयी कहानी - 1



राजस्थान की रेतीली धरती पर, जहां इतिहास के किस्से हवा में घूमते हैं, एक ऐसा रहस्य छुपा है जो सदियों से लोगों को खौफ में डाले हुए है। ये कहानी है एक ऐसे वेयरवूल्फ की, जो चांद की रोशनी में अपना असली रूप धारण कर निर्दोषों को अपना शिकार बनाता है।


कहानी शुरू होती है जैसलमेर के सुनहरे रेगिस्तान में बसे, मरुधर गांव से। गाँव के बुजुर्गों की मान्यता के अनुसार, पूर्णिमा की रात को जब चांद रेत के टीलों पर अपना जादू बिखेरता है, तो अंधेरी पहाड़ियों से एक दहाड़ गूंज उठती है। यही दहाड़ वेयरवूल्फ की दहाड़ होती है, जिसे स्थानीय लोग "रक्त पिशाच" कहते हैं।


गाँव वालों के मुताबिक, कई साल पहले गाँव के राजा ने जंगल के संरक्षक देवता का अपमान किया था। इससे नाराज होकर देवता ने राजा को श्राप दिया कि हर पूर्णिमा की रात वह वेयरवूल्फ बन जाएगा और ग्रामीणों को अपना शिकार बनाएगा। राजा की मौत के बाद भी यह श्राप हर पीढ़ी में राजवंश के किसी एक वंशज को लगता रहा।


सालों से ये हकीकत या अंधविश्वास बना रहा। पर जब राजा का युवा बेटा, वीर, गाँव का मुखिया बना, तो रहस्य और भय ने एक नया रूप लिया। पूर्णिमा की रातें नजदीक आते ही गाँव में दहशत का साया छा जाता। पशु गायब हो जाते, चीखें सुनाई देतीं, और सुबह को खून से सने निशान मिलते। गाँव वाले ये सब वीर पर ही शक करते, लेकिन उसका व्यवहार हमेशा शांत और न्यायप्रिय रहता।


वीर अपने ऊपर लगे आरोपों से दुखी था। किसी को विश्वास नहीं करता था कि वो निर्दोष है। वो खुद को साबित करने और गाँव को बचाने की ठान ली। उसने गांव के बुजुर्ग ज्ञानी बाबा से मदद मांगी। बाबा ने उसे बताया कि श्राप को तोड़ने का एक उपाय है, लेकिन वो बेहद जोखिम भरा है। पूर्णिमा की रात को, उसे वेयरवूल्फ से लड़ना होगा और उसे देवता की मूर्ति के सामने लाना होगा। तभी श्राप टूट सकेगा।


वीर ने ये खतरनाक चुनौती स्वीकार कर ली। अगली पूर्णिमा की रात, जैसे ही चांद ने अपना चांदी जैसा रूप दिखाया, वीर जंगल की ओर अकेला चला गया। अंधेरे में उसकी रीढ़ की हड्डियों में सिहरन दौड़ गई, पर वो हिम्मत नहीं हारा। तभी, अचानnak दहाड़ ने जंगल को चीर दिया। एक विशाल वेयरवूल्फ वीर के सामने आ खड़ा हुआ। वो लड़ाई खौफनाक थी, इंसान और जानवर के बीच की लड़ाई। वीर घायल हुआ, लहूलूहा हो गया, पर हार नहीं मानी। आखिरकार, उसने अपनी पूरी ताकत लगाकर वेयरवूल्फ को बेहोश कर दिया और उसे गाँव की तरफ घसीटा।


गाँव में ग्रामीण हथियार लेकर खड़े थे। वीर को देखकर उनकी आंखों में गुस्सा था, पर जब उन्होंने बेहोश वेयरवूल्फ को देखा तो हैरान रह गए। बाबा ने मंत्रोच्चार किया और वेयरवूल्फ को देवता की मूर्ति के सामने लिटा दिया। जैसे ही सूर्योदय हुआ, तेज रोशनी से वेयरवूल्फ का रूप गायब हो गया। जमीन पर बेहोश वीर ही लेटा था।


जब वीर होश में आया तो उसने खुद को गांव वालों से घिरा पाया। उनके चेहरों पर अब गुस्से के बदले राहत और आभार देखकर वीर चौंका। बाबा ने सारी कहानी बताई थी। गांव वालों को अहसास हुआ कि उन्होंने वीर पर बेबुनियाद शक किया था। वीर को गाँव का असली हीरो माना गया। लेकिन रहस्य पूरी तरह सुलझ नहीं पाया था। सवाल बना था कि असली वेयरवूल्फ कौन था? क्या वो वाकई राजवंश का कोई वंशज था?


