Mariya in Hindi Travel stories by Vikash Kumar books and stories PDF | मारिया

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मारिया


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  • अनुक्रमणिका

  • कंपनी से मेरा परिचय

  • आफिस में मेरा पहला दिन

  • आफिस की प्रतिदिन की दिनचर्या

  • मच्छर मक्खी की महिमा

  • जैक एंड जिल

  • मेरा पहला हैरोल

  • लीडर बनाने की रस्म

  • मोनिका

  • सपने बेचना

  • पहले थप्पड़ का अनुभव

  • आ चल चले दरभंगा



हमने व्यथा अनमनी बेची तन की ज्योत कंचनी बेची

कुछ न मिला तो अंधियारों को मिट्टी मोल चांदनी बेची

गीत लिखे जो हमने उन्हें याद रखना तुम

रत्नों मढ़ी किताब हमारे पास नहीं

' किशन सरोज'


दुनिया ने तजुर्बात ओ हवादिस की शक्ल में

जो कुछ भी मुझे दिया है उसे लौटा रहा हूं

'साहिर लुधियानवी'


नकारता रहा जिसे उम्र तलक उसी के लिए मचल रहा हूं

समेट हुए उन्हीं परों को फड़फड़ाने के लिए मचल रहा हूं


कुछ भी खास तो नहीं मेरी कहानी में

मेरी कहानी मुझे खास बनाती है

उसी कहानी को सुनाने के लिए मचल रहा हूं




भुमिका


हम आप भी हमेशा से चाहते है कि काश ढे़र सारा पैसा कमाने का कोई शार्टकट होता हमारे इसी चाहत का नाजायज फायदा उठाकर कुछ लोगों ने अपना शार्टकट रास्ता तैयार कर लिया और हमें शार्टकट रास्तों का लोभ दिखाकर अपनी स्वार्थ की रोटियां ही नहीं सेक रहे बल्कि शार्टकट और स्वार्थ की एक भरी-पूरी दुनिया ही बसा ली है ।ये कहानी कुछ ऐसी ही चाहतों, शार्टकट रास्तों, पात्रों के इर्दगिर्द बुनी गयी है। जिस दुनिया के पात्रों से यदा कदा हमारी मुठभेड़ कभी राह चलते, कभी दफ्तर में, कभी किसी सार्वजनिक स्थान यथा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड तो कभी स्वयं के दरवाजे पर उनके लबों के चिरपरिचित मुस्कान के साथ हो जाती है। मुझे इस मुस्कान से राजेन्द्र राजन जी की कुछ पंक्तियां याद आती है -

"हममें तुम जैसे बेहद है तुममें हम जैसे बहुतेरे

भीतर से खाली मुर्झाये बाहर से लेकिन गदगद है।"

ये दो पंक्तियां उस मुस्कान के लिए और आगे की दो पंक्तियां इस किताब के लिए और इस किताब के मुख्य नायक के लिए जिसने मुझे इस कहानी को आप तक पहुंचाने के अगर मैं कहूं कि उसने मुझे विवश कर दिया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, मैं उद्धृत करना चाहुंगा।

"है बोझ गृहस्थी का जीवन जिसको सब प्राणीढोंते है

कुछ तो रो रोकर लिख जाते कुछ बांच बांच कर रोते है…………दुनियादारी है मीत सखे।"

आपके जेब में दस रूपये भी न हो, गले में एक टाई लटक रही हो, कंधे पर एक बैग हो और बैग में 20-25 प्लास्टिक के खोखले डब्बे हो।चिलचिलाती धूप हो और ऐसे में एक च्यूइंगम चबाते हुए आप तीन- चार किलोमीटर पैदल चल के जाते है और सुबह के दस बजे से शाम के छह बजे तक लगातार उस खोखले डिब्बे को भुनाने के लिए मौसम से ,खुद से दिन भर मिलने वाले लोगों से संघर्ष करते है और शाम तक उन खोखले डब्बों में से कुछ डब्बों को भुनाकर अपने लिए सत्तर-अस्सी रुपए बना लेते है। पुनः अगले दिन भोजन करने और नयी जगह तक जाने के बाद जहां आप उस डब्बों को भुना सके ,पुनः आप उस पूर्वत स्थिति में पहुंच जाते है और आप अगले दिन के सत्तर अस्सी रुपए के इंतजाम के लिए पुनः अगले दिन के भोजन, पानी रास्तों के खर्च के लिए पूरी मुस्तैदी से जुट जाते है।


ऐसी ही जिंदगी जीने को हमारे देश के लाखों युवां ऐसी हजारों समाज से बिल्कुल अलग-थलग दुनियां (संगठनों) में जिन्होंने अभी जवानी के दहलीज पर कदम ही रखा होता है,अभी वे दुनिया के इस रंग- रूप, छल -कपट, दंभ- द्वेष से परिचित हो रहे होते है या यूं कहे इस दुनिया के प्रति इनका नजरिया व समझ अभी विकासशील अवस्था में ही होता है कि इन सार्टकट रास्तों का लोभ दिखाकर इन्हें एक अभिसप्त जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया जाता है।

मेरी यह पुस्तक इस दुनिया की कुछ ऐसी ही सच्चाई को

बयां करती है और आशा है जिस सोच ने मुझे इस कहानी को लिखने के लिए प्रेरित किया उससे आप सब लाभान्वित होंगे।

अब जब आपने यह एक बेहद उबाऊ पुस्तक पढ़ने का जोखिम उठा ही लिया है तो फिर इस नयी- नयी दुनिया और इन नये- नवेले पात्रों से मिलने में देर कैसी? अब यह किताब और इसके पात्र मैं आपके हवाले करता हूं,लेकिन मुझे इस तरह की बकवास करने की आदत है अतः मैं यदा कदा आपको परेशान करने के लिए आता रहूंगा जिसके लिए मैं आपसे पहले ही अग्रिम छमा चाहुंगा।


अगर आपको मेरा ये तुच्छ प्रयास पसंद आये तो मुझे अवश्य अवगत कराये।


आपका स्नेहाकांछी

विकास सिंह



कंपनी से मेरा परिचय

मैनेजर ने मुझसे हाथ मिलाते हुए कहा, "मिस्टर विक्रम मैं आज आपको अपने आफिस के सबसे काबिल, होनहार, सीनियर लीडर के साथ भेज रहा हूं ,आज आपको दिन भर पेसेंस रखकर मिस शुभा के साथ रहना है, अपनी काबिलियत से इनका विश्वास जीतना है और आपका सेलेक्सन मिस शुभा के रिपोर्ट पर निर्भर करेगा।

मिस शुभा ने गर्मजोशी से हाथ मिलाते हुए कहा " माइसेल्फ शुभा जायसवाल सीनियर लीडर आफ यूनीवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट ।" दूसरी तरफ से मैनेजर की रौबीली आवाज आयी, "आज दिन भर आप इनके निगरानी में रहेंगे, क्या आप इनसे तेज दौड़ सकते हैं तो दौड़िये अब हम सब शाम को मिलते है बेस्ट आफ लक मिस्टर विक्रम ", मैनेजर ने पुनः हाथ मिलाते हुए कहा।


मेरा बीकाम फाइनल इयर का रिजल्ट घोषित हो चुका था हालांकि पिछले दोनों वर्षों के मुकाबले इस वर्ष का परिणाम अच्छा था लेकिन इस रिजल्ट से मैं काफी निराश था। मैं अपने जेब खर्च के लिए कभी बच्चों को ट्यूशन पढा़ लेता साथ ही छोटे मोटे इंग्लिश मीडियम टाइप स्कूल में मन्थली हजार पांच सौ की नौकरी कर लेता।

ऐसे ही एक दिन मैं दैनिक जागरण पढ़ रहा था, अचानक मेरी दृष्टि एक विज्ञापन पर आके ठहर गयी। ये यूनिवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट कंपनी का विज्ञापन था। मैंनेजमेंट शब्द से वाणिज्य के विद्यार्थी का रिश्ता तो हम समझ सकते है, लेकिन इससे भी आकर्षक चीज जो इस विज्ञापन में थी वह था कि मल्टिनेशनल कंपनी को आवश्यकता है आफिस कार्य हेतु मैनेजर की। योग्यता - हाईस्कूल से पोस्टग्रेजुएट। पता यूनीवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट रुस्तमपुर ढाला गोरखपुर। बस्ती से गोरखपुर लगभग दो घंटे का रास्ता है, मानो सपनो के शहर गोरखपुर में मेरा सपना साकार होता दिख रहा था। बीकाम के अनुभव से मैंने एक आकर्षक रिज्यूम लिखा और अब मुझे अगले दिन की सुबह का इंतजार था मैनेजमेंट कंपनी का आफिस ,आफिस के लोग और मैनेजर की कुर्सी इन्हीं खयालातों में रात भर डूबा रहा। मैं सुबह पांच बजे ही उठ गया था और तैयारी में मुझे खाने पीने का भी होश नहीं रहा इसी आननफानन में सुबह छह बजे की बस में सवार रुस्तम के कदम रुस्तमपुर की ओर चल पड़े थे, बस में चढ़ते ही मैंने कंडक्टर को हिदायत दी कि रुस्तमपुर ढा़ला आने पर बता दे। और मेरी निगाहें रुस्तमपुर में उतरने वाले किसी हमराही को ढूंढने में व्यस्त हो गयी । मैं बस में बैठा कभी इंटरब्यू के बारे में सोचता तो कभी मन में यह विचार चलने लगता कि कहीं बस रुस्तमपुर ढा़ला पर बिना रुके ही न बढ़ जाए ।अचनाक मेरे कान में बस कंडक्टर की आवाज सुनायी दी कि रुस्तम पुर ढ़ाला वाले आगे आ जाए। बस से उतरकर मैं सोच रहा था कि एक पडा़व तो पार हुआ और आगे आफिस ढूंढने लगा । एक घंटे काफी मसक्कत के बाद भी जब मैं आफिस नहीं पहुंच सका तब मुझे संकट मोचन नोकिया 3310 की याद आयी और मैंने जेब में रखे अखबार की कतरन में दिये गये नम्बर को डायल किया, उधर से एक रौबदार आवाज सुनाई दी, जब मैंने उसे बताया कि मैं चन्द्रशेखर चौराहे से होते हुए इस समय आजाद नगर में हूं और यहां से आगे कैसे आना है? दूसरी तरफ से मुझे बताया गया कि वहां से आगे नहीं बल्कि अब आपको पीछे आना है आप पहले ही काफी आगे निकल आये हैं। अब मुझे वापस रुस्तम पुर पहुंच कर पुनः काल करे। यानी जहां मैं बस से उतरा था उसी स्थान पर पुनः पहुंचना है। किसी तरह वहां से रुस्तम पुर का पता पूछकर पुनः मैं वहीं खड़ा था जहां मुझे बस ने उतारा था। पुनः काल करने पर बताया गया कि वहां से सौ कदम आगे आकर बायी तरफ गली में प्रवेश करने पर मुझे आफिस का एक बोर्ड दिखेगा। वहां से कुछ ही दूरी पर हमारा आफिस है। आखिरकार एक दो लोगों से पता पूछते पूछते किसी तरह मैं नियत स्थान पर पहुंचा जहां एक बड़े काले लोहे के गेट जिस पर प्लास्टिक की हरे कलर की एक पतली परत चढ़ाई गयी थी के ठीक उपर एक सफेद फ्लैक्स बोर्ड पर लाल रंग से छपे यूनीवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट का बोर्ड नजर आते ही जैसे मेरे जान में जान आयी।

आफिस के अन्दर रिशेप्सनिस्ट काउन्टर पर एक मधुर, सूरीली आवाज ने मेरा स्वागत किया "वेलकम सर, आप इन्टरव्यू के लिए आए है, तो यह फार्म भरकर जमा कर दीजिए, फार्म थमाते हुए उस सुन्दर सी रिश्प्सनिस्ट ने कहा "। रिश्प्सनिस्ट इक्कीस बाइस वर्ष की शरीर से हृष्ट -पुष्ट भरे-भरे गाल तथा औसत कद की नवयौवना थी । फार्म लेकर मैं वहीं पास बेंच पर बैठकर उसे भरकर पुनः रिश्प्सनिस्ट के पास जमा करने के लिए लाइन में लग गया जिसमें मेरी तरह मैनेजर बनने का ख्वाब लेकर आने वाले पन्द्रह सोलह लोग और लगे थे। फार्म जमा करने के करीब एक घंटे इंतजार के बाद मुझे इंटरव्यू के लिए अंदर भेजा गया। सामने एक सफेद चेकदार शर्ट के साथ कुछ हल्के भूरे-नीले रंग की टाई लगाये हुए व्यक्ति ने गर्म जोशी से हाथ मिलाकर मुझे बैठने के लिए कहा । एक परिचयात्मक सुछ्म साक्षात्कार के बाद मुझे कल पुनः फाइनल इंटरव्यू के लिए बुलाया गया।

साथ साथ पच्चीस छब्बीस लोग और दौड़ रहे थे जिन्हें पीछाड़़ते हुए मिस शुभा के कदम अपने मकाम की ओर तेजी से बढ़ रहे थे। पांच मिनट तक लगातार कन्धे पर बैग लेकर दौड़ते हुए अचानक रुककर पूछा क्यों मिस्टर थक गये। और फिर सामान्य कदमों से चलने लगी। इस अप्रत्याशित दौड़ के बाद हालांकि हांफते हुए, मैंने झेंपते हुए कहां, ' नहीं '। आगे चलकर गली से दो रास्ते जाते थे कुछ लोग गली के इस रास्ते तो कुछ दूसरे रास्ते की तरफ दौड़ते हुए निकले करीब दो सौ मीटर के बाद सामान्य गति से उनके कदम अपने अपने गंतव्य की ओर चल पड़े। रोड पार कर करीब पच्चीस तीस कदम पर जाकर मिस शुभा मुझे लेकर एक होटल में दाखिल हुयी। वहां पर वेटर को दो प्लेट कुछ आर्डर देकर भेजा। तथा अपने बैग से एक रसीदनुमा मोटी गड्डी निकालकर उसके पन्ने भरने लगी। मुझे सुबह ही कहा गया था कि मुझे दिन भर मिस शुभा के साथ रहकर सीखना है और शाम को फाइनल इंटरव्यू होगा। कौतुक निगाहों से मैं मिस शुभा को देखने लगा। मिस शुभा करीब उन्नीस बीस बरस की एक कालेज गोइंग छात्रा की तरह थी। आवाज भारी पर जैसे बोली में मिशरी घुली हो, गोरी भरे कपोलों वाली हंसते हो तो जैसे गाल दोनों तरफ थोड़े दब जाते होठों पर एक भीनी मुस्कान छा जाती‌। व्यक्तित्व में एक गजब का आकर्षण था एक प्रकार का ऐसा ओज जिसके आगे आने वाले स्वयं ही हथियार डाल अपनी हार स्वीकार कर ले। इतने में आर्डर आ गया दो प्लेट समोसे व मटर से भरे थे ‌‌। मिस शुभा ने मुझे नाश्ता करने के लिए कहा। मटर समोसे गरमा गरम थे और भूख भी लग आयी थी दोनों भविष्य के मैनेजर अपना प्लेट खतम करने के बाद पुनः तेज कदमों से जाने अनजाने रास्तों की ओर चल पड़े। इस बीच उन्होंने मुझसे घर- परिवार संबंधी बात की, कि घर में कौन-कौन है, आप कितने भाई-बहन हो, पिताजी क्या करते है? मेरा जबाब सुनने के बाद हम दो भाई व एक बहन तथा पिताजी प्राइवेट अध्यापक है, उसने अपने बारे में भी बताया कि वह अपने मां-बाप की इकलौती संतान है, वह बनारस से है और उनके पिताजी एडवोकेट है। इस तरह रास्ते भर हल्की फुल्की बाते होती रही जैसे- इससे पहले आपने कोई जाब की या नहीं ? आपकी हाबी क्या है?

लगातार आधे घंटे चलने के बाद मिस शुभा एक बड़े से पार्क में जाकर रुकी। मैं फाइनल इन्टरव्यू और उसमें पूछे जाने वाले प्रश्नों की प्रकृति व प्रवृत्ति में ही उलझा हुआ था तथा कभी कभी उनके बारे में भी पूछने का प्रयास करता रहता। मिश शुभा अपने जादू के पिटारे अर्थात कंधे पर लटकाये एक बैग जैसा बैग प्रायः एम. आर. वगैर लेकर चलते हैं से एक डायरी व पेन निकालते हुए कहां, "अब मैं जो बताने जा रही हुं उस पर ध्यान दे, इट मे बी पासिबल दैट सम क्वैश्चन आर रिलेटेड टू दिस टापिक"। एक बार फिर फाइनल इंटरव्यू की बात ने मुझे आंदोलित किया और मैं गौर से उनकी बातों को सुनने लगा जैसे क्लास में तेजू खां टाइप के बच्चे मैडम की बाते सुनते है, भाई फाइनल इंटरव्यू का जो सवाल था।

एक बार कोई भी मिस शुभा से बात कर ले तो वह उनसे सम्मोहित हुए बिना नहीं रह सकता और वह तो अब इंटरव्यू के बारे में बताने जा रही थी।

मिस शुभा ने कहना प्रारंभ किया ," हमारी कंपनी यूनीवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट एक मल्टीनेशनल कंपनी है और इसके संस्थापक विलयम बेकन इंग्लैंड के एक नामी बिजनेसमैन है जिन्होंने इसकी स्थापना की तथा भारत के उत्तर प्रदेश , बनारस में इसका हेड आफिस है तथा भारत के छोटे-बड़े कयी शहरो जैसे कानपुर, मेरठ, दिल्ली गाजियाबाद, नागपुर, भोपाल, लखनऊ…..आदि शहरों में इसके ब्रांच आफिस हैं तथा जिनमें चार हेड आफिस है जो कि बनारस, भोपाल, मुंबई और दिल्ली में हैं "। यह बताने के साथ साथ वह मुख्य बातों को एक मझें हुए वक्ता की तरह लिखने के साथ साथ अन्डरलाइन तो कभी कभी अंडाकार गोले में तो कभी चौकोर आयतनुमा बाक्स में भी दिखा रही थी। इतना बताने के बाद मेरी एकाग्रता की जांच के लिए मुझसे हेड आफिस व कंपनी के जनक व टाइप के बारे में पूछा। बाकी सवाल के जबाब त़ो मैंने ठीक ठीक दे दिये हेड आफिस के बारे में दिल्ली व भोपाल याद नहीं रहे। एक बार फिर मिस शुभा ने एकाग्र होने के लिए चेताया और पुनः याद दिलाया कि, "आपका सेलेक्शन दिन प्रतिदिन के व्यवहार, क्रियाकलाप व आपके एकाग्रता पर निर्भर करेगा तो प्लीज कन्सन्ट्रेट एंड लिसेन केयरफुली टू मी, बाय द वे यदि मैं आपसे पूछू कि आप एक दिन में कितने नो (ना) सुन सकते हैं " ? मैंने कहा, "मतलब ? मैं समझा नहीं कैसा नो सुनना है?" मतलब समझाते हुए उसने कहां, "आप दिन भर किसी के पास जाते हो और लोग आपसे सहमत नहीं होते हो।" मैंने कुछ समझते हुए कहा, " जैसे एम. आर. वगैर डाक्टर के पास दवाई वगैर लेके जाते हैं।" "थोड़ी देर के लिए आप वहीं समझ लीजिए।" मैंने सोचा कि एक दिन में पच्चीस छब्बीस डाक्टरों से तो मिल ही लूंगा हो सकता है बीस इक्कीस व्यक्ति मुझसे सहमत न हो, पांच छः तो मेरी बात मान ही लेंगे सो मैंने कहां, "एक दिन में इक्कीस बाइस नो सुन सकता हूं।" और मैंने पूछा कि, "यह फील्ड जाब है, कि आफिस जाब?" " मिस्टर विक्रम आप जानते होंगे कि एक मैनैजर सुबह से शाम तक आफिस में बैठता है और आफिस की, ब्रांच की पूरी जिम्मेदारी मैनेजर के कंधों पर ही होती है। बाइदा वे आपकी क्वालिफिकेशन?" "जी बीकाम फाइनल कर लिया है।" मैंने भरपूर आत्मविश्वास से कहां ।"इसके बाद क्या इरादा है"? "जी एम. काम.।" "एम.काम. करके क्या करेंगे?" "किसी कंपनी के मैनेजर की जाब के लिए अप्लाई करेंगें आगे रब की मर्जी।" " इफ आइ टेल यू ए ब्राइट फ्यूचर इज वेटिंग यू इन यूनिवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट कंपनी विच इज अ मल्टीनेशनल कंपनी, एम.काम कम्पलीट करने और उसके बाद किसी छोटी-मोटी कंपनी में नौकरी पाने में आपको कितना वक्त लगेगा?" "दो वर्ष एम. काम. और उसके बाद एकाध वर्ष में नौकरी।" " यानि कम से कम ढाई वर्ष। और उसके बाद एक दो साल कि ट्रेनिंग, यदि मैं आपसे ये कहूं‌ कि हमारी कंपनी आपको मात्र सेवन मन्थ के ट्रेनिंग पीरियड के बाद आपको एज ए मैनेजर एप्वाइंट करती है तो ये कैसा रहेगा?" मैं तो पहले ही मिस शुभा से सम्मोहित हो चुका था और अब तो और ध्यानपूर्वक उनकी बातों को सुन रहा था। 'बहुत अच्छा है।' आगे मिस शुभा ने कहना शुरू किया, " और ऐसा तब होगा जब आज शाम का इंटरव्यू जो मिस्टर इंदरेश कुमार लेंगे जो हमारे गोरखपुर ब्रांच के सीनियर मैनेजर है उसे आप क्वालीफाई करेंगे और उसके बाद आप सेवन मंथ के लिए ऐज ए ट्रेनी अप्वाइंट होगें"। बात को आगे जारी रखते हुए उसने कहां, "यदि दो वर्ष में आपका एम काम कम्पलीट नहीं हो पाता है यानी आप फेल हो जाते हैं तो आप क्या करेंगे?" मैंने उत्तर दिया "पुनः परीछा दूंगा।" "इसी तरह यदि आप इस सात महीने में इस ट्रेनिंग को नहीं कम्पलीट कर पाते तो हमारी कंपनी आपको घर न भेजकर आपको उतना टाइम और देगी आपको सिखायेगी, पढायेगी की आप कंपनी के लिए एक असेट्स साबित हो। पता है हमारे इंदरेश जी जो मेरे ग्रूप-लीडर रह चुके हैं और जिन्होंने वैसे ही मेरा इस कंपनी से परिचय कराया जैसे आज मैं आपको कंपनी के बारे में बता रहीं हूं उन्होंने इस ट्रेनिंग को छह महीने में पूरा किया जो आज हमारे गोरखपुर ब्रांच के सीनियर मैनेजर हैं। और उनको इस मल्टीनेशनल कंपनी में लाने वाले हमारे डायरेक्टर सर जो आज हेड आफिस बनारस में बैठते हैं उन्होंने इस ट्रेनिंग को मात्र पांच महीने में पूरा किया और उन्हीं के अंडर में गीतमाला मैडम जो बनारस की सीनियर लीडर है ने मात्र साढ़े तीन महीने में इस ट्रेनिंग को कंप्लीट किया।" बातों का क्रम बढ़ाते हुए आगे उसने कहना शुरु किया, " मैंने खुद ट्रेनी से ग्रूप लीडर का सफर मात्र ढाई महीने में तय किया है जबकी मैं सिर्फ मामूली बीए. पास हूं। इस ट्रेनिंग के चार फेज है। यदि आप आज सेलेक्ट होते हो उसके बाद दो महीना एज ए ट्रेनी, दो महीने लीडर, दो माह ग्रुप लीडर और अंत में एक माह एज ए ट्रेनी मैनेजर के बाद आपको एक कंप्लीट मैनेजर बनाकर एक नयी ब्रांच सौप दी जाएगी। " आज के ट्रेनिंग को आगे बढ़ाते हुए मिस शुभा ने कहना जारी रखा, " हमारी कंपनी अभी बड़े बड़े शहरों में है और अभी यह ग्रो कर रही है और इसे बृहद रूप देने के लिए तमाम छोटे बड़े शहरों में इसके ब्रांच स्थापित करने के लिए मैनेजर की जरूरत है जिसके लिए हमारी कंपनी ने सात माह का एक ट्रेनिंग पैकेज बनाया है और यह देश भर के युवाओं को फ्री आफ कास्ट मैनेजमेंट की ट्रेनिंग दे रही है जबकी आप जानते होंगे कि आज इस बेकारी एवं महंगाई के युग में मैंनेजमेंट का एक मामूली डिप्लोमा करने में लाखों रुपये खर्च करने पड़ते है वहीं आप एम. बी.ए करते हैं तो आपको करीब पांच लाख तक खर्च करने पड़ सकते हैं और समय उपर से और उतने पर भी इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आपको अच्छी खासी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट मिल ही जाए। पर हमारी कंपनी इस बात की श्योर गारंटी लेती है कि सात से नौ महीने में आपको एक योग्य मैनेजर बनायेगी और इसके लिए आपको घर से एक भी रुपये लेने की जरूरत नहीं है बल्कि आपकी ट्रेनिंग इस तरह की होती है की आप दस से पन्द्रह दिन में अपना खर्चा स्वयं निकालना सीख लेते हैं।"

एक कुशल वक्ता की तरह अपने लेक्चर को उसने जारी रखा, " आपको ट्रेनिंग के दौरान ब्रांच आफिस पर रहना होगा और यदि बहुत आवश्यक नहीं है तो घर भी नहीं जाना है मै स्वयं सिर्फ एक बार जब बनारस में ट्रेनिंग कर रही थी जहां विकास कालोनी में मेरा घर है, जब मम्मी की बहुत तबियत खराब हुयी थी तब की गयी हूं‌ । हमारे मैंनेजर सर ट्रेनिंग से लेकर आज तक घर नहीं गये जबकि मैनेजर बनने के बाद ट्रेनी मैनेजर या असिंस्टेंट मैनेजर को ब्रांच सौंपकर आसानी से जाया जा सकता है और मैंने स्वयं अब प्रण लिया है कि अब तो मैनेजर बनने के बाद ही घर जाकर मम्मी को सरप्राइज़ करना है।" और अंत में उसने कहां," यदि आपका सेलेक्शन इस ब्राइट कैरियर के लिए होता है तो आपका हाईस्कूल का मार्कशीट आफिस में जमा हो जाएगा। हमारे मैनेजर सर का तो एम एस सी तक का मार्कशीट जमा किया गया है।" मैंने उत्सुकता वश पूछा, "यहां मार्कशीट क्यों जमा होता हैं?" " कंपनी आप से कुछ ले तो नहीं रही है बल्कि आपको सीखने के लिए कुछ सामान वह फ्री आफ कास्ट प्रोवाइड करती है। और उसके स्क्योरटी के रूप में आपका मार्कशीट जमा करती है।"

"अच्छा मिस्टर विक्रम आप बता सकते है जाब और कैरियर में क्या अंतर है?" "जाब अर्थात नौकरी जिसमें मन्थली इनकम हो, जिसके बदले हमें किसी नियोक्ता के अंडर काम करना हो। और कैरियर का मतलब हम किसी एक कंपनी में काम करते हुए उसके उच्च पद तक पहुंचे।"

मैंने अपनी समझ से उत्तर दिया। कैरियर का अर्थ समझाने का प्रयास करते हुए उसने आगे बोला, " जब हम किसी कंपनी के उच्च पद पर काम कर रहे है तब भी तो हम किसी के अंडर ही काम कर रहे हैं। कैरियर जैसे जमशेद टाटा, धीरूभाई अंबानी, घनश्याम दास बिड़ला आदि लोगों ने किसी के अंडर काम नहीं किया बल्कि स्वयं के बल पर कैरियर बनाया और आज हम इनका उदाहरण दे रहे है।

