Dream to real journey - 7 in Hindi Science-Fiction by jagGu Parjapati ️ books and stories PDF | कल्पना से वास्तविकता तक। - 7

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कल्पना से वास्तविकता तक। - 7

पूरी कहानी समझने के लिए आप पहले के भाग हमारी प्रोफ़ाइल विंडो पर देख सकते हैं।
अब आगे ....
जब क़िस्मत हमारी जिंदगी में कुछ नया करना चाहती है तब चाहे हम कुछ चाहें या ना चाहें सब अपने आप होता ही जाता है… मानो जिंदगी हमारी ना होकर किसी और की हो जहां हमारा काम बस उतना ही होता है जितना किसी कठपुतली के खेल में एक कठपुतली का होता है।
कुछ ऐसा ही खेल किस्मत अब नेत्रा और उसके दोस्तों के साथ भी खेल रही थी। उनमें से कोई नहीं जानता था कि वो जहां है वहां क्यूं हैं और इसके आगे वो जाएंगे कहां .....?
वो सब तो बस चले जा रहे थे एक अनजान सफर पर जिसमें आगे का रास्ता कदम बढ़ाते ही खुद ब खुद बनता जा रहा था।
कल्कि ने जब वहां से कुछ दूर से ही पानी उठा कर अपने दोस्तों की तरफ फेंका तब वो सीधा यूवी की पीठ से जाकर टकराया था। उसी समय नेत्रा के उस तिलस्मी कंगन से निकलने वाली रोशनी इतनी तेज हुई कि आंखो को खुला रखना लगभग नामुमकिन था। सबका एक हाथ अपने आप ही आंखों को छुपाने के लिए चला गया था।
रोशनी तेज होना, आंखें बन्द करना और उनका किसी अनजान जगह पर चले जाना ...ये सब इतना अचानक हुआ कि तय कर पाना मुश्किल था कि कौन सी घटना ने खुद को पहले अंजाम दिया होगा।
भले ही इंसान आंखें बन्द कर ले ..लेकिन एक जागते हुए मनुष्य के लिए ये बताना कोई मुश्किल बात नहीं होती है कि बन्द आंखों के उस पार रोशनी है या अंधेरा ,जब उन् सबको भी रोशनी के कम होने का एहसास हुआ तो,, उन सबने अपनी आंखों से हाथ हटा लिया।
हाथ हटाने के बाद शायद उन सबके मन में एक ख्याल जरूर आया होगा कि काश हमने हाथ हटाया ही नहीं होता.…...क्यूंकि वो सब एक बड़े से पत्थर या यूं कहें एक छोटी सी चट्टान पर खड़े थे। जहां से अगर दूर दूर तक अपनी नजरों को घुमाया जाए तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा था सिवाय पानी के... जिसका रंग सामान्य से कुछ ज्यादा ही नीला लग रहा था।जिसकी वजह से उसके भीतर की गहराई झांकना नामुमकिन था।
उन सबकी सामान्य आकार से बड़ी हो चुकी आंखों से उनके डर और अचरज का पता लगाना कोई बड़ी बात नहीं थी।
यूवी:- ' बाप रे ये सब क्या है ??" चारों तरफ देखकर उसने कल्कि की तरफ अपने कदम बढ़ाते हुए कहा।
लेकिन उसके एक कदम बढ़ाते ही जो चट्टान अब तक बिल्कुल ठहरी हुई सी प्रतीत हो रही थी वो अचानक से हिलने लगी। इस अप्रत्यक्ष घटना से अनजान वो सब अपना संतुलन खो रहे थे। जब परिस्थितियां बिगड़ती है तो मनुष्य खुद को बचाने के लिए क्या कुछ नहीं करता है। वो सब भी खुद को बचाने के लिए इधर उधर बढ़ने लगे,जिसकी वजह से वो चट्टान और ज्यादा अस्थाई हो रही थी। तभी नेत्रा ने स्थिति को भांपते हुए सबसे कहा...

