Pahli Aaski - 4 in Hindi Love Stories by SR Daily books and stories PDF | पहली आस्की - भाग 4

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पहली आस्की - भाग 4

अमरदीप और 11 बजे उसके सोने का समय मुझे याद आया, लेकिन मैंने इस बात की ओर दुसरों
का ध्यान नहीं दिलाया।
हैप्पी ने मेरी ओर देखा और मुस्कुराते हुए पूछ्या, 'क्या हम उसी जगह पर चलें?
ओह! उस जगह..?" इससे पहले कि एमपी का दिमाग कुछ गंदी बात सोचता, मैंने तस्वीर साफ़
कर देने की सोची। 'महान्भावों! हम एक बहुत ही अच्छी जगह जा रहे हैं और मैं शर्त लगा सकता हूँ
कि तुम दोनों को भी वह जगह..
मैं अपनी बात समाप्त करने ही वाला था कि एमपी का धीरज जवाब दे गया। उसने मेरी बात
काटते हुए कहा, "ओह हाँ, मैंने सुना है कि चंद्रमुखी पश्चिम बंगाल की ही थी। तो क्या हम लोग
योजना बना रहे हैं कि..?' उसकी कुटिल मुस्कान और शरारती ऑँखों ने उसके सवाल को पूरा कर
दिया।
'बदमाश कहीं के', हैप्पी ने हँसते हुए कहा।
'ज्यादा मत सोचो, एमपी। बस हमारे पीछे-पीछे आओ, मैंने बात पूरी की ।
बिना किसी को क्छ बताए हम अपनी मोटरसाइकिल पर बैठे और उस स्थान की ओर चल पड़े।
अभी आधी रात भी नहीं हुई थी जब हम उस जगह पर पहुँचे। वहाँ हवा कुछ ठंडी थी। पहली
नज़र में ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी झोपड़पट्टी में हों, वहाँ एक पुराना-सा गराज था जिसका
शटर गिरा हुआ था। उसके बाहर कुछ ट्रक खड़े थे। उसके ड्राइवर शायद सो रहे थे। हमने एक ट्रक के
पीछे मोटरसाइकिल खड़ी की और गराज की दायीं तरफ एक पतली सड़क पर चलने लगे। वहाँ ठीक
से रोशनी नहीं थी और एकदम शांति थी। हमारी आवाज़ और चलने की आवाज़ तेज़ी से गुँज रही थी
। कीड़ों की आवाजें उस जगह की भयानकता को और बढ़ा रही थीं। एमपी को कहीं से कुत्तों के भौंकने
की आवाज़ सुनाई दी। मुझे नहीं लगता कि उसने सचमुच कोई आवाज़ सुनी भी थी। हो सकता है,
उसका कमज़ोर दिल ही तेज़ी से धड़कने लगा हो।
"হ१श वे जाग जाएँगे, हैप्पी ने अपनी ऊँंगली को होंठों पर लाते हुए कहा।
कौन?' अमरदीप खुसफ्साया
'सामने लोग ज़मीन पर लेटे हुए हैं! ध्यान से देखकर चलो। हैप्पी ने कहा।
लोग! सड़क पर सो रहे हैं?" अमरदीप कुछ धीरे-धीरे चलने लगा। वे आस-पास के मछ्आरे थे।
कुछ सो रहे थे और कुछ देसी शराब के नशे में द्न्न पड़े थे।
अचानक सड़क एक काठ के बने रास्ते के पास रुक गई। वहाँ सीढ़ियों जैसा कुछ था जो नीचे की
ओर जा रहा था। और हमें दूर से एक आवाज़ आती सुनाई दे रही थी, जैसे पानी किनारों से टकरा
रही हो। कीट-पर्तंगों की आवाज़ों को पीछे छोड़ते हुए हम उस रास्ते से उतरने लगे।
कुछ ही सेकेंड में हम अपनी मंजिल पर थे।
यह हगली नदी थी और हम उसके तट पर खड़े थे। अमरदीप और एमपी का डर खुशी में बदल
गया।
'यह नदी का तट है और अभी हम हावड़ा में हैं। यह वह जगह है जहाँ से नाव दूसरे किनारे
कोलकाता शहर में ले जाती है, हैप्पी ने नदी की दुसरी ओर इशारा करते हुए घोषणा की।
जोश में आकर हम उस काठ की बंदरगाह जैसी संरचना पर कूदने लगे। उस बंदरगाह की तीन तरफ़
नदी अपने पूरे उफान पर थी। वह एक ख़ुूबसूरत रात थीं, चॉद हमारे सिर पर था और तारे जगमगा
रहे थे। और आकाश के नीचे हम चार थे ।
हम बंदरगाह के किनारे एक विशाल लंगर के पास बैठ गए। नदी ठंडी हवा को बेधती हुई बंगाल
की खाड़ी से मिलने के लिए बढ़ रही थी। उस ख़ामोशी में बंदरगाह से पानी के टकराने की आवाज़
साफ़ सुनाई दे रही थी। नदी की दुसरी तरफ कोलकाता शहर था। ऊँची इमारतें और छोटी-छोटी
पीली रोशनी की झालर मुझे न्यूयार्क के आसमान की याद दिला रही थी। लेकिन यह उससे भी अधिक
अच्छा था क्योंकि मैं अपने दोस्तों के साथ था।
हमने अपनी बॉहिं फैलाकर गहरी, लंबी सॉसें लीं । ताज़ी, ठंडी हवा अंदर लेते हुए, हम उस जगह
की खूबसूरती से मदहोश थे। उसी समय हैप्पी बोल पड़ा।
'तो?' उसने अमरदीप की ओर देखते हुए पूछा।
क्या?' जवाब में अमरदीप ने पूछ्या, क्योंकि उसे हैप्पी के 'तो' का मतलब समझ में नहीं आया।
'तो कैसी लगी यह जगह, झअक्कास?"
"ओह! यह जगह? मैं इससे बेहतर जगह के बारे में सोच नहीं सकता। यह तो स्वर्ग है।
और एक बार फिर ठंडी हवा के झोंके ने हमें घेर लिया। हम बंदरगाह पर बैठ गए ।
उसी समय चर्चा शुरू हो गई। एक गंभीर चर्चा; एक ऐसी चर्चा जिसने मेरे जीवन को बदल कर
रख दिया।

To be continued.. in next part 5