धीरूभाई अंबानी ने पेट्रोल पंप पर काम करते हुए भी अपने पेशेंश, कान्फीडेंस के बलबूते इतना विशाल अंपायर खड़ा कर दिया‌।इसके अतिरिक्त जैसे जगजीत सिंह, सोनू निगम,लता मंगेशकर, अक्षय कुमार, अमिताभ बच्चन, सचिन तेंदुलकर आदि का नाम आपने सुना होगा जिन्होंने अपने फील्ड में अपनी काबिलियत के दम पर अपना कैरियर बनाकर नाम कमाया हैं। कहने का मतलब कि नौकरी में आपको एक बॅॅंधी-बधाॅंयी तन्खाह मिलती है जबकि कैरियर में आप अपनी क्षमता के अनुरूप प्राॅफिट कमाते है। आपके मन में भी सैलरी को लेकर सवाल होंगे,आपने हमारी कंपनी के विज्ञापन में भी देखा होगा तभी तो आपने अप्लाई किया है। अच्छा विज्ञापन में सैलरी कितना लिखा था?" मैंने अपने दिमाग पर जोर देते हुए कहा, " जी करीब तीस से पैंतीस हजार। "मिस्टर विक्रम ये कंपनी आपको कोई नौकरी नहीं देती जहां आपको आठ से दस घंटे काम करना हो और बदले में बॅंधी- बधाॅंयी सैलरी मिलती है बल्कि यह कम्पनी आपको एक कैरियर प्रदान करती है जहां आप सिस्टम में रहकर अपनी काबिलियत, ज्ञान, आत्मविश्वास के बलबूते पेशेंश व परसिस्टेंस के साथ अपनी योग्यता के अनुरूप कमाई करते है जैसे एक सफल बिजनेसमैन प्राॅफिट कमाकर अपना नाम कमाता है, अंडरस्टैंड? अच्छा आपके मन में कम्पनी या काम को लेकर कोई सवाल या डाउट हो तो बताये।" "अच्छा यहां काम क्या करना है?" मैंने जो जिज्ञासा बहुत देर तक अपने सीने में दफन की हुई थी उसका रहस्योद्घाटन करते हुए पूछा। " यहां आपको कोई काम नहीं करना है बल्कि ये सेवन मंथ एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है। जहां आपको लोगों के बीच जाकर सीखना है।आपको पता है धीरूभाई अंबानी रोज के चाय का पैसा बचाकर एक दिन उसी पैसे से फाइबस्टार होटल में क्यों चाय पीते थे?" मैंने कहा, "ताकी वो उनकी बातों को सुनकर सीख सके।" " वो कैसे रहते है, उनका रहन-सहन, खान-पान, उनका एट्टि्यूड, उनका सेल्फकान्फिडेंस, वो क्या बात करते हैं, उनके बोल चाल का ढंग सीख सके। और आज देखिये रिलायंस एक कंपनी नहीं बल्कि एक ब्रांड के रूप में स्थापित है।" उसने अपनी बात रखते हुए कहा।

" अगर मैं आपसे कहूं कि आप अपरिचित लोगों के बीच जाकर उनसे बातचीत करे तो क्या आप सहजता से बात कर लेंगे?" " नहीं, मुश्किल होगी।" "मान लीजिए प्रजेंट टाइम में एज ए मैनेजर एप्वाइंट कर आपको एक ब्रांच सौप दी जाती है तो क्या आप संभाल लेंगे?" "नहीं।"

क्योंकि आपको एक मैनेजर के तौर-तरीके काम के बारे में जानकारी नहीं है। एक मैनेजर का काम होता है आफिस के कार्मिकों के साथ बाहर के जो कम्पनी के कस्टमर है, जहां से कंपनी को माल प्राप्त होता है या जो उनके सप्लायर है या कंपनी के डायरेक्टर है आदि को मैनेज करना है। अच्छा आपको एम.बी.ए. का मतलब पता है?" "हां, मास्टर आफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन।" "ठीक है, एम.बी. ए. में स्टूडेंट्स को गंजे को कंघी पकडा़ना सिखाया जाता है। मतलब कि कस्टमर को आपके प्रोडक्ट की जरूरत नहीं है जैसे गंजे को कंघी की आवश्यकता नहीं है लेकिन हम कहे कि यह कंघी बाल झाड़ने के साथ साथ सर के मसाज करने के काम आती है साथ साथ यह सर पर बाल भी उगाती है। मतलब प्रोडक्ट की कोई आवश्यकता न होते हुए भी प्रोडक्ट की नीड पैदा करना। एम. बी.ए. अर्थात- 'मूर्ख बनाने आ गया।' अब बारी थी उस जादू के पिटारे से दूसरे कबूतर को निकालने की, उसने बैग से एक खोखला प्लास्टिक का डब्बा दिखाते हुए कहा जैसे ये मेरे पास एक कंघी टाइप का प्रोडक्ट है जिसकी कस्टमर को कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन हमारा काम है कि हम कस्टमर के अन्दर इस प्रोडक्ट की नीड जागृत कर दे ताकी वह स्वयं इस प्रोडक्ट को लेने के लिए मचल उठे।"

" हमें इस ट्रेनिंग पीरियड में प्रत्येक दिन अपरिचित,अंजान लोगों के बीच जाकर जैसे- स्कूल,कालेज, सरकारी दफ्तर, बैंक, मार्केट, शहर, गांव, कस्बों आदि में जाकर इन लोगों को मैनेज करना सीखना है जिससे हम आने वाले समय में एक ब्रांच की जिम्मेदारी मिलने पर बखूबी उसे संभाल सके। और इसके लिए कंपनी हमें एक मीडिया देती है जिसे हम लेकर उनके बीच जाते हैं और अपनी बात रखते है तथा अपनी बात से उन्हें मैनेज करने का प्रयास करते है। यह भी जरूरी नहीं कि सभी को आप अपनी बात से सहमत कर ले या हर कोई मैनेज हो जाए। जब आप दिन भर में सत्तर नो सुनते है तब जाकर तीस लोग आपसे मैनेज होते है। अतः हमें ट्रेनिंग पीरियड में प्रतिदिन सेवन्टी नो का सामना करना होता है और तब जाकर थर्टी यस मिलते हैं। अच्छा क्या आप बताएंगे कि कस्टमर कितने तरह के होते हैं?" "नहीं पता।" "मिस्टर विक्रम जब आप फील्ड में जाते है तो आपको तीन तरह के लोग या कस्टमर मिलते है। एक किंग जो कि तुरन्त आपकी बात मान लेगा, दूसरा क्वीन जैसा की रानी का स्वभाव होता है कि शुरुआत में वह थोड़े नखरे दिखाती है लेकिन बाद में मान जाती है। तीसरा जैक कस्टमर जो आपसे खूब बहस करेगा, आपको अपनी बातों में उलझाएगा,लेकिन आपकी बात नहीं मानेगा तो शुरु में तो आपको इनसे बचना है लेकिन जैसे जैसे आप लोगों को मैनेज करना सीखने लगते है वैसे ही आप खुद ही ज्यादा से ज्यादा जैक कस्टमर से मिलना चाहोगे। हम लोग जब कभी फील्ड में ज्यादे परेशान होते हैं तो खुद मूड फ्रेश करने के लिए जैक टाइप के कस्टमर ढूंढ़ते है।

"अब इतना लंबा चौड़ा भाषड़ सुनने के बाद तो लग रहा होगा कि यह कोई प्रोडक्ट बेचने वाली मार्केटिंग कंपनी है, क्यों क्या मैं सही कह रही हूं?" "हां पहले तो मैं समझ रहा था कि एम. आर. टाइप का काम है लेकिन अब यह मार्केटिंग कंपनी लग रही है।" "नहीं अगर इसे प्रोडक्ट ही बेचना होता तो तमाम प्रोडक्ट है जिससे कंपनी को फायदा होता और आपको भी अच्छा खासा कमीशन देती।साथ में अच्छा सैलरी अच्छा कमीशन भी देती। वह क्यों आपको एक खोखला डब्बा देकर फील्ड में पीटने के लिए भेजती? यहां पर बेचना है ही नहीं यहां आपका मेन फोकस है कि आपको सेवन्टी नो का सामना करना न कि थर्टी यस प्राप्त करना।

जब आप सेवन्टी नो से सामना करना सीखेंगे तो थर्टी क्या उससे कहीं अधिक यस खुद-बखुद आपकी झोली में आ गिरेंगे। आपको फील्ड में जाकर अधिक से अधिक लोगों से मिलना है और उन्हें मैनेज करने का प्रयास करना है या उन्हें मैनेज करना सीखना है न कि अपना प्रोडक्ट बेचना।

यह कंघी जो आपको कंपनी प्रोवाइड करती है यह आपके लिए एक मीडिया है जिसके थ्रु आप लोगों के बीच जाते हैं और फील्ड के दिन- प्रतिदिन के खट्टे- मीठे अनुभव से आपके पर्सनालिटी में निखार आता है।"

" और हमें एक सिस्टम में लोगों से मिलना है जिसे हम फोर फैक्टर आफ मीट के नाम से जानते है मतलब मिलने के चार नियम है ।

पहला है-आलवेज स्माइल आन योर फेस- कस्टमर मीन्स जो कस्ट से मर रहा हो आप जिनसे मिलने जा रहे है या जो आपके कस्टमर है तमाम तरह की उन्हे परेशानी है रात में मच्छर सोने नहीं देते, दिन में बीबी की किचकिच से परेशान है तो किसी का बेटा नालायक हो गया है उसकी बात नहीं सुन रहा है तो किसी को गठिया है किसी की दमा से सांस फूल रही है ऐसे में जब आप चेहरे पे स्माइल के साथ उसके पास जाएंगे तो कुछ देर के लिए वह अपना गम भूलकर वह आपकी बात अवश्य सुनेगा वहीं जब आप मुंह बनाकर उसके पास जाएंगे तो दूर से ही वह आपको भगा देगा। हमेंशा प्रसन्नचित मुद्रा में रहना है जब आप खुश रहोगे हमेशा स्माइल करोगे तो फील्ड में लोग आपसे प्रभावित होंगे और आपकी बात से मैनेज होने के इससे परशेंटेज भी बढ़ जाएंगे। इसके अतिरिक्त आपको फील्ड में ही काम देने वाले तमाम लोग मिल जाएंगे। मुझे तो कई दफा बीस से पच्चीस हजार का काम देने वाले मिले लेकिन मैंने उनसे इंड्डिफरेंट एट्टीट्यूड रखते हुए कहां कि मुझे नौकरी नहीं करना हैं बल्कि अपना कैरियर बनाना है और मेरा सपना तो मिस्टर निर्भय सिंह सर की तरह डायरेक्टर बनना है तो इन छोटी- मोटी नौकरी की तरफ क्यों ध्यान देना।"

"दूसरा है- इंड्डिफरेंट एट्टीट्यूड अर्थात एक अलग सोच हमारी सोच एक सेल्समैन की तरह नहीं होनी चाहिए जो फील्ड में अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए परेशान है बल्कि हमें तो यह दिखाना है कि हमें प्रोडक्ट बेचना ही नहीं है चाहे प्रोडक्ट बिके या न बिके इससे हमारे सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला हम कोई बेचने वाले नहीं बल्कि एक मैनेजमेंट स्टूडेंट है।"


"तीसरा है- फीयर आफ लास मतलब खोने का भय देना। जब आप अपने मीडिया अर्थात कंघी को दिखाते हो तो उसके बारे में कस्टर के अन्दर रुचि जागृत करने के बाद एक झटके से छीन लेना। जैसे आपकी कोई प्रिय वस्तु अगर खो जाए तो आप उसे प्राप्त करना चाहोगे कि नहीं जब आप उसके हाथ से कंघी को झटके से ले लेते हो तो अभी जब तक कंघी उसके हाथ में थी तब तक तो लग रहा था कि बाल उगने शुरु हो गये है और जैसे ही उसके हाथ से कंघी गायब होगी उसे जो बाल उग रहे थे वह अचानक से गायब प्रतीत होने लगेगा और वह उसे लेने के लिए मचल उठेगा‌।"

"चौथा है ग्रीड फैक्टर- मतलब लालच की भावना को जगाने के लिए आप जब उसके पड़ोस के किसी प्रतिष्ठित या नामी व्यक्ति का नाम बताकर कहते है कि आपके पडो़सी जो कालेज में विज्ञान विषय के प्रवक्ता है या कोई डाक्टर है, व्यवसायी है ,ग्राम प्रधान है ने पूरे दो सेट लिए है तो प्रोडक्ट के प्रति उसमें लालच की भावना उत्पन्न होती है।"

ट्रेनिंग पीरियड के दौरान हम इनकम व काम की बात करें तो आप दस से पंद्रह दिन तक अपने ट्रेनिंग मैनेजर या अपने ग्रुप के अन्य सदस्यों के साथ जाकर, फील्ड में लोगों से बाद करने का तरीका, उनका इनडिफरेंट एट्टीट्यूड या आप उनसे फोर फैक्टर आफ मीट सीखते हो। इसके अलावा मैनेजर सर व ग्रूप लीडर्स के द्वारा सुबह शाम एक एक घंटे प्रतिदिन क्लास ली जाती है। पहला फेज जो दो महीने का फील्ड ट्रेनी का है उसमें आप छः से सात हजार तक कमाना सीख जाते हो।ये छः से सात हजार आपको वेतन के रूप में नहीं बल्कि कमीशन के रूप में मिलते हैं जैसे आप एक व्यक्ति को मैनेज करते हो तो आपको एक व्यक्ति पर दस रुपए कमीशन मिलते है वही आप यदि तीस व्यक्ति को मैनेज करते हो तो एक दिन का 300 और महीने का 300×30= 9000 लेकिन प्रतिदिन तो तीस तो नहीं होंगे और उपर से औसत दस दिन तो आपको इसे सीखने में लगेंगे फिर भी एक औसत निकाला गया है जिसके आधार पर छः से सात हजार एज ए फील्ड ट्रेनी आप आसानी से कमा सकते हो।और घर से आपको एक भी रुपये लेने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी यह ट्रेनिंग आपको खुद पर विश्वास करना एवं आत्मनिर्भर बनना सीखाती है।"


"क्यों मिस्टर काफी कठिन है क्या लगता है कि यह सेवन मंथ ट्रेनिंग आपके बस की बात नहीं है अगर ऐसा है तो आप जा सकते है आपको इन्टरव्यू देने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। तो बताये कि आप घर जाना पसन्द करेंगे या इस सेवन मंथ के ट्रेनिंग पीरियड को खत्म कर अपना कैरियर बनाना पसंद करेंगे? क्योंकि आप जैसे जैसे आगे बढते है वैसे ही नयी नयी चुनौतियां आपको आजमाती है क्योंकि हमें फिजिकली व मेंटली रूप से एक स्ट्रांग मैनेजर चाहिए जो आगे आने वाले चुनौतियों का डटकर सामना कर उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाने में सक्षम हो। कहा भी गया है ''गिरते है सहसवार ही मैंदाने जंग में वो तिफल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।" इसलिए पुलिस, आर्मी के लोगों को एक कठिन ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है कि जो भी भागने वाले लोग होते है ट्रेनिंग से पहले ही भाग जाए तो अच्छा है ।क्योंकि कम्पनी आपके उपर अपना समय व पैसा खर्च कर रही है और मान ले कि आप मैनेजर बनने के बाद फेल हो गये तो सबसे ज्यादे कष्ट जो कि आप से भी ज्यादे होगा वह कंपनी को होगा आपके ट्रेनिंग मैनेजर को होगा आपके मैनेजर को होगा। तो ट्रेनिंग अगर कठिन लग रहा है तो अभी क्विट कर दे नहीं तो बाद में आपसे ज्यादा मुझे तकलीफ होगी कि मैं आपको मैनेजर नहीं बना सकी क्योंकि अभी भी मेरे सिखाने पढा़ने में कमी है ।और मुझे भी अभी बहुत कुछ सीखना पढ़ना है। क्योंकि हमारे मैनेजर सर कहते है कि 'देयर आर नाट बैड स्टुडेंट ओनली बैड टीचर।' कि कोई विद्यार्थी खराब नहीं होता बल्कि टीचर खराब होता है।हर व्यक्ति का एक लेवल होता है जो अपने समान लेवल वाले से ही मैनेज होता है। जैसे क्लास में जब कोई टीचर पढा़ते है तो उनका प्रयास यह रहता है कि उनकी क्लास में जो सबसे कमजोर बच्चा है वह भी उनकी बात को समझ जाए। कहने का मतलब एक टीचर को अपने लेवल पे नहीं बल्कि उस बच्चे के लेवल पर आकर सीखाना पड़ता है।

तब आप इस कठिन डगर पर आगे बढ़ना चाहेंगे या पीछे अपने घर लौटकर मस्ती करना चाहेंगे? या आप ट्रेनिंग कर के देखना चाहेंगे कि सात ही महीने तो है देखते है कि कम्पनी मैनेजर बनाती है कि नहीं सात ही महीने तो है।"

"मैंने कहा सात ही महीने तो है देखते है।"

" क्या कहा देखते है? अब कब देखते रहोगे ? देखते देखते तो आपकी आधी उम्र निकल गयी।मैं कहती हूं कि यह कंपनी कोई मैनेजर नहीं बनाती।और इस तरह आपका रवैया रहा तो सात महीने क्या सात साल में भी मैनेजर नहीं बन पाओगे बीच में फेल हो इससे बेटर है तुम अभी यहां से तुरंत चले जाओं तुम अपने साथ साथ मेरा और कंपनी का समय भी बरबाद कर रहे हो इसलिए तुरंत मेरे सामने से चले जाओं।"

पांच मिनट तक एक मौन छाया रहा और मैं वहीं चुपचाप बैठा रहा क्योंकि मुझपर जो फोर फैक्टर आफ मीट का फीयर आफ लास नाम का अस्त्र का प्रयोग किया गया था उसने अन्दर तक मुझे घायल कर दिया था। और मैं अवाक उस गांडीवधारी बाला को देखते रह गया‌। यह एक अजीब सम्मोहन था इसमें न कोई माला ना कोई चम्मच हिलाया गया ना ही गर्मागर्म मटर समोसे के अलावा कोई अभिमंत्रित चावल खिलाए गये ना ही कोई जड़ी सुघांई गयी। यह सम्मोहन तो उस व्रत का था जो उसने उस ट्रेंनिग पीरियड के दौरान चौबीस घंटे सिस्टम में रहने का लिया था वहां का सिस्टम ही उसके लिए अन्न, जल, प्रसाद, जीवन-मरण सब कुछ था। परिस्थिति कैसी भी हो फोर फैक्टर आफ मीट का आलवेज कीप स्माइल आन योर फेस जैसे उसके जनम जनम के साथी हो और जब वह फीयर आफ लास नाम के ब्रह्मास्त्र से मेरा कलेजा छलनी-छलनी कर रही थी तो भी उसके चेहरे पर विषाद की कोई झलक नहीं, माथे पर तनिक भी सिकन नहीं कि अगर यह लड़का मेरी बातों से नाराज होकर चला जाए तो मेरी पिछले तीन घंटे के मेहनत पर पानी फिर जाएगा‌। इसका उसके हाव भाव एट्टिट्यूड से रंच मात्र भी अहसास नहीं कि इसके बाद फिर दुबारा इतना टैलेंटेड लड़का मुझे कब सिखाने पढा़ने को मिलेगा। जैसे उसने कर्म को ही अपना ध्येय बना लिया था जब भी मुझे उसकी याद आती है तो गीता के ये श्लोक जिनका अर्थ हे पार्थ तेरा अधिकार तो कर्म करने में है और फल की क्यों चिन्ता करता है फल में तेरा कोई अधिकार नहीं है बरबस ही कर्ण पटल पर गूंजने लगते है। उसे अपने सिस्टम रूपी व्रत पर विश्वास था, भरोसा और इस सिस्टम को ही उसने अपना करम और भगवान मान‌ लिया था। मैंने कभी भगवान को देखा नहीं लेकिन इस नाइन‌ मंथ के ट्रेनिंग पीरियड के दौरान उसने मेरा मां बाप दोनों के तरह खयाल रखा। वह इस ट्रेनिंग पीरियड के दौरान मेरे लिए मां- बाप, भाई बहन सब कुछ थी।वे मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं थी। जब भी निराश होता, दूखी होता जीवन(ट्रेनिंग) से हारने लगता उसके शब्द मेरे लिए संजीवनी के समान होते। और मैं पुनः लच्छमन की भांति पुनर्जीवित होकर दूगने उत्साह के साथ युद्ध क्षेत्र में उस ट्रेनिंग रूपी मेघनाथ के समक्ष अपने तरकस में ला आफ एवरेज, फोर फैक्टर टू मीट अस्त्र- शस्त्र व सिस्टम रूपी ब्रह्मास्त्र के साथ मैंदान में डट जाता। मुझे‌ इस बात की आज भी खुशी है कि वे मेरी ट्रेनिंग मैनेजर थी। शब्दों में ऐसा जादू था कि रोम रोम सिहर उठते थे फील्ड में जाने से पहले जो पांच मिनट का उनका सूछ्म उद्बोधन होता था उससे दिनभर फील्ड रूपी दानव से लड़ने के लिए प्रतिदिन नये नये दिव्यास्त्रों की प्राप्ति होती थी जो उस दिन की लडा़ई के लिए पर्याप्त होता था। चाहकर भी मेरी कलम उस देवी के मात्र एक चौथाई गुणों का ही बखान कर पा रही है। उनके जज्बे को,आत्मविश्वास को, उनके जीवन को शब्दों में बांधना सम्भव नहीं है। और एक गुरु के रूप में उन्हें पाकर जैसे मेरा जीवन धन्य हो गया और आज भी जब उनकी याद आती है, उनके शब्द कर्ण पटल पर गूंजने लगते है शरीर में एक स्फूर्ति सी दौड़ जाती है, रोम रोम रोमांचित हो जाता है तो कभी कभी यूं ही अनायास नयनों से आंसू के दो बूंद ढ़ूलकने लगते है मैं आज तक भी ये नहीं समझ पाया क्यों अनायास मेरी आखें यूं ही भर जाती है।

और आज बोल मेरे मुख से अनायास यूं ही फूट पड़े हैं-


तुमको पाकर मैंने इस जीवन में जीवन पाया है

धन्य हुआ अब जनम ये मेरा जो तुमको ही पाया है

तदबीर से तकदीर को बदल के दिखाना है

कर्तव्य मार्ग पे पार्थ सा खुद मिटना या मिटाना है


मृदु फूल तो राहों में कदमों तले है रौंदे जाते

कटू शूल तो राही के पद को है बिध‌ देते

तुमसे मिलकर जाना है कांटों में राह बनाना है

दरिया में तो डूबकर ही मोती को पाना है

एक दिन फील्ड से आने के बाद मैं थककर आफिस की बेंच पर बैठ गया। थोड़ी ही देर बाद अपनी चिर परिचित स्माइल के साथ मिस शुभा ने आफिस में प्रवेश किया मुझपर नजर पड़ते ही बोली, "क्यों मिस्टर थक गये हो, हाथ मुंह धोकर हाल में चलो।"

हाल में आने के बाद मैं एक पैर मोड़कर खड़ा था आते ही मिस शुभा ने हाथ मिलाकर कहां, "गुड इवनिंग मिस्टर विक्रम।" " गुड इवनिंग मैम।" जैसे क्लास में टीचर बोर्ड के पास खड़े होकर पढा़ती है वैसे ही वे धाराप्रवाह बोली जा रही थी। स्टूडेंट के रूप में मैं अकेले खड़ा था थोड़ी देर बाद मुझसे एक दिन के सिनीयर रामकिशुन मैम से गुड इवनिंग करने के बाद मेरे बाई ओर आकर खड़ा हो गया ऐसे ही लोग फील्ड से आने के बाद पंक्ति से आगे पीछे खड़े हो रहे थे। मैम नानस्टाप एक वक्ता की तरह बोली जा रही थी बीच बीच में आने जाने वालों से हालचाल एवं फील्ड से संबंधित प्रश्न भी पूछे जा रही थी।

"ये जो हमारा शरीर है इसे आप जितना भी आराम दोगे इसके लिए कम ही होगा और इससे कहीं अधिक आराम की मांग करेंगा।जैसे आग में तपकर ही सोना सोना बनता है ठीक उसी प्रकार इस शरीर को इस सेवन मंथ की ट्रेनिंग रूपी अग्नि में होम करना है, हमेशा लछ्य पर नजर रखों फिर तुम्हें न इस शरीर का दर्द महसूस होगा न भूख प्यास मैटर करेगा, मैटर करेगा तो सिर्फ हमारा एट्टीट्यूड।"

"The longer I live more I relige the impact of Attitude on life to me is more important than facts. It is more important than past, education, money and circumstances than failure than success. मिस्टर राम किशुन आज का दिन कैसा रहा?" "जबाब में, जी बहुत अच्छा।" "फील्ड में कोई प्राब्लम?" "जी कोई खास नहीं एक आदमी कह रहा था कि आपका प्रोडक्ट काम नहीं करता है।" "आपने क्या कहा?" "मैनें पूछा कैसे यूज कर रहे है कि काम नहीं कर रहा?"वह बोला ,'दो घंटा चार्ज करके सीधा करके रखते है ।' अरे तभी तो मच्छर नहीं भाग रहा इसे सीधा नहीं बल्कि पलट के रखना है।' "मिस शुभा ने समझाया कि आप इस तरह भी कह सकते थे कि मशीन‌ काम तो नहीं करती मच्छर भगाती है आप स्माइल के साथ पूछते चाचाजी मच्छर भगा रही है कि नही? फील्ड में हमें हमेशा स्माइल रखना है। चाहे आपके आगे कितनी ही परेशानी क्यों न हो तेज धूप से परेशान हो, बारिश से बेदम हो, सुबह से शाम तक पिच करते करते थककर चूर हो गये है फिर भी आपकी परेशानी आपके चेहरे से झलकनी नहीं चाहिए, चाहे आपका एक भी प्रोडक्ट न बिके तो भी आपको निराश नहीं होना है।आप बेचने वाले हो? नहीं न आप कौन हो ? यू आर मैनेजमेंट स्टूडेंट और मैनेजमेंट स्टूडेंट पानी के समान होता है जैसे आप पानी को जिस बर्तन में रखते हो उसका आकार ग्रहण कर लेता है, आप पानी को गिलास में रखते हो तो गिलास का आकार ग्रहण कर लेता है आप उसे कटोरे में रखो तो कटोरे का भगोने में रखो तो भगोने का आकार ग्रहण लेता है ठीक वैसे ही एक मैनेजमेंट स्टूडेंट परिस्थिति के अनुरूप स्वयं को ढाल लेता है।तो क्या फर्क पड़ता है चाहे हमारा प्रोडक्ट बिके या न बिके आपको हमेशा सिस्टम में रहना है और सिस्टम में रहने की पहली शर्त क्या है? आलवेज कीप स्माइल आन योर फेस। इतने में घंटी बजी जो मैनेजर सर के केबिन में सबको एकत्रित होने के लिए एक संकेत था। सब बारी बारी से मैनेजर सर से हाथ मिला कर गुड इवनिंग कर कतार में आगे पीछे खड़े हो रहे थे।