" हिलो मत कोई भी ,जो जहां है वहीं रुके रहो।"

सब नेत्रा की बात सुनकर एक दूसरे का सहारा लेते हुए एक जगह ठहरने की कोशिश करने लगे। कुछ समय बाद वो चट्टान खुद ब खुद स्थिर होने लगी और ये देखकर सबकी जान में जान अा गई। वो पांचों यहां आने के बाद पहली बार एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराया थे।
लेकिन इस दौरान किसी का भी ध्यान यूवी की तरफ नहीं गया था जो चट्टान के बिल्कुल गोलाई वाले हिस्से पर खड़ी थी जिसका ढलान सीधा नीचे पानी की तरफ था। उसके पांव अपने आप ही धीरे धीरे नीचे की ओर फिसल रहे थे।
यूवी जब पकड़ने की कोशिश करती तो वो जगह दोबारा हिलने लगती जिस वजह से वो खुद में ही खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। बाकी सब सिर्फ यूवी को बेसहाए नजरों से देख रहे थे क्यूंकि वो सब जानते थे कि अगर उनमें से कोई एक भी हिला तो वो सब उस पानी में समा जाएंगे।
कोई नहीं जानता था कि उनके चारों तरफ़ फैला वो शांत पानी का समुंदर कितना गहरा है। यूवी को इस हालत में देखकर एक समुंदर कल्कि की आंखों में भी उतर आया था। भले ही कल्कि यूवी से हमेशा झगड़ती रहती थी लेकिन उसकी नोक झोंक के पीछे छिपा प्यार यूवी से कभी छुपा नहीं था।वो दोनो आमने सामने खड़ी हुई है।उनकी भीगी हुई पलकों से ही उनके अंदर उठ रहे तूफान का पता लगाया जा सकता था। यूवी का भी कल्कि को देख कर यही हाल था। धीरे धीरे भले ही कदम फिसल रहे थे लेकिन आंखें तो मानो एक जगह ही टिक गई थी। नेत्रा भी दोनो को इस हालत में देखकर खुद को बिखरा हुआ सा महसूस कर रही थी। ऐसा ही कुछ हो ग्रमिल और नित्य का भी था।
" बस बहुत हुआ... अब मैं और देर तक खुद को नहीं रोक सकती हूं, अगर यूवी के बिना मैं जिंदा भी रही… तब भी जी तो नहीं पाऊंगी ना ?? पूरी जिंदगी पल पल मरने से अच्छा है मुझे यूवी को बचाने की एक आखिरी कोशिश करनी चाहिए। " कल्कि अपने मन में ही यूवी की तरफ देखते हुए सोच रही थी। सोचते सोचते वो एक हाथ से अपनी आंखें पोंछती है और फिर एक बार फिर उन चारों की तरफ देखती है। नेत्रा जब उसको ऐसा करते हुए देखती है तब उसकी हरकतों से उसको कुछ खटकता है।

नेत्रा:- " कल्कि तुम क्या करने की सोच रही हो ?? देखो कुछ भी बेवकूफी भरा काम मत करना...ऐसा नहीं है कि मुझे यूवी की फिक्र नहीं है लेकिन इस समय भावनाओं में बहने की बजाय दिमाग से काम लेने का समय है। हमें इस वक़्त सबके बारे में सोचना चाहिए।"
हाथों से उसकी और इशारा करते हुए नेत्रा कहती है। लेकिन कल्कि को मानो उसकी आवाज सुनाई ही नहीं दे रही थी। इधर यूवी किसी भी क्षण नीचे बिखरे उस गहरे पानी का हिस्सा बन सकती थी। सब कभी यूवी तो कभी एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। युवी का एक पांव चट्टान से अलग हो चुका था और दूसरा होने को तैयार था कि तभी कल्कि ने भी अपनी जगह से कदम उसकी तरफ बढ़ा दिये। उन सबका संतुलन बहुत हद तक बिगड़ गया था लेकिन सब संभल गए थे। पर.. पर वो दोनो अब चट्टान से नीचे गिर चुके थे। ग्रमिल ,नेत्रा और नित्य इस अप्रत्यक्ष घटना से मानो सदमे में चले गए थे। ऐसा लग रहा था मानो वहां का समय भी कुछ पल के लिए रुक चुका हो।
