Heart Love Story - 2 in Hindi Love Stories by Rajiya books and stories PDF | Heart Love Story - 2

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Heart Love Story - 2

राजन का उठा हाथ जोर से उसके गाल पर पड़ा।
"बेईमान..कमीने.निर्लज्ज..." राजन बड़बड़ाया।
"क्या हुआ प्रिंस ?" अनिल तेजी से राजन की ओर बढ़ा।
"क्या बात हो गई?* धर्मचन्द ने घबराकर कहा।
राजन दोनों हाथ मेज पर टेक कर उछला और दूसरी ओर कूद गया। उसने फरकीरचन्द को
कमीज के गरेबान से पकड़कर ऊपर उठाया और एक हाथ से तड़ातड़ उसके गालों पर चांटे
जड़ता हुआ बोला, "लहू पी जाऊँगा तेरा.. मुझे कपटी, कमीने, बेईमानों से घृणा है...
"मार लो यार ! मार लो..." फकीरचन्द अपने होंठ का लहू पोछकर मुस्कराया, "दोस्त दोस्त
के हाथों ही पिटता है।"
"चलो छोड़ो प्रिंस !" अनिल राजन के कंधे पर हाथ रखकर बोला, "दोस्त ही तो है...क्षमा
कर दो...।"
"जाने दो राजन!" धर्मचन्द ने राजन के कोट का कालर ठीक करते हुए कहा, "तुम्हारा क्या
बिगड़ गया दस-पांच हजार में...?"
कुमुद आगे बढ़कर राजन की बो का कोण ठीक करने लगा। राजन ने नई सिगरेट
निकालकर होंठों से लगा ली और अनिल ने सिगरेट सुलगा दी। कुमुद ने फकीरचन्द से कहा,
"अब खड़ा-खड़ा क्या देख रहा है भोन्दू.. क्षमा मांग प्रिंस
स से..
"मेरा कौन-सा मान घटता है क्षमा मांगने से..." फकीरचन्द रूमाल से होंठ का लह् पोंछकर
मुस्कराया, "कोई दूसरा आंख उठाकर भी देखता तो उसकी आंखें फोड़ देता..किन्तु यह तो
अपना यार है..और मार ले..." उसने राजन की ओर देखा और बोला, "मारेगा, प्रिंस ?"
"क्षमा कर दिया..." राजन ने सिगरेट का कश खींचकर असावधानी से कहा, "किन्तु याद
रखना, यदि अब ऐसी बईमानी की तो ग्दन तोड़ दुंगा।
"अब इसकी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी प्रिंस ! आज तो यदि मैं यह दस हजार न बना लेता
तो नय्या ही डूब जाती मेरी। तुम तो जानते ही हो मैं कोई बहुत बड़ा आदमी नहीं हूं...छोटी-मोटी
कपड़े की दुकान चलाता हूं..जिन थोक माल बेचने वालों से हिसाब-किताब है उनका दस हजार
चढ़ गया था। दुकान कुर्क होने वाली थी। जुआ तो यूं ही हंसी-हंसी में खेल लिया...वरना मांगता
भी तुम्हीं से..
"देखा प्रिंस." अनिल मुस्कराया, "कितना भरोसा है इस तुम्हारी मित्रता पर...अब तो गले
लगा लो...
राजन ने मुस्कराकर फकीरचन्द को गले लगा लिया और उसका गाल सहलाता हुआ बोला,
"बहुत चोट लग गई है मेरे लाल के."
सब हंस पड़े और फकीरचन्द भी खिलखिलाकर राजन से लिपट गया।
अचानक संगीत की मधुर तरंगें वातावरण में फैल गई और राजन चौंककर हॉल की ओर
देखने लगा। फिर उन लोगों से हटकर वह हॉल की ओर बढ़ गया...शेष मित्र फिर मेज़ के गिर्द
बैठ गए।
राजन हॉल में आया तो सामने ही संध्या उसकी ओर पीठ किए खड़ी थी। राजन उसके समीप
पहुंचा तो संध्या ने मुंह मोड़ लिया। राजन ने गर्दन झटकी और आगे बढ़ गया। एक गोल मेज़ से
आवाज आई, "हैलो..प्रिंस..."
"हैलो..." राजन ने आवाज की ओर बिना देखे उत्तर दिया।
फिर एक-एक करके कई मेज़ों से हैलो- हैलो की आवाजें उभरीं...और राजन बिना ध्यान
दिए सबको उत्तर देता एक खिड़की के पास जाकर रुक गया।
संगीत की तरंगें धीरे-धीरे बह रही थीं और हॉल में ट्ूबलाइट का चांदनी-जैसा प्रकाश
छिटका हुआ था। खिड़की के पास ही रात की रानी के महकते हुए पौधे चुपचाप गुमसुम खड़े
थे...राजन ने सिगरेट का अंतिम कश खींचकर सिगरेिट खिड़की से बाहर फेंक दी। उसी समय
पीछे से संध्या ने उसके कंधे पर हाथ रखा। राजन बिना उसे देखे कठोर स्वर में बोला, "क्यों आई
हो मेरे पास ?"

To be continued.. part 3