आइए अब फील्ड में चलकर आपको फोर फैक्टर का जादू दिखाते है कहकर उसने अपना डायरी कलम बैग में रख तुरन्त बैग को कन्धे पर उठाकर खड़ी हो गयी अब धूप भी सर चढ़ रहा था, घड़ी में एक चालीस के करीब समय हो रहा था हम सुबह के दस बजे से आफिस से निकले थे और कब ये चार पांच घंटे बीत गये पता ही नहीं चला मिस शुभा तेज कदमों से सड़क पार करते हुए एक कालोनी में दाखिल हुयी और मैं भी उनके साथ चल रहा था। कालोनी के एक घर का दरवाजा खटखटाया घर से एक अधेड़ उम्र की औरत निकलती है । उसने कहा," नमस्ते चाचीजी मेरा नाम शुभा मैं एक मैनेजमेंट स्टूडेंट हूं और डेमोंस्ट्रेशन कर रही हूं एक खास क्वालिटी के हाउसफूल पेस्ट रिपेरलर का लीजिए इसे देखिये।" उसके हाथ में एक प्लास्टिक का डिब्बा पकड़ाते हुए कहा। " जैसे आप घरों में मच्छर भगाने के लिए गुडनाईट, आलाउट वगैरा इस्तेमाल करते है यह मच्छरों को तो भगाता है लेकिन इससे निकलने वाला धूंआ हमारे नाक से होकर सीधे फेफड़ों तक जाता है जो हमारे सेहत के लिए काफी हानिकारक है उपर से हर महीने रिफिल के पैंतालिस रूपये के लग जाते है। आपको इसे केवल दो घंटे चार्ज करना है और पूरे बारह घंटे चलेगा यह मच्छर, मक्खी, चूहा, छिपकली काक्रोच को भगाता है और कोई धूआं भी नहीं आपको मार्केट में यह मशीन मिलेगा 280₹ में लेकिन आपको डेमोंस्ट्रेशन पीरियड में यह मिल रहा है मात्र 120₹ में और एक की खरीद पर दूसरा बिल्कुल मुफ्त ‌और आपके बगल में रीना मैडम ने पूरे दो सेट लिए है ।मेरा नाम शुभा आपका शुभ नाम?" "जी सीमा है।" "तो सीमा जी आपके नाम कितने सेट कर दे"

"जी अभी कोई है नहीं तो आप दूसरे दिन आईए" "ओके थैंक्स मैडम आपको अपना कीमती समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद नाइस टू मीट यू।"

अब मिस शुभा मुझसे मुखातिब होते हुए बोली, "हमें एक दिन में कितने ना फाइट करने है?" " जी सत्तर ना" "अच्छा ला आफ एवरेज क्या है?" मैनें ना में सिर हिलाया। "एवरेज तो जानते होंगे एवरेज मतलब औसत, जब हम दिनभर में 10 लोगों से मिलते है तब जाकर एक लोग हमसे मैनेज होते है। इस तरह जब हम सौ लोगों से मिलेंगे तब जाकर कम से कम हमारे पास दस रिजल्ट होंगे। इसी प्रकार आप जब तीन सौ लोगों से जाकर मिलते है तब जाकर आपके पास थर्टी यस होगें यानी तीन सौ लोगों से मिलने पर आपसे कम से कम तीस लोग मैंनेज होंगे इसे हम ला आफ एवरेज कहते है यानी औसत का नियम।

इसी तरह फील्ड में लोगों से बात करते समय जब भी उसे वक्त मिलता या कोई दरवाजा खोलने में देर करता या एक गली से दूसरे गली एक घर से दूसरे घर जाते समय मुझ से कुछ न कुछ बात करती कभी कस्टमर के व्यवहार के बारे में, उसकी प्रतिक्रिया को लेकर तो कभी अच्छा लग रहा है कि नहीं, मन लग रहा है कि नहीं या थक गये क्या? कभी कभी कुछ प्रश्नों पर जोर देती जो सुबह तीन घंटे की क्लास में काफी घोर कर पिलाने का प्रयास किया गया था। जैसे फोर फैक्टर का दूसरा नियम क्या है? इन्डिफरेंट एट्टि्यूड का क्या मतलब है, ग्रीड फैक्टर क्या है? साथ साथ यह भी ध्यान दिलाती कि इंटरव्यू पास करना मस्ट है बिना इंटरव्यू कोई सेलेक्सन नहीं होगा अत: आंख, कान, मस्तिष्क खुले रखिये।

"आज मैं आपको कोई रिजल्ट नहीं दिखाउंगी यानी मैं रिजल्ट लेने का कोई प्रयास नहीं करुंगी। चूंकि समय भी कम है और आज आपका इंटरव्यू भी शाम तक कराना है तो आज मैं आपको बस सिस्टम में रहकर बात करना, यानी हमेंशा हंस मुस्कराकर लोगों से बात करना, ग्रीड फैक्टर देना, इंडडिफरेंट एट्टीट्यूड, ला आफ एवरेज का पीछा करना इन सबको प्रैक्टिकली दिखांऊगी और आपको ध्यान से सीखने का प्रयास करना है। ओके मिस्टर विक्रम।" "यस मैडम।" उस दिन‌ करीब घंटे भर तक बीस-पच्चीस लोगों से हंसते मुस्कुराते मिली और बिना किसी हिचक के फील्ड में जो भी मिलता बच्चे, बूढ़े, जवान, औरत,मर्द सबसे बड़ी आसानी से ऐसे बात कर रहीं थी जैसे कोई वर्षों की जान‌पहचान हो। और मैं अवाक सा एक अबोध बालक की तरह यह कारनामा अंजाम देते हुए उसे देख रहा था। लोगों से बात करना बात करना ही नहीं उनसे हंसना- बोलना, तर्क-वितर्क करना, चुहलबाज़ी करना, हंसी मजाक करना एक खेल था और वह एक मंजे हुए खिलाड़ी की भांति फील्ड में डटकर खेल रहीं थी चाहे बाल शार्ट-पिच हो, या बांउसर हो या यार्कर हो या ओवर पिच उसे बखूबी पता था किस बाल (कस्टमर) के साथ कैसा व्यवहार करना है। उसे किस दिशा में खेलना है। उसका प्रयास था कि मुझे नहीं लगना चाहिए कि कंपनी प्रोडक्ट बेचवा रही है या यहां पर बेचना है। बल्कि यह एक मात्र सेवन मंथ का ट्रेनिंग पीरियड है जो कि फील्ड में हंसते खेलते बीत जाएंगे और इस दौरान फील्ड में तरह तरह के लोगों से मिलना है और उनसे सीखना है और इसके बाद मैनेजर की कुर्सी आपकी आप अपनी मर्जी के मालिक आपकी अपनी एक अलग ब्रांच और आप वहां के सर्वे सर्वा। जिससे मैं खुद इंटरव्यू पास करने के लिए मचल उठा। उसने इस तरह मुझे बताया कि इस इंटरव्यू में गिने चुनों का ही सेलेक्शन होता है और अधिकांश लोगों को यहां से छांट दिया जाता है।और उसमें, आप कह सकते है कि वह अपने मकसद में एक सौ दस प्रतिशत सफल रहीं।

दिनभर का काम समाप्त कर हम आफिस पंहुचे उसने कहां मुहं, हाथ धो ले, कंघी लाकर दिया और सामने शीशे की तरफ इशारा कर तैयार होने के लिए कहां कि दस मिनट में इंटरव्यू है।

मैं उसी इंटरव्यूअर के पुनः सामने था जिसने सुबह हाथ मिलाकर मुझे तेज दौड़ने के लिए कहां था। उसके हाथ में एक राइटिंग पैड था जो संभवतः मेरे जैसों के मुल्यांकन के लिए था। पहला सवाल मुझसे किया गया ,"आपको यहां क्या समझ में आ रहा है या यहां आपको क्या काम करना है ?" " जी ये सेवन मंथ की ट्रेनिंग पीरियड है जहां फील्ड में जाकर लोगों से सीखना है।" "ला आफ एवरेज क्या है?" जी औसत का नियम जब हम दस लोगों से मिलते है तो उनमें से एक लोग हमसे सहमत होते है।" इसी तरह ग्रीड फैक्टर, फोर फैक्टर टू मीट, कंपनी के संस्थापक का नाम पूंछा गया इनमें से अधिकांश सवालों का जबाव मैंने सही सही दिया। अन्त में मुझसे पूछा गया" क्या लगता है ये ट्रेनिंग आपके लिए कठिन है या आसान?" "मैने सोचते हुए जी कठिन है। " "क्यों कठिन है कि दिन भर फील्ड में रहना है‌। फील्ड जाब है?" अब मैनेजर ने करीब रिजल्ट की घोषणा करते हुए कहां कि मुझे नहीं लगता है कि इस ट्रेनिंग के लिए जो लगन,हार्ड-वर्क, पेशेंश, परसिस्टेंट की आवश्यकता है वह आप में है पैड पर अब तक जो कुछ भी लिखा जा रहा था उस पर एक बड़ा सा क्रास लगाते हुए कहा। "लेकिन आपने दिन भर फील्ड में रहकर धैर्य का परिचय दिया है और मिस शुभा जो आपकी ट्रेनिंग मैनेजर है उनकी रीपोर्ट को देखते हुए यदि हम आपको यह कैरियर का सुनहरा अवसर देते है तो आप कैसे इसे फेस करेंगे?" "जी हार्डवर्क से पेशेंस के साथ इस सेवन मंथ की ट्रेनिंग को कंप्लीट करेंगे और अधिक से अधिक सीखकर अपने लछ्य को प्राप्त करेंगे।" "आपका इस दौरान क्या लछ्य रहेगा। जी काम को सीखकर मैनेजर की पोस्ट को अचीव करना।" " मिस्टर विक्रम वी यार सो इक्साइटेट दैद यू आर सलेक्टेड फार दिस गोल्डन अपारचूनिटि इन ब्राइट फ्यूचर आफ यूनिवर्सल ग्रुप आफ मैनेजमेंट। आइ होप यू बीकम ए सक्सेसफुल मैनेजर इन आवर कंपनी कांग्रेचुलेशन मिस्टर विक्रम यू आर इन फ्यू पीपल हू गेव दिस अपारचुनिटि। तो कल सुबह नौ बजे मिलते है बाकी आप अपने ट्रेनिंग मैनेजर से मिलकर जाइएगा ।

बाहर मिस शुभा इंतजार कर रही थी हलाल किये गये बकरे का, आते ही उसने पूछा, "क्या हुआ पास की फेल?" हांलांकि उसने मेरे फेस पर परिणाम पढ़ लिया था या वह पहले से ही अपने सिखाने पढा़ने को लेकर आश्वस्त थी या इन मामलों में उसे पहले से पता होता था।

मैंने कहां पास, "तो मिस्टर विक्रम कल सवेरे तक अपना सामान, कपड़े,‌ एक थाली,कटोरी, गिलास, ब्रश- मंजन पैक कर आ जाओ यहां आफिस में ही रहने की सुविधा फ्री है जैसे बच्चे हास्टल में रहते है वैसे ही आपको इस सेवन मंथ की ट्रेनिंग में हमारे साथ रहना होगा। तो कल मिलते है। बेस्ट ऑफ़ लक मिस्टर विक्रम। आइ होप यू आर बीकम ए वर्दी मैनेजर आफ आवर कंपनी एंड आइ विल प्राउड टू मेड यू ए सक्सेसफुल परसन।


आफिस में मेरा पहला दिन

मिस शुभा का सम्मोहन मेरे सिर चढ़ बोल रहा था और मैं उन्हीं खयालों में खोया हुंआ था, सोने के बाद भी सपने में भी उन्हीं के साथ फील्ड में लोगों के बीच हूं, पेस्ट रिपेलर, पेस्ट रिपेलर की पिच ,बोकोमा, आफिस, आफिस में रहने वाले लोगों से घिरा रहा। यानी मैं उस नयी दुनिया में बसने के लिए तैयार था। और अगले दिन शाम को अपनी पैंकिंग कर पिता जी से अनुमति लेकर रुस्तम पुनः रुस्तमपुर में अपनी जीवन की एक नौ महीने की यात्रा पर निकल पड़ा। मेरे पास एक ब्रीफकेस था जिसमें मेरे कपड़े, नित्य दिनचर्या के सामानों के साथ एक एक ओढ़ने बिछाने के लिए चादर भी था लेकर करीब शाम के सात बजे पहुंच गया। और आते ही मेरी भेंट मेरी ट्रेनिंग मैनेजर मिस शुभा से हुयी वह मुझे देखकर काफी खुश हुयी आखिरकार बकरा जो खुद अपने पैरों पर चलकर हलाल होने के लिए कसाई के पास पहुंच गया था। मामूली हालचाल लेने के बाद उन्होंने मुझे आवश्यक हिदायत दी जैसे कोई सीनियर आये तो बैठे ही नहीं रहना बल्कि खड़े हो जाना, किसी से अनावश्यक बात न करना आदि ।उस दिन मुझे आफिस के एक कमरे में बैठाया गया तथा अन्य आफिस की गतिविधी में शामिल नहीं किया गया बल्कि आराम करने के लिए कहा गया। और रात्रि में भोजन के लिए मुझे मिस सुभा ने मिस्टर अभिषेक सर के साथ ,उन्हे अपने खाने के लिए तथा मेरे खाने के लिए कुल 50₹ यानी दो थाली के पैसे देकर भेजा साथ में अन्य आफिस के सभी सीनियर सर भी थे सभी वहां से रात्रि के 9 बजे ट्रांसपोर्ट नगर के लिए चल दिये वहां दो छोटे होटलों में पूरी टीम ने भोजन किया रास्ते में जब मैं उनके साथ आ रहा था या जा रहा था तो वहां मैंने ध्यान दिया की कोई अगर किसी से एक दिन का ही जुनियर क्यों न हो फिर भी वह अगले को सर ही सम्बोधित करता था तथा जुनियर का नाम भी मिस्टर लगा कर लिया जाता चलते समय एकदम सीधे रीढ़ की हड्डी तनी हुयी जबकी सब दिनभर के थकान भरे व्यस्त कार्यक्रम उसके बाद एक घंटे का सीनीयर लीडर का प्रवचन उसके बाद मैंनेजर सर का एक घंटे का भरपूर टानिक युक्त डोज लेने के बाद, ये प्रबचन और टानिक सीधे खड़े होकर लेने होते थे इस दौरान आपका पैर भी नहीं टेढा़ होना चाहिए, के बाद चले थे लेकिन किसी के चेहरे पर विषाद, चिंता थकान के कोई चिन्ह, या दर्द चेहरे से प्रकट नहीं होते प्रथम दृष्टया तो मुझे ये सब प्राणी धरती के लग ही नहीं रहे थे और वहां भी वो सिस्टम की ही बात कर रहे थे। उनमें दो लोगों की ट्रेनिंग लगभग पूरी होने ही वाली थी उनके अंडर ट्रेनी, लीडर की कतार खड़ी थी और वे चाल, ढाल,रहन- सहन से भी किसी अफसर से कम नहीं लगते उनमें से एक तो अभिषेक सर और दुसरे रिजवान सर थे। रिजवान सर से मैं बहुत प्रभावित हुआ उनका जो अपने जुनियरों के प्रति रवैया था, जैसे वे अपने जुनियर से बात करते उसे प्रोत्साहित करते मैं तो उनका कायल बन गया। मुझे अपनी ट्रेनिंग मैनेजर के बाद जो वहां अच्छा लगा वो रिजवान सर ही थे जो मैनेजर बनने के सबसे करीब थे। कभी सुबह या शाम को जब उनका व्याख्यान सुनने को मिलता मैं उनकी सहजता से, शैली से, उदाहरण से भाव विभोर हो जाता और मुझे लगता यहां कुछ तो है कि एक 20-21 वर्ष का लड़का इस तरह व्याख्यान देता है जैसे कालेज का कोई अनुभवी लेक्चर।

हम खाना खाये तथा आफिस के जितने भी लेडीज स्टाफ थे ,जो उनसे संबंधित जुनियर और सीनियर थे या जिसको उन्होंने अपने थाली के पैसे दिये थे उनके द्वारा उनका खाना पैक कराया गया और हम आफिस के तरफ चल दिये। आफिस पहुंचने पर मिस शुभा ने मुझसे आज के अनुभव के संबंध में खाना कैसा था, होटल के बारे में, ज्यादा दूर तो नहीं जाना पडा़, कोई परेशानी जैसे प्रश्नों के माध्यम से फीडबैक लिया और मेरे मन में कैसे विचार चल रहे है, कंपनी के प्रति, सीनियर्स के प्रति मेरे क्या विचार है टटोलने का प्रयास करने लगी अंत मे इस हिदायत के साथ कि जल्दी सो जाना, सुबह छः बजे उठकर नहा धोकर तैयार हो जाना, और हाथ मिलाकर कि अब सुबह सात बजे केबिन में मिलते है कहकर मुझे जाने की अनुमति दी। वे खाना खाने के बाद पुनः मुझे देखने आयी थी।

चुकी आफिस पूरा भरा हुआ और इस गोरखपुर ब्रांच पर इस समय दो टीम थी जिसमें एक टीम कानपुर से ट्रांसफर होकर आयी थी जिसमें दो ग्रुप लीडर थे एक ग्रुप के ग्रुप लीडर रिजवान सर दूसरे ग्रुप के लीडर अभिषेक सर, दूसरी टीम बनारस से आयी थी जिसमें मिस शुभा एक ग्रुप लीडर् दूसरे संदेश सर थे कुल मिलाकर 50 का स्टाफ था जिसमें दो मैनेजर, चार ग्रुप लीडर, दस लीडर, बाकी मेरे जैसे ट्रेनी थे। जिसको जहां जगह मिला अपनी टीम के साथ जमीन पर गत्ता, कथरी और उसके उपर से एक चादर विछाकर सो गये मैम ने एक गत्ता मुझे भी लाकर दिया जिसपर चादर बिछाकर मैं अपने ग्रुप के पास ही उपर बालकनी में सो गया। सुबह छः बजे के करीब मेरी आंख खुली मैंने देखा कि सब उठकर अपना बिस्तर समेट कर उसे आलमारी में नियत स्थान पर रखकर अपनी नित्यक्रिया कर स्नान कर तैयार होकर सर्ट, पैंट और टाई पहन के पास ही के छोटे- दुकानों से कोई चना-जेलेबी, कोई ब्रेड चना तो किसी ने कोई लिट्टी चना का नाश्ता किया मुझे भी मेरे ट्रेनिंग मैनेजर मिस शुभा ने चना-जलेबी का नाश्ता कराया तथा खुद भी उन्होंने खाया मैंने जैसे ही दुकान वाले को पैसा देने के लिए 20 का नोट बढा़या उन्होंने मुझे तुरंत रोक दिया। और कहा मिस्टर ये ट्रेनिंग हमें आत्मनिर्भर बनाती है और आप मेरे जुनियर हो।

कहने का मतलब यहां नाश्ते के टाइम भी उनकी ट्रेनिंग जारी है।

आप सोच रहे होंगे कि मैं अभी पहले दिन से ही आपको इतना बोर कर रहा हूं तो आगे क्या हाल होगा। दरअसल अब मुझ पर भी सिस्टम का नशा चढ़ने लगा था और आज जब ठीक तेरह साल बाद जब मैं ‌ये कहानी लिखने बैठा हुं तो लगता है जैसे ये कल की ही बात है और एक एक दृश्य जेहन के किसी कोने में दफन है और आज भी मुझे उन दिनों के सपने प्रायः आते रहते है जो मुझे इस कहानी को लिखने के लिए प्रेरित करते है। ये अपने ढंग की एक बिल्कुल अलग कहानी ही नहीं एक निहायत ही अलग दुनिया है अगर आप को इनके बीच एक दिन के लिए छोड़ दिया जाए तो आपको लगेगा मैं कहां आ गया

क्या इन्हें ही एलियन कहते है या ये आदमी है या रोबोट जिन्हें एक बार आप चाबी भरकर स्टार्ट कर दो या एक बार आप इनकी बैट्री चार्ज कर दो तो फिर अगले दिन ही इनको चार्जिंग की आवश्यकता पड़ेगी। अब आप सोचेंगे ये मशीन जो हमेशा सिस्टम सिस्टम की रट लगाते रहते है ये चार्ज कैसे होते होंगे तो थोड़ा धैर्य रखिए और इस कहानी के साथ जुड़ने का प्रयास करिये इस कहानी में न कोई लड़की है न कोई प्रेम कहानी अगर कहीं इसकी चर्चा हो भी जाती है तो इसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा हां इस कहानी में एक जिंदगी है जिसकी पटकथा उसने तैयार की है जो सबकी कहानी लिखता है, मैं तो इसे आप तक पंहुचाने का एक माध्यम भर हूं और यह कहानी हमारे ही एक सिस्टम का हिस्सा है जिसने इसे पंख दिये और इस सिस्टम का निशाना हमारे देश के होनहार युवां जिनकी उम्र 16 से पच्चीस वर्ष के बीच होती है जिस समय यौवन चरम पर होता है हम आत्मविश्वास से लबरेज होते है दिल में कुछ कर गुजरने की तमन्ना होती है लेकिन अचानक से जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है जिससे मजबूर होकर इस सिस्टम के चक्रव्यूह में फंसकर दर दर भटकने को मजबूर हो जाते है।

जीवन के इस मोड़ को जिसे हमारा सिस्टम ही जन्म देता है, को मैं कई दिन से लिखना चाह रहा था, लेकिन पिछले 13 वर्षों से मैं ये सोचकर रुक जा रहा था मैं क्या लिखुंगा इस सच्चाई के बारे में जिसे मैं अपने देश के हर एक युवाओं, नौजवानों, उनके अभिभावकों को रूबरू करना चाहता हूं एक मामुली सी कहानी है जो मेरे जैसे किसी लड़के की जो नींद में बेसुध चला जा रहा है वह कहां जा रहा है उसे उसकी नियति कहां ले जा रही है, हां एक ख्वाब है, जाने अनजाने वह उसकी तरफ कदम बढा़ता चला जा रहा है और उसकी मंजिल समय समय खुद ही जबरन आंधियों के शोर से उसे जागने पर मजबूर कर दे रही है यह किताब भी उसी ख्वाब का एक हिस्सा है जो उसकी मंजिल की पुकार पर ख्वाब की ओर एक कदम है । एक 19-20 वर्ष का लड़का जिसने जवानी की पहली दहलीज पर अभी कदम ही रखा है लेकिन प्रौढो़ जैसी गम्भीरता है जो वह इस जाने अनजाने रास्तों पर चल पड़ा है।जो दरवाजे दरवाजे जाता है और बिना किसी से कोई शिकायत किये दिन भर गली गली भटकता है शाम को फिर उस सिस्टम के बीच चला जाता है या यूं कहे एक पड़ाव की तलाश में अपने जीवन की एक यात्रा के लिए निकल पड़ा है। इस यात्रा में भूख, प्यास ,थकान, उतार चढ़ाव, पैसा,शोषण और संघर्ष जो एक कहानी में आपको चाहिए सबकुछ उपलब्ध है सिवाय कहानी के, तो ऐसे ही मै बीच बीच में ऐसी बेफिजूल की कोरी बकवास करके आपको बोर करता रहुंगा जैसा मैं शुरू से करता आ रहा हूं और वादा करता हूं अन्त तक रविन्द्रनाथ टैगोर जी के उपन्यास 'गोरा' की तरह आपको बोर करने में कोई कसर नहीं छोडू़गा शुरु से अंत तक आपको कुरेदते और अंदर तक झकझोरते रहूंगा। मेरा विश्वास है आप फिर भी इस बोरिंग उपन्यास को अगर एक बार पढ़ना प्रारम्भ कर देंगे तो अन्त तक आप अपने को इसके मोह से नहीं छुड़ा पायेंगे क्योंकि आप कहानी नहीं एक जिंदगी पढ़ रहे है और जिंदगी तो प्रायः बोरिंग ही होती है जिसमें हमारा प्रत्येक दिन का एक ही रुटीन होता है सुबह होते ही भागम दौड़ शुरू हो जाती है हम लाख प्रयास करने के बाद भी पता नहीं कैसे लेट हो जाते है और हमारा बास इसी इंतजार में पहले से ही हमारी राह देख रहा होता है आने दो आज खबर लेता हूं आफिस को अपना घर बना लिए है जब मन में आता है मुंह उठाये चले आते है। आप लाख मेहनत से काम कर रहे हो सुबह से शाम तक पसीने से चूर हो जाते हो और घर जाते ही आप बिस्तर पर निढा़ल हो जाते हो तो भी आप बास की नजर में कंपनी के सबसे ढी़ले व्यक्ति के रूप में गिने जाते है। अब दाढ़ी ही तो है जरा सा बढ़ गया तो बास को एक और मौका अपनी सीनीयरटी, सुपीरियरटी को साबित करने को मिल जाता है जब की आपको भी भलीभांति पता है और मुझे भी कि इस दाढ़ी और बाल को बढ़ाने में आपका कोई हाथ नहीं सिवाय उपर वाले के। लेकिन बास को यह बात सिखाने का जोखिम कौन ले, मरता क्या ना करता।

नाश्ता करने के बाद हम सब उस केबिन में चल दिये जहां मोनिका जी आराम फरमा रहीं थी आज क्लास मिस्टर रिजवान सर लेने वाले थे लेकिन मिस शुभा ने उनसे आग्रह

कर उनका स्थान ले लिया शायद ऐसा उन्होंने अपने ग्रुप के नये सदस्यों को प्रभावित करने के लिए किया हो और अपने इस प्रयास में भी मेरे विचार से तो पूरी तरह सफल रही क्योंकि इस क्लास के बाद तो मैं उनका फैन हो गया। हांलांकि जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूं मैं पहली मुलाकात से ही उनसे बुरी तरह सम्मोहित हो चुका था जिसका परिणाम था कि मैं अपना पुराना कामधाम या यूं कहें अपना पुराना शौक छोड़कर एक नया शौक सीखने के लिए अपने मन को पूरी तरह तैयार कर बोरिया बिस्तर समेट यहां एक बेहद उबाऊ व्याख्यान सुन रहा था। इस कला में उन्हें महारत हासिल थी यदि आप उनको एक बार सुन लो तो मेरा यह पूरा यकीन है आपको पूरा जगत ही निस्सार और नीरस प्रतीत होगा और आप भी मेरे साथ अपना बोरिया- बिस्तर बांधकर यहां आ जाते एक बेहद उबाऊ लेकिन फिर भी एक दिलचस्प यात्रा के लिए।

आज मिस शुभा हमें फोर फैक्टर आफ मीट पढ़ा रही थी

और पूरे एक घंटे की क्लास में उन्होंने फोर फैक्टर आफ मीट के केवल एक टापिक आई टू आई कांटेक्ट पर बात कर रही थी। अब मुझे लगता है कि आपको भी इस ट्रेनिंग के फायदे नजर आना शुरू हो गया होगा। एक फायदा जो मुझे इस वक्त दिखाई दे रहा था मिस शुभा जैसा बनना जिनको देखकर, सुनकर, पढ़कर, समझकर मैंने कब अपने नौ महीने बिता दिये मुझे पता ही न चला। जैसे मां बच्चे का संसार से परिचय होने के पूर्व उसे नौ महीने अपने कोख में रखती है और उसका खयाल रखती है उसके एक एक हरकत पर नजर रखती है और जब बच्चा पेट में ही पैर मारता है तो खुश भी होती है ऐसे ही नौ महीने उसने मेरा ध्यान रखा, मेरी एक एक सही गलत हरकतों पर नजर रखती, मुझे सिस्टम के हिसाब से क्या गलत है क्या सही, मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं का हमेशा भान कराती रहती थी। जब उसे मेरे हाथ पैर चलने का अहसास होता तो खुश भी होती मेरा हौसला, आत्मविश्वास बढा़ती और दिन प्रतिदिन मुझे आगे बढ़ने का रास्ता भी बताती।