कुछ पल बाद जब वो होश में आते हैं तब नेत्रा को एहसास होता है कि कल्कि और युवी के पानी में गिरने की आवाज़ तो अाई ही नहीं है। नेत्रा अपनी ही जगह पर खड़े खड़े बड़ी सावधानी से उस तरफ मुड़ती है जिस ओर वो दोनो गिर गई थी।
नेत्रा जब नीचे की तरफ देखती है तो एक बार फिर से वो चौंक जाती है।
"क.. कल्कि ... यू..यूवी...तुम दोनों ......तुम दोनों ..." उस तरफ देखते हुए वो कहना तो बहुत कुछ चाहती है पर मानो उसके गले से शब्द ही नहीं फुट रहे थे। क्यूंकि कल्कि और यूवी डूबे ही नहीं थे बल्कि उस पानी के उपर बड़ी आसानी से लेटे हुए थे ...मानो वो पानी में नहीं, घर में बने किसी बेड पर बिछे मखमली गद्दे पर लेटी हुई हों।
कल्कि और यूवी दोनो आंखें खोलती है और एक दूसरे की तरफ देखती है।
" क्या हम दोनों मर गए हैं ??"यूवी ने कल्कि से पूछा।
"हूं हां ..लग तो रहा है यार ...शायद हम स्वर्ग में पहुंच गए हैं।"
"लेकिन तुम स्वर्ग में कैसे अा सकती हो?? तुम्हारी तो नरक में बात फ़िक्स की हुईं थी मैंने.." यूवी अपने सिर खुजलाते हुए कल्कि को कहती है।
" क..क्या ?? तू रुक मोटी ..एक तो मैं तेरे लिए मर गई हूं और तू मुझे यहां भी थैंक्यू बोलने की बजाय नरक में भेजने की तैयारियां कर रही है। तुझे तो मैं देख लूंगी ...."
" अरे नहीं नहीं !! मैं तो बस मज़ाक कर रही थी।"
वो दोनो एक दूसरे को हलके हाथों से मारना शुरू कर देती हैं। इधर नेत्रा भी उनको देखकर नीचे उतर आती है। वो धीरे धीरे पीछे की ओर से चलती हुई उनके पास जाती है और उन दोनों के कान पकड़ लेती हैं।
" आ.. आ... कौन है ?? कान छोड़ो हमारा बहुत दर्द हो रही है।" एक हाथ से अपना कान पकड़कर पीछे मुड़ते हुए वे दोनों कहती हैं। जब वो दोनो पीछे देखती रही तो दोनो के मुंह से एक साथ निकलता है।
" तुम...!!
तुम यहां कैसे ???"
" इसका मतलब तुम भी मर गई हो??"
"लेकिन तुम कैसे मर गई ???"
अचानक नेत्रा पर दोनो सवालों की झड़ी लगा देती हैं। नेत्रा झुंझलाकर उन दोनों के कान छोड़ कर दोनो के सिर पर एक एक चपत लगाते हुए कहती है।
" आॅफो,चुप करो दोनो तुम,मुझे लगता है तुम्हारा जो दिमाग घुटनों में अटका हुआ था वो भी कहीं गिर गया है ..एक बार अपने आस पास तो देख लो कि तुम दोनों हो कहां? मरी नहीं हो तुम दोनों ..जिंदा हो और वो भी सही सलामत बेवकूफ लडकिया ..."
नेत्रा की बात सुनकर वो उठकर खड़ी हो जाती हैं और अपने चारों ओर देखती है।
"हां यार हम तो जिंदा है ...लेकिन हम तो उस पानी में गिर गए थे ना... तो फिर गिले क्यूं नहीं हुए ..."कल्कि अपने कपड़ों को हाथ लगाकर देखते हुए कहती है जो कि सूखे पड़े थे। फिर उसका ध्यान नीचे अपने पांव की तरफ जाता है।
" मम्मी...ये क्या ...हम पानी के उपर कैसे खड़े हैं?? मतलब ये कैसे हो सकता है??"
