Dream to real journey - 9 in Hindi Science-Fiction by jagGu Parjapati ️ books and stories PDF | कल्पना से वास्तविकता तक। - 9

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कल्पना से वास्तविकता तक। - 9

इस कहानी को शुरुआत से पढ़ने के लिए आप हमारे प्रोफाइल विंडो पर फेरा लगा सकते हैं धन्यवाद...!


"यूवी..! यूवी..! एक बार दरवाजा तो खोल यार ... क्या बचपना है??.. हर बार तुम दोनों की लड़ाई होती है और मुझे बली की बकरी बना देती हो तुमदोनों... नेत्रा ने दरवाजे पर जोर से अपना हाथ पटकते हुए कहा जो लगभग पिछले आधे घंटे से वहां खड़े हुए यही कर रही थी और उसके पास ही कल्कि भी चुपचाप खड़ी हुई थी... जिसको बीच बीच में नेत्रा घुर कर देख रही थी..मानो आंखों से ही कत्लेआम कर देगी ... उसका घुरना लाजमी भी था... क्योंकि अब जो कुछ भी हो रहा था.... उस में केवल कल्कि का हाथ ही नहीं था... बल्कि वह पूरी की पूरी ही उस कांड की वजह थी। शायद यही वजह थी कि वह अब नजरें झुकाए हुए चुपचाप वहां खड़ी हुई सब देख रही थे वरना अब तक कल्कि चुप रहने वाली तो बिल्कुल भी नहीं थी।
" बोला ना मैंने कि तुम दोनों जाओ यहां से , मुझे अभी किसी से कुछ बात नहीं करनी है और वैसे भी बुरे और मतलबी लोगों से तुम दोनों जितना दूर रहो.. तुम्हारे लिए उतना ही अच्छा है।।" बंद दरवाजे के पीछे से यूवी के सुबकते हुए से शब्द दोनों के कानों में पड़े ..यूवी की यह बात सुनकर कल्कि की आंखों के कोर भी कब गीले हो गए थे... उसको खुद पता नहीं चला और पता चलता भी नहीं अगर... उसको नाक से सांस लेने में मुश्किल नहीं होती..... सच में हम रो रहे हैं, इस बात का अंदाजा हमें, हमारी आंखों से भी ज्यादा नाक से पता चलता है।
कल्कि ने जल्दी-जल्दी अपनी फूल स्लीव की नीली शर्ट के बाजू से अपनी नाक को साफ करते हुए दरवाजा खटखटाया..." यूवी यार सॉरी ना.... तुझे तो पता है ना मैं वो बस गुस्से में बोल गई थी। मेरा वह मतलब नहीं था... और ....और आई प्रॉमिस आगे से कभी ऐसा नहीं होगा बस अब की बार माफ कर दे यार प्लीज दरवाजा खोल दे एक बार भले ही बाहर आकर मुझे खून पी लेना डांट लेना और चाहे तो अपनी फेवरेट शर्ट भी तू ही रख लेना ठीक है भला वह शर्ट मुझे तुझसे ज्यादा प्यारी तो नहीं होगी ना प्लीज यार मान भी जा अब...!"
कुछ देर। के लिए ना तो अंदर से कोई बोल रहा था..... ना ही बाहर से कोई.... दोनों तरफ एक चुभती सी खामोशी छाई हुई थी!