एक बात तो मैं बताना भूल ही गया कि ये जो क्लास चल रही थी इसमें हम जैसे जुनियर्स जो अभी नये नये ट्रेनी थे उनके बैठने के लिए कुर्सी लगी हुयी थी तथा सीनियर्स खड़े होकर मिस शुभा का लेक्चर सुन रहे थे लेक्चरर के लिए एक सुन्दर गद्देदार कुर्सी थी लेकिन मिस शुभा ने पूरे लेक्चर के दौरान नहीं कुर्सी का ना ही मेज का एक क्षण के लिए भी टेक लिया ऐसे ही कुछ सीनियर्स हाथ बांध के तो कुछ सावधान की मुद्रा में खड़े रहे हमें भी टेक न लेने की सलाह दी गयी। मिस शुभा के लेक्चर समाप्त करने के ठीक बाद एक बेल मैनेजर सर के केबिन की बजती है जिसका मतलब की अब दूसरी क्लास का समय हो गया। स्कूल की एक घंटी लगने के बाद जैसे दूसरे अध्यापक को आकर क्लास लेनी होती है लेकिन यहां इसका ठीक उल्टा था हमें अध्यापक की क्लास में जाना होता था। किसी ने अपनी टाई सीधी की तो कोई अपना पैंट, तो कोई थोड़ा बहुत बाहर की ओर दिख रहे शर्ट को सही स्थान पर स्थापित करने लगा देखी देखा मैंने भी अपनी टाई को सीधा किया जो एक लाल रंग की टाई मैम ने मुझे दी थी यह एक ऐतिहासिक टाई थी जो मैनेजर सर की थी और एक हप्ते में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन करने पर सर ने एक जुनियर को जिसका नाम राधेश्याम था जो मुझसे और मिस्टर राम किशुन से दो महीने के सीनियर थे उनको बतौर इनाम के रूप में प्रदान की गयी थी। हालांकि यह टाई पुरानी हो गयी थी जैसा की मैंने इस टाई की ऐतिहासिकता को बताया उससे भी ऐतिहासिक थी यह टाई मैनजर सर को उनके मैनेजर द्ववारा एक हप्ते में सबसे ज्यादा प्रोडक्शन के लिए दिया गया था। और मुझे यह ऐतिहासिक टाई अनायास ही पहले दिन ही मिल गयी अनायास कहां यह टाई मेरे इस जगत को मिथ्या मानने का इनाम था या इस ऐतिहासिक टाई को मेरे गले का फंदा बनने का इंतजार था। मैंने यहां आने से पहले कभी टाई नहीं बांधी थी कारण की शुरू से ही हिंदी मीडियम का विद्यार्थी रहा और अभी तक किसी ऐसी कंपनी में भी नहीं गया जहां टाई बांधना अनिवार्य हो मैंने अभी तक बी. काम के दौरान तथा बाद यहीं हजार पांच सौ में दिन भर स्कूल में पढा़ता और कभी एक दो ट्यूशन कर लेता लेकिन इस जगत के लोग मुझे केवल इस्तेमाल करना जानते और मेरे लिए इस्तेमाल होने में उन्हें तकलीफ होती कहने का मतलब जो हजार पांच सौ मेरे हिस्से के थे वो भी बमुश्किल ही मिलते या मिलते ही नहीं थे कहते है सब अपने किये का फल ही भोगते है तो मैं भी अपने किये का फल मानकर कि मैंने भी इंटर में ए.के. सर राजेश सर की कोचिंग मुफ्त की थी हालांकि वे हमेशा टोकते रहते लेकिन उनके टोकने से मेरे सेहत पर कहां असर पड़ने वाला था। मुझे भी शीघ्र ही इसका फल मिल गया। अब मैं इस बकवास का जो निष्कर्ष है उस पर आता हूं कि जाहिर सी बात है कि मुझे टाई बांधनी नहीं आती थी लेकिन मिस शुभा जिनको कभी टाई बांधने की कोई जरूरत नहीं थी उन्हें इस ट्रेनिंग के धक्कों और ठोकरों ने टाई बांधना सिखा दिया था उन्होंने मेरे गले में लगाकर खुद अपने हाथों से टाई बांधी जैसे बकरे को हलाल करने से पहले माला पहनाई जाती है वैसे ही मुझे वह ऐतिहासिक टाई रूपी माला पहनाई गई। मेरा अभी थोड़ा और आपके धैर्य की परीक्षा लेने का ईरादा है इसलिए मैं इस टाई पर आपसे थोड़ा बकवास करने की छूट चाहुंगा।भाई राजीव दीक्षित जी जो स्वदेशी आंदोलन जनक है जिन्होंने हम सोये हुए भारतीयों को जगाने में अपना पूरा जीवन होम कर दिया उनके अनुसार टाई ठंडे प्रदेशों के लिए तो ठीक जहां आपको शर्ट के पूरे बटन बंद करने की आवश्यकता है चूंकि सर्द माहौल है तो वहां नाक बहती ही रहती है तो नाक पोंछने का एक परमानेंट उपाय है। एक और तथ्य जो मैंने टाई के बारे में महसूस किया एक तरह से हमको ोछंऐसंस्था से बांधने का पट्टा है या कामकाजी लोगों को यह कर्तव्य की याद दिलाने का माध्यम है जैसे आप आफिस जिस भी ड्रेस में जाते हो लेकिन घर आते ही आप उसे उतारने के लिए उतावले हो जाते है और जब आप पूरी तरह उसे उतार फेंकते है तब जाकर कहीं सुकून प्राप्त होता है। मुझे तो ऐसा हमेशा ही महसूस होता है कि कालेज से पढ़ा कर आने के बाद जब उस वेशभूषा से पूरी तरह निवृत्त हो जाता हूं तो ऐसा महसूस होता है कि मैंने गुलामी के बंधन को उतार फेंका। ऐसे ही मुझे टाई के साथ महसूस होता था और एक दिन फील्ड में मैं इस दासता के बंधन को उतार कर ताजी हवां में सांस लेने की कोशिश कर ही रहा था कि पता नहीं कहां से रिजवान सर प्रकट हो गये और जैसे ही उनकी दृष्टि मेरे सूने गले पर गयी उन्होंने मुझे टोका, मैंने सफाई में गर्मी का हवाला दिया। उन्होंने मुझे वहीं समझाना शुरु कर दिया कि एक मैनेजमेंट स्टूडेंट्स के लिए यह केवल टाई नहीं बल्कि यह अपने आप में एक सिस्टम है जो हमें हमेंशा अपने कर्तव्य की याद दिलाता है जब आप सिस्टम से कोई गलती करते हो या गलती करने की सोंचते हो आपको यह आगाह करती है और गलती करने से रोकती है। मानव अपने जीवन में शुरूआत से ही प्रतीको का इस्तेमाल करता आया है जैसे ओम को ब्रह्मांड का प्रतीक माना जाता है या इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ओम से मानी गयी है हम पत्थरों में देवी देवता को देखते है इसी प्रकार से हम बोलने के लिए अपनी बातों को कहने के लिए प्रतीको का प्रयोग करते है देखा जाय तो मनुष्य का पूरा जीवन प्रतीकों से भरा पड़ा है या हम ये कहे की मनुष्य हर छड़ प्रतीकों से घिरा होता है और अगर मैं यह कहूं कि हम इन प्रतीको के बिना असहाय हो जाएंगे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।


आफिस की प्रतिदिन की दिनचर्या

मोबाइल में बैटरी की चार्जिंग चार से पांच लाइन या खूंटी में प्रदर्शित होती है वैसे ही यह पहली क्लास हमारे पहले लेबल के चार्जिंग के लिए होती थी। इसके बाद हम सब दूसरे लेबल की चार्जिंग के लिए दूसरी क्लास जो दो घंटे की थी को अटेंड करने के लिए दो कतार में जुनियर आगे व सीनियर पीछे खड़े थे। मिस्टर ईंदरेश सर सफेद हल्का चेकदार शर्ट काली पैंट और एक रंग बदलने वाली टाई पहने हुए, जो प्रकाश के परिवर्तन के अनुसार रंग बदलती थी। वह अपने अपनी आरामदायक दायक घूमने वाली कुर्सी पर आराम से विराजमान थे मानों इंद्र स्वर्ग में अपने सिंहासन पर विराजमान हो। हम बारी बारी से आकर उनसे हाथ मिलाकर लाइन में खड़े होते जा रहे थे कभी वह पूछ भी रहे थे कि हाऊ आर यूं? लोग फाइन सर तो कुछ फैंटास्टिक ,वेरी वेल आदि जबाब भी दे रहे थे मैंने भी फाईन जबाब दिया ।

मैनेजर सर ने फील्ड इक्जीक्युटिव के मैनुअल का पहला चैप्टर एट्टीट्यूड पढा़ना शुरू किया। यह चार्ल्स स्विनडल द्वारा लिखित है आप गुगल पे ' The longer I live, the more I relige.' लिखकर सर्च करोगे तो आपको यह पाठ आसानी से मिल जाएगा।

पूरा पाठ अंग्रेजी में था उन्होंने पढा़ना शुरू किया एट्टीट्यूड का मतलब सोच। अगर हमारी सोच सही है सकारात्मक है तो हम कठिन से कठिन कार्य को सरलता से कर सकते है चाहे कोई काम असंभव ही क्यों न हो। यहां आपको लग रहा होगा कि ट्रेनिंग बहुत कठिन है आप मां- बाप, घर-द्वार से दूर हो,सुबह से लेकर शाम तक खुद के कैरियर के लिए संघर्ष कर रहे हो, अभी आप नये नये इस कैरियर में आये हो, आपको यहां का सारा सिस्टम उल्टा-पुल्टा अजीब लग रहा होगा। सुबह शाम घंटों खड़े होकर व्याख्यान सुन रहे है सीख रहे है, पैर भी दर्द कर रहा होगा क्यों कर रहा है कि नहीं, ये सिस्टम अजीब लगता है कि नहीं मुझे छोड़कर बाकी सभी ने समवेत एवं उच्च स्वर में जबाब दिया 'नो सर'। अब मुझे देखकर उन्होंने कहा क्यों मिस्टर सब अजीब लग रहा है या नहीं ? आगे उन्होंने बोलना शुरू किया शुरु-शुरु में तो सब अजीब लगता लगता है, मैं भी पहले- पहले दिन आया सुबह छः बजे उठना, नहाधोकर तैयार होकर 7 बजे से 10 बजे तक लगातार खड़े रहना रोज वहीं एट्टीट्यूड, वही फोर फैक्टर आफ मीट या वहीं कभी लीडर मैनुअल तो कभी ट्रेनी मैनुअल सुनना, घंटों दीवार पे हाथ मार-मार पिच की प्रैक्टिस करना, कंधे पर बैग टांग फील्ड में दौड़ना, उपर से कभी धूप है, सर्दी है,वर्षा है सबकुछ सहन करना सब अजीब लगता था, पहले दिन से मेरे मन में भी यह सवाल था कि कंपनी मैनेजर बनाती है कि नहीं लेकिन सीनियर ने जो कहा उसको बिना किसी इक्सक्यूज के तुरंत कर दिया। गीतमाला मैम मेरी ट्रेनिंग मैनेजर थी मैंने खुद अपने सामने से देखा कि मेरे ज्वाइनिंग के दो महीने बाद ही डायरेक्टर सर आये और उन्होंने एनांउस किया कि मिस गीतमाला प्रमोट ऐज ए मैनेजर। हमने खूब पार्टी किया उसके बाद हम सब गीतमाला मैम के साथ मेरठ चल दिये। अब सामने से देखने के बाद तो विश्वास हो गया सोच सही की इक्सक्यूज देना बंद किये फील्ड में धक्के भी खाये, दो चार थप्पड़ भी खाये, एक दिन तो सुबह से शाम तक फील्ड में बैठाये रहा बोला कि जबतक मैनेजर यहां नहीं आएगा तबतक तुमको जाने नहीं देंगे। ये सब क्या है ये सब सिस्टम है और सिस्टम हमको हर वक्त हमको चेक कर रहा होता है और जिस दिन सिस्टम को लग जाएगा ये व्यक्ति परफेक्ट है और एक ब्रांच को संभाल सकता है उस दिन क्या आप मेरी तरह लेक्चर दे रहे होगे बीस पच्चीस लोग आपके सामने खड़े होंगे जिनको आप अपने जैसा बनाने के लिए अपना दिमाग लगा रहे होगे क्योंकि आप खुद मैनेजर बन गये अपना जीवन सुधार लिया तो क्या किया जिस दिन आप अपने जुनियर को मैनेजर बनाओगे उस दिन आपको अपने मैनेजर बनने से ज्यादा खुशी होगी। और उस दिन के लिए मैं भी आपके साथ जी जान से जुटा हूं। और ये सब कैसे होगा जब आप अपनी सोच सही रखोगे बिना किसी इक्सक्यूज के चौबीसों घंटे सिस्टम में रहने का प्रयास करोगे।इस दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है, इंपासिबल को आप गौर से देखो तो वह खुद कहता है आई ऐम पासिबल। तो जरूरत क्या है हमें अपने सोच को सही रखकर, बिना किसी इक्सक्यूज के सही दिशा में काम करना, इन सात महीनों में आपके पास तमाम तरह की मुश्किल, परेशानियां आएंगी ऐसे में हमें क्या करना है सकारात्मक सोच रखकर जिस कैरियर का सपना देखकर यहां आये है उस लक्ष्य को एचीव करना और डायरेक्टर सर, गीतमाला मैम या ऐसे अन्य लोगों की तरह अपना कैरियर बनाना।

अभी तक मात्र 'सोच' जो शीर्षक है उसी की बात हो रही थी। यह आठ बजे से नौ बजे पूरे एक घंटे की क्लास थी। अभी तो मेरा प्रयास आपको इस अजीब दुनिया की नित्यदिन की दिनचर्या से परिचय कराने का चल रहा है।

इस क्लास के खत्म होने के बाद हम सब ठीक बगल के कमरे में चले गये मैनेजर सर अपनी आराम कुर्सी का आनन्द लेने में व्यस्त हो गये यहां का दृश्य सबसे अजीब व हतप्रभ करने वाला था मुझे अब समझ में आ रहा था कि जिस दिन मैं रिज्यूम लेकर बैठा था उस दिन यहां आफिस में ठीक इसी समय क्या चल रहा था चुंकि रिशेप्सन कांउटर इस कमरे से पर्याप्त दूरी पर था तो हमें बस तेज -तेज आवाजे ही आ रही थी अब जाकर मुझे उस दृश्य

से रूबरू होने का अवसर मिल रहा था और ‌अब जाकर उस दिन का दृश्य जिसकी धुमिल छाप मेरे दिमाग पर पड़ी थी वह पूरा दृश्य अब जाकर पूरी तरह से मुझे समझ में आ रहा था। मैंने देखा की जो कुछ ज्यादा सीनियर थे आइने के सामने खड़े हो गये और बाकी क्रम से दीवार से कुछ दूरी पर खड़े हो गये। जिनको आईना मिला वो आईने में अपना प्रतिबिंब देख रहे थे और बाकी दीवार में अपना प्रतिबिंब देखने का प्रयास कर रहे थे और इस प्रतिबिंब को ही भावी कस्टमर मान कर तेज आवाज में जितना तेज वो बोल सकते थे उतनी तेज वो उच्च आवाज में कभी हाथों को आगे की तरफ फेंककर कभी दीवार पर तेजी से हाथ मारकर अपनी वहीं मच्छर, मक्खी, चूहा, छिपकली भगाने वाली पिच का अभ्यास कर रहे थे। पिच मतलब जो हम किसी प्रोडक्ट की व्याख्या जैसे कस्टमर के सामने करते है उसे ही यहां पिच कहां जाता था। इस पिच की प्रैक्टिस सभी ने पूरे एक घंटे पूरी तरह पागल बनकर या यूं कहे सिस्टम में डूबकर की और इस बीच शायद दीवार कह रहा हो कि अब तो मुझे बक्श दो शायद इस भयंकर प्रैक्टिस से उसे भी अपने अस्तित्व की संभावना आगे न बने रहने की दिखाई देने लगी हो। जैसे घड़ी की सूई ने 9‌ बजकर पैंतालीस मिनट की घोषणा की यानी केविन से आफिस बेल के द्वारा इसकी सूचना दी गयी सीनियरों ने ,सबको पांच कतारों में खडा़ कर दिया गया। मैनेजर सर भी आ गये और आज संतोष सर जो आफिस के सबसे लम्बे साथ ही सबसे चोड़े भी थे हाईट करीब साढ़े छह फिट वह किसी

W.W.E के रेसलर की तरह लगते, उन्होंने पूरे जोश- खरोश और बुलंद आवाज में चिल्लाचि्ल्लाकर या यूं कहें गला फाड़कर प्रार्थना कराना प्रारम्भ किया और लोगों ने भी उनसे भी उच्च स्वर में उनका साथ देने का प्रयास कर रहे थे। प्रार्थना के बोल थे-


If you got a goal in your life

Follow it man dispite all strifes

on road of big success

filled with trouble and excess……….

………………………

और इसके अन्त में I can , I can, I can, I can

I shall, I shall, I shall, I shall


पार्थना के समाप्त होते ही मैनेजर आगे आते है और कहना शुरू करते है पूरी उर्जा के साथ बोलना प्रारम्भ किया" Good morning guys, Good morning guys, good morning guysssssss आज सबसे पहले मैं उनको यहां बुलाना चाहुंगा जो कल के हैरोलर(High Roler) है जिन्होंने कल सबसे ज्यादा 25 प्रोडक्ट को भुनाया। ये भी आपकी ही तरह फील्ड में गये होंगे इन्हे भी धूप गर्मी लग रही होगी पसीने से शरीर तरबतर हो रहा होगा लेकिन मुझे इस बात का पूरा यकीन है कि ये फील्ड में रुके नहीं होंगे, थकान, प्यास सबको दरकिनार करके लगातार मेहनत कर अपने एक दिन के लक्ष्य को प्राप्त किया, आइ वांट टू काल मिस्टर रिजवान सर कम आन द स्टेज।"

रिजवान सर आगे आते है और उन्होंने भी उसी तरह पूरी उर्जा व आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू किया God morning guys, good morning guys good morning guysssssss…. बाकियों ने भी उसी तरह तीन बार good morning sir, good morning sir, good morning sirrrrrrrrrrrrrr की ध्वनि से परिसर को गुंजा दिया। मैं कल कौड़ीराम गया था ल़ोग बोल रहे थे कि प्रोडक्ट काम नहीं करता यहां तक भी बोला कि कल ही एक लड़के को गांव वाले ने दिन भर बिठाये रखा। मुझे अपने सिस्टम पर भरोसा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास भी था मैंने लगातार आठ घंटे सिस्टम में रहकर अपने एक दिन के लक्ष्य का पीछा कर अपने लक्ष्य को एचीव किया।

हम सब ने इसके बाद करीब तीस सेकंड तक ताली बजाकर उनका उत्साह बढ़ाया।

पुनः मैनेजर सर ने बोलना शुरू किया इनके अलावा मिस शुभा ने भी कल दिन भर सिस्टम में रहकर 22 व्यक्तियों को मैनेज किया। मिस शुभा कम आन द स्टेज।

मिस शुभा ने आते ही तीन बार शेरनी की तरह गूड मार्निंग गाइज का उद्घघोष किया और हम सबने भी उसी स्वर लय में उनका साथ गुड मॉर्निंग मैम के साथ दिया आगे बोलना जारी रखा, " मैंने परसो शाम को ही अपनी टेरिटरी व लक्ष्य डिसाइड कर लिया था और फील्ड में पहुंचते ही बिना एक छड़ गवाये पूरे आठ घंटे सिस्टम में रही दिन भर फोर फैक्टर आफ मीट के साथ ला आफ एवरेज का पीछा किया और शाम तक अपना लछ्य प्राप्त किया।

पुनः आगे मैनेजर सर आगे आते है और पुरे उत्साह के साथ इस तरह बोलना शुरू करते है कि आस पास के कम से कम तीन चार घरों के दीवारों को फाड़कर उनकी आवाज अवश्य उन तक पहुंच रही हो और अगर आप पहली बार उनको इस तरह बोलते हुए देखो तो ऐसा प्रतीत होगा कि उन्हें कोई दौरा पड़ा हो, " गाइज आज का दिन और समय जो आपको मिला है यह दुबारा लौट कर नहीं आयेगा और लाइफ गिने चुने लोगों को ही अपना कैरियर बनाने का मौंका देती है उन खुशनसीब लोगों में आप सब हो जो यहां खड़े हो। तो जाओं फील्ड में और दहाड़ के आओ आपको पूरे आठ घंटे सिस्टम में रहना है, धूप, गर्मी,वर्षा को दरकिनार कर दिन भर अपने लछ्य के लिए काम करना है कितने भी मुश्किल क्यों न हो आपको हमेशा अपने चेहरे पर स्माइल रखना है। आपको पूरे आठ घंटे सिस्टम में रहना है, थकना नहीं है, कहीं बैठना नहीं है लगातार ला आफ एवरेज का पीछा करना है इतना आप ने किया तो आप शाम तक देखोगे की आपका पूरा बैग खाली हो जाएगा और आपने जो लक्ष्य आज का निर्धारित किया है निश्चित रूप प्राप्त करोगे। तो अब अपने लक्ष्य के लिए बिना एक भी छड़ गवाये दौड़ो। और मैनेजर सर स्वयं दौड़ते हुए आफिस के मेन गेट पर खड़े हो गये। सबने अपने अपने बैग की तरफ भागे,अपना-अपना बैग सबने, जब मैम पहली क्लास ले रही थी उसी समय पैक करा लिया था सन्तोष सर सबको उनकी आवश्यकतानुसार प्रोडक्ट देते और हमने अपने नाम के साथ उसकी संख्या भी नोट करा दिया था। बैग लेकर दौड़ते हुए सब बाहर की ओर भाग रहे थे। मुझे शुभा मैम के साथ जाना था। मैं भी उनके साथ तेजी से बाहर भागा मैनेजर सर सबको गुड लक कहने के साथ ही गर्मजोशी से हाथों से हाथ मिलाकर विश भी कर रहे थे हम सब तेजी से करीब 300 मीटर तक दौड़ने के बाद फिर तेज कदमों से चलने लगे सभी अपनी अपनी निर्धारित टेरिटरी के अनुसार अलग अलग दिशा में निकल गये मैंम मुझे लेकर पुनः उसी होटल में ले गयी जहां का मैं अभिमंत्रित समोसा मटर खाकर उनके साथ दौड़ना शुरू कर दिया था। शायद उन्हें लगा हो की डोज बढा़ना चाहिए क्या पता लड़का हाथ से निकल जाए । और दो प्लेट समोसा मटर का आर्डर दिया। प्लेट समाप्त कर हम आगे बढ़ गये। और आज फिर मुझे वह उसी कालोनी में ले गयी जहां पहले दिन हम गये थे। बिछिया कालोनी में पहुंचकर उन्होंने एक रसीद और एक कंघी निकाला जिसे वो गंजों के लिए बैग में ढो़कर लायी थी।

मैंने देखा फील्ड में अधिकतम लोग ना ही कह रहे थे लेकिन इससे उनका उत्साह जरा भी कम नहीं होता बल्कि वो दुगने उत्साह के साथ हंसते मुस्कुराते अगले कष्ट से मरने वाले से उनका दुख हरने के लिए मिलती और मैंने देखा वह इस तरह से बात कर रही थी कि मिलने वाला भले प्रोडक्ट ले या न ले, वो भी उनसे मिलकर प्रसन्न हो जाता। किसी किसी को तो अपने हल्के फुल्के मजाक से हंसा भी देती। जैसे कोई महिला अगर कहती की भैया नहीं है तो वे उनसे पूछती कि भैया को ही खाली मच्छर काटता है आपको नहीं। एक जगह एक प्रोडक्ट बिकने पर उन्होंने उसको दूसरा प्रोडक्ट भी दिखाया। मैं भी ये चीज पहली बार देख रहा था। एक हरे रंग की हैंडिल में कुछ तार लगे थे तार के किनारे छोटे छर्रे थे, वे बता रही थी कि इसे बोकोमा कहते है वह उसे भाभीजी के कभी सर में लगाकर कभी कंधे में लगाकर बता रही थी कि आप इससे सर का ,कंधों का, कमर का या जहां भी दर्द हो मसाज कर सकती है इसमें मैगनेटिक राड लगी है जिससे पांच मिनट ही मसास करने से दर्द छूमंतर हो जाएगा। और एक खास बात सर में ‌मसाज करने से आपके बाल भी मजबूत काले व घने होंगे आप मार्केट से लेंगी आपके 350 ₹ लग जाएंगे लेकिन ट्रेनिंग के दौरान यह आपको दिया जा रहा है मात्र 150 में आप एक लेंगी और एक बिल्कुल मुफ्त अभी आपके बगल में सविता आंटी ने पूरे दो सेट लिए है और झटके में उनके हाथ से प्रोडक्ट छीनकर कि मेरा नाम शुभा आपका शुभ नाम? जी माला। तो माला जी कितने सेट आपके नाम करे? जी अभी एक भी नहीं अभी घर पर कोई नहीं है। मैम ने कहा, आप तो है और ये प्रोडक्ट आपके लिए ही है । अभी आप एक लेंगी एक फ्री मिलेगा। अच्छा कुछ कम नहीं होगा। जी हम लोग सेल्समैन नहीं है हम मैनेजमेंट स्टूडेंट्स है हम मोल भाव नहीं करते और हमें शाम को एक एक प्रोडक्ट का हिसाब भी देना होता है। अच्छा एक सेट दे दीजिए।

वहां से चलते वक्त मुझसे मुखातिब होते हुए देखा कह रहीं थी भैया नहीं है। लेकिन मैंने देखा कि इनके अंदर प्रोडक्ट की लालसा लग गयी है‌। इसी लालसा को आपको जगाना है, लोगों का चेहरा फढ़ना है, तो थोड़ा सा मैंने और प्रयास किया। हमें नो से घबराना नहीं है बस सिस्टम फालों करना है हमें कितने नो सुनने है दिन भर में? जी सत्तर।और आज अभी तक हमने कितने नो सुने है? जी 10। और रिजल्ट हमारे पास कितने है? जी तीन। तो हमें थर्टी यस के बारे में बिल्कुल नहीं सोचना है, बल्कि हमें सत्तर नो का पीछा करना है पहले बात तो आपको बेचने के बारे में सोचना ही नहीं है आपको लोगो से बात करने का तरीका सीखना है। जितना आप फोर फैक्टर आफ मीट को यूज करना सीखोगे उतना ही आपका आत्मविश्वास बढ़ेगा और उतना ही लोगों को आप मैनेज करना सीखोगे, इतना आपने किया तो आप देखोगे शाम तक 20-25 पैकेट आसानी से पूरा कर लोगे। और देखते-देखते ये ट्रेनिंग के सात महीने कब निकल जाएंगे आपको पता भी नहीं चलेगा।

शाम को आते वक्त नाश्ता कराने के बाद मैम ने मुझे 30 रुपये दिये मैं मना कर रहा था लेकिन उन्होंने कहा आप दिन भर मेरे साथ रहे मेरे साथ दौड़े काम सीखे और ये पैसे आपकी पहली कमाई है। मुझे भी मेरे ट्रेनिंग मैनेजर मिस्टर ईंदरेश सर ने जो पचास रुपये दिये थे उस नोट को मैंने अभी तक खर्च नहीं किया है और मेरे पास अभी तक सुरक्षित है। मै उनसे एक बार फिर पूरी तरह खुद को पूरी तसल्ली और विश्वास दिलाने के लिए जबकी यह बात वह पहले भी मुझे बता चुकी थी, कि वहीं न जो हमारे मैंनेजर सर है। इसी तरह से मेरा विश्वास बढा़ने के लिए कंपनी के प्रति मेरा सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए कि लोग फील्ड से ही वहां तक पहुंचते है। इस तरह के अन्य मैनेजर सर के कुछ खिस्से भी सुनाती उनमें से एक दीपक सर जो हमारे मैनेजर सर के अंडर से मैनेजर बने है और इस समय वह कानपुर जैसे बड़े शहर की ब्रांच को संभाल रहे है।