अब सब नीचे ही देख रहे थे, ग्रमिल और नित्य भी तब तक नीचे उनके पास ही अा चुके थे लेकिन उन्हें ये सब अजीब नहीं लग रहा था क्यूंकि उनकी दुनिया में तो ऐसे ना जाने कितने ही उदहारण थे तो पृथ्वी से बिल्कुल अनोखे थे।वो तो बस चुप चाप खड़े हुए उन सबके चेहरों के बदलते भाव देख रहे थे।थोड़ी देर बात नेत्रा बोलना शुरू करती है।
" ऐसा हो सकता है कल्कि,क्यूंकि इसको अगर ध्यान से देखें तो निश्चित तौर पर ये पूर्णतः पानी तो नहीं है और कोई भी आसानी से उस द्रव्य के उपर चल सकता है जिसकी सर्फेस टेंशन फोर्स उस के मुकाबले ज्यादा हो...और हम नहीं जानते कि इस लिक्विड की सर्फेस टेंशन फोर्स कितनी है। या हो सकता है हम इस द्रव्य के प्रति हाइड्रोफोबिक नेचर शो कर रहे हो।"
"मतलब" यूवी ने झुंझलाते हुए पूछा...
"मतलब ये कि कुछ द्रव्य ऐसे होते हैं जो कुछ चीज़ों को छूने से डरते हैं मतलब उन्हें उसके प्रति फोबिया होता है ...और ऐसी चीजे उस द्रव्य से कभी नहीं चिपकती है।तो हो सकता है इसके साथ भी कुछ ऐसा ही हो..." नेत्रा ने अपने चश्मे को वापिस से ठीक करते हुए कहा और नीचे की तरफ झुकने लगी।
" ऐ ये क्या कर रही हो तुम??" यूवी ने उसको बीच में ही रोकते हुए कहा ।
" हूं ,,कुछ नहीं बस टेस्ट कर रही हूं.." अपना एक हाथ नीचे की तरफ बढ़ाते हुए कहती है।
" तू पागल हो गई है क्या ?? अगर इस से तुम्हे कुछ नुकसान पहुंच गया तो.."
" नुकसान ,हूं... अगर ऐसा कुछ होता तो वो तब भी हो सकता था जब तुम दोनों इसके उपर लेटकर स्वर्ग की सैर कर रही थी। " ऐसा कहते कहते नेत्रा अपनी एक उंगली उस पानी की तरफ बढ़ा देती है...और जिस जगह पर नेत्रा की उंगली छूने का प्रयास करती है वहां से वो द्रव्य अंदर की तरफ झुक जाता है मानो उसको छूने से बच रहा हो। सब ये देखकर काफी उत्साहित होते हैं।
" देखा मैंने कहा था ना ....." सीधा खड़े होते हुए नेत्रा कल्कि की तरफ देखकर कहती है।
" वो सब तो ठीक है नेत्रा लेकिन अब इस से आगे जाना कहां है हमें ?? और मुझे तो यहां दूर दूर तक इस नीले पानी के अलावा कुछ दिख नहीं रहा है।"
कल्कि की बातों से नेत्रा का ध्यान अपने चारों तरफ जाता है तब उसे महसूस होता है मानो वो दूर दूर तक फैले उस नीले जाल में उलझकर रह गए हो। नेत्रा ग्रमिल और नित्य की तरफ एक आशा की नजरों से देखती है।
" क्या आप दोनो को पता है कि हम कौनसी जगह है ???"