नेत्रा में कुछ पल के बाद खामोशी को तोड़ते हुए कहा" युवी मैं लास्ट बार पूछ रही हूं.. तुम्हें दरवाजा खोलना है या नहीं???" नेत्रा ने अपने चिर परिचित गुस्से की आवाज में उससे कहा।
उसकी यह बात सुनकर कुछ पल के लिए यूवी के आंसू भी रुक कर... नेत्रा की आवाज को सुनने लग गए थे। क्योंकि यूवी जानती थी ,कि नेत्रा बहुत कम गुस्सा होती हैं लेकिन अगर उसको गुस्सा आ जाए ....तो उसको मनाना दुनिया का शायद सबसे मुश्किल काम होता है।
उसको याद आता है कि कैसे पिछली बार जब नेत्रा गुस्सा हो गई थी.... तो पूरे 6 महीने उसने उनसे बात ही नहीं की थी। यूवी अपनी जगह से धीरे से उठती है और अपनी दोनों आंखें, अपने हाथों से मसलते हुए साफ करती है। तभी बाहर से एक बार फिर से आवाज आती है।
"ठीक है फिर.... मत खोलो लेकिन याद रखना आगे से मैं भी..." नेत्रा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाती है, इससे पहले ही दरवाजा खुल चुका था और यूवी किसी मासूम बच्चे से सामने खड़ी थी.... उसको देखकर नेत्रा के शब्द गले में ही कहीं अटक कर रह जाते हैं... यूवी सीधा भागकर नेत्रा के गले लग जाती है... उसकी आंखें अब भी नम थी नेत्रा की पलकें भी यूवी को इस तरह देखकर... खुद ब खुद ही भीग जाती है.... उन एहसास के आंसुओ से... जो उनके दरमियां बिन कहे भी सब कह रहे थे।
पास में खड़ी कल्कि पर जब नेत्रा की नजर पड़ती है... तो उसको भी वह एक हाथ से खींच कर अपने उस पल का हिस्सा बना लेती है.... वह तीनों पता नहीं कितनी ही देर ऐसे ही एक दूसरे के गले लग कर खड़ी रहती है तीनों की ही आंखें आंसुओं से धुंधली हो गई थी। उन हल्के से आंसुओं के साथ उनके वो भारी-भरकम गुस्सा भी धुल चुका था।
" अब ऐसे ही एक दूसरे से चिपके रहने का इरादा है क्या?? तुम लोगों का...." नेत्रा ने माहौल को हल्का करने के लहजे से कहा उसकी बात सुनकर वह दोनों ही हल्का सा मुस्कुरा देती है और फिर एक दूसरे से अलग हो जाती हैं।
"स... सो... सॉरी..." कल्कि दोनों कान पकड़कर युवी की तरफ भरी आंखों से देखती हुई कहती है युवी एक बार उसकी तरफ घुरकर देखती है... और फिर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहती है।
"हां हां हां.... ठीक है... कर दिया माफ तुझे... अब अपनी यह नौटंकी बंद कर.... बड़ी आई सॉरी बोलने वाली!!!! ऐसे काम करती ही क्यों है कि तुझे सॉरी बोलना पड़े??"
"यार लेकिन लड़ाई पहले तूने शुरू की थी ना... ना तो मुझे से वह शर्ट छीनती और ना बात यहां तक पहुंचती..."
अच्छा तो तुझे अब भी मेरी ही गलती दिख रही है ??" यूवी ने गुस्से से कहा!
तो और नहीं तो....."
" तुम दोनों का ना कुछ नहीं हो सकता है....एक लड़ाई अभी ढंग से खत्म भी नहीं हुई है ... और तुम दोनों अगली के लिए तैयार बैठी रहती हो .. तुम दोनों ना एक दूसरे से दूर ही अच्छी हो ।" नेत्रा ने गर्दन हीलाते हुए कहा।
" हां सही कहा इससे तो दूर ही अच्छी हूं मैं.... देखना एक दिन इतनी दूर चली जाऊंगी कि फिर मुझे याद कर करके रोना है इस ने ......फिर रख लेना शर्ट भी तुम ही। यूवी ने कहा।
" कहीं नहीं जाने वाली तू ...पता है मुझे तेरा .... साथ ही मरेगी मेरे... चुड़ेलें इतनी जल्दी पीछा थोड़ी छोड़ती है किसी का.... और तुझे याद करके मैं क्यों रोने लगी भला??? रोयें मेरे दुश्मन..." कल्कि ने हाथ पटकते हुए कहा।"
हां वो तो टाइम ही बताएगा कि कौन रोता है और कौन नहीं ...?देख लेंगे...!!!" युवी ने भी कल्कि की ही तरह अपनी आवाज बुलंद करते हुए कहा।
" हां हां देख लेना जो भी देखना हो...." इतना कहते हुए दोनों मुड़कर अपने अपने कमरे में चली जाती हैं।
उन दोनों को जाता देख कर नेत्रा अपना सिर हिलाते हुए कहती है..." इन दोनों का सच में कुछ नहीं हो सकता है..दोनो को लड़ना भी होता है और एक दूसरे के बिना फिर रहा भी नहीं जाता है इनसे.... उफ़" कहते कहते नेत्रा भी अपने कमरे में चली जाती है।
★★★.....