कुछ हफ्तों बाद, एक रहस्यमयी साधु गाँव आया। उसने दावा किया कि वो उस रात जंगल में मौजूद था। उसकी बातों से एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ। असली वेयरवूल्फ कोई और नहीं बल्कि बाबा स्वयं थे! उसने राजा के श्राप का फायदा उठाकर सालों से खुद को निर्दोष साधु बनाए रखा था। वीर को फंसाकर वो अपनी सच्चाई छिपाना चाहता था।


सबूत सामने आते ही बाबा ने अपना अपराध कबूल लिया। लेकिन उसने ये भी बताया कि उसने गाँव को बचाने के लिए ही वेयरवूल्फ बनकर जानवरों को अपना शिकार बनाया था। असली शिकारी कोई और था, जो ग्रामीणों को खौफ में डालना चाहता था। वो शिकारी कोई और नहीं बल्कि पड़ोसी गाँव का सरपंच था, जो मरुधर पर कब्जा करना चाहता था।


सच्चाई जानकर वीर दुखी हुआ। बाबा को उसके अपराध की सजा मिली। सरपंच को भी पकड़ लिया गया। गाँव में शांति लौट आई, लेकिन वीर के दिल में सवाल उठते रहे। राजवंश का श्राप सच था या नहीं? वीर को इसका जवाब कभी नहीं मिला।


हालांकि, पूर्णिमा की रातें अब भी गाँव वालों को थोड़ा डराती हैं। दूर से जंगल की तरफ देखते हुए वो सोचते हैं, कभी-कभी हवा में एक लुप्त छाया सी नजर आती है, मानो कोई अदृश्य आंखें उन्हें देख रही हों। शायद ये सिर्फ उनके मन का भ्रम है, या शायद, कभी-कभी पुरानी कहानियां जिंदा हो उठती हैं...


Years passed, and मरुधर गांव शांति से पनपता रहा। वीर, गांव का बुजुर्ग मुखिया बन गया था, और पूर्णिमा की रातें अब खौफनाक नहीं रहीं। लेकिन रहस्य पूरी तरह दफन नहीं हुआ था। कई सवाल जवाब मांगते रह गए।


1. **बाबा का असली मकसद:** क्या बाबा सचमुच ग्रामीणों को बचाना चाहता था, या उसका कोई और ही मकसद था? शायद वह श्राप को खत्म करने की कोशिश कर रहा था, या फिर राजवंश के किसी वंशज को बचाना चाहता था। लेकिन क्या कोई वंशज वाकई वेयरवूल्फ बना था?


2. **छायादार आकृति:** कुछ ग्रामीणों ने दावा किया कि पूर्णिमा की रातों को जंगल में एक छायादार आकृति देखते हैं। क्या यह वही भ्रम था या फिर कोई असली खतरा वापस आ गया था?


3. **श्राप का रहस्य:** राजवंश पर लगा श्राप कितना सच था? क्या यह देवता का गुस्सा था या किसी और की चाल? क्या श्राप टूटा भी था, या फिर किसी अज्ञात रूप में अब भी मौजूद है?


4. **साधु की कहानी:** रहस्यमयी साधु कहां से आया था, और उसकी बातें कितनी सच थीं? क्या वह कोई छिपा हुआ दुश्मन था, या फिर किसी और खेल का मोहरा?