वो दोनो एक दूसरे को देखकर उसकी तरफ अपनी गर्दन ना में हिला देते हैं।
" हमने आपको पहले भी बताया था कि हम में से कोई भी इस से आगे नहीं जा पाया है।ये जगह जितनी आप सबके लिए नई है उतनी ही हम दोनों के लिए भी है।"
नित्य ने नेत्रा की तरफ देखते हुए कहा और ग्रमिल ने भी उसकी हां में हां मिला दी थी।
वो सब कुछ पल के लिए वही खड़े हुए सोच रहे थे। हालांकि उनमें से कोई नहीं जानता था कि उन्हें सोचना क्या है क्यूंकि किसी अनजान जगह के बारे में सोचना उतना ही मुश्किल होता है जितना कि किसी जानवर की भाषा को हिंदी में बदलकर समझना.... हां वो बात अलग है कि जानवर अपनी हरकतों से अपनी बात हमें समझा सकता है लेकिन ये नीलम से चमकता हुआ पानी तो किसी मृत की तरह बेजान लेटा हुआ था ...जो क्या कह रहा होगा ये भी एक सोचने का विषय था।
"जहां तक मुझे याद है कि जब हम सबने उस कंगन को छुआ तब उसके बाद हम सब यहां थे...." यूवी ने इधर उधर देखते हुए कहा।
" वाह मेरी आइंस्टीन इतनी बड़ी बात तुझे कैसे पता चली ...मुझे तो लगा था कि हम पैदा ही यहीं हुए थे।" कल्कि ने उसकी बात आधी ही काटते हुए कहा।
" पहले सुन तो ले देवी ..या हर बार अपनी थर्ड टांग बीच में अडानी जरूरी होती है तुझे..."
नेत्रा ने भी कल्कि की तरफ घुर कर देखा ,,जिसका मतलब उसको साफ पता था कि अगर वो अब चुप नहीं हुई तो उसकी शामत आएगी....
" ओह अच्छा बात पूरी नहीं हुई थी क्या ?? ठीक है चल बोल .." कल्कि ने बात को संभालते हुए कहा।
"तो उसकी वजह से हम यहां ही क्यूं पहुंचे ?? मतलब जहां तक मुझे लगता है कि यहीं से कोई ना कोई सुराग आगे जाने के लिए मिलना ही चाहिए ...."
" लग तो मुझे भी ऐसा ही रहा था युवी लेकिन कोई सुराग दिख भी तो नहीं रहा है ना ??"चारों तरफ नजरें घुमाते हुए नेत्रा कहती है।
"अरे ...लेकिन हम ने अभी कहीं देखा ही कहां है?? हम सब तो बस यही खड़े होकर बस अपने दिमाग के घोड़े दौड़ा रहे हैं...जहां तक मुझे लगता है हम सबको यहीं आसपास ही यहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता ढूंढना चाहिए..." यूवी ने सबकी तरफ देखते हुए कहा ।
"मुझे लगता है यूवी सही बोल रही है हमें आस पास की जगह को तो टटोलना चाहिए क्या पता कुछ हाथ लग ही जाए।"
" ठीक है फिर ऐसा करते हैं दो टीम बना कर ढूंढते हैं ..."
" हां ठीक है।"
" तो फिर नेत्रा ,मैं और ग्र्मिल इस तरफ जाते हैं और तू और नित्य उस तरफ जाओ ...लेकिन ध्यान रहे हम ज्यादा दूर नहीं जाएंगे ठीक है ।" कल्कि ने सबकी और एक हाथ से इशारा करते हुए कहा।
कल्कि की बात का अनुसरण करते हुए वह सब अलग-अलग दिशाओं में आगे की ओर चले जाते हैं। वो जिस भी जगह अपने कदम रखते पानी वहां से हर दूसरी जगह की बजाय थोड़ा और गहरा और नीचे की तरफ चला जाता था। उनका हर कदम उस पानी में एक लचक पैदा कर रहा था। सब एक दूसरे का हाथ पकड़ कर उस जगह की अच्छे से खोज बिन कर रहे थे...लेकिन उनमें से किसी के हाथ भी कुछ नया या अलग नहीं मिल रहा था।
" कल्कि अच्छा एक बात बताओ??" नेत्रा ने चलते हुए कल्कि से पूछा..
"हां पूछो ना "
" मुझे जहां तक याद है.. जब हम उस कंगन को छू रहे थे… तब तुम हमसे बहुत दूरी पर थी, और तुम्हारा इतनी जल्दी हम तक पहुंचना पॉसिबल भी नहीं था... तो फिर तुम यहां हमारे साथ कैसे ?? मेरा मतलब तुमने उस कंगन को छुआ कैसे??"