सोचते सोचते दो आंसू नेत्रा के गालों पर लुढ़क आते हैं.... उसकी आंखो की कोरों का भीग जाना लाज़मी भी था....क्यूंकि जब से होश संभाला है तब से लेकर अब तक.... वह तीनों साथ ही तो रही हैं एक दूसरे के....! कभी एक दूजे के बिना रहने का तो ख्याल ही नहीं आया था उन सब के दिल में और अब ....अब अचानक उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था कि उन्होंने युवी को हमेशा के लिए खो दिया था।
वह अनजान दीवार मानो जैसे निगल ही गई थी युवी को... बाहर से तो वह दीवार अब नजर भी नहीं आ रही थी ,जैसे वहां कुछ हो ही ना.... सब कुछ बेहद सामान्य सा प्रतीत हो रहा था, लेकिन फिर भी बहुत कुछ असामान्य था...! वह जगह अब पूरे वातावरण का एक हिस्सा ही लग रही थी जिसको बिना रुकावट के आसानी से देखा जा सकता था...बिना किसी दीवार की उपस्थिति के।
सब कुछ नजर आ रहा था...लेकिन, जिसको देखने के लिए उनकी आंखें तरस रही थी वह कहीं भी नजर नहीं आ रहे थे और वह थे.... युवी और नित्य..!
उन सबको लग रहा था जैसे उन्होंने उन दोनों को खो दिया है, और अब कभी वह उन दोनों को नहीं देख पाएंगे.... इस ख्याल मात्र से ही उनका कलेजा फटा जा रहा था ।
कल्कि तो बेजान सी होकर ....वहीं नीचे बैठ गई थी ..मानो जैसे उसके शरीर से किसी ने आत्मा ही निकाल ली हो..!१ उनकी आंखों के आंसू सूख गए थे ...लेकिन अगर कोई उन सुनी आंखों को एक बार भी देख लेता तो वह आसानी से बता सकता की उसमें कितना दर्द छुपा रखा है इन सब ने...!
ग्रमील का भी कुछ ऐसा ही हाल था... उसके पूरा शरीर से गर्मी निकलती हुई सी प्रतीत हो रही थी शायद दर्द और गुस्से की वजह से उसके शरीर में समाहित तरंगों का तापमान बढ़ गया था।
तीनों के दरमियां एक दुख भरी खामोशी छाई हुई थी...तीनों ही एक दूसरे से एक शब्द बदलने की हालत में भी नहीं थे...कभी कभी दर्द इतना चीखता हुआ होता है कि उसको सिर्फ खामोशी ही खुद में दफन कर सकती है... बस इन तीनों का दर्द भी चीख रहा था ..लेकिन सिर्फ अंदर ही अंदर ,बाहर से तो हर को खामोश , टूटा हुआ सा नजर आ रहा था।
तभी वहां से कुछ दूर खड़ा वह शख्स जो कुछ समय पहले नेत्रा की तरफ देख कर घूर रहा था... वह उनके पास आता है। धीरे धीरे वह नेत्रा के बिल्कुल पास आकर खड़ा हो जाता है ...नेत्रा को जब अपने पास किसी के होने का एहसास होता है, तो वह अपनी नजरें उठाकर उसकी तरफ देखती है ।उस अनजान शख्स को अपने इतना करीब देखकर ...वह डर की वजह से अपने कदम पीछे हटा लेती है।
उसका डरना लाजमी भी था...क्यूंकि एक तो कुछ देर पहले उनके साथ इतना बड़ा हादसा हुआ था जिसकी वजह से वहां पर उन्हें हर चीज किसी मौत के फरमान से कम नहीं लग रही थी..... दूसरा इन हालातों में भी एक बार तो कोई आम इंसान उनको देखकर डर ही जाएगा क्योंकि ...एक तो उनकी आंखें मुंह की जगह होती थी और मुंह आंखों की जगह... ऊपर से आंखों का वह गहरा लाल रंग ,जो इस चमक रहा था... और मुंह के नाम पर तो मानो जैसे सीधा दांत ही रखे हुए थे... ऐसा भयावह रूप किसी को भी डरा देने के लिए काफी था।
नेत्रा के साथ साथ ग्रमिल और कल्कि भी उसको देखकर सहम गए थे। वो शख्स कुछ पल तो उन सबके सामने खड़ा हुआ चुपचाप उनके हाव भाव देखता रहा...धीरे धीरे उसकी आंखों का गहरा चमकता हुआ रंग भी सामान्य हो गया था।कुछ क्षण भीतर उसने अपने मुंह से या फिर शायद दांतों से ...पहला शब्द नेत्रा की तरफ उछाला..
