Story of you and me in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | तेरी मेरी कहानी

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तेरी मेरी कहानी

1.
जिदंगी मे मैंने जिस - जिस को चाहा
अपने से उसे हमेशा दूर ही पाया
मेरी किस्मत कह लो या तकदीर मेरी
जो वो मुझे कभी मिला ही नहीं
किस्मत का फैंसला मान कर उसे छोड़ दिया
जिस - जिस से दिल लगाया सबने मेरा दिल तोड़ दिया
अब चाहत नहीं है किसी को चाहने कि
ना ही बाकी है हसरत उसे पाने कि

2.
वक्त बेवक्त तेरा मुझे याद करना,
तेरे याद करते ही मेरी धड़़कनो का बढ़ जाना
बढ़ी हुई धड़कनो को फिर सब से छुपाना
और फिर सबको ये जताना, कि शायद हाल ठीक नहीं है मेरा
ना जाने कयुँ ये बैचनी है,धड़कनो मे भी तेजी है
बस भी कर अब, ओ बेरहम, क्या जान ही मेरी ले लेनी है।

3.
हद से आगे गुजरना हमे मंजूर ना था
लेकिन उसने शर्त ही ऐसी रखी कि हमे गुजरना पडा़
उस वक्त तो बिना कुछ सोचे समझे गुजर गये हम
लेकिन बाद मे फिर बिखर गये हम

4.
फर्ज अपनी जिदंगी के सब अदा किये मैंने
किसी से कुछ ना माँगा, बस दिया हि दिया मैंने
फिर बात जब मेरे हक कि आती है, तो सबको बैचनी हो जाती है
याद दिलाये जाते है, उस वक्त सिर्फ फर्ज मेरे
और कहा जाता है, नहीं है कोई हक तेरे
फर्ज के लिये मैं याद आती हूँ, जहाँ बात आये हक कि मेरी, वहाँ मै भुला दी जाती हूँ।

5.
हवा भी आज ना जाने कुछ बहकी - बहकी सी है
नदियों कि चाल भी लहकी - लहकी सी है
खुशबु का तो पता नहीं लेकिन कलियाँ भी आज अध खिली सी है
जाने क्या हुआ है, आज बहार को
हर डाल झुकी - झुकी सी है।

6.
जब आप किसी से बात करना चाहो, और वो आपसे बात ना करने के हजारो बहाने बनाये
जब आप उसका इंतजार करते हो
और वो वक्त ना मिलने का बहाना बनाये
जब आप उसकी एक झलक पाने को बेताब हो
और वो शहर मे ना होने का दावा करे
जब आप उसका साथ चाहते हों
और वो ये कह दे कि उसके साथ तो कोई और है...
उस वक्त ऐसा लगता है कि इससे अच्छा तो तेरे बहाने थे
जिसमे तेरे मेरे साथ होने का भ्रम तो था।

7.
बुराई पर अच्छाई का दिवस है आज
जो इस बात को समझता हो, उसके लिए कुछ तो है आज
यूँ तो रोज दिन निकलता और ढलता है
पर जो लोग सच्चे और अच्छे होते है, उनके लिए कुछ तो खास है आज

8.
इस मतलबी दुनिया मे कोई किसी का नहीं
क्या गलत, क्या सही ये कोई जानता ही नहीं
जो साथ निभा दे वक्त पे तेरा, उससे बड़ा कोई हमदम नहीं
वरना यहाँ तो कोई किसी को पहचानता ही नहीं
हमने देखा है, अपनो को गैर होते हुये
और फिर उनका ये कहना, हमने तो कुछ किया ही नहीं

9.
मन उदास हो जाता है, जब किसी ओर कि ज़बान से तेरा जिक्र सुनती हूँ। कह कुछ नहीं पाती, बस चुप सुन लेती हूँ।
क्या कहूँ मैं उससे, जो तुने मेरे साथ किया
साथ निभाने का कह कर, फिर जो मुँह फेर लिया
जज्बातो को दबाये बैठे थे, तेरे जिक्र ने फिर सब याद दिला दिया
मुँह से मैंने कुछ ना कहा, लेकिन मेरी आँखो ने सब हाल कह दिया
रोक ना सकी फिर मैं अपने जज्बातो को
और फिर बातो ही बातो मे सब राजे दिल खोल दिया।

10.
चाहत ही तो थी, इसलिए आगे बढ़ गये तुम
गर इश्क होता मुझसे, तो रूकते ना तुम
चाहत ही तो थी, इसलिए संभल गये तुम
गर इश्क होता मुझसे, तो बिखर जाते तुम
चाहत ही तो थी, इसलिए मेरे आँसु ना देख सके तुम
गर इश्क होता मुझसे, तो मेरे आँसु पोछते ना तुम
चाहत तो किसी से भी हो जाती है, कभी इश्क करते
तो इश्क समझते तुम