"दरअसल मुझे खुद भी कुछ अच्छे से नहीं पता.. मैं बहुत तेजी से दौड़ कर तुम सबके पास अा रही थी लेकिन बहुत दूर होने की वजह से मेरा पहुंचना मुझे भी नामुमकिन लग रहा था ...तब मेरे दिमाग में आया कि अगर मैं इंडायेक्टली भी तुम को छू जाऊं तो क्या पता काम बन जाए... बस तब मैंने देखा कि तुम सब ने कंगन को पकड़ा हुआ है और मुझे मेरे बैग में पड़ी पानी की बॉटल याद अा गई ..बस मैंने उठाकर उसका पानी तुम सबकी और उछाल दिया था... जस्ट फॉर इन डायरेक्ट कनेक्शन ...और देखो ये काम कर गया ..."
" ओह अच्छा...."
" हां ,,सच बताऊं तो एक बार के लिए तो मैं खुद भी डर गई थी कि अगर तुम सब अकेले चले गए तो मैं वहां अकेली क्या करूंगी ...मैंने तो इसी टेंशन में मर जाना था कि तुम सब ठीक भी हो या नहीं ,और कभी वापिस भी आओगे या ........"कल्कि ने कहा ,,उसकी आवाज में को भारीपन था नेत्रा उसे साफ साफ महसूस कर पा रही थी। उसको लगता है कि शायद उसको ये सवाल पूछना ही नहीं चाहिए था।
" मेरे शेर तू अब क्यूं कबूतर जैसा चेहरा बना रही है ..अब तो हम सब साथ ही है ... अब हम अकेले थोड़ी मर सकते हैं ..अब अगर तू साथ नहीं होगी तो स्वर्ग की दीवारों को टपकर मेरे साथ नरक की गेडियां कौन लगाएगा बुद्दुराम ..."
नेत्रा की इस बेतुकी बातों को सुनकर कल्कि हंस देती हैं।
" ओह ..कोई स्वर्ग के नाम पर शरमा रहा है।"
" शरमा नहीं रही हूं,हंस रही हूं ..."
" अच्छा जी ,, मुझे पागल मत बना , ये तेरी हंसी नहीं है... मैं अच्छी तरह वाकिफ हूं तेरी उस राक्षस वाली हंसी से..."
" क्या..क्या मेरी हंसी तुझे राक्षस वाली हंसी लगती है। फिर भी तेरी इस चुड़ेलों वाली हंसी से लाख गुना अच्छी है।छोड़ो तुझसे तो बात ही करना बेकार है।"
कल्कि ये कहते हुए अपना मुंह दूसरी ओर फेर लेती हैं। उसकी इस हरक़त पर नेत्रा कुछ कहने ही लगती है कि तभी ग्रमिल उन दोनों को बीच में टोकता है।
" नेत्रा जी आप दोनों अब लड़ते ही रहोगे या फिर जिस काम के लिए इधर उधर घूम रहे हैं वो भी करोगे??"
" हम लड़ थोड़ी ना रहे हैं .." नेत्रा कल्कि की तरफ देखते हुए कहती हैं।
" हां ..हम तो बस बात कर रहे थे।"
"नेत्रा बिल्कुल सही कह रही है,चलो अब देखो कुछ मिल जाए अगर ..."
इतना कहकर वो सब एक बार फिर उस जगह की खाक छान ना शुरू कर देती हैं।
दूसरी ओर नित्य और यूवी भी एक दूसरे का हाथ पकड़कर इधर उधर घूम रहे थे। नित्य कुछ ना कुछ बड़बड़ाए जा रहा था ...भले ही यूवी को सबकुछ समझ नहीं अा रहा था लेकिन उसके इशारों और चेहरे के हाव भाव से बहुत हद तक उसकी बातों को समझ लेती थी। पता नहीं ये उनके इतने दिनों तक साथ रहने का असर था ...या फिर उनकी दोस्ती की भाषा को शायद शब्दों के मायने समझ ही नहीं आते थे। यूवी उसकी बातों पर मुस्कुरा देती ..वो भी उसकी कुछ बातों का जवाब इशारों में देना बखूबी जानती थी।
थोड़ी देर बाद वो सब वापिस उसी जगह इकट्ठा हो जाते हैं ,,जहां से उन्होंने शुरू किया था।
" मिला कुछ ??" यूवी ने पूछा..