रास्ते भर वो मुझसे बात करते हुए चल रही थी मैम नै मुझसे पूछा कि आपने आज क्या सीखा? दिनभर मैम के साथ रहकर मेरा भी मन लगने लगा था। मेरे लिए यह बिल्कुल ही नया अनुभव था और मुझे न चाहते हुए भी पता नहीं क्यों यह सब अच्छा भी लग रहा था। मैं जब मैंम को देखता लोगों से बात करते हुए इजी वे में गंजे को कंघी पकड़ाते हुए। जैसे ये सब उनके लिए एक खेल की तरह था या वे मुझे दिखा रही थी कि फील्ड में आठ घंटा रहना एक खेल की तरह है और यकीनन वह इस खेल की एक मंझी हुयी खिलाड़ी थी। और मैं दिन भर उनको ही आब्जर्व कर रहा था और जितना मैं उनकी ओर ध्यान दे रहा था मैं उतना ही इस बिजनेस से इस सिस्टम से सम्मोहित होता जा रहा था और न चाहते हुए भी मैं इस काम में मन लगाने लगा और स्वयं को मैंने एक बार फिर से मैम की ही तरह इस फील्ड का सचिन बनने के लिए खुद को झोंक दिया।


मुझे करीब पांच- छह दिन तक वो अपने साथ फील्ड में ले गयी इस बीच मैनेजर सर मुझे एक दिन किसी और के साथ भेज रहे थे और उनके साथ रामकिशुन को भेज रहे थे तो उन्होंने स्वयं कहा कि आज भी मैं विक्रम को ले जांउगी। इसका कारण था वह मेरे एक-एक गतिविधि पर नजर रखे हुयी थी कि लड़का कितना पाजिटिव है कितना निगेटिव है और मेरे मन में क्या चल रहा है। मैं भी एक एक बात शेयर करता था समय समय पर खुद ही वह रिपोर्ट लेती रहती थी यहां तक की सोने से पहले एक बार वह प्रतिदिन मुझे, रामकिशुन और एक लड़का था उनके अन्डर जो हम दोनों से उस बिजनेस में एक महीना बडा़ था, को ट्रेनी मैनुअल का कोई भी टापिक कभी फोर फैक्टर आफ मीट, कभी एट्टिट्यूड तो कभी लीडर मैनुअल के किसी टापिक जैसे जैक एंड जिल के बहाने सकारात्मकता की घुट्टी जरूर पिलाती थी। तीसरा लड़का वही राधेश्याम था जिसका जिक्र मैंने ऐतिहासिक टाई की कहानी के साथ किया था यानी अभी तक उनके अंडर तीन लड़के थे और वो इस ग्रुप की ग्रुप लीडर थी।


इसी तरह वो दिन भर मुझे कुछ न कुछ समझाती-पढ़ाती भी रहती। मुझसे पूछती थक गये मिस्टर, धूप लग रही है, भूख लगी है? और मैं ना में जबाब देता। लेकिन ये बात वो भी भली भांति समझ रही थी और मैं भी लाइफ में ये पहला टाइम था जब सुबह से शाम तक लगातार मैं पैदल चला।पैर भी काफी दर्द कर रहा था, थकान तो शरीर पर जबरदस्त हावी था और लेटने की या टेक लेने की इच्छा बलवती हो रही थी।लेकिन यहां बिस्तर रात के दस बजे ही नसीब होने वाला था।

आफिस पहुंचने के बाद भी आपको बैठना नहीं था। आफिस पहूंचकर कर हम मैनेजर से मिले। मैनेजर ने हमसे गर्मजोशी हाथ मिलाकर हालचाल पूछा, फील्ड में कैसा लगा, क्या अच्छा लगा, क्या बुरा? मैंने भी जबाब दिया सब अच्छा लगा। तत्पश्चात हम बगल के कमरे में गये अभी हमारे सिवा कोई नहीं आया था। शाम के छह बज रहे थे। उसी पार्थना हाल में मैं खड़ा हो गया मैम आयी और हाथ मिलाकर क्यों मिस्टर विक्रम कैसे है। और उन्होंने फोर फैक्टर आफ मीट पढा़ना शुरू कर दिया अब लोग भी धीरे-धीरे आना शुरू हो गये थे और सब मैम से हाथ मिलाकर गुड इवनिंग कर पंक्तिबद्ध खड़े होते जा रहे थे। बीच बीच में जुनियरों से फील्ड के बारे में भी पूछती, आज का दिन कैसा रहा आदि। ये क्लास छह से आठ लगातार 2 घंटे तक चली। इस दौरान वो लगातार धाराप्रवाह बोली जा रही थी। आठ बजे बेल बजी हम सब मैनजर सर के आगे खड़े थे और सबसे आज का रिपोर्ट लेकर पुनः 'एट्टीट्यूड' पढ़ाना शुरू कर दिया।

नौ बजे हमें खाना खाने के लिए छोड़ा गया हम वहां से ट्रासंपोर्ट नगर के उसी नियत होटल की ओर चल दिये।

आफिस आकर सब ने अपना बिस्तर लगाया तथा कोई अपने मैनुअल से एट्टीट्यूड तो कोई प्रार्थना पढ़ने लगा तो कोई अपना पिच याद करने लगा मैम ने मुझे भी पिच लिखवा दिया था। 'देखी देखा पाप देखीदेखा पुन्य

' जो कि राम किशुन सर का फेवरेट डायलाग था, वह यदा कदा आवश्यकता पड़ने पर इसका इस्तेमाल ‌करते रहते अभी मैं इस संवाल का फायदा उठा ले रहा हूं। मैं भी अपना पिच याद करने लगा।करीब आधे घंटे के बाद लाईट बंद कर हम सब अगले दिन की लड़ाई के लिए उर्जा एकत्र करने के लिए सो गये फिर अगले दिन 6 बजे हम अपनी इस थकान भरी दिनचर्या या जिसे हम सिस्टम कहते है उसमें लग गये।

अब हमारा प्रतिदिन का यही रूटीन होता था सुबह 6 बजे जग जाना। तैयार होकर 7 से 9 बजे तक क्लास करना एक घंटा दीवाल के साथ प्रैक्टिस करना, प्रार्थना और मैनेजर सर की गर्जंना के बाद हाथ में बैग लिए दौड़ते हुए निकलना।फिर पैदल का टेम्पू, जीप आदि की सहायता से करीब साढ़े दस या ग्यारह बजे तक हम, जो हमारी निर्धारित टेरिटरी होती थी वहीं जाकर कुछ हल्का फुल्का नाश्ता करना और उसके बाद मौसम को बिल्कुल नगण्य मानकर हम जी जान से अपना प्रोडक्ट भुनाने में लग जाते थे। जिस गांव का, या शहर के किसी कालोनी का या कोई बाजार, चट्टी या चौरहा जिस भी स्थान का हम मच्छर, मक्खी का पूरा सफाया करने का बीड़ा उठाकर हम आये है वह हमारी निर्धारित टेरिटरी होती थी।


एकदिन मैंने शाम को मैंने मैंम से बोला कि मेरा मन नहीं लग रहा है। जबाब में मुझसे पूछा क्या यहां मन लगाने आये हो? मेरे पास इसका कोई जबाब नहीं था।

शुरुआत में कुछ दिन बाद मुझे बेचैनी या घूटन सी होने लगी। सुबह से दिन भर हमें खड़े होकर दो क्लास करने होते थे,तुंरत बाद बिना एक छड़ बैठे ही खड़े रहकर ही एक घंटा दीवाल तोड़ प्रैक्टिस। हमें बैठने को तब मिलता था जब हम या नाश्ता कर रहे होते या रात का खाना खा रहे होते या कभी कोई दूर के गांव या कस्बे या किसी छोटे-मोटे मार्केट किसी साधन से जाते या कभी किसी दिन सिस्टम से छमा याचना कर एकाध घंटा बैठ जाते फील्ड से आफिस आने के बाद भी हम करीब तीन घंटे खड़े रहने के बाद ही खाने जाते थे यानी जब तक हमारे सोने का टाईम नहीं हो जाता तब तक हम या तो खड़े रहते या चलते रहते। कभी कभी रात में सोते समय अचानक से पैर में घुटने के आस पास इतना तेज दर्द होता कि टटाता जैसे लगता कि जान निकल जाएगी। अगर इस दर्द का समय थोड़ा भी बढ़ जाता तो निश्चित रूप से जान निकल जाती। लेकिन इस दर्द से केवल एक ही दिन का रिश्ता तो नहीं था न कि एक ही दिन में मेरी जान ले लेती।

कभी किसी दूर के टेरिटरी में जाता तो मन में आता ये जीप या टेम्पू इसी तरह चलते रहे निश्चित गांव या शहर आने पर कभी कभी बड़े बेमन से उतरता। फिर भी मैं चाहकर भी मैं इसे छोड़ नहीं पा रहा था। घर वाले भी कई बार समझाने आये कि घर चलों कोई ठीक ठाक काम देख लो ये तुम्हारे लिए ठीक नहीं है कि दिनभर धूप में सेल्समैन

की तरह घूमना और घर वाले जितना इसे छोड़ने के लिए समझाते उतना ही मैं इस बिजनेस के प्रति समर्पित होता चला जा रहा था। इसके बाबजूद मेरी स्थिति ऐसी थी कि मैं इस कदर यहां फंसा था कि न मैं इस जाल से चाहकर भी बाहर आ पा रहा था और नहीं अंदर रहना संभव हो रहा था। लेकिन मुझे यह बात कभी नहीं समझ आया कि ऐसी कौन सी शक्ति थी कि मैं जिसके कारण मैं इस ट्रेनिंग में अपने तन को ही नहीं बल्कि मन को भी जला रहा था।

यहां मैं एक कहानी का जिक्र करना चाहूंगा


एक साधू के पांव में एक बड़ा भारी फोड़ा निकल आया था और महीनों तक ठीक नहीं हुआ और साधु तो साधु आदमी ठहरे वो ना किसी वैद्य के पास जाते न ही कोई दवा दारू करते उनकी नियमित की दिनचर्या थी कि सुबह शाम रोज गंगा स्नान को जाते हालांकि घाव के कारण तकलीफ बहुत होती लेकिन महीनों तक वो लंगड़ाते हुए जाते लंगड़ाते आते । एक दिन रास्ते में ही एक जड़ी ने उनसे कहा साधु बाबा मुझे पीसकर घांव पर लगा लो आप ठीक हो जाओगे। साधु उस पर तुरंत बरस पड़े और बोले तूने इतने दिन से क्यों नहीं बताया? इस जड़ी के जबाव के बाद शायद मेरे उत्तर देने की गुंजाइश न रह जाए।

जड़ी ने जबाब दिया, "तुम्हारा भुक्तमान कौन भोगता।"

कहने का मतलब जैसा मैंने अनुभव किया मैं हाय हाय करके भी इस ट्रेनिंग को कर रहा था और इससे निजात पाने का उपाय भी उसी रास्ते में मौजूद था लेकिन मैं पहले ही दिन या दस दिन बाद भी क्यों न भाग गया।


रविवार के दिन भी हमें एक पल का आराम करने का मौका नहीं मिलता था या मैं स्पष्ट शब्दों में समझाऊ तो रविवार के दिन भी हम स्वतंत्र नहीं होते या हमें इतनी भी छूट नहीं होती की थोड़ी देर हम टेक लगाकर बैठ सके। हा हमें फील्ड में जाने से छूट मिलती थी। मगर इस दिन हमारी दिनचर्या छह के स्थान पर पांच बजे ही शुरू हो जाती। हमें फील्ड में न जाने की छूट आफिस के रहम पर नहीं बल्कि उनकी भी मजबूरी ही थी कि उन्हें हमें ये छूट देनी पड़ती थी। सुबह का कोई क्लास नही होता था। हम नित्य क्रिया के बाद सप्ताह भर के के अपने गंदे कपड़े धोते और जो हममे सीनियर होते थे अपने कपड़े के साथ-मैनेजर सर के भी पूरे सात-सेट कपड़े जिनमें टाई के साथ-साथ उनका बदबूदार मौजा भी होता था को धोते थे। कुछ लीडर-ग्रुप लीडर लैट्रिन- बाथरूम चमकाते तो कुछ पूरे आफिस को पोछा लगाते। और अंततः हम नहा धोकर अपना मैनुअल लेकर बैठ जाते उसमें से सीनियर हमें कभी एट्टिट्यूड तो कभी पार्थना तो कभी पिच याद करते या सीनियर द्वारा निर्देशित किये जाते। और हमें शनिवार की शाम को ही एक पत्रक मिलता था जो स्वाट एनालिसिस से सम्बंधित होता था उसमें हम अपने सप्ताह भर का प्रोडक्शन लिखते थे और अगले सप्ताह का अपना लछ्य लिखते थे साथ ही अपनी शक्ति, कमजोरी,अवसर व भय संबधी बातो को लिखते जिससे मैनेजर हमारे बारे में अपनी समझ बना सके कि हम कातने पाज़िटिव चल रहे है या कितने निगेटिव। इस पत्रक को भरने के बाद हम सब साथ-साथ पास के होटल में पेट पूजा के लिए निकल जाते और वहां भी प्रायः सीनियर अपने जुनियरों को यदा कदा सिस्टम सिखाने का मौका न चूकते। आफिस आने के बाद शुभा मैम हमें कुछ हमारे मैनुअल से पढ़ाती है।कभी जो याद करने के लिए दिया गया था उसे सुनती भी थी। चुंकी सप्ताह के आखिरी दिन में समय भी भरपूर होता है तो इस दिन हमें पाजिटिव एट्टीट्यूड के दो ढक्कन एक्स्ट्रा पिलाया जाता। दो बजे से चार बजे तक हमारी क्लास मैनेजर सर द्वारा ली जाती जहां हमें खड़े होकर उसी उबाऊ एट्टीट्यूड तो कभी फोर फैक्टर तो कभी प्रार्थना पढ़ाया जाता। हम अपने स्वाट एनालिसिस की रिपोर्ट मैनेजर सर के पास जमा करते थे और उसे पढ़कर वे। हमारी समस्याओं का समाधान करते तथा अपने अनुसार हमें सुझाव देकर हमारे नकारात्मक विचार को दूर करने का प्रयास करते। क्लास समाप्त होने के बाद जो नये- नये ट्रेनी है केवल उनको

आफिस की तरफ से हमें हल्का फुल्का नाश्ता कराया जाता । इसके बाद कुछ सीनियर्स के साथ हम बाजार जाकर कुछ सापिंग करते। वापस आने पर शाम को सात बजे से लीडरों की एक घंटा अलग क्लास लगती। इस बीच हम जनियर्स में से कोई क्लास लेने का अभ्यास करते।






मच्छर मक्खी की महिमा

अभी ज्वाइन किये मुझे कुछ ही दिन बीते थे और इस मच्छर और मक्खी की महिमा मुझे भी समझ में आने लगी थी, जिसे अब तक मैं ईश्वर की एक बेकार कृति मानता था

उस पर एक लाखों व्यक्तियों के सपने पल रहे है। मेरा ये भी मानना रहा है कि काश ये मच्छर और मक्खी न होते तो जीवन कुछ नहीं थोड़ा तो आसान होता‌। लेकिन आप सोचों खाली मच्छर भगाने के नाम पर कितनी कम्पनियां खड़ी हो गयी है।

आदमी भी कितना सुलझा हुआ प्राणी है कि हम विपत्ति में भी अवसर ढ़ूढ लेते है यहां तक कि कोरोना काल जब हम घरों में बंद थे लोग दिन प्रतिदिन मर रहे थे वहां भी हम अवसर ढ़ूढ रहे थे हमने मास्क बेचा, सेनेटाइजर बेचा हमने अपने कदम आफलाईन से आनलाइन की ओर बढ़ा दिये।इसी तरह गुडनाईट, आलाऊट, मैक्सो, कछुआ छाप, रिलैक्स और एक नहीं तरह तरह के प्रोडक्ट लिक्विड, स्प्रे, बैडमिंटन ,पेपर, अगरबत्ती, क्वाइल इसके अलावा गुड नाइट की वह टिकिया जिसे हम सौ वाट के पीले बल्ब के उपर रख कर कभी मच्छर भगाते थे। अब मार्केट में इतनी कम्पनियां तमाम तरह के प्रोडक्ट के साथ पहले से ही मौजूद है और उपर से उनका प्रोडक्ट सौ प्रतिशत काम करता है जबकी हमारा प्रोडक्ट सौ प्रतिशत काम नहीं करता और उपर से ये मच्छर भी कम ढ़ीठ प्राणी नहीं है इंसानों के साथ रहते रहते रहते इसने अनुकुलन को बखूबी सीखा है और अपने जीवन में उतारा भी है। मच्छरों का यहीं अनुकलन प्रवृत्ति इसांनों को नित नये अवसर भी दे रहा है। और इसी अवसर का फायदा उठाने के लिए इस तरह के मैनेजमेंट के नाम पर एक नहीं तमाम कंपनियां अस्तित्व में है उनमें से एक से आप परिचित हो ही गये है और कंपनियों का परिचय हमें फील्ड में जाने पर तब होता जब लोग हमारे प्रोडक्ट से बचने के लिए अपना दो- चार साल पहले वाला प्रोडक्ट ला कर दिखाते जो कंपनी आज से चार-पांच साल पहले इस शहर के मच्छर-मक्खियों का सफाया कर अपना बोरिया बिस्तर बांध कर किसी अन्य शहर के मच्छर- मक्खी को सफाया करने के मिशन पर रवाना हो चुकी है। एक व्यक्ति ने मुझे प्रोडक्ट दिखाते हुए कहा कि आज से चार साल पहले ओएसिस मैनैजमेंट से ये प्रोडक्ट मैंने लिया था। यह भी एक आश्चर्य है कि एक प्लास्टिक का खोखला डब्बा जो बिल्कुल काम नहीं करता एक आदमी उसे सहेज कर उसे इसलिए रखता है कि उसे दूबारा वह प्रोडक्ट लेने की जहमत न उठानी पड़े। इतना मैनैजमेंट वालों से दहशत । एक व्यक्ति मुझे फील्ड में मिला जिसने मुझे बताया कि मैं दिल्ली में यहीं काम करके छोड़ चुका हूं यहां तक की उसने प्रार्थना, फोर फैक्टर आफ मीट, एट्टीट्यूड यहां तक की दिनचर्या के बारे में भी बताया बस प्रोडक्ट उसका पेस्ट रिपेलर की जगह पे सेंट था। जाहिर सी बात है कि उस सेंट की डिबिया में भी सेंट के अलावा कुछ और ही होगा। मतलब इस तरह की हमारे देश में एक नहीं कई आर्गनाइजेशन है जिनके प्रत्येक बड़े बड़े शहरों में आफिस है जहां वे अखबार के माध्यम विज्ञापन निकाल कर लड़के-लड़कियों को सात महीने -आठ महीने में मैनैजर बनाने का लालच देकर मैनेजमेंट के नाम पर या मैनेजमेंट को बदनाम कर खोखले डब्बों पर काम कराया जाता तो कहीं पानी भरकर उसे सेंट बनाके तो कहीं गंगाजल के नाम पर पानी भी बेचवाया जाता है इतना ही नहीं कहीं कहीं मिट्टी ‌व राख को सौन्दर्य प्रसाधन के नाम पर बेचवाया जाता है। इस प्रकार की कंपनी लड़के तो बड़े शहरों से लेती है और उन्हें लेकर किसी अन्य छोटे मोटे शहरों में कुच कर जाती है। मैं जिस कंपनी में था उसके गोरखपुर, बलियां, कानपुर व बनारस इन चारों शहर के आफिस से मैं स्वयं हो आया था। गोरखपुर में मेरी ज्वाइनिंग हुयी, वहां से हमारा स्थानांतरण बलियां हुआ‌। बलिया से पुनः कानपुर जिसके कारण मेरा परिचय तीनों शहर के आफिस से हुआ, और एक दिन अत्यंत आवश्यक कार्य से मुझे बनारस भी जाना पड़ा जहां इसका उत्तर प्रदेश का हेड आफिस स्थित है।

और इससे भी आश्चर्यजनक यह है सर्वज्ञाता, अंतर्यामी गुगल बाबा के नज़रों से ये कैसे बचे रह गये मैंने गूगल बाबा से पूछा तो पहले मैनेजमेंट के नाम से उन्होंने भी नाक भौं सिकोड़ लिए फिर कुछ मैनैजमेंट कालेज के नाम गिनाने लगे।


जैक एंड जिल


ये कंपनियां लड़के-लड़कियों रखने के बाद पहले तो उनका मोबाइल जब्त कर लेती है और इनका यह प्रयास रहता है या इस तरह के मैनेजमेंट का प्रयोग करती है कि आप स्वयं ही अपने घर से संबंध तोड़ ले। इस तरह की आपको मैनैजर, ट्रेनिंग मैनेजर अपनी, अपने सीनियर की घर से संबंध विच्छेद की कहानी सुनाकर प्रोत्साहित करते और यहां तक की घरवालों को लड़के से स्वयं ही फोन करने के लिए मना करते क्योंकि इनका ये मानना होता है कि अगर ये घरवालों से बात करता रहा तो हम इससे ज्यादा दिन काम नहीं करवा पायेंगे या यह फील्ड से कभी भाग सकता है या घरवाले आकर उसे जबरन ले जा सकते है। हमसे कहां जाता कि अगर यहां सफल होना है तो आपको अपने सारे आप्शन खत्म करने होंगे। आपको अपनी पढ़ाई छोड़नी होगी, मां बाप घर द्वार सब भूल जाना होगा या यूं कहें आपको समाज की मुख्य धारा से ही कट जाना होगा।

जब राधेश्याम सर को उनके पिता जी बलियां के आफिस आके ले गये मिस शुभा ने हमें समझाया कि सिस्टम ऐसे ही हमें चेक करता है यां हमारी परीक्षा लेता है जब प्रोडक्ट खूब बिकता है हमारा जेब भरा होता है हमे सब अच्छा लगता है और मैंने खुद महसूस किया था कि ये इतने पाज़िटिव व्यक्ति अचानक से कैसे निगेटिव हो गये जिनका नाम रोज हैरोलर के रूप में लिया जाता था। हमें भी रोज पाजिटिव एट्टीट्यूड के डोज देते थे अचानक से कैसै चले गये। लेकिन जब सिस्टम चेक करता है, ला आफ एवरेज स्ट्राइक नहीं होता या आसान शब्दों में कहे कि पास में खाने के लिए पैसे नहीं होते तब सब सिस्टम, फोर फैक्टर एट्टीट्यूड सब कोरा बकवास लगता है सिस्टम आपके पेशेंश, परसिस्टेंस को चेक करता है कि विपरीत परिस्थितियों में यह स्वयं को कैसे संयमित रखता है।

अगले दिन मैनेजर सर लीडर मैनुअल का एक टापिक जो मेरे लिए बिल्कुल नया था, हालांकि सीनियर्स के बीच इस कहनी के पात्रों के नाम भर मैंने सुने थे, पढा रहे थे। पूरी ट्रेनिंग के दौरान ट्रेनी मैनुअल और लीडर मैनुअल दोनों मे ऐसा एकमात्र प्प्रकरण था जिसमें थोड़ा बहुत कहानी का अंश सम्मिलित था।

मैनेजर सर ने कहां जिनके पास लीडर मैनुअल है वो जैक एंड जिल पाठ देखे और बाकी भी अगल बगल के लीडर के मैनुअल में देखे। यह कहानी है जैक और जिल की जिनका एक साथ एक ही दिन सेलेक्शन होता है दोनों खूब मन से काम करते है। ट्रेनी से लीडर लीडर से ग्रूप लीडर के सफर को दोनों बखूबी तय कर लेते है और मैनेजर बनने के काफी करीब पहुंच गये है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब लाख सिस्टम फालों करने पर भी उन्हें उसका रिजल्ट नहीं मिलता या यूं कहे कि पाॅकेट में अपने खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं और बीच उन्हें नये लड़के को ले जाना भी है, रिजल्ट भी लेना है लड़के का सेलेक्शन भी कराना है। कहने का मतलब आपके पेशेंश, परसिस्टेंस की भी परीक्षा है। जब बूम था कहने का मतलब जेब भरा हो तब पाज़िटिव तो सभी सोच लेते है लेकिन विपरीत परिस्थितियों में आप कैसा सोच रखते है मान लीजिए आप मैनेजर बन गये आपकी ब्रांच लगातार घाटे में चल रही है, नये लड़के टिक नहीं रहे है, पुराने लड़को से काम नहीं हो रहा है सीनियर्स का उपर से प्रेशर है। अब आप कैसा सोच रहे है। आपमें पेशेंस नहीं है, परसिस्टेंस नहीं है सिस्टम पर भरोसा नहीं है ऐसे व्यक्ति के हाथ में ब्रांच और बीस- पच्चीस लोगों का कैरियर तो नहीं सौप सकते है न। सो डायरेक्टर सर भी दोनों के धैर्य की परीक्षा ले रहे है जैक पाज़िटिव से निगेटिव होने लगता है वह सोचने लगता है कि कंपनी मैनेजर नहीं बेवकूफ बनाकर खाली प्रोडक्ट बेचवाती है और एक दिन फील्ड से ही बैग सहित जैक बिना किसी से कुछ कहे ही अपने घर चला जाता है। जबकि जिल विपरीत परिस्थिति में भी सिस्टम पर अपना भरोसा विश्वास कायम रखता है और सही समय आने पर मारिया को प्राप्त करता है।

हम सब भी मारिया को प्राप्त करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए अगले कक्ष की ओर दीवार पर चढ़ाई करने के लिए चल देते है।


मेरा पहला हैरोल

आज जब मैं अपनी जिंदगी को रीबाइंड कर रहा हूं और मैं चलते चलते जिस मुकाम की ओर जा रहा हूं तो कुछ बोल यूं ही फूट पड़े है-

बस चलता चला जा रहा हूं

कभी यहां कभी वहां जा रहा हूं


मुझे क्या खबर कहां जा रहा हूं

वो जहां ले जा रहा है वहां जा रहा हूं


इंसान कैसी भी परिस्थिति क्यों न हो वह स्वयं को समझा ही लेता है या वह खुश होने के बहाने ढ़ूढ ही लेता है और यहां तो जिधर देखो उधर ही हवां में पाज़िटिव एट्टीट्यूड, कीप स्माइल घुला हुआ था। और सुबह शाम की क्लास साथ ही मिस शुभा की डेली की पाजिटिव टानिक के दो दो ढक्कन चढ़ने के बाद कोई चाह के भी निगेटिव नहीं हो सकता। मैं यहां मैनेजर नहीं तो मिस शुभा जैसा अवश्य बनना चाह रहा था उनके पढा़ने का तरीका, और मुझे उनमें जो सबसे अधिक पसंद था वह अपने जुनियर को प्रोत्साहित करने का तरीका उनका दो शब्द ही कह देना शरीर के रोये रोये को खड़ा कर देने के लिए काफी होता । उनमें से कुछ संवाद का मैं जिक्र करने से खुद को नहीं रोक पा रहा हूं -

तुममे इतनी क्वालिटी भरी पड़ी है कि यदी तू उसका यूज करे तो मुझसे भी पहले मैनैजर बन जाएगा।

ये एक दो प्रोडक्ट- वोडक्ट क्या चीज है तू चाह ले तो रोज हैरोल करे।

जामवंत जी के हनुमान जी को अपना बल याद दिलाने पर वह समुद्र लांघ गये वैसे ही कब मैं ट्रेनी लेवल का हैरोल करते करते लीडर लेवल का हैरोल करना सीख गया मुझे खुद पता ही नहीं बल्कि यकीन ही नहीं हुआ कि मैं भी लीडर लेवल का हैरोल कर सकता हूं।