5. **खोई हुई डायरी:** गांव के पुराने रिकॉर्ड में राजा की एक खोई हुई डायरी का जिक्र मिलता है। इस डायरी में श्राप के बारे में, उसकी उत्पत्ति और तोड़ने का तरीका लिखा हो सकता है। क्या यह डायरी मिल पाएगी और उसमें छिपे रहस्यों को उजागर कर पाएगी?


इन सवालों के इर्द-गिर्द रहस्य का जाल बना रहा। एक रात, पूर्णिमा की रोशनी में, एक युवा ग्रामीण जंगल की ओर गया, उसकी तलाश में... खोई हुई डायरी की। वहां उसे क्या मिला? क्या जंगल में वाकई कोई खतरा मौजूद था? यही सवाल इस कहानी को एक नया मोड़ देते हैं


चांद की छाया में नया अध्याय: 50 साल बाद


मरुधर गांव में चांद की रोशनी फैली हुई थी, पर इस बार माहौल अलग था। पचास साल बीत चुके थे वीर के रहस्यमय कारनामों के। गांव अब पहले से कहीं ज्यादा खुशहाल था, लेकिन बुजुर्गों की कहानियों में पुरानी दहशत कभी-कभी झांकती थी। वेयरवूल्फ की दंतकथाएं अब भी रातों को सुनाई जाती थीं, बच्चों को डराने के लिए नहीं, बल्कि इतिहास को याद रखने के लिए।


वीर अब इस दुनिया में नहीं था, लेकिन उसका पोता, जयंत, गांव का मुखिया था। जयंत एक पढ़ा-लिखा युवक था, पर दादा की कहानियों से उसे बेहद लगाव था। उसे हमेशा ये रहस्य सताते थे - असली वेयरवूल्फ कौन था? श्राप सच था या सिर्फ कहानी? जंगल में छायादार आकृति क्यों दिखाई देती थी?


एक रात, पूर्णिमा की रोशनी में नहाए जंगल में घूमते हुए, जयंत को एक पुरानी गुफा मिली। अंदर जाने पर उसने मशाल जलाई और दीवारों पर चित्र देखकर चौंक गया। ये चित्र वेयरवूल्फ के हमलों और एक अजीब से प्रतीक को दर्शाते थे। प्रतीक कैसा था, ये किसी को नहीं पता था।


तभी, गुफा में गहराई से एक रोशनी चमकी। जयंत आगे बढ़ा और एक कक्ष में पहुंचा। वहां, एक पत्थर के बक्से में एक पुरानी चर्मपत्री मिली। उस पर लिखा था: "जब चांद लाल होगा और प्रतीक जागेगा, तो सच्चाई सामने आएगी।"


अगली पूर्णिमा कुछ खास थी। चांद का रंग लाल था, मानो खून से रंगा हो। गांव में दहशत फैल गई, लेकिन जयंत को याद आया चर्मपत्री पर लिखे शब्द। वो जंगल की ओर दौड़ा, गुफा में पहुंचा, और दीवार पर प्रतीक को छुआ। अचानक, जमीन हिली और एक गुप्त मार्ग खुल गया।


जयंत उस मार्ग में उतर गया। अंधेरे में चलते हुए, उसे एक कमरे में रोशनी दिखाई दी। कमरे में एक बूढ़ा आदमी बैठा था, उसकी आंखें लाल थीं।


"तुम कौन हो?" जयंत ने पूछा।


"मैं हूँ वीर का बड़ा भाई," बूढ़े ने जवाब दिया। "मुझे ही श्राप मिला था, लेकिन मैंने इसे छिपा लिया। बाबा ने सच बताया, लेकिन उसने मेरी रक्षा की। असली खतरा पड़ोसी गांव का सरपंच नहीं, बल्कि कोई और था, जो आज भी जीवित है और वापस आने वाला है।"


बूढ़े ने जयंत को सब कुछ बताया, श्राप का असली कारण, खतरे की प्रकृति, और उसे रोकने का उपाय। जयंत यह जानकर हिल गया, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने बूढ़े से मदद ली और गांव को बचाने की तैयारी की।