" डरो मत नेत्रा मैं तुम्हे कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा..!"
नेत्रा उसके मुंह से अपनी भाषा और उस से भी ज्यादा अपना नाम सुनकर हैरान नजरों से उसकी तरफ देखने लग जाती है ...उसके साथ-साथ कल्कि का ध्यान भी वह आवाज अपनी तरफ खींच लेती है वह गूंजती हुई सी आवाज...सबके कानों में कुछ क्षण को कोलाहल मचा देने वाली थी। कल्कि और नेत्रा यह सब देखकर हैरान जरूर थे ...लेकिन उनका डर अब भी उनकी हैरानी पर हावी था...! वह दोनों एक बार एक दूसरे की तरफ देखते हैं और फिर ग्रमिल का हाथ पकड़कर, एक साथ उससे दूसरी दिशा में भागना शुरू कर देते हैं, लेकिन शायद उनका भागना बेकार ही था क्योंकि अगले ही पल वह उन तीनों के बिल्कुल सामने खड़ा हुआ था। उनका भागना और अगले पल उसका उनके सामने होना यह सब इतना अचानक हुआ था कि उन सबका दिमाग भी इतनी तेजी से नहीं सोच पा रहा था उनके कदम अपने अपने ही उस से पीछे की तरफ हटने लगते हैं।
वह एक बार फिर उन सबकी तरफ देखते हुए बिल्कुल शांत लहजे में कहता है..
" अगर तुम सब अपनी दोस्त की जान बचाना चाहते हो तो एक बार... बस एक बार मेरी बात सुनलो...मेरा यकीन करो मैं तुम सबको कोई नुक्सान नहीं पहुंचाऊंगा।"
उसकी आवाज बहुत गहरी और गूंजती हुई सी थी मानो कोई पानी के किसी गहरे कुएं से पुकार रहा हो...लेकिन अब आवाज से ज्यादा प्रभाव उसके शब्दों का था ... अगर कोई उलझ गया हो तो सही दिशा में एक चिंगारी ही किसी सुकून से कम नहीं होती है। कल्कि और नेत्रा ने जब उसके मुंह से यूवी का नाम सुना तो .. उन सबके कदम रुक गए थे ...अब धीरे धीरे उनके डर के ऊपर उनकी दोस्ती हावी हो रही थी, जब उन्हें लग रहा था कि सब दरवाजे बंद हो गए हैं तभी किसी ने उम्मीद की मानो एक खिड़की उनके लिए खुली छोड़ दी थी .... हां भले ही उनको बाहर खिड़की को फांद कर जाना था ,लेकिन अब उनके पास एक रास्ता था.... वो कहते हैं ना कि कुछ नहीं से ,तो थोड़ा सही ...बस कुछ ऐसा ही उनके साथ भी हुआ था अभी।
" क्या?? क्या कहा आपने ?? आप यूवी को बचा सकते है?? इसका मतलब...इसका मतलब हमारी युवी हमें वापिस मिल सकती है ?? बताओ .. बोलो ना " कल्कि ने बदहवासी से उसकी तरफ बढ़ते हुए उस सख्श से पूछा।

" देखिए मुझे नहीं पता कि वो जरूर बच जाएगी या नहीं ... मैं बस आपकी एक छोटी से मदद कर सकता हूं.. और वो मदद कितनी कामयाब होगी ये मैं भी नहीं जानता हूं" उसने फिर से अपनी उसी भारी आवाज में कहा।
" लेकिन आप हमारी मदद क्यों करेंगे ?? हमारा मतलब आप भी तो इसी जगह का हिस्सा है ना ..तो फिर आप अपने ही लोगों को हमारे लिए धोखा क्यूं देंगे??" नेत्रा ने सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखते हुए पूछा..