" नहीं ..और तुम्हे ??"
" नहीं यार हमें भी कुछ नया नहीं मिला , हर जगह तो ये पानी ही फैला हुआ है ...कुछ मिलेगा भी तो कैसे ??" यूवी ने कहा।
" हां यार ..सही कहा .. शायद हम सब यहीं फस कर रह जाएंगे।"नेत्रा ने मायूसी से नीचे देखते हुए कहा।
" हर जगह सिर्फ पानी नहीं है ..." कल्कि ने कहा ..उसके ऐसा कहने पर सब उसकी तरफ देखने लगते हैं।
" क्या मतलब"
" मेरा मतलब .. कि हर जगह सिर्फ ये नीला पानी नहीं है।"
" यार अब तू गोल गोल मत घुमा बात को ,साफ साफ बता क्या बोल रही है।" यूवी ने कहा।
"ये देखो " उसी चट्टान की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहती है।सब उसकी तरफ देखने लग जाते हैं।
" मतलब तुम सबको अजीब नहीं लग रहा कि जहां दूर दूर तक कुछ भी नहीं दिख रहा ...वहां बीच में सिर्फ ये एक पत्थर कैसे ? और चलो ये है तो है लेकिन याद करो...हम सब भी तो पहली बार इसी पत्थर पर क्यूं पहुंचे थे।" कल्कि ने एकबार फिर सबकी तरफ देखते हुए कहा। उसकी बातों से सबको उस चट्टान के बारे में सोचने पर मजबुर कर दिया था।
"शायद तुम सही कह रही हो .." यूवी ने कहा।
" हां...और हम सबने सिर्फ इसको छोड़ कर हर जगह देख लिया।"नेत्रा ने कहा..
वो सब अब उस चट्टान के बिल्कुल पास खड़े हुए थे... और उसको छूकर देख रहे थे। लेकिन उन्हें अब भी वहां से बाहर जाने का सुराग नहीं मिल रहा था।तभी ग्रमिल और नित्य उसे जोर से धकेल दिया...जिसकी वजह से वो धीरे धीरे एक तरफ खिसकना शुरू हो गया ...
वो सब भी अब उसको धकेलना शुरू कर देते हैं और कुछ ही देर में वो अपनी जगह से बिल्कुल अलग हो जाता है। उसके वहां से हट ते ही वहां से एक अजीब से नीले रंग की रोशनी निकलनी शुरू हो जाती है। चारों ओर बिखरा वो नीलम रंग का पानी भी हिलना शुरू कर देता है जिसकी वजह से वो सब भी हिल रहे थे...वो सब डर कि वजह से एक दूसरे का हाथ कसकर पकड़ लेते हैं।
धीरे धीरे उस रोशनी की वजह से वहां का पूरा नक्शा ही बदल जाता है और जिस जगह से वो चट्टान उन सबने हटाई थी वहां से एक घुमावदार रास्ता आसमान कि तरफ जाता हुआ प्रतीत हो रहा था।
वो सब उस रास्ते की दिशा में जब अपनी नजरें बढ़ाते हैं तो उन सबकी आंखों में एक चमक अा जाती हैं।
एक नई दुनिया उनके उपर फिर से उन सबका इंतजार कर रही थी।.....

कहानी जारी है.......
तो दोस्तों ये था हमारी कल्पना का अगला भाग ...उम्मीद करते हैं आप सबको पसन्द आएगा।
देर से डालने के लिए माफी चाहेंगे।🤐🤐
ये भाग आप सबको कैसा लगा हमें समीक्षा में जरूर बताइएगा और अच्छा लगे तो आप सब स्टिकर भी दे सकते हैं।
अगले भाग के लिए बने रहिए आप सबकी अपनी जग्गू के साथ 🤜🤛...
तब तक के लिए टाटा...स्वस्थ रहे नेगेटिव रहे ,और हमें ऐसे ही पढ़ते रहे।
jagGu parjapati ✍️