एक माह बाद ही गोरखपुर से हमारी यूनिट का स्थानांतरण बलिया में हो गया था वहां हमारा पहला दिन था नयी जगह नया उत्साह और मुझे याद है कि उस दिन मैं दिन भर स्वयं को सिस्टम में रखा मतलब फील्ड में कहीं भी बैठा नहीं, नाश्ते के लिए जितनी समय चाहिए उतने ही देर बैठा, अखबार नाश्ते के टेबल पर पड़ा था उस तरफ भु दृष्टिपात नहीं किया। पैदल चलते हुए आफिस से दो किलोमीटर एक गांव जिसका नाम बसंतपुर था, यह भरा पूरा क्षत्रियों का गांव था लेकिन फिर भी मच्छरों का प्रकोप कुछ ज्यादा ही था या मैं कुछ तेज ही सीख रहा था या सिस्टम मुझे काबू में करने की एक नयी चाल चल रहा था। बहरहाल जो भी हुआ हो मैंने देखा की दो घंटे भी सात पैकेट पेस्ट रिपेलर ओर अगले घंटे में एक लालटेन भुना चुका था।

लालटेन से याद आया कि यह इस कंपनी का एकमात्र ऐसा प्रोडक्ट ‌था जो कुछ काम करता था यानी रोशनी देता था लेकिन जैसे चाईना के सामान की कोई गारंटी नहीं होती वैसे ही इसकी भी कोई गारंटी नहीं थी कि कब तक रोशनी देगी इसके बावजूद हम इसकी पूरे एक साल गारंटी देकर पूरे तीन सौ रुपये में एक लालटेन को बेचते थे। गोरखपुर के कई गांवों में मैंने देखा कि लोग हमारा इंतजार भी करते थे कि लालटेन वाले कब आंएगे कारण कि कुछ के लालटेन की प्रकाश को कम अधिक करने वाली घुंडी जबाब दे चुकी होती थी तो किसी का लालटेन भुक भुक कर अन्तिम सांसे गिन रहा होता था और ऐसे में नये लालटेन के मिलने की खुशी जैसे जाती स्वांस खुद चलके घर तक आ गयी हो। एक दो गांव में मैंने प्रत्येक घर में उस लालटेन को देखा। मतलब कुछ तो यूनिवर्सल ग्रुप के बंदों में था कि 70-80 रूपये की लालटेन को पूरे गांव भर में वो 300-300 रुपये में घर घर को बेच दे रहे थे।

एक लालटेन की गिनती तीन पेस्टरिपेलर के बराबर की जाती जाती थी। यानी सात पेस्ट रिपेलर और एक लालटेन को मिलाकर कुल दस के बराबर मैं प्रोडक्ट बेच चुका था ट्रेनी लेवल का हैरोल 15 प्रोडक्ट और लीडर लेवल के लिए 20 प्रोडक्ट को भुनाने की आवश्यकता होती थी मुझे बस पांच प्रोडक्ट की और दरकार, अगले दिन स्टेज तक पहुंचने के लिए थी। जब आपको मंजिल करीब दिखाई दे रही हो तो निश्चित रूप से लाख थके होने पर भी आप दौड़कर उसे जल्दी से जल्दी प्राप्त करना चाहोगे। पिच करते करते सुबह से शाम हो आयी अंधेरा भी घिर आया था और मैं अब तक 12 पैकट भुना चुका था सुर्य देव का भी प्रकोप कम हो चुका था। जैसे आज मुझे लग रहा है कि मैं आठ दस दिन इस पुस्तक पर काम करते करते इसे पूरा करने के करीब हूं लेकिन मुझे इसके लिए कितने घंटे या कितने दिन तक या कितना और लिखना होगा यह मुझे पता नहीं, वैसे ही शाम छह बजे के बाद भी मुझे कितना और चलना होगा कितने लोगों से मिलना होगा मुझे पता नहीं। शाम की सुहानी हवां के साथ शरीर में नयी उर्जा का संचार हो रहा था जैसे कहते है न कि जब दीया बुझने वाला होता है तो अपनी ताकत लगाकर और तेज जलने का प्रयास करता है उसी दिये के समान हमारे कितने दिन बीते हम कम से कम हैरोल वाले दिन तो उसी दीये की तरह जीते थे। तब जाकर हम अगली सुबह स्टेज तक पहुंचते थे। क्योंकि मुझे भी इस ट्रेनिंग से इतना तो पता चल ही गया था कि रोज रोज 10-12 पैकेट नहीं होते शाम के सात बजे के बाद तो मैं तीन पैकेट के लिए चलना छोड़कर कंधे पर बैग उठाये करीब करीब दौड़ने लग गया था चूंकि बैग का भार भी कम हो गया था जिससे वह नीर्जीव वस्तु मेरे लछ्य के आगे तो बाधा नहीं बन रही थी करीब एक घंटे करीब करीब दौड़ दौड़ कर लोगों से मिलते मिलते पूरा गांव कवर करते करते अंत में करीब आठ बजे गांव से बाहर निकलने वाले रास्ते पर स्थित एक झोपड़ी नुमा दुकान में प्रवेश करने के बाद एक पेस्ट रिपेलर उस दुकानदार को और दो पैकेट पेस्ट रिपेलर वहीं दुकान पर सामान लेने आये ग्राहक को पकड़ा कर अन्ततः अपना हैरोल पूरा किया। 15 पैकट पूरा करने के बाद तो मुझे लगा कि मेरे पांव आज जमीं पर नहीं पड़ रहे है और अब शरीर भी कहीं से थका महसूस नहीं कर रहा था हां लौटते समय एक मलाल रह गया कि काश एक घंटा और मिला होता तो आज ही बीस पैकेट पूरा कर लिया होता। हालांकि इसके बाद मैनै एक दिन बीच करके लगातार दो दिन 17-18 पैकेट भी भुनाये लेकिन काफी दिन तक मैं बीस पैकेट पूरे नहीं कर पाया था फिर मुझे 20 पैकेट पूरा करने की धुन संवार होने लगी।

फील्ड में हर दिन एक जैसा नहीं होता। जब हमारा जेब भरा हो उस समय हमें सबकुछ अच्छा लगता है। जब हमारा प्रोडक्ट बिकता तो खुशी भी होती आखिर हम दिन भर एक एक कस्टमर पर मेहनत करते। चुंकि जिस प्रोडक्ट पर हम काम करते वह मार्केट में कहीं मिलता नहीं था जिससे लोगों का उन पर विश्वास भी कम ही होता, फील्ड में जाने पर कभी कूकर तो कभी कड़ाही वाले के किस्से अलग से सुनने को मिलते तो अभी इनाम का लालच देकर सामान बेचने वाले के किस्से जिसमें इनाम में क्या निकला कभी अदना चम्मच तो कभी 10-15रुपये या इतने का ही कोई सामान, आखिर दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक पीता है और हम तो उबल रहा दूध सीधे मुंह में डालने पर आमदा थे। अगर आपकी मशीन इतनी ही जबरदस्त है तो मार्केट में क्यों नहीं या जब मार्केट में आएगी तब खरीदेंगे। कहने के लिए हमें कहा गया कि प्रोडक्ट नहीं बेचना है यह प्रोडक्ट एक मीडिया है जिसके सहारे आपको लोगो तक जाना है लेकिन यह बात किसी से छिपी नहीं थी कि यहां रहना है तो प्रोडक्ट बेचना है, बिना बेचे आप जिंदा भी नहीं रह सकते। क्योंकि यहां रहने की कीमत हम अपने घर से घरवालों से मां- बाप, भाई-बहन सबसे मुंह मोड़कर चुकाते है। यहां के सिस्टम की, मैनेजर की ट्रेनिंग मैनेजर की पहली कोशिश यहीं रहती है कि लड़के-लड़कियों का घर से रिश्ता टूट जाए। हम भी सम्मोहन में बंधकर क्या कर रहे होते है हमें उसका अहसास नहीं होता‌। कुछ हमारे कर्मों का भोग कुछ हमारा भाग्य या दुर्भाग्य हमारे सोचने-समझने की शक्ति हमसे छीन चुका होता है कि हम लाख मां बाप, भाई के समझाने पर भी हम अपने जिद पर अड़े रहते है। हमें कोई जितना ही समझाता है यह काम उचित नहीं तो भी हमें वहीं उचित लगता है‌। आप बच्चे को फूल तोड़ने को मना करो तो वह अवश्य फूल तोड़ेगा, कुछ ऐसा ही हमारे साथ था फील्ड में भी बहुत समझाने वाले मिले यहां तक कुछ ऐसे भी मिले जो बीच में भी या साल दो साल काम करके छोड़ चुके थे।लेकिन हम सिस्टम के नशे में इतने चूर थे हमें यह सब व्यर्थ लगता। यहां अधिकांश ऐसे थे जिन्होंने घर से पूरी तरह रिश्ता तोड़ लिया था फिर जेब खाली होने पर किस मुंह से घर से मदद मांगते।मरता क्या न करता? कभी कभी हम होटल में देखते कि कुछ सीनियर हमारे साथ खाने तो जाते लेकिन यह कहकर थाली को मना कर देते कि आज मन नहीं है या पेट दर्द कर रहा है। इसका सही कारण मुझे उस समय ज्ञात हुआ जब मैंने रात को होटल वाले से अपनी थाली लाने के लिए मना किया। ओंकार नाथ हमारे ग्रूप का जुनियर था उसके पूछने पर मैंने पेट दर्द का बहाना किया। पर सच्चाई इसके ठीक उलट थी कभी कभी भोजन न करने या न मिलने पर भी पेट दर्द करता है‌। हम स्वयं को दिलासा दिलाने के लिए कहते कि सिस्टम हमें चेक कर रहा है। लेकिन हमें जीना है तो बेचना है आखिर हम कब तक नहीं बेचेंगे। हमें सीनियर को अलग जबाब देना है कि आज कितना माल बिका? सीनियर को तो हम समझा लेंगे या कोई बहाना दे देंगे, लेकिन इस पापी पेट को हम क्या कहेंगे जिसके लिए हम मूररख बने और लोगों को मूरख बनाने का बीड़ा उठाया।

खैर अगले दिन मुझे ओंकार को ले जाना था। ओंकार हमारा इस बिजनेस में अभी तक का सबसे छोटा भाई यानी इस बिजनेस में शुभा मैंम ने ही उसे जन्म दिया था। मैम ने कहा लड़का पाज़िटिव है, इंटेलीजेंट है और तुम्हारे लेवल का भी है। मुझे पता है कि तुमसे कुछ दिन से काम भी नहीं हुआ है। सर उसे रामकिशुन के साथ भेजने वाले थे लेकिन उसकी तबियत ठीक नहीं है और मुझे नये लड़के को ले जाना है, इधर ओंकार से काम नहीं हो रहा है दूर जाने के चक्कर में रहता है यहीं शहर में ले जाओं और काम करके दिखाओ। शहर में तुम अच्छा काम भी करते हो। ऐसा नहीं कि दो दिन तुमसे काम नहीं हुआ तो तीसरे दिन भी नहीं होगा, सिस्टम हमें हमारे मेहनत का फल कब दे दे उसका किसी को पता नहीं तो जाओ सिस्टम में रहों और लड़के को भी सिस्टम के बारे में सिखाओ। तुम इतने क्वालिटीटेविव हो, मुझे कभी कभी लगता है मेरे अन्दर इतनी क्वालिटी क्यों नहीं है। और क्वालिटी है तो क्वांटिटी की क्या चिंता करना। क्वालिटी से ही क्वांटिटी आती है। तो आज के लिए बेस्ट आफ लक शाम को मिलते है।


इधर कुछ दिनों से मेरी हालत काफी खराब थी, मेरा अपने उपर से भी विश्वास उठ रहा था। जब मुझसे काम नहीं होता तो मैम द्वारा टानिक के दो ढक्कन एक्स्ट्रा डोज बढा़ दिया जाता जिसका असर भी तुरंत होता कि मैं निगेटिव होने की सोंच ही रहा होता कि उनसे बात करने के बाद मन सकारात्मक उर्जा से भर जाता। मैंने स्वयं से बात की जब पहले दिन मुझे कुछ नहीं आता था तब तो मैं काम ठीक कर रहा था और आज बहुत कुछ आ गया है तब रिजल्ट क्यों नहीं होगा?

ओंकार बलिया से ही था और बलिया हरपुर मिड्ढी पालीटेक्निक कालेज से पालीटेक्निक पास था। मेरी काफी इज्जत भी करता था मैं उसे लेकर विकास नगर कालोनी से होते हुए हरपुर की तरफ निकल गया वहां जाकर मैंने उससे कहां अभी सुबह- सुबह का वक्त है अभी धूप भी तेज नहीं था एक घंटा हम काम कर लेते है फिर नाश्ता करते है। अभी भूख नहीं न लगी है नहीं सर ठीक है। एक दो जगह मैंने उसे पिच करके दिखाया और आज मेरा दिन था। मैनें शुरुआत में ही उसे रिजल्ट लेकर दिखा दिया। रिजल्ट मिलता देख उसका भी आत्म विश्वास बढा़ और वह भी मेरा साथ देने लगा। आधे घंटे बाद मैंनै उससे गली के दूसरे तरफ से पिच करने को कहा एक घंटे बाद हमारे पास पर्याप्त रिजल्ट था जो कि नाश्ता करने के लिए पर्याप्त था हम वहीं आगे सड़क की ओर बढ़कर एक होटल में मटर-समोसा का नाश्ता किया। फील्ड में हम भोजन कम ही करते थे प्रायः नाश्ते से ही काम चलाते थे। कारण एक दिन मैंम जब मुझे फील्ड में अपने साथ ले गयी तो उन्होंने मुझसे पूछा नाश्ते में क्या लोगे? मुझे सुबह के समय चावल दाल बहुत पसंद है। मैंने चावल दाल का सुझाव दिया। दुकान में अभी खाली समोसे ही बने थे। सो वहां दाल चावल का कोई गुंजाइश भी नहीं थे हां समोसे गर्मा- गर्म थे मैम ने एक अपने लिए व दो समोसे मेरे लिए आर्डर किये। मैंम ने बताया कि हम फील्ड में हल्का फुल्का ही नाश्ता करते है। पेट भर नाश्ता करने के बाद नींद आने लगेगी तो ऐसे में काम में मन नहीं लगेगा।

इसके बाद हम पुनः पूरे जोश खरोश के साथ भिड़ गये और शाम तक मैंने सत्रह पैकेट, ओंकार ने चौदह पैकेट किये मैंने अपना एक पैकेट ओंकार को दे दिया इस तरह से हम दोनों का हैरोल पूरा हो गया। लड़का मुझसे पहले से ही प्रभावित था और आज जब अपने साथ ले जाकर मैंने उसे ट्रेनिंग दिया उससे उस प्रभाव में कहीं अधिक वृद्धि हुयी‌। हमने आपस में हल्की फुल्की घर-परिवार, पढाई लिखाई, कैरियर संबधी बाते भी की।

सुबह मैंने उससे कहा कि मुझे प्रोडक्ट बेचना इसको मन से बिल्कुल निकाल दो तुम यह सोचों की तुम्हे सत्तर नो फेस करना है फिर देखो काम कैसे नहीं होता है काम क्या काम का बाप भी होगा। अब मैं शाम को उससे पूछ रहा था कि मिस्टर आज आपने कितने नो फेस किये ?उसने जबाब दिया जी चालिस- पैंतालीस करीब। कितने यस मिले? उसने कहा जी चौदह। मैंने उसे समझाते हुए कहा

जब हमने ओखल में सर डाल ही दिया है? फिर किस बात का डर, अब हमें मुसल से क्या डरना? जब फील्ड तक चल के आ गये है फिर क्यों न एक एक व्यक्ति को पेस्ट रिपेलर पकड़ा के ही जाए।

दो महीने से उपर हो गये थे लेकिन मैं अभी पहले ही फेज पर था इसी तरह दिन बीत रहे थे अब मैं लड़को को फील्ड में ले जाकर सीखाने भी लगा था।


लीडर बनाने की रस्म


मैं देखता था कि हमारे आफिस में एक गोरे व शरीर भी ठीकठाक एक स्वस्थ व सुंदर शरीर के स्वामी संजीव सर जो हमारे प्रतिद्वंद्वी टीम में थे वो प्रतिदिन ही 17,18,20,25 पैकेट आसानी से भुनाकर अगले दिन स्टेज पर आ जाते या आप उनका ऐवरेज निकाले तो 20 से कम नहीं आयेगा। मैम बताती थी कि मुझसे मात्र 20-21 दिन ही सीनियर है। और मेरी नजर में बलियां ब्रांच के सबसे एनर्जेटिक व प्रोडक्टिव फील्ड इक्जीक्युटिव थे जैसे बस उनके फील्ड में जाने भर की देर है और कस्टमर स्वयं ही पलक पांवड़े बिछाकर उनसे पेस्ट रिपेलर लेने के लिए तैयार हो। लेकिन फील्ड में ऐसा नहीं होता आपका एक एक रिजल्ट आपके छह से आठ घंटों की लगातार मेहनत का परिणाम होता है। कयी लोगों से

मैंने सुन रखा था कि या शाम के क्लास में कुछ सीनियर आपना अनुभव बताते कि शाम के छह छह बजे तक इक्का दुक्का रिजल्ट या कभी कभी कोई भी रिजल्ट नहीं

होता लेकिन उसके अगले आधे घंटे में बैग भी खाली हो जाता या एक ही जगह आठ से दस रिजल्टस मिल जाता। इसे कोई ला आफ एवरेज का पीछा कर उसे स्ट्राइक कराना तो कोई इसे सिस्टम का चेक करना कहते। संजीव सर भी इसके अपवाद नहीं थे । शुभा मैंम तो मुझे प्रोत्साहित करने के लिए कहती कि क्या फील्ड में संजीव के सगे लोग बैठे है जो स्पेशली संजीव सर का इंतजार कर है कि संजीव सर आ रहे है? नहीं वह लड़का लगातार आठ घंटे मेहनत करता है मैम कहती कि सिस्टम पर उसका विश्वास देखकर मुझे आश्चर्य होता है और देखना तुम वह इस सात महीने के ट्रेनिंग ‌को पांच छह महीने में ही अचीव कर लेगा और तुम ऐसे ही इक्सक्यूज देते रहे तो मुझसे लिख के ले लो सात क्या सत्रह महीने में भी तुम मैनेजर नहीं बनोगे।

और एक दिन हम सबने मैनेजर सर के मुख से पार्थना सभा में एक एनांसमेंट सुना कि संजीव सर जिनके ज्वाइन किये अभी कुछ ही दिन हुए है जिन्होंने अपने मेहनत, लगन और सिस्टम के प्रति विश्वास से जो फील्ड इक्जीक्युटिव से लीडर तक का दो महीने का फेज मात्र एक महीने में पूरा किया है ।मै आवाज देता हूं कि मिस्टर संजीव कम आन दा स्टेज।हम सबने जोरदार तालियों से उनका उत्साहवर्धन किया। अब यहां लीडर बनने पर एक रस्म निभाई जा रही थी उसके लिए मैनेजर सर ने अक्षय सर को बुलाया सुचिता मैम व शुभा मैम ने हम सबको बीच में स्थान छोड़कर किनारे किनारे खड़े होने के लिए निर्देशित किया और बीच में पर्याप्त जगह खाली हो गयी मैनेजर सर ने पूछा मिस्टर संजीव क्या आप इनसे तेज दौड़ सकते है संजीव सर ने कहा हां बिल्कुल, अक्षय सर संजीव सर से लंबे उनसे हृष्ट पुष्ट और अनुभवी भी थे और इस प्रकार की एक दौड़ में वे राकेश सर के साथ अभी पन्द्रह दिन पहले ही हिस्सा ले चुके थे जब उन्हें एज ए लीडर प्रमोट किया गया था। दोनों योद्धा एक दूसरे को पिछाड़ने के लिए पूरी प फुर्ती के साथ इस दीवाल से उस दिवाल तक दौड़ रहे थे। कहना मुश्किल है कि जीत किसकी हुई करीब पांच चक्कर बाद मैनजर सर ने संजीव सर को रोका तब जाकर यह दौड़ समाप्त हुई हम सबने संजीव सर के प्रमोशन पर ताली बजाकर उनका स्वागत किया सीनियर्स ने हाथ मिलाकर उन्हें बधायी दी। इसके बाद मैनैजर सर के कान फाड़ू- दीवार दहला भाषड़ के बाद हम सब दौड़ते हुए फील्ड की ओर कूच कर रहे थे आज संजीव सर की खुशी का ठिकाना नहीं था और वे अब भी सबसे तेज दौड़ रहे थे।


मोनिका

दो महीने से उपर हो गये थे लेकिन मैं अभी पहले ही फेज पर था इसी तरह दिन बीत रहे थे अब मैं लड़को को साथ ले जाकर उन्हें फील्ड की ट्रेनिंग भी देने लगा था साथ- शाम के वक्त मैं भी फोर फैक्टर आफ मीट, एट्टीट्यूड भी पढ़ाने लगा था। किसी प्रकार की भी टेरिटरी मुझसे बची नहीं थी‌‌। मैं इस ट्रेनिंग के दौरान गांव स्कूल, कालेज, डिग्री कालेज, युनिवर्सिटी,थाना- कचहरी, सरकारी-प्राइवेट आफिस, विकास भवन, कलेक्ट्रेट आफिस, एस.पी आफिस सब जगह काम कर चुका था। कहने का मतलब इनमें कोई भी जगह ऐसी नहीं थी जहां के मच्छर मक्खी मैंने नहीं भगाये या इन स्थानों पर भी मैंने रिजल्टस लिए। हमें कलकुलेटड रिस्क उठाना सिखाया जाता। जहां रिस्क जितना अधिक है वहां रिजल्ट्स की संभावना भी उसी अनुपात में अधिक होती है। मैंम मुझे प्रोत्साहित भी करती तुम्हे और लोगों की तरह गांव जाकर ही नहीं बेचना है। बल्कि आफिस, कचहरी, मार्केट, कालोनी सब जगह जाकर रिजल्टस लेना सीखो। नहीं हैरोल होगा कोई बात नहीं तो सात- आठ का एवरेज रखो। जब तुम सभी जगह जाओगे तब न अपने लड़के को भी सब जगह ले जाके काम दिखा पाओगे। तो हर जगह जाने का प्रयास करो। जब मैं इन स्थानों पे जाता और वहां से रिजल्ट्स लेता तो खुद में भी प्राउड फील होता कि अगर मैं घर में होता तो कभी इन जगहों को न देख पाता, इन अफसरों से भी बात करने का न तजुर्बा होता न ही हिम्मत होती। इसांन स्वयं को संतोष व सुकून देने का बहाना ढूंढ ही लेता है। कभी किसी कालोनी में गर्मी के दिनों जाता देखता कि लाइट नहीं है लोग हाथ का पंखा झल रहे है, पास में मक्खी भिनभिना रही है तो मन को एक संतोष होता कि अच्छा है मैं घर पर नहीं हूं। ऐसे ही दिन प्रतिदिन हम स्वयं को मनाने संतोष दिलाते और धूप-गर्मी की अवहेलना कर काम में जुट जाते। मैम ने एक दिन कहा सत्रह-अठ्ठारह का प्रोडक्शन रख रहे हो, थोड़ी और मेहनत करों, बीस भी इजी वे में होता है लोग करते भी है। तुममें और रामकिशुन में कंम्पटीशन है अब देखना है पहले कौन लीडर बनता है।

लीडर बनने के लिए लगातार दो-तीन लीडर लेवल का हैरोल करना अनिवार्य था और यहां मुझसे एक भी नहीं हो

रहा था। मैम ने कहा सिस्टम में रहो बीस-पच्चीस पैकेट होता है तभी तो लोग करते है और ये होने वाली चीज है।

सत्रह- अट्ठारह को बीस में कन्वर्ट करों।

शहर में ही टाऊन डिग्री कालेज की तरफ सरकारी आवास बने थे वहां काम करके मैंने दो बजे तक ही सत्रह प्रोडक्ट भुना लिए थे और अभी मैं चार घंटा तो और काम कर ही सकत था मुझे केवल तीन रिजल्ट्स की आवश्यकता थी मैं लगातार चार घंटे यानी 2से छह बजे पिच करता रहा लेकिन मुझे कोई रिजल्ट नही मिला अंधेरा भी हो चुका था और कालोनी भी समाप्त होने वाली थी करीब कालोनी का सारा एरिया कवर हो चुका था जब मुश्किल से तीन चार घर ही बचे। मुझे लगा आज भी निराशा ही हाथ लगेगा। लेकिन जब मैं उस कालोनी के आखिरी घर में पहुंचा तो वहां एक साथ छह रिजल्ट्स मिले इस तरह मैंने 23 पैकट करके लीडर लेवल का अपना पहला हैरोल पूर्ण किया। इसके बाद एक दो हैरोल बीच बीच करके मैंने किया यहां भी हैट्रिक न कर पाने का मलाल रह गया।

और एक दिन मैनेजर सर ने घोषणा की कि मात्र ढाई महीने में इन्होंने फील्ड इक्जीक्युटिव से लीडर तक का सफर इन्होंने अपने मेहनत, लगन, व विश्वास के बल पर तय किया है और संजीव सर के साथ दौडा़कर इस रस्म की औपचारिकता पूरी की गयी।

अगले दिन सुबह मैडम पढा़ने के लिए आयी और इस रस्म की एक और जो औपचारिकता थी उसे पूरा करने के लिए

बुलाया गया और आफिस में मुझे एक आरामदायक व्हील चेयर पर बैठाया गया इसी चेयर को हम मोनिका कहते थे

और मैनेजर सर की चेयर का नाम मारिया था‌।

मैंम ने मुझे कुछ पढ़ाने के लिए भी कहां, चुंकि मैं शाम में क्लास भी लेने लगा था और मैम कहती थी अगर आप कुछ पढा रहे हो और सामने चाहे मैनेजर सर खड़े हो या डायरेक्टर सर आपको नर्वस नहीं होना है बल्कि फ्री माइंड अपना काम करना है। आप जो पढा़ने जा रहे हो या बताने जा रहे हो वो आपका अपना तरीका है वो सामने वाले को या मैनेजर सर को थोड़े नहीं पता कि आज मैं कौन सा उदाहरण दुंगा या आपको कौन सी घटना शेयर करनी है।

कभी कभी शाम के क्लास में मैनेजर सर भी आके खड़े हो जाते तो भी कभी हमने उनके आत्मविश्वास में न कोई कमी होती न ही बोलने के लहजे में कोई बदलाव होता।

चुंकि यहां पहली बार था और मोनिका को पाने की अलग खुशी तो शुरू में थोड़ा हिचकिचाने के बाद मैंने पूर्ण आत्मविश्वास से घंटे भर एट्टीट्यूड पढा़या।


सपने बेचना


ये भी नहीं कह सकते कि मैंने यहां कुछ नहीं सीखा मेरे जैसा अंतर्मुखी लड़का जो दिन भर अंजान लोगों के बीच जाकर उनसे बात ही नहीं बल्कि उनको मैनेज करना भी सीखता है ।एक तरह से देखा जाए तो इसमें सीखने जैसा भी कुछ नहीं है बोलना तो हम सब जानते ही है, और अगर एक तोते को भी अगर हम ये मच्छर मक्खी भगाने वाली पिच याद करा दे तो वो भी दिन भर में 50-60 लोगों से मिलकर ला आफ एवरेज का पीछा कर 10-12 गंजों को तो वह भी यह कंघी पकड़ा सकता है‌। और उसे भूखा रखों उसके पास इसके अतिरिक्त आय का कोई साधन न हो तो जाहिर सी बात है वो फील्ड में जाने के बाद न बैठ सकता है नहीं सो सकता और चाहे सर पर कितनी भी तेज धूप क्यों न हो, आसमान ओले ही क्यों न उगल रहा हो जब उसे पता है कि शाम के खाने के लिए उसे 25 रुपये चाहिए सुबह नाश्ते के लिए उसे 10-15 रुपये चाहिए। फिर फील्ड में जाने के लिए 25 रुपये हप्ते में 25-30 रुपए साबुन-सर्फ, मंजन के लिए चाहिए तो एक तोता भी औसतन 70-80 रुपये प्रतिदिन के कमाना सीख जाएगा। और इसमें हमारे पेट की भूख भी हमें चलते रहने के लिए प्रोत्साहित करती है। एक पेस्ट रिपेलर को हम 60 रुपये में बेचते थे जो एक खोखला डब्बा होता था जिसे प्लग की तरह बिजली के बोर्ड में लगाने पर वह आवाज भी करता था जिसे हम अल्ट्रासोनिक बेब्स कहकर मच्छर, मक्खी, चूहा, छिपकली भगाते थे और मैनेजमेंट स्टूडेंट्स के नाम पर या यूं कहे मैनेजमेंट स्टूडेंट्स का नाम बदनाम कर भुनाते थे। इस 60 रुपए में 10 रुपया हमारा बनता था। जिंदा रहने के लिए हमें प्रतिदिन के 70-80 रुपये चाहिए होते थे यानी कि हमारी प्रतिदिन की मजबूरी होती थी कि कम से कम 7पेस्ट रिपेलर तो बिके ही अन्यथा अगले दिन खाने के भी लाले पड़ जाएंगे। हां ये मशीन बिल्कुल काम नहीं करती थी तो हमें इसे बेचना सीखने से ज्यादे इसको बेचने के बाद उस कस्टमर से बचना सीखना था कि कहीं वह अचानक प्रकट हो जाए और हमसे कहें की मशीन काम नहीं करती है तो उससे हमें कैसे बचना है। जबकि फील्ड में मार खाने के, चप्पल जूतों से, लात खाने, दिन भर कस्टमर द्वारा बंदी बनाये जाने की कहानी एक समुद्री नाविक की रोमांचक यात्रा की तरह सुनायी जाती। और जब तक प्रत्यक्ष इसका अनुभव नहीं हो गया तब तक तो यह कोई हालीवुड की एक्शन फिल्म की तरह लगती थी। जिसे वास्तव में यह थप्पड़, लात, घूंसे पड़े होते थे वह तो इसे अपने लिए सिस्टम से मिलने वाले इनाम या अपनी परीक्षा के रूप में प्रस्तुत करता। लोग कहते की सिस्टम हमको चेक करता है और वह देखता है कि लड़के के पास कितना पेशंश है विपरीत परिस्थितियों में वह परसिस्टेंस बनाये रख पाता है कि नहीं?