"मैं कोई धोखा नहीं दे रहा हुआ.. उल्टा मैं तो अपने लोगों के प्रति अपना कर्तव्य अपनी वफादारी निभा रहा हूं...धोखेबाज ..गद्दार तो वो है जिसने आपके दोस्तों को बन्दी बनाया हुआ है.." ये कहते कहते उसका वो अजीब चेहरा और भी अजीब हो गया था और कुछ क्षणों के लिए उसकी आंखें भी लाल हो गई थी।
" क्या मतलब है आपका ????" कल्कि ने कहा।
" मतलब ये कि वो हम सब गोलक्ष वासियों को अपने कब्जे में करना चाहता है...और बहुत हद तक तो वो कामयाब हो भी चुका है। लेकिन अगर आपकी दोस्त को उसके चंगुल से हम आजाद नहीं करवा पाए तो वो पूरी तरह कामयाब हो जाएगा ... फिर वो दिन दूर नहीं जब हमारे गाेलक्ष के साथ साथ वो आपके ग्रह पर भी अपना राज्य सत्यापित कर लेगा...बस इसलिए मैं चाहता हूं कि यूवी और नित्य उसके चंगुल से आजाद हो जाए...ताकि वो अपने नापाक इरादों में कभी कामयाब ना हो सके...."
एक सांस में वह सब बोल जाता है ... उसकी आवाज में दर्द ,गुस्सा ,डर सबके मिले-जुले भाव आसानी से देखे जा सकते थे।
"लेकिन उसके लिए हमें क्या करना होगा??" नेत्रा ने उसकी पूरी बात सुनने के बाद उस से पूछा।
" हमारा साथ देना होगा " उसने अपनी आंखें ऊंची कर के नेत्रा की आंखों में देखते हुए कहा।
" मगर कैसे??.. मेरा मतलब हमें तो कुछ भी नहीं पता है इन सब के बारे में ।।" कल्कि ने कहा।
" हूं.. भला तुम सबसे बेहतर कौन जान सकता है.. गोलक्षी इंसानों की ही देन है.!" उसने कहा ..शायद हंसते हुए।
" क्या मतलब??" कल्कि ने हल्की सी आवाज में उससे पूछा।
" मतलब सब समझ जाओगे ..आप सब बस मेरे साथ चलिए।"
उसकी यह बात सुनकर वह दोनों एक दूसरे की तरफ परेशानी भरी निगाहों से देखती है.. मानो असमंजस में हो कि उस पर विश्वास किया जाए या नहीं??
उनका मन अब दो नाव पर सवार था ...एक तरफ तो उन्होंने जो सब अभी देखा था कि उनके दोस्त वही किसी जगह में फस गए हैं.. और यह जीव उनके लिए मदद की एक किरण लेकर आया था कि शायद वो उन्हें बचा सकते हैं।
वहीं दूसरी तरफ उसके चेहरे को देख कर उस पर विश्वास करना उन्हें बेवकूफी लग रही थी... वह दोनों ही उसके साथ जाना नहीं चाहती थी, लेकिन वह दोनों ही इस बात से भी अच्छी तरह वाकिफ थी कि उसके साथ चलने के अलावा उनके पास कोई और रास्ता भी नहीं था.... क्योंकि अगर वह सब ऐसे ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो वह यूवी और नित्य को शायद हमेशा हमेशा के लिए गंवा बैठेंगे।
" ठीक है हम चलेंगे आपके साथ .." नेत्रा ने कहा।
कल्कि उसकी यह बात सुनकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहती है।
"क्या तुम्हें नहीं लगता कि हमें इस बारे में एक बार और सोचना चाहिए???"