हवा तनाव से भरी थी क्योंकि जयंत और बूढ़ा आदमी, जो उसका लंबे समय से गुमनाम चाचा रविंद्र था, आने वाले खतरे के लिए तैयार हो रहे थे। जैसे खून से लथपथा लाल चांद ने भूमि को एक अशुभ चमक से नहलाया, एक निकट आते अंधेरे की फुसफुसाहट गांव तक पहुंच गई।


रविंद्र के गूढ़ निर्देशों और एक नए संकल्प से लैस, जयंत गांव की रक्षा के मोर्चे पर खड़ा था। उन्होंने अस्थायी बाधाएँ खड़ी कर दी थीं और जो भी हथियार जुटा सकते थे, उन्हें तैयार कर लिया था, एक अज्ञात दुश्मन के खिलाफ एक रैगटैग सेना।


जंगल की गहराई से गूंजने वाली रोंगटे खड़े कर देने वाली दहाड़ के साथ तनाव टूट गया। पेड़ लहराए जैसे ही एक भारी, छायादार आकृति सामने आई, उसकी आंखें एक अप्राकृतिक लाल रोशनी से जल रही थीं। यह पारंपरिक वेयरवूल्फ नहीं था, बल्कि कुछ मुड़ा हुआ, राक्षसी और अंधेरे की शक्ति विकीर्ण कर रहा था।


एक भयंकर युद्ध छिड़ गया, ग्रामीण बेताब होकर उस जीव के लगातार हमले के खिलाफ लड़ रहे थे। जयंत, रविंद्र के कानों में फुसफुसाहट से निर्देशित होकर, महसूस किया कि जानवर को हराने की कुंजी क्रूर बल में नहीं, बल्कि सच्चाई को उजागर करने में थी।


वह शिलालेख को याद करता था: "जब चांद लाल होता है और प्रतीक जागता है, तो सच्चाई सामने आती है।" जैसे-जैसे चांद अपने चरम पर पहुंचा, गांव के द्वार पर उकेरे गए प्रतीक को एक भयानक लाल चमक में डालते हुए, जयंत ने समझ का उछाल महसूस किया।


शिलालेख दुश्मन को प्रकट करने के बारे में नहीं था, बल्कि खुद ग्रामीणों के बारे में था। जीव उनके डर, उनके संदेह, उनके अंधेरे अतीत का सामना करने में असमर्थता को खा गया। यह सिर्फ एक बाहरी खतरा नहीं था, बल्कि उनके सामूहिक अपराध का प्रकटन था।


नए सिरे से स्पष्टता के साथ, जयंत ने ग्रामीणों को संबोधित किया, उसकी आवाज अराजकता के बीच गूंज उठी। उसने छिपे हुए सत्य के बारे में बात की, उसके चाचा ने जिस पीढ़ी-दर-पीढ़ी रहस्य का खुलासा किया था - श्राप की असली उत्पत्ति, शक्ति के बदले अंधेरे के साथ किया गया एक समझौता। उसने उन्हें अपनी गलतियों का सामना करने का आग्रह किया, डर में नहीं, बल्कि स्वीकृति और साहस में एकजुट होने का।


जैसे ही ग्रामीण एकता और सत्य के मंत्र का जाप करने में शामिल हुए, जीव डगमगा गया। उसके एक बार के उग्र हमले सुस्त हो गए, उसका रूप अस्तित्व के अंदर और बाहर टिमटिमाता रहा। एक अंतिम, पीड़ादायक चीख के साथ, यह अंधेरे में घुल गया, केवल एक परेशान करने वाली खामोशी को पीछे छोड़ते हुए।


लड़ाई तो जीत ली गई, लेकिन रहस्य बना रहा। किसने संधि शुरू की थी? क्या यह वास्तव में खत्म हो गया था, या सिर्फ एक अस्थायी राहत? जैसे ग्रामीण अपनी असंभावित जीत का जश्न मना रहे थे, जयंत जानता था कि उसकी यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। उसने रहस्य का एक परत खोल दिया था, लेकिन असली अपराधी और अंधेरे का अंतिम स्रोत अभी भी छाया में छिपा था, एक और हमले के लिए इंतजार कर रहा था।