shimmering dreams in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | झिलमिल सपने

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झिलमिल सपने

1.
देख सकता हूं मैं दूर तलक।
है बाज सी ये मेरी नजर।।

कहीं छिपा नहीं कुछ भी हमसे।
जमी हो या चाहे हो फलक।।

रखती हूं सबसे दोस्ताना व्यवहार।
दिलों को जीतने का है मुझ में हुनर।।

लिखती हूं अल्फाजों में दिल की दास्तां।
में दिन-रात ख्वाबों में ही करती हूं सफर।।

कहते हैं लोग मुझे काव्य संपदा।
कल्पना लोक में है मेरा शहर।।
2.
कांच के इक खिलोने सा,
रहा है टूटता ये दिल।

रहा चलता मुसाफिर सा,
मिली मुझको नही मंजिल।

मुश्किलों से भरी राहें
बढाती ही गई उलझन।

मेरी कश्ती वहां डूबी
जहां था दिख रहा साहिल।
3.
तमन्ना चाहतों की वो,
सजा हर साल रखते है।

मुझे मालूम है मेरा,
सदा वो ख्याल रखते है।

मुहब्बत "सम्पदा" उनकी,
इबादत आस्था मेरी,
मगर फिर आशिकी में वो ,
वहम कुछ पाल रखते है।
4.
सुनो कान लगा कर
प्रकृति, लम्हा लम्हा
हर पल
कुछ बात करती है
खुशबू हैं सौंधी सी
सुबह और शाम
हर बार बादलो पर
अपने ज़ज़्बात लिखती है
मौन हो कर सुनना ज़रा
खिडकियों के परदे खोल कर
आसमान को तकना
रंगों में आवाज़े गूँजती हैं
सन्नाटों में कोई मुस्कुराहट धुलती है
प्रकृति कितना हँसती है
मौन में, कान लगा कर सुनना ज़ज़रा

4.
तपता सूरज धीरे-धीरे
ढ़लता रहता है
मौसम कुछ यूँ
करवट बदलता है
हवाओं में शाम के पत्ते
झरते रहते हैं
समय इन पत्तों पर चलकर
गुज़रता रहता है

5.
प्रकृति के माथे पर

दमकता सूरज का टीका

कभी लाल सिंदूरी

कभी दहकता आग का गोला

इस टिके के सजने से ही

पेड़, पत्तों, फूलों, झरनों

और हर जगह रंग खिल से जाते

ये वो नुक्ता है, जिसके बिना

शायरी अधूरी है

ये सुबह का खिलता टीका

शाम तक जैसे थक जाती है

कुछ धुंधलाती सी पानी में

घुल जाती है

ये हल्दी – कुंकुम सी बिंदी

संस्कृति से ले केर प्रकृति तक

हमें उर्जान्वित करती

जिंदगी देती है ...!

6.
रिक्त को परिभाषित करना भी नहीं आसान
पर रिक्त होने की सारी होड़
दो क्षण की रिक्तता में भी
बहते पानी सा ख्यालो को
गुज़रना होता है
इन खाली रिक्त स्थानों में
ज्ञान, संस्कार, चाहत ...
और ना जाने क्या क्या
भर दिया है
फ़िर से कोरे होने की चाहत में
वही रिक्तता को तलाशते फ़िर रहे हैं ...!

7.
पर है, आसमान है
मंज़िल है, उड़ान है
बंधनों में कहाँ
अब ये धरती-आसमान है
आंधियाँ, ये तो हौषला देती है
तूफ़ानो में कश्तिया
मंजिल को छूती है
अब