मैम ने मुझे पहले ही कहा था कि यहां बेचना नहीं है। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता गया यहां का एक एक रहस्य मेरे आगे खुलने लगा‌। मारिया तक का सफर तय करने करने के लिए हमें प्रोडक्ट ही बेचना नहीं बल्कि हमें विश्वास बेचना सीखना था और हम यहां पहले दिन से ही विश्वास बेचना ही तो सीख रहे थे, हमें तो पता होता ही था कि ये प्रोडक्ट बिल्कुल डब्बा है लोग भी बड़ी मुश्किल से यकीन कर पाते थे और हम उस ढीठ प्राणी को भगाने की बात कर थे जिनके उपर मार्केट में भी उपलब्ध प्रोडक्ट्स का असर पूरी तरह होता हो यह कहना भी बेमानी है, लोग कहते भी कि उनपर आलआउट, गुडनाईट का असर तो होता नहीं ये क्या मच्छर भगायेगी। लेकिन जिसे हम इस विश्वास को बेचने में सफल हो जाते थे वह हमारा प्रोडक्ट क्रय कर लेता था। यहां तक की जिसके पास पैसे नहीं भी होते वो अगल-बगल से उधार भी लेकर हमारा प्रोडक्ट क्रय करता। एक जगह मैंने देखा कि पांच पांच के जुटाये गये नोट जो शायद बच्चे के गुल्लक को तोड़कर निकाला गया था। मैं पूरे ट्रेनिंग पीरियड में इसे अपना सबसे अच्छा रिजल्ट मानता था। कुछ सीनियर कभी कभी ऐसे भी फील्ड के किस्से सुनाते और कहते कि जिसपर फोर फैक्टर असर कर गया वह कहीं से भी पैसे लाकर देगा चाहे उसके लिए उसे अपने गड़े पैसे ही क्यों न निकालने पड़े या बच्चे का गुल्लक ही क्यों न तोड़ना पड़े मैंने भी फील्ड में इसका अनुभव किया जब एक बारह साल के बच्चे ने मेरे सामने अपना गुल्लक तोड़ दिया,कि मेरे विश्वास पर उसने अपना गुल्लक तोड़ दिया। लेकिन मुझे दुख भी बहुत हुआ कि उस छोटे बच्चे ने कितने जतन से एक एक पैसा जोड़कर जमा किये थे जिसे उसने एक ऐसे प्रोडक्ट पर खर्च कर दिया जो काम ही नहीं करती। ये नोट देखकर और उसकी गरीबी देखकर मेरा तो उसे प्रोडक्ट देने का मन ही नहीं हुआ लेकिन घोड़ा अगर घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या?

इसी तरह से मैं तीसरे महीने में ही जान गया था कि यहां सात महीने में भी कोई मैनैजर नहीं बनता करीब यह बात हर लीडर को पता चल जाती है। लेकिन जो इसके लिए अपना सब कुछ एक विश्वास के उपर लुटा चुके है उस विश्वास का खुद ही गला कैसे घोंट दे। या उस संसार में अब वो कैसे लौटे जिस संसार के लाख समझाने पर उसकी बातों पर कान देना भी गवारा नहीं समझा। बीच राह में आने के बाद जब हमें ज्ञात हो जाता है कि अगर इस तरह हम तरते रहे तो हमें किनारा कभी नहीं मिलने वाला तो अधिकांश वापस लौटने की अपेक्षा डूबना अधिक पसन्द करेंगे। एक समाज से कटे हुए अकेले इंसान को जीने के लिए चाहिए क्या दो वक्त की रोटी, थोड़े आंसू थोड़ी खुशी, रात में सोने के लिए थोड़ी जमीन, साथ ही साथ मोक्ष पाने का उपाय। रोज मर मर के हम रोटी का जुगाड़ करना तो सीख ही गये थे। जहां हम प्रार्थना एवं अभ्यास करने थे उस जगह का प्रयोग हम सोने के लिए भी कर लेते थे, जहां हम जमीन पर प्रोडक्ट का गत्ता और उस पर एक पतली चादर डालकर सात-आठ घंटे की नींद ले लेते। थोड़ी बहुत खुशी हमें कभी प्रोडक्ट बेचकर कभी विश्वास बेचकर कभी सपने बेचकर तो कभी कभी किसी जुनियर के प्रमोशन पर कभी अपने प्रमोशन पर कभी लड़के मिलने पर और आंखों में आसूं आने की भी कयी वजहे है हमारे पास भी कभी मैम की डांट से कभी मैनेजर की डांट से कभी कस्टमर की गाली सुनकर तो कभी मैनेजर से कभी कस्टमर से लात, घूंसे, जूते खाकर सबसे जरूरी हमें मोक्ष मिलने के दो ही उपाय थे एक तैरते-तैरते गंगा जी में डूबकर दूसरा तैरकर किनारा पाकर अर्थात मैनेजर की कुर्सी जिसका सपना हमें पहले ही दिन से दिखाया जाता है जिसे हम मारिया कहते थे जो हमारा फील्ड से मोक्ष पाने का उपाय था।

फील्ड से मोक्ष पाने के लिए हमें विश्वास के साथ-साथ सपने बेचना भी सीखना था जो सपना मुझे या मेरे जैसों को दिखाकर समाज, घर-परिवार से हमारे संपर्क हमारे रिश्ते तोड़ दिये गये थे कुछ ऐसा भी हमें करना था। यह मैनेजमेंट से भी कहीं अधिक यानी सम्मोहन का विजनेस था झूठ को सच बनाने का बिजनेस था। कहते है न कि एक झूठ छुपाने के लिए हजार झूठ बोलने पड़ते है तो कुछ ऐसा ही सफेद झूठ बोलना हम सीख रहे थे। अब मुझे अपने जैसे कम से कम दस बारह लड़कों को वही सपना बेचना था इसके लिए मुझे मैम जैसा सम्मोहन सीखना था, मटर समोसे को अभिमंत्रित करना सीखना था जिसको खिलाने के बाद मैं जो भी कहूं उस पर कोई नया लड़का या लड़की आंख मूंदकर विश्वास कर ले। हमें भी सीनियर की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास करना सिखाया गया था। मैं यहां पर काम कर रहा था तो बस अपनी ट्रेनिंग मैनेजर को देखकर, उन्हें देखकर ही मेरे अंदर कि नकारात्मक विचार कभी कुछ दिनों, तो कभी कुछ महीनों के लिए तो आने ही बंद हो जाता था। उनसे बातकर, उनकी टीचिंग को देखकर, सुनकर जैसे लगता की ये सब उनके लिए बच्चों का खेल है। और मैं तो लाख निगेटिव होने के बाद भी इस खेल को सीखकर उनके जैसा बनना चाहता था। सो मुझे यह सम्मोहन भी तो सीखना ही था। और मेरे लीडर बनने के बाद से ही मैम ने मुझे वह सम्मोहन भी सिखाना शुरू कर दिया था, जिसका इस्तेमाल कर उन्होंने मुझे सम्मोहित किया था, जिसके बाद से वे जैसा कहती मैं वैसा ही करता चला गया। उन्हें जब भी जरा भी अहसास होता कि मैं इस सम्मोहन पाश को तोड़ने का प्रयास कर रहा हूं मुझे एक नये मंत्र का प्रयोग कर और कसके बाध देती और मैं चाहकर भी इस सम्मोहन पाश को तोड़ नहीं पाता। पहले दिन कंपनी से परिचय कराने के लिए जो तीन घंटे तक घुट्टी मुझे पिलायी गयी थी अब उसी घुट्टी को तैयार करने की विधि मुझे और रामकिशुन को एक साथ बैठाकर मैम हमें बता रही थी, प्रायः ये क्लास इतवार के दिन शाम को ही लेती थी, जिसमें कंपनी का पूर्ण परिचय, काम, तनख्वाह आदि विवरण होता था। जब वह हमें बता रही थी कि लड़के मिलने पर उसे अभिमंत्रित नाश्ता करना के बाद किस किस प्वाइंट पर कितना फोकस करना कहां जोर डालना है, लड़के पर कैसे फोर फैक्टर का इस्तेमाल करना है, कैसे उसे फीयर आफ लास देना है। उसके अंदर कंपनी की नीड को कैसे जगाना है। साथ ही यहां भी नो फाइट करना है, सिस्टम में रहकर ला आफ एवरेज का पीछा करना है।

मच्छर मक्खी वाली पिच या कस्टमर फंसाने की पिच तो मुश्किल से चार से पांच मिनट कि थी जिसमें हमें खाली खोखले डब्बे को बेचना था, लेकिन लड़के फंसाने वाली पिच कम से कम ढाई से तीन घंटे की थी और इसके लिए हमें को भौतिक वस्तु नहीं बल्कि काल्पनिक वस्तु का विक्रय करना था या स्पष्ट शब्दों में मैं आपको समझाऊं तो उसे सपना बेचना था। और इससे भी अधिक जरुरी जिस समाज में वह अब तक रहा है जिस समाज ने उसका लालन पालन किया है, जिस समाज से उसे प्रेम मिला है उस समाज से उसका संबंध विच्छेद कराना था। मां-बाप को तो भूलाना कहीं अधिक आसान है लेकिन जब बात प्रेयसी की आती है तो कहीं अधिक मुश्किल है। रामकिशुन सर जो यहां आने के बाद भी यदा कदा अपनी प्रेयसी राधिका की बात जब भी करते तो कहते कि अब मैनेजर बनने के बाद ही राधिका को मुंह दिखाऊंगा। और यहां आने के बाद तो परिवार के किसी भी व्यक्ति से बात करने तक की आजादी छीन ली जाती है। रामकिशुन सर को मैम ने हफ्ते में एक बार बात कराने की शर्त पर आने के दूसरे ही दिन उनका मोबाइल जमा करा दिया। शुरू में कुछ हफ्तों तक तो मैम ने बात कराया। लेकिन एक दिन मैम ने उन्हें करीब डांटते हुए कहा बस हप्ते-हप्ते पांच मिनट ही बात करनी है कि जीवन भर बात करनी है? सर ने जबाब दिया मेरा बस चले तो मैं घंटों ताउम्र बात करता रहूं।मैम ने आगे उनसे कहां मै तुम्हें फोन भी दिला दु तो खाली बात करके, हवाई किले बनाकर क्या कर लोगे। प्रेम करने के लिए भी पास में पैसे होने चाहिए, प्यार के अलावा भी एक लड़की की जरूरत होती है उसके खर्चे होते है। क्या अभी तुम उसकी जरूरते पूरी कर सकते हो? उसके खर्चे झेल सकते हो? सर से न हां कहते बन रहा था न ही ना कहते। आगे मैम ने समझाते हुए कहा अगर अपने प्यार को एक सुखद जिंदगी देना चाहते हो तो पहले अपने कैरियर पर ध्यान दो, एक बार मन से लगकर मैनेजर बन जाओ फिर दिन भर अपने फोन से बतियाओ, जब मन करे मिलने जाओ। क्या इसके लिए छह सात महीने बिना बात किए नहीं रह सकते? रामकिशुन ने उसी दिन कसम खायी कि अब मैनेजर बनने के बाद ही राधिका से बात करूंगा।

हमारे प्रतिद्वंद्वी ग्रुप के सीनियर ग्रुप लीडर की तो शादी भी हो चुकी थी। फोर फैक्टर का ऐसा नशा चढ़ा कि अपनी नई-नवेली पत्नी को छोड़कर आ गये। कुछ ऐसा ही सम्मोहन सीखना था। मुझे जो पहला लड़का वह पहले दिन फील्ड से ही एक घंटे में भाग गया। फिर दूसरा लड़के को दिन भर सीखाने पढ़ाने के बाद उसके नकारात्मक रवैया बना रहा मैंने उसका इंटरव्यू भी दिलाया लेकिन वह ज्वाइन करने आया ही नहीं। अब मैं निराश होने लगा मैनेजर ने मुझे लड़का देना भी बंद कर दिया मैंने हिसाब लगाया इस तरह से चार- पांच साल तो मेरा फील्ड में ही खप जाएगा। मैम ने काफी मोटीवेट किया और सीनियर्स की स्टोरी सुनायी।अपनी कहानी सुनाई कि मुझ से भी शुरू में कोई मैनेज नहीं हो रहा था मैंने अपने पिच पर फोकस किया मैंने स्वयं माना कि मुझमें ही कमी है अभी मुझे और भी बहुत कुछ सीखना है। जाने वाला पहले चला जाय तो कोई बात नहीं और वहीं दो तीन महीने बाद जाता तो कितना कष्ट होता। मेरा लड़का राधेश्याम तो लीडर बनने के बाद चला गया। लेकिन एक महीने के अंदर ही मैंने चार लड़के खड़े कर दिये। और देखना दो से तीन महीने के अंदर कभी भी डायरेक्टर सर आकर मुझे या प्रतिद्वंद्वी अखिलेश सर में से किसी एक को कभी भी मैनेजर बना सकते है। कड़ी टक्कर है । करना क्या है एक- दो लड़के तुम खडा़ करो एक-दो रामकिशुन, इस बीच दो - तीन लड़के तो मेरे बाये हाथ का खेल है। फिर चलते है मैनेजर सर को यहां छोड़कर, उसके बाद तुम्हारा ही नंबर है। ये बताओ मै या तुम आफिस में रहकर ज्यादा प्रोडक्ट बेचवा सकते है या फील्ड में जाकर? मैं बोला आफिस में ‌ ।तो कम्पनी हमें क्यों फील्ड में रखेगी। वह तो जितने अधिक मैनेजर बनायेगी उतना ही उसको प्रोफिट है। हमें बस ट्रेनिंग पीरियड में सिस्टम में रहना है बाकी सब सिस्टम पे छोड़ दो और फालतू चीजों में दिमाग न लगाओ यहा जो जितना ज्यादा दिमाग लगाया उसके घर जाने के उतने ही चांस बढ़ जाते है। अगर मैं पहले दिन ही तुमसे कहती की लड़को को भी मैनेज करना पड़ेगा तो तुम रुकते? आप समझ सकते है कि मैंने ना ही कहा होगा। मैम ने कहा हर व्यक्ति का लेवल है, सभी चीजों का एक निश्चित समय है अब तुम अभी ही ग्रुप लीडर के काम तो मैनेजर के काम में दिमाग लगाओ। या यहीं सोचो कि मैं तुम लोगों पर इतना दिमाग लगाती हुं इसके बावजूद भी निगेटिव विचार नहीं जाता। तो निश्चित रुप से निगेटिव होगे? जब तुम्हारा लड़का होगा, तुम्हारी तरह ही तुम्हें इक्सक्यूज देगा तो समय के साथ खुद सीखते जाओगे की क्या उससे कहना है? उसे कैसे मैनेज करना है, और देखना इसमें और तुम्हारा मन लगेगा और तुम से नहीं मैनेज होता है तो मै कहा जाऊंगी। तुम लोगों को मेरे ट्रेनिंग मैनेजर, इंदरेश सर समय- समय पर समझाते है कि नहीं।

आज क डोज कुछ ज्यादा ही हो गया था जिसका असर कम से कम दो महीने तक तो रहना ही था। हुआं भी वहीं ठीक दो महीने बाद मुझे अमित नाम का एक लड़का मिला जो बीए फाइनल ईयर में था। इस बीच प्रत्येक रविवार मैम मुझे और रामकिशुन को बताती कि लड़के को ले जाने के बाद उससे कब क्या बात करनी है कैसे उसे विश्वास में लेना है। फील्ड में ले जाने के बाद पहले उससे जान पहचान बढा़नी है, अपना परिचय देकर उसका नाम पूछना है। घर परिवार के बारे में बात करनी है, उसे आप अपनापन फील कराओं, शिक्षा दीक्षा के बारे बात करों, उसने कोई जाब की है या नहीं उसके लेबल को समझो और समझकर उसके लेबल पे आकर उसे समझाओ। उसे दिखाओ कि तुम भी उसके ही जैसे हो उससे अलग नहीं। लड़का कहता है इंटर पास है तो उसे ये न बताओं तुम बीकाम किये हो। बताओ कि मैंने भी इस साल बीए फर्स्ट ईयर का फार्म डाला है। इसी तरह से छोटी सी छोटी बात भी मैम हमें बताती।

मैं अमित को लेकर बलिया रेलवे स्टेशन के पीछे गया वहां एक छोटा शिव मंदिर था। सामने एक लाईन से सरकारी क्वार्टर थे जो निश्चित रूप से रेलवे कार्मिकों के लिए था। माहौल काफी शांत था, मंदिर में भी कोई आ जा नहीं रहा था माहौल हमारे विल्कुल उपयुक्त था। मैंने इतने दिनों में जो कुछ भी सीखा था सारा का सारा ज्ञान उस लड़के का। सलेक्शन कराने के लिए झोंक दिया। उस लड़के के साथ पर मैंने खुद को इमैजिन किया कि पहले दिन मैं क्या सोच रहा था, मैम ने मुझे कैसे मैनेज किया, मैम ने स्वयं को मेरे सामने कैसे पेश किया था उसे इमैजिन कर कर्म को आधार बनाकर 'मा फलेषुकदाचन' की भावना से तीन घंटे सिखाया पढ़ाया। और जब उसने ठीक मेरी तरह ही कहा था कि सात महीने ही तो है देखते है। तुंरत मैने उससे कहा कि तुम अभी उठकर चले जाओ यहां देखने वालों की जरूरत नहीं है उसे जबरदस्त फी‌यर आफ लास लगा लेकिन लड़का जब बैठा ही रहा इस बीच पांच मिनट तक किसी ने कुछ नहीं कहा।फिर मैंने समझाते क्या करीब डांटते हुए बोला कि अबतक तो देखते ही रहे कुछ कर पाये लाईफ में और आगे भी देखते रहोगे तो ऐसे ही देखते - देखते पूरी उमर निकल जाएंगी और लाइफ में कभी भी कुछ नहीं कर पाओगे।इसके बाद एक एक प्वाइंट समझाकर पीच खतम की, फील्ड में ले जाकर काम दिखाया। उस दिन मैंने उससे मैम की तरह कहा भी कि आज मैं आपको एक भी रिजल्ट नहीं दिखाऊंगा‌। गलती से अगर मिल जाए तो उसमें मेरी गलती नहीं और उस दिन चुंकि समय ज्यादा नही बचा था फिर भी चार रिजल्ट्स मुझे मिल गये थे। मैंने उसे जो भी इंटरव्यू के दृष्टि से मुख्य प्रश्न थे।वो सब संभावित प्रश्न जैसे मैम ने मुझे याद कराया था उसे याद करा दिया था और अंततः उसका सेलेक्सन हो गया। और वह बैग पैक कर अगले ही दिन हमारे साथ रहने आ गया था।









पहले थप्पड़ का अनुभव

कल्पना करिये ऐसे कुछ कस्ट से मरने वाले कस्टमरों का जिनका कस्ट उबारने के लिए हममें से कोई नहीं उसे मच्छर मक्खी भगाओं यंत्र थमा आया और फिर भी रात में मच्छर और दिन में मक्खियां भी जस की तस और उपर से यंत्र का इरिटेट करने वाला सांउड। मैंने फील्ड में कई लोगों से यह भी सुना कि इससे मच्छर मक्खी भागे न भागे लेकिन आदमी जरूर भाग जायेंगे जिससे एक दो दिन बाद आदमी मच्छर से तो नहीं लेकिन इस यंत्र से जरूर निजात पाने की सोच लेता जिससे अधिकांश लोग तो यह भी नहीं कन्फर्म कर पाते कि यह मच्छर भगाता भी है या नहीं? कहीं कहीं मैंने यह भी सुना कि यह छिपकली को भगाती है तो सुनकर इससे थोड़ी बहुत राहत जरूर मिलती कि कम से कम छिपकली को तो भगाती है। अधिकांशतः सुनने में यहीं आता कि यह मशीन काम नहीं करती हम भी कभी कभी गर्व से सही बात बोल देते कि आप मशीन से कौन सा काम करवायेंगे मच्छर न भगा रही हो तो बताये हो सकता है आपकी मशीन खराब हो तो लाईये आपको बदल कर हम नयी मशीन देते है और पुरानी वाली मशीन को थोड़ा रगड़ के साफ कर हम नये डब्बे में पैक करके किसी और कस्टमर का कष्ट हर लेते थे।

एक दिन मैं राजपूत नेयूरी में एक सतीश नाम के जुनियर को ट्रेनिंग देने के लिए मैं अपने साथ ले गया था दो चार पिच में ही मैंने उसे रिजल्ट लेकर दिखाया, फिर एक दो जगह उसे पिच देने के लिए कहा, मैंने अपने हिसाब से उसकी कुछ कमियों को इंगित किया, पुनः मैंने अपने कुछ पिच दिखाये फिर हम दो दिशाओं में बॅंट गये पिच करते करते मैं एक मकान के अंदर गया बाहर अहाते में चौकी पर एक करीब पचास-पचपन वर्ष के सज्जन बैठे थे मैंने नमस्कार करके मशीन का डेमो देने लगा कहने का मतलब उन्हें मैं अपनी पिच सुनाने लगा पहले तो वह खूब ध्यान से मेरी पिच सुना जब मैंने पूछा कि आपके नाम कितने सेट करू वो बोले पांच सेट, अचानक वो अपने स्थान से उठते है जब तक मैं कुछ समझने की कोशिश करता हूं तब तक मेरे गाल पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ता है मेरा चश्मा छटककर मेरे हाथ मेरे हाथ में आ जाता है, इसी बीच दूसरा थप्पड़ भी दूसरे गाल पर पड़ता है, "साले चुतिया समझे हो तुम लोग सुबह सुबह परेशान करने के लिए आ जाते हो इस तरह दो चार भद्दी भद्दी गालियां भी मुझे पड़ी।

यह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी इससे पहले नहीं उसने मुझसे कोई सामान लिया था, नहीं मेरे ग्रुप के किसी बंदे से

हो सकता है किसी और मैनैजमेंट से या किसी कुकर कडा़ही वाले से फंसे हो, जिसका खामियाजा उपर वाले ने मेरे गाल के लिए लिख रखा था।

थप्पड़ पड़ने के बाद मेरी क्या हालत थी मैं उसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता। अभी तक तो सुनता भर आया था, और ये युनिवर्सल ग्रुप के बंदे किस मिट्टी के बने हुए थे कि अपने गाल पर पड़ने वाला थप्पड़, खुद की लात जूतों से पिटाई के किस्से कितना चटकारे लेकर सुनाते थे। आज मुझे यकीन हो गया था कि फील्ड में थप्पड़ भी पड़ते है। मैं गाल सहलाते हुए बाहर निकला। मनुष्य की एक खास दोस्त आप उसे बुलाये या ना बुलाये लेकिन जब आप दुःख में हो तो आपका साथ निभाने आपके पास आ जाती है और वह मेरी तो कुछ ज्यादा ही खास है। तो आगे चलकर एक ड्योढ़ी पर मैं कुछ देर अपने खास दोस्त के साथ बैठ गया कुछ देर। कहने का मतलब मैं करीब पांच-दस मिनट तक बिना आवाज के अपनी जानी पहचानी दोस्त के साथ खूब रोया। मेरा मानना है कि रो लेने से मन हल्का हो जाता है। अब जब मेरा मन हल्का हो गया तो आंसू का स्थान दूसरे दोस्त क्रोध ने ले लिया, क्योंकि इस थप्पड़ का हकदार मैं तो नहीं था लेकिन जिस मनहूस घड़ी में मैंने उस मनहूस के घर में कदम रखा उसका हो सकता है। मुझे मेरे गुस्से को निकालने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। कहते है न कि अपनी गली में कुत्ता भी सेर होता है तो आज एक बूढ़े व्यक्ति के हाथों मैं पिटा था। हमें यहां सठे साठ्यम समाचरेत नहीं पढा़या गया था। हमें तो यह सिखाया गया था कि फील्ड में कोई गाली दे चाहे लात-जूते से मार-मार अधमरा ही क्यों न कर दे उसको नमस्कार करके, नाइस टू मीट यू या आपका दिन मंगलमय हो कहकर वहां से निकलना है। मैं गुस्से से उबल, रहा था और इस उबाल को शांत करने का कोई तरीका भी नहीं सूझ रहा था, अचानक से मुझे बैग में रखे पेस्टरिपेलर की याद आती है और मेरे मन में यह विचार आता है जैसे किसी का ग़ुस्सा यहां किसी पर निकाला गया है वैसे ही इस थप्पड़ का बदला मैं इस पूरे मोहल्ले से लूंगा। प्लान मेरे मन में तैयार था कि मुझे कैसे अपना बदला लेना है। यह विचार आते ही मेरा शरीर एक नवीन ऊर्जा से भर गया

और मैं बताऊ आपको मैंने पूरी लाईफ इस तरह की पीचिंग नहीं की थी, फिर जिस उर्जा व आत्मविश्वास के साथ डेमों देने लगा कि मैंने आधे घंटे के अंदर एक लाईन से सात- घरों को पेस्ट रिपेलर पकड़ा दिया, यहीं मेरा पूरे मोहल्ले से बदला लेने का तरीका था, जिसे मैंने सोचा और इस सोंच को अमली जामा भी पहनाया। वो तो बाकी बचे घरों की किस्मत उस दिन अच्छी थी मेरे सारे पेस्ट रिपेलर खत्म हो गये थे कारण आफिस में प्रोडक्ट खत्म हो गये जिसके कारण हम दो लोगों को मिलाकर भी केवल चौदह पेस्ट रिपेलर एलाट हुआ था। थप्पड़ खाने के बावजूद भी उस दिन हैरोल न करने का मलाल रह गया‌।

फील्ड अनिश्चितताओं से भरा है फील्ड में आपके साथ कब कौन सी घटना घट जाए कहां नहीं जा सकता ऐसे ही एक दिन मार्केट में मैं काम कर रहा था काम अच्छा चल रहा था मैं कुछ दो ही खुशी से उस दिन काम कर रहा था।