" और सोचने से क्या हासिल होगा कल्कि?? बताओ ....वहां पता नहीं हमारी यूवी किस हाल में होगी और हम यहां बैठकर सोचते रहे कि हमें उसकी मदद करनी भी है या नहीं?? हां बोलो ..यही चाहती हो क्या तुम। ??" उसने दुख में चिल्लाते हुए कल्कि से कहा।
मेरा ये मतलब नहीं था नेत्रा... तुझे क्या लगता है कि मैं हमारी यूवी की मदद नहीं करना चाहती...?? नहीं नेत्रा नहीं... ऐसा नहीं है... मैं तो खुद चाहती हूं कि हम किसी तरह उसको बचा लें... लेकिन मैंने बस इसलिए कहा कि कहीं इनकी साथ जाने से उसकी मदद करने की बजाय हम भी किसी मुसीबत में ना फंस जाए और फिर उसके साथ साथ हम भी अपनी जान गवां बैठे ...फिर ना तो हम उसकी मदद कर पाएंगे और ना ही खुद की...! " कल्कि ने अपने आप को शांत रखते हुए ,नेत्रा के सामने अपनी बात रखते हुए कहा।
" देखिए आप सब मेरा यकीन कीजिए मैं आप सब को कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा... आप इस बात की बिल्कुल भी चिंता ना कीजिए ..!" उसे गोलक्षि ने कहा जो अब तक चुपचाप खड़ा हुआ उन दोनों की बातें सुन रहा था ।
" कल्कि अगर हम इसके साथ नहीं गए तो यहां रह कर भी हम कहां जी पाएंगे??? बल्कि यहां तो हर पल मरेंगे यह सोच सोच कर कि तब हम अपनी यूवी की मदद कर सकते थे लेकिन हमने नहीं की ....कि काश तब हम उनके साथ चले जाते तो ,शायद अब यूवी और नित्य हमारे साथ होते... और क्या फर्क पड़ता है ?? अगर इस कोशिश में हमारी जान चली जाए.. कम से कम इस बात की तो खुशी रहेगी कि हमने कोशिश तो की थी.. हेंना!" नेत्रा ने कल्कि के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा।
यह सब बातें सुनकर कल्कि की आंखें भर आई थी.. उसके गले में कुछ अटक सा गया था जिसकी वजह से चाहते हुए भी उसके मुंह से शब्द नहीं फुट रहे थे... उसने बिना बोले नेत्रा के हाथ पर अपने दूसरे हाथ की पकड़ मजबूत करते हुए अपनी गर्दन हिलाकर नेत्रा की बातों में अपनी हामी भर दी थी।
वो तीनो अब उसके पीछे पीछे चल रहे थे। वो गोलक्षी चुप चाप उन्हीं हवा में बने रास्तों पर उनके आगे चल रहा था। हालांकि सब रास्ते एक बार को देखने में एक से लग रहे थे लेकिन ....उनके दोनों तरफ लहराते हुए नाना प्रकार के वो पेड़ उन्हें एक दूसरे से अलग बना रहे थे। हर रास्ते का अपने ही प्रकार का एक पेड़ होता था जो एक दूसरे से बिल्कुल अलग थे।
" अच्छा आपका नाम क्या है ?? और आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?? और वो इतना सब आपको कैसे पता है??" नेत्रा ने अपने चश्मे को सही करते हुए एक साथ उसपर सवालों को बोछार कर दी थी।
" हूं...मेरा नाम ...मेरा नाम है जिली ...और रही बात तुम्हारा नाम और वो सब जानने की ...तो बता दूं ...हर गाेलक्ष वासी एक नजर भर किसी की तरफ देखने मात्र से उसके बारे में जो सब वह खुद जनता होगा ..वो सब जान सकते हैं।" उसने अपनी उसी गूंजती आवाज को भरपूर शांत रखते हुए जवाब दिया।
" ओह...ऐसा क्या ??" कल्कि ने हैरानी से उसकी बात सुनते हुए कहा।
" जी "
ये बात सुनकर वो अब उनसे थोड़ा और डर जाते हैं क्यूंकि उनकी यही बात इस बात का जीता जागता सबूत थी कि वो सब उनसे कितने शक्तिशाली थे।
रास्तों से गुजरते हुए अब वो थोड़ी फैली हुई सी जगह पर पहुंच गए थे...जहां कहीं कहीं कुछ घरनुमा आकृतियां सी नजर आ रही थी।
जीली उनको कुछ आकृतियों के आगे से गुजारते हुए एक घर के अंदर जाने का इशारा करते हुए...खुद भी अंदर चला जाता है।
" काका...हम आपको किसी से मिलवाना चाहते हैं।" जीली ने अंदर पहुंचकर एक शख्स से कहा... जो उनकी तरफ पीठ करके खड़ा हुआ ...एक खिड़की से बाहर देख रहा था।
अब तक कल्कि ,नेत्रा और ग्रामिल भी अंदर अा चुके थे...और उसी और देख रहे थे जिस तरफ वो शख्स खड़ा हुआ था। वो शख्स जीली की बात सुनकर उनकी तरफ देखता है। उनको देखकर कल्कि और नेत्रा के मुंह फटा का रह जाता है...और उन दोनों के मुंह से एक साथ निकलता है...
" रेयोन अंकल आप???"

सॉरी सॉरी...बहुत लेट लिख रहे हैं भाग ...जानते हैं हम....लेकिन उम्मीद है आप सबको पसन्द आएगा 🤐🤐।
आपको ये भाग कैसा लगा हमें समीक्षा लिखकर जरूर बताइएगा।
धन्यवाद
© jagGu parjapati ✍️