The Author DINESH KUMAR KEER Follow Current Read नयी सुबह By DINESH KUMAR KEER Hindi Anything Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21 સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ... ખજાનો - 85 પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ... ભાગવત રહસ્ય - 118 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૮ શિવજી સમાધિમાંથી જાગ્યા-પૂછે છે-દેવી,આજે બ... ગામડા નો શિયાળો કેમ છો મિત્રો મજા માં ને , હું લય ને આવી છું નવી વાર્તા કે ગ... પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 9 અહી અરવિંદ ભાઈ અને પ્રિન્સિપાલ સર પોતાની વાતો કરી રહ્યા .અવન... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share नयी सुबह (1) 744 2k 1.किसी ने मुझसे पूछा,सच सबसे गहरा क्यों ?आखिर उस पर इतना पहरा क्यों ?मेने बस इतना कहा,क्युकी सच सबसे सुन्दर है2.सर्द घने कोहरे में लिपटी हुई भोर कोयल की कूक दरख्तों मैं दुबकेपरिंदों का शोर, धरा पर बिखरी हुई ओस की चमकती बूँदे मासूम फूलो कीकोमल पंखुड़ियाँ चूमें3.दर्दों में तों तुम्हारे और हमारे कोई अन्तर ही नहीं थाहमें तुमसे मिलें थें तुमको किसी और से।4.ख़्वाब अधूरे धड़कन अधूरी सांस भी ना होती पूरी है। तेरे बग़ैर ज़िंदगी की सहर-ओ-शाम भी अधूरी है।। 5.न कुछ आलिम समझते हैं न कुछ जाहिल समझते हैं मोहब्बत की हक़ीक़त को बस अहल-ए-दिल समझते हैं6.सभी में हूँ मैं किसी में नहीं हूँ गमों में हूँ मैं खुशी में नहीं हूँ, मुझे तू ना को शिश कर खोजने कीमैं तिमिर में हूँ ज्योति में नहीं हूँ 7.इतनी मुश्किल भी ना थी ये जिंदगीजितना मुश्किल हमने इसको बनाया!!बंदिशे तोड़ आया था खुल्द से आदमजमीं को उसूल से फिर हमीं ने सजाया!!8.बंद कर दिए थे दरवाज़े सारे,छोड़ी ना मिलने की सूरत कहीं,जब रहना चाहिए था संपर्क में मेरे,तब थी मिलने की फुर्सत नहीं,9.मेरा पूरा वक्त तेरे साथ गुजरा,अच्छा साथ गुजरा, बुरा याद में गुजरा।10.तहरीर मेरी कुछ हमने कही कुछ अपनी मेरी उसने भी सुनाई।कट गया पहर दोपहरशाम बीता जबवो रात आयी।यादों के आगोश मेंठहरी हुई रातपास बैठी वो और तन्हाई।11.दिल की कुछ बात कही होती!एक ख़त तुझको लिखा होता!नहीं मालूम के क्या होता!नहीं मालूम के क्या होता!12.मुद्दा हो न हो फ़िर भी बात होनी चाहिए। सफ़र ज़रूरी नहीं पर साथ होना चाहिए। रात तो आख़िर करवटों में गुजर जानी है, तुम्हारे साथ ख़ुशनुमा शाम होनी चाहिए।13.मत दिखाओ हौसले तूफ़ाँ गुज़र जाने के बादमर गया है आदमी दुनिया में डर जाने के बाद14.भारत कण कण में जाग उठा,दुनिया ने हमें प्रणाम किया।वसुधैव कुटुंबकम रीति रही,सुंदर विचार को मान दिया;है ऋषि मुनियों का देश मेरा,जग को जीरो का ज्ञान दिया।15.मेरे मन की पीड़ा कोकौन समझ सकता हैक्या क्या खोयाऔर खोने पर अब कैसा लगता हैकौन समझ सकता है ।बहुत सरल है कहनाजो है अच्छा हैलेकिन जो है उसी में जीना कैसा लगता है, कौन समझ सकता है।16.चुप रहने से क्या होगा ?कुछ तो बोलना होगा”आँखों पर पट्टी बाँधे रहने सेतो हर युग मेंदुर्योधन ही पैदा होगा17.डर-डर कर भी बिटिया इतना तो जान चुकी हूँ अपने दम पर कि तुझे बीज की तरह उगना पड़ेगा अपने बूते ही अपने हिस्से की धूप, हवा और नमी पर हक़ जमाते…18.ज़िद है बेख़ौफ़ डूब जाने कीवज़ह नहीं अब लौट आने की,क्यूँ तलाश भला उस मंज़िल कीजंहा नहीं कोई राह जाने की... 19.बेसबब रोने का शोरना जाने किस बात का शोर,वो चुप हैं जो सब गँवा बैठेपर क्यूँ लुटेरों में लूटने का शोर20.तेरे नाम की तख्ती थी मगर खुद का नाम लिख आया हूँ,मैं आज तेरी मौत से हाथ मिला आया हूं।21.बे-तहाशा उसे सोचा जाएज़ख़्म को और कुरेदा जाएहम ने माना कि कभी पी ही नहींफिर भी ख़्वाहिश कि सँभाला जाएआज तन्हा नहीं जागा जातारात को साथ जगाया जाएबे-तहाशा उसे सोचा जाए22.जो दार्शनिक है, सिर्फ वह लिख सकता।मुझे लिखना सिखाने के लिए आप कौन होते हैं, मैं बिलकुल जानना नहीं चाहता।23.हसरतों का महल एक दिन बिख़र कर टूट जाएगा। मैं तुझसे तू मुझसे एक दिन आगे निकल ही जाएगा।।24.हर चेहरे पर कुछ ना कुछ नया रोज़ लिखा मैं पाती हूँ।। चलती हूं राहों में जब भी चेहरों की रंगत में घिर जाती हूँ।।25.पहन लूँ वो नक़ाब छुप जाऊं अब कंही,ना ढूंढ पाये नज़रे छुप जाऊं अब कंही,पाना तू चाहे अगर मुझेक्यों अंधेरों का डर तुझे,मैं रौशनी भी रात भीदिलों की अनकही बात भी...26.हाँ मैं आज़ाद हूँ,दरिन्दों से नहीं, परिंदों से ।हथियारो से नहीं, विचारो से ।हाँ मैं आज़ाद हूँ,धर्म से नहीं , कर्म से ।व्यापारों से नहीं, ख्यालो से ।हाँ मैं आज़ाद हूँ...!27.जब अहसास मचलते हैं फिर मुहिब कहां रुकते हैंबेशक भीतर दर्द होता है दर्द को तोहफा समझते हैं28.वक्त की साजिश कुछ ऐसी हुईभूलने चला था मै तुम्हे वक्त नेफिर से मिला दिया29.थोड़ी सी घुटन, थोड़ी सी ज़िन्दगी रख लीमतलबी लोगों से दुश्मनी हमने रख ली,किनारे मिले या, ना मिले अब फ़िक्र किसेहमने तो समन्दर से दोस्ती रख ली... 30.सुनो, वापस जा रहे हो?तो फिर लौटना मत।क्योंकि टूँट के बिखरने की आदत जा चुकी है मेरी।31.अलाव की गर्मी में छिपा गहरा राज़ हैठंड का अलाव से खास सा लगाव हैपिघल जाए सुलग के ठंडे रिश्तों की बर्फ सीआ पास बैठ अलाव के इसमें इतनी ताव है ।32.शायरों का किस्सा कुछ अजब होता है खाक होने पर ये और जवां हो जाते हैं Download Our App