कहीं कहीं सीढ़ियां भी चढ़कर मै एक एक दुकान के साथ साथ एक एक घर को भी टच कर रहा था हमें सिखाया भी जाता है कि आप जिस टेरिटरी (क्षेत्र) में गये है एक भी घर या दूकान छोड़ना नहीं चाहिए, मैम तो यहां तक कहती थी कि चाहे चरमहला घर हो चाहे कोई झोपड़पट्टी किसी को भी नहीं छोड़ना चाहिए। हो सकता है जो चार महला घर है वो आपका प्रोडक्ट नहीं खरीदे क्योंकि उसके पास तमाम साधन पहले से उपलब्ध है झोपड़ी वाले की आपने जरा सी नीड जाग्रत कर दी तो वह आपका सामान खरीद लेगा।

इसी सिद्धांत का पालन करते हुए मैं लगातार लोगों से मिलकर डेमोंस्ट्रेशन दे रहा था। और मैं एक घर देखता हूं और सीढ़ियों से तेजी से उपर चढ़ जाता हूं, दरवाजा खटखटाने पर एक आंटी जी बाहर निकलती है और मैं उन्हें अपनी बात समझाने लगता हूं। इसी बीच एक सज्जन सीढ़ियों से तेजी से आते है और अचानक से मेरा कालर पकड़ कर घसीटने लगते है और करीब घसीटते हुए मुझे नीचे ले जाते है और भरे बाजार में मुझपर लात घूंसों की बारिश शुरू हो जाती है और इतने पर भी उनका मन नहीं भरता है तो अपना जूता निकालकर मुझे पीटते जाते है और लोगों से कहते है कि मैं इसको नीचे बुलाता रहा और यह धड़धड़ाते हुए उपर चला गया इस लिए आज मेरी़पिटाई हो रही थी, अब बताईये उसने तो कभी हमारा प्रोडक्ट भी नहीं इस्तेमाल किया था नहीं कोई पहले की जान पहचान। मैं एक्साइटमेंट में यह भी न देख पाया कि नीचे कोई दुकान है और अपनी धुन में नहीं उसको सुन पाया कि वह मुझे आवाज दे रहा है, बस मेरी गलती इतनी थी कि मैं उपर जाकर उसकी पत्नी को डेमों देने लगा, उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। मैं तो कहता हूं कि उसकी खुशकिस्मती थी और बेरी बदकिस्मती कि मैंने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया वरना दो सेट तो पेस्ट रिपेलर मैं उसको पकड़ा कर ही आता। अगर चलों मान लिया जाए कि उपर अगर कोई नयी नवेली दुल्हन को मैं डेमों दै रहा होता तो मेरी गलती थी लेकिन मैं तो करीब अपने मां के उम्र की महिला से बात कर रहा होता। दूसरा डर उसे चोर, डाकू का है तो चोर डाकू का इतना दिमाग नही खराब है कि वे अपने को मच्छर मक्खी भगाने वाला कहलवाये और तीसरी बात मैं शकल से भी चोर डाकू नहीं लगता। बहरहाल बिना किसी गलती के भी पिटने के बाद मैं उठा मेरी दोस्त जो आज फिर मुझे दिलासा देने के लिए आ गयी थी उसको सबकी नजरों से छुपाते हुए कपड़े झाड़कर पास के कालोनी में जाकर कहीं एकान्त की तलाश तलाश करने लगा जहां मैं अपने मन को हल्का कर सकु।

इस फिल्ड ने मुझे करीब 20-21 वर्ष की कम उम्र में ही बहुत कुछ दिखाया भी और बहुत कुछ सिखाया पढ़ाया भी जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, मैं सरे बाजार जूतों से लतियाया गया। कितनी गालियां सुनी धक्के खाये, ये केवल मेरे अकेले की ही बात नहीं है मेरे जैसे जो भी लड़के-लड़कियां इस चक्रव्यूह में फंसे है या अभी भी फंसे है उनके साथ इस तरह की घटनाएं होना आम है। बचपन में एक कहावत सुनी थी कि बुरे काम का बुरा नतीजा, लेकिन हम होश में ही कहा होते है कि हमें समझ में आये कि हम कुछ गलत कर रहे है, हमारे आंखों पर तो पहले दिन से ही मैनेजमेंट के नाम की काली पट्टी बाध दी जाती है, करीब हमारे सोचने समझने की छमता ही हमसे छीन ली जाती है, अगर मैं आपको अपने बारे में बताऊ कि मुझे एक गिलास पानी पीना हो उसके लिए भी किसी के आने का इंतजार करता हूं, कभी कभी मैं महीनों तक बाजार की ओर भी नहीं निकलता और मैं वहां रोज पेस्ट रिपेलर बेचने के लिए निकलता है। हम ऐसे प्रोडक्ट पर काम करते थे जिसे कोई कौड़ी के भाव भी न पूछे और उसे हम बेचकर एक स्वार्थी दुनिया का खजाना भर रहे थे हमको तो इतना उसमें से मिल जाता था कि हम बमुश्किल रोते-गाते सिर्फ अपने पापी पेट का पोषण कर सकते थे‌। हमारे प्रति अगर जनता में इतना ही आक्रोश है, इतना गुस्सा है तो समाज में क्यों इस तरह की कंपनियों को जीने देते हो, क्यों नहीं ऐसी संस्थाओं को आग लगा देते, आप हम जैसे कमजोर फील्ड इक्जीक्युटिव पर अपना गुस्सा निकालते हो, हमें बंधक बनाते हो, आप क्यों नहीं इस तरह के संस्था के मैनेजर को डायरेक्टर को क्यों नहीं बांध के पीटते,आप कुछ इस तरह का मिसाल क्यों नहीं समाज के आगे पेश करते की इस तरह की संस्थाओं का हमारे शहर में बसने से पहले पांव थरथरा उठे, उनके शरीर में कांपने लगे। इसलिए मैंने कहा था कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है। आप जब इस तरह के प्रोडक्ट को क्रय करते हो तो आप भी पूर्ण आश्वस्त नहीं होते हो कि यह प्रोडक्ट काम करेगी की नहीं, आप अपने रिस्क पर इसे लेते हो कि साठ रुपये ही तो है। जब मार्केट में इस प्रोडक्ट के तमाम स्थानापन्न पहले से ही मौजूद है तो फिर क्यों इसे खरीदने का जोखिम उठाते हो। अगर इतनी हिम्मत नहीं है कि आप इन संस्थाओं को आग नहीं लगा सकते तो इतना तो कर सकते हो कि आप इन्हें मत खरीदो इस तरह की संस्थाएं खुद-बखुद बंद हो जाएंगी। हम जैसे मासूम, बेरोजगार लड़के-लड़किया भी इन स्वार्थियों के चंगुल से बच जाएंगे।

लेकिन मुझे यह भी पता है कि ऐसा कभी नहीं होगा आप कभी सस्ते सामान के लालच में तो कभी उसके साथ एक मुफ्त में मिलने वाले प्रोडक्ट के लालच में पड़कर इसे जरूर खरीदोगे, कभी बीबी से, कभी बच्चों से कभी भाई से लड़ने के बाद, कभी बास से गाली सुनने के बाद अपना आक्रोश हम जैसे मासूम पर निकालने से नहीं चुकोगे। और इस तरह की संस्थाएं हम जैसे मासूम बेरोजगारों का फायदा उठाती रहेंगी, हमारे खून-पसीने से अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकती रहेंगी और हम जैसे मासूम लड़के-लड़किया इस अभिसप्त जीवन को जीने के लिए जैसे आज भी मजबूर है वैसे ही कल भी मजबूर रहेंगे।


मैं यहा एक और घटना का यहां जिक्र करने से खुद को नहीं रोक पा रहा हूं। मैं दिन भर काम करते-2 करीब शाम के चार बजे एक घर में पहुंचा एक करीब पचपन वर्षीय सज्जन बाहर निकलते है, मैं उन्हें अपने प्रोडक्ट के बारे में बताता हूं। सुनने के बाद मेरा घर-पता पूछते है मैं उन्हें अपना घर बस्ती बताता हूं, वो कहते है कि बस्ती में तो मैंने स्टेट बैंक के मैनेजर के रूप में काम किया है, अंदर आ जाओ तब बात करते है। घर में कोई नहीं था खुद उठते है और पानी की व्यवस्था करते है, मुझे एक सोफे पर बैठने के लिए इशारा करते है मैं इस बीच घर को देखने लगता हूं दीवार पर एक वृद्ध औरत की फोटो टंगी है और उसपर माला भी चढ़ा था संभवतः महाशय की पत्नी थी। वह खुद भी आकर उस सोफे पर बैठ जाते है। मुझसे घर परिवार के बारे में पूछते है और इस बीच अचानक से उनके अंदर जाने कहा से मेरे प्रति प्यार की भावना उमड़ आती है एक हाथ मेरे कंधे पर पर रखते है और दूसरे से मेरी जांघ सहलाने लगते है, जैसे ही मैं उनकी मंशा भाप लेता हूं मैं नमस्कार कहकर बाहर निकल आता हूं। मेरे बाहर निकल जाने के बाद भी उनका बेकाबू दिल माना और अब मुझे प्रोडक्ट खरीदने का लालच देकर फिर अंदर बुला रहे थे, मैंने उससे कहां तुमको मुझे कुछ बेचना नहीं है।

आगे जाने के बाद मुझे उसके हरकत और बात पर हंसी आ रही थी। बताओ सबको हम चाचा भैया कहकर मैनेज करते है ये हमीं को हमारे शहर का बताकर मैनेज कर रहा था। अपने साथ हुए इस प्रत्यक्ष घटना के बाद मुझे अब इस बात का भी अनुभव हो गया था कि फील्ड में केवल लात जूते ही खाने को नहीं मिलते बल्कि यहां प्राकृतिक-अप्राकृतिक अनचाहा प्यार भी बरसता है। बताइये बलिया जैसे शहर में जहां लोहा पट्टी नाम की एक भरी-पूरी बदनाम बस्ती सर्व जन को सुलभ है वहां यह कामदग्ध बुड्ढा अप्राकृतिक तरीके से अपनी प्यास शान्त करने का प्रयास कर रहा था।

उन दिनों सिम्बियन आपरेटिंग सिस्टम युक्त मोबाइल की धूम थी लेकिन ये फोन काफी महंगे थे ऐसे में हिंदी चीनी भाई भाई के नारे को सार्थक करते हुए चीन ने चाईना मोबाइल भारत में डम्प कर करीब हर भारतीय के हाथ में मल्टीमिडिया फोन को पहूंचाने का करीब सारा दायित्व वहन किया। लेकिन इसको आपको अपने जोखिम पर लेना होता था जैसे इस नारे की सार्थकता की कोई गारंटी चीन ने नहीं थी उसी आदत के मद्देनजर इन फोन की भी कोई गारंटी नहीं दी, मैं खुद भुक्तभोगी रहा हूं। इस ट्रेनिंग ने हमें क्रिकेट से, सिनेमा से, गीत संगीत से,प्रेम से, चीन से, मां- बाप, भाई-बहन से, घर द्वार से यहां तक की खुद से दूर कर दिया था या हमने स्वयं मोनिका, मारिया के प्यार के झांसे में में पड़कर अपने जीवन से इन्हें निकाल बाहर फेंका था।

रात के करीब दस बज रहे थे हम खाना खाने के लिए पास के होटल में गये थे श्रीलंका की पारी समाप्त हो चुकी थी भारत की ओर से एक गौतम गंभीर और दूसरी तरफ हमारे कैप्टन कूल अभी मोर्चा संभाले हुए थे हम होटल वाले के रेडियों पर कमेन्ट्री सुनने के साथ खाना खा रहे थे हम इस वक्त टाई और जो हमारा दिनभर का ड्रेस होता उसे उतारकर अन्य वेश में होते थे। मैंच रोमांचक दौर में पहुंच रहा था और खाने खाने के बाद भी आज हम सब सिस्टम का मजाक बनाने पर उतारू थे चुंकि टाई तो हमने पहले ही उतार दिया था सो अब यहां ध्यान दिलाने वाला भी कोई नहीं था कि आज हम सिस्टम के साथ मजाक कर रहे है। हालांकि कुछ लोग चलने के लिए भी कह रहे थे कहीं से सिस्टम को भनक न लग जाए। मैच का क्या है हम कल भी जान सकते है कि कप किसने उठाया। और वर्ल्ड कप तो फिर होगा तब हम मैनेजर बनकर सुनेंगे एक भी मैच नहीं छोड़ा जाएगा। लेकिन किसी पर भी आज सिस्टम का असर नहीं हो रहा था। अमुमन हम खाना खाकर आफिस आधे घंटे में पहुंच जाते थे और जब ग्यारह बज गये तब सिस्टम को अपने साथ ये किया जाने वाला खेलवाड़ बर्दाश्त से बाहर महसूस हुआ अब उसने खुद चलकर हमारी खबर लेने की सोची। सिस्टम को दूर से ही देख बाकी सिस्टम के रखवालों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। और सब स्वयं सिस्टम के साथ बिना उसके बुलाये ही भारत के हार जीत की चिंता छोड़ अपनी चिंता कर सिस्टम के साथ हो लिए। हालांकि सीनियरों को इस बात का पूरा अंदाजा था कि आज तो सिस्टम नहीं छोड़ेगा और इतनी बड़ी ग़लती हमने कैसे कर दी। भारत के चक्कर में हम सिस्टम को कैसे भुल गये कहीं आज सिस्टम हमारा कैरियर ही न खतम कर दे। सिस्टम ने आफिस पहुंचने पर हम सबको उसी कक्ष में आज बेमौके बुलाया गया था जब दुनिया भारत को जिताने के लिए रात भर जाग रहीं थी उस समय सारे सीनियर सिस्टम के भय से कांप रहे थे। मेरे बारे में तो आप जान ही रहे है मेरी तो सिस्टम से खेलवाड़ करने की पुरानी आदत रही है, फील्ड में कहीं पार्क देख, कहीं हास्पीटल देख, कभी किसी कस्टमर के यहां कभी एमवे मार्केटिंग वाले को आवश्यकता से अधिक टाइम देना ,बैठ जाना सो जाना, टाई उतार बैग में रख लेना, फिल्म देखने जाना, ट्रेन से जाना, ओपी शर्मा का शो देखना, सबसे बड़ी गलती या सिस्टम के साथ सबसे बड़ा खेलवाड़ बिना बताये घर चले जाना जिसके आगे आज का खेलवाड़ तो कुछ भी नहीं था सो मैं कुछ ज्यादा ही निश्चित था। आज तक तो बस सुनते आया था कि जो सिस्टम से खेलवाड़ करता है सिस्टम उसे छोड़ता नहीं।अभी तक मैं इतना भाग्यशाली नहीं था या सिस्टम ने ही मुझे अपने दर्शन के योग्य नहीं समझा था, लेकिन आज सिस्टम को भी मुझ पर तरस आ रहा था और यह सिस्टम स्वयं चलकर दर्शन ही नहीं दंड देने के लिए प्रतिबद्ध था। आज उधर गौतम गम्भीर के बल्ले से चौके छक्कों की बारिश हो रही थी और इधर सिस्टम ने स्वयं हमारे मैनेजर इंदरेश अंदर प्रवेश किया जिससे गौतम की तरह ही उग्र व गम्भीर मुद्रा में अचानक से जो मुझसे सीनियर थे के उपर चौकों छक्कों अर्थात लात घूंसों की बारिश भी करनी शुरू कर दी किसको कितने लात पड़े कितने हाथ पड़े बिना गिनती के निष्पक्ष होकर मारने के साथ-साथ गरियाए भी जा रहे थे सालो, मादर.. सिस्टम को मजाक समझ रखे हो, मैं नहीं रेडियों रख सकता हूं, आफिस में टीबी नहीं रख सकता हूं, मेरे शौक नहीं है लेकिन तुम लोगों को मैनेजर बनाने के लिए मैंने अपने शौक को त्याग दिया, मैं घर नहीं जा सकता मेरे मां बाप नहीं है। बहन… तुम लोगों के लिए मैं इतना त्याग कर रहां हूं, मैं मैनेजर होके सिस्टम से जौ भर नहीं हिलता, मेरी औकात नहीं सिस्टम से तनिक भर मजाक नहीं करने की और तुम लोगों ने पूरा का सिस्टम ही मजाक बना दिया।

आज सिस्टम की आत्मा मैनजर पर बुरी तरह हावी थी। लात जुतों,थप्पड़ों, की लगातार बारिश हो रही थी और वह हमें दम भर लगातार मां बहन की गालियां दे रहा था। आज मुझे पता चला कि यह सिस्टम भी जग के लोगों से अलग नहीं है इसे भी मां बहन की गाली देनी उतनी ही प्रिय है जितनी की आम इंसान को। अचानक से सिस्टम के भूत से ग्रसित वह मेरे पास पहुंचता है और अप्रत्याशित थप्पड़ मेरे गालों को झनझना देता है साले तुमको फेल होने की जल्दी पड़ी है फील्ड से भाग जाते हो तो कभी सिनेमा चले जाते हो एक आदमी लगातार तुम सबको मैनेजर बनाने के लिए दिन भर सोच सोच कर परेशान है, संजीव का लड़का फेल हो गया न।


आ चल चले दरभंगा

फेल तो मेरा होना नियति ने पहले से तय कर रखा था क्योंकि जिंदगी मुझे लगातार असफलता से ही मिलाने के लिए आमदा थी तो इस सिस्टम की क्या औकात थी, कि वह इस कहानी को बदल देती। मैं शुरू से विद्रोही रहा हूं यहां जितना कहां जाता कि दिमाग नहीं लगाना है मैं उतना ही अधिक दिमाग लगाने पर आमदा था और जितना मैं दिमाग लगाता ये नियम ये कायदे ये सिस्टम, ये मोनिका ये मारिया सब निस्सार लगने लगे और जब मुझे आज फिर महसूस होना शुरु हो गया कि जिस जगत में मैं आज जी रहा हूं यह अगर मिथ्या नहीं भी है तो भी इसे मिथ्या मान लेना ही उचित है। मैं अपनी पूरी जिंदगी कुछ चंद रुपयों के टुकड़ों के लिए एक कंपनी के नाम कर दूं और समाज से बिल्कुल कट जाऊ आज मैनेजर का गाली बात सुन रहा हूं कल डायरेक्टर का और तो और अपनी तरह और बीस लोगों की जिंदगी बरबाद कर दूं क्या मैंने इस दिन के लिए मैंने बी. काम किया था।

हम सब अभी पूरे बलिया के मच्छर, मक्खी चूहे, छिपकली भगाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध थे और पूरी

तन्मयता के काम में लगे हुए थे इस बीच पूरी ब्रांच के ट्रांसफर की खबर आने लगी थी। इन्हीं सब के बीच मैंने एक बार फिर सिस्टम से गलती कर बिना किसी को कोई खबर किये मैं बलिया से क्षपरा होते हुए घर आ गया।

दो दिन बाद पिताजी के मोबाइल पर एक काल आती है दूसरी तरफ शुभा मैम थी उन्होंने बताया कि दो दिन बाद हम सब यहां से नयी जगह जा रहे है। जल्दी आ जाओ

मैं पता नहीं क्यों उनके आगे बेबस हो जाता था या फिर से उनके व्रत का फल मेरी सोंच पर भारी पड़ जाता। अगले ही दिन रात्रि की ट्रेन से मैं फिर बलियां में था और मुझे फिर उस दिन मैनैजर ने मिस शुभा के साथ मुझे भेजा। उन्होंने फिर से मुझे कुरेदकर टटोलने की कोशिश की मुझसे कहा तुम्हारा लड़का पूछ रहा था सर जी कहां है। मेरा लड़का मतलब मैंने अपनी ही तरह जिस लड़के पर मैम से सीखे हुए सम्मोहनाश्त्र का प्रयोग कर जिस लड़के का मैंने कंपनी से परिचय कराया था या सात महीने में मैनैजर बनाने का झांसा दिया था अमित नाम था उसका इंटर पास था बीए में पढ़ रहा था लेकिन उस पर मेरे अश्त्रों के साथ साथ मैम के भी ब्रह्मास्त्र का ऐसा असर हुआ था कि वह सब कुछ त्याग कर यहां तक कि अपनी पढ़ाई भी छोड़कर हमारी टीम में शामिल हो गया था।

शुभा मैम ने कहा," मैने उससे पूछा कि सर अपना कैरियर छोड़ देंगे तो क्या तुम भी छोड़ दोगे।" तो पता है उसने क्या जबाब दिया? "सर के छोड़ने या फेल होने से मैं अपना कैरियर क्यों बरबाद करुं, एक आदमी के कुंए में कूद जाने से दूसरा नहीं न कूद जाएगा?" बताओ तुम्हारा लड़का ‌इतना मजबूत है और तुम इतने निकम्मे। अपने तो बरबाद हो ही रहे हो साथ साथ पूरे ब्रांच को भी बरबाद कर रहे हो ।ट्रेनी नहीं हो लीडर हो तुम्हारा लड़का भी कुछ दिन में लीडर बन जाएगा। तुमसे एक दिन का सीनियर रामकिशुन है जबकि उसकी तबियत भी नहीं ठीक रहती और अभी तक उसके पास कोई लड़का भी नहीं है फिर भी मैं कभी उसके आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं देखती, कहता है कि सिस्टम पर भरोसा है और देखना तुमसे पहले वह मैनैजर बनेगा। इसी तरह जीवन भर फील्ड में धक्के खाना है? मैं कब तक तुम्हारे पीछे पड़ी रहुंगी। आज तुम्हारे वजह से मुझे लड़का नहीं मिला नया लड़का आया था संजीव ले गया है।मैनेजर सर ने कहा कि तुम पहले अपने बिगड़े लड़के को संभालो। मन में बहुत तरह की बाते चल रही थी लेकिन मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। उन्होंने कहा कि दिमाग कम चलाया करों यहां जितना जो दिमाग चलाया है उतने जल्दी फेल हुआ है एक बार मैनैजर बन जाओ फिर जितना मन उतना दिमाग चला लेना।

दो दिन के बाद हम सब अपना बोरिया बिस्तर समेंट एक बस में बैठ कर नये रास्ते और नये शहर की ओर चल दिये रास्ते में पता चला कि हम सब कानपुर जा रहे थे। सब खुश भी थे कि हम लोग जहां जाते है वहां लोग पीछे पड़ जा रहे है कि न मशीन काम करती है न मच्छर भगाती है उपर से इतना यह इतना इरिटेट करती है जी इसे लगाना भी पहाण है ।कभी- कभी कोई ऐसा भी मिल जाता जो कहता कि छिपकली भगाती है। हमशे ज्यादा बलिया वासी खुश थे खासकर जिस मौहल्ले में हमारा आफिस था। जब हम मैनैजर के जोरदार भाषण के बाद दौड़ते हुए निकलते थे लोग पहले दिन तो सन्न व अवाक रह गये लेकिन अगले दिन से मारिया के दीवानों के इस दौड़ के आदी हो गये थे अब उन्हें भी इस दौड़ से निजात मिलने वाली थी। सुबह की चली पूरी टीम रात के करीब दस बजे कानपुर पंहुची जहां पहले से ही एक ब्रांच था। रास्ते में लोग अन्त्याक्षरी खेलना चाह रहे थे लेकिन खड़ूस ड्राइवर के कारण यह भी न हो सका।

आफिस पहूंचकर हम खाना खाकर सो गये और अगले दिन से कानपुर शहर के मच्छरों का खात्मा करने के लिए निकल गये। लेकिन कानपुर के हवा में कुछ तो ऐसा था कि यह शहर और यहां कि आवोंहवा मुझे तनिक भी रास नहीं आयी कि जिस नींद में मैं गोरखपुर से चला था वह नींद आज जाकर पूरी तरह खुल गयी थी। पहले दिन मटर समोसा खिलाकर जिस सम्मोहनाश्त्र से मुझे बांधा गया था कानपुर आकर उसका पाश पुरी तरह खुल गया था और मैं स्वयं को पूरी तरह आजाद महसूस कर रहा था हां एक कसर थी एक नीले रंग की टाई मुझे बता रही थी तुम सिस्टम से गलती करने जा रहे हो और सिस्टम तुम्हे इसका दंड अवश्य देगा। मैंने उससे कहा बहुत हो गयी सिस्टम की रट बन्द करों और मैंने उसे निकाल कर बैग में रख दिया। एक छोटे से होटल में मैंने चावल दाल खाये, चावल के दाने काफी लम्बे लम्बे थे जरूर इस चावल में ही कुछ खास था कि इसको खाने के बाद इसका बिल चुकाकर मैं तुंरत बाहर निकला धूप सर पर थी मैंने कानुपर सेंट्रल स्टेशन का पता पूछा इससे पहले मैं कभी कानपुर नहीं आया था‌‌। उस समय मुझे क्या पता जहां इस यात्रा का एक पड़ाव पूरा हो रहा है वहीं से एक नयी कहानी शुरू होगी। कानपुर को छोड़कर तो मैं जा रहा था लेकिन कान पुर ने मुझे नहीं छोड़ा, और समय समय पर मेरा कानपुर आना जाना लगा रहता है।

स्टेशन इस होटल से सीधे दो किलोमीटर था मैं पैदल चलकर स्टेशन तक गया साथ में मेरे एक बैग था जिसमें करीब 25 पेस्ट रिपेलर रखे थे और मैं अपना सारा सामान वहीं आफिस में छोड़ के बिना किसी को कुछ बताये अपनी यात्रा को गति दे चुका था। स्टेशन पहुंचकर अपनी आदत के मुताबिक मैं सीधे बुक स्टाल पर पहुंचा वहां व्लादिमीर नोवाकोव की लिखी लोलिता पुस्तक मुझे पसन्द आयी दाम ज्यादा था करीब 150 बता रहा था। मैं उस स्टाल से आगे निकल गया लेकिन लोलिता का मोह नहीं छोड़ पाया अगले स्टाल पर मैंने लोलिता के बारे में पूछा। दुकानदार ने कहा एक पुस्तक मेरे पास है, मुझे पता था कि लोलिता का कोई न कोई कद्रदान जरूर आयेगा। उसने मूल्य 90 रुपये बताया मैंने तुरंत उस पुस्तक को खरीद लिया बस्ती के तरफ जाने वाली ट्रेन स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर 4 पर लगी थी, ट्रेन खुलने में अभी टाइम था। मैं जनरल डब्बे में उपर वाली सीट पर लेट गया और मारिया का सम्मोहन पाश पूरी तरह से टूट चुका था अब उसका स्थान लोलिता ने ले लिया था।ट्रेन चलने लगी थी और सारंगी की आवाज से मेरा ध्यान टूटा मैंने देखा कि एक बाबा आनंदमग्न हो मस्ती में सारंगी बजाते हुए गीत गा रहे है जैसे लगा कि मेरा रोम- रोम आज यहीं गीत गा रहा है और मैं उस गीत में और सारंगी के मधुर धुन में खोने लगा।


आज मन उड़े मानिंद पतंगा, आ चल चले दरभंगा

यहां हर कोई भूखा नंगा, आ चल चले दरभंगा


यहां की रीत निराली है,यहां हर जिह्वा काली है

उपर उपर हरियाली है,जमीं तो सारी बंजर है

मुख में तो है राम राम और बगल में खंजर है

जहां न सिस्टम का है पंगा, आ चल चले दरभंगा


यहां न छांव है न धूप खाली कोहरा गहरा है

सिस्टम पे सिस्टम है कदम कदम पे पहरा है

घाव गहरा चेहरे का कहे हर चेहरे पे चेहरा है

जहां मन मेरा रहता चंगा, आ चल चले दरभंगा।


पीपल, महुआ, नीम अमवां के झूले का झूलना

बात बात पर बाबा की डपट पे मूंह का फूलना

बैट बल्ला गिल्ली डंडा को काहे है भूलना

जहां छुटपन के साथी संगा,आ चल चले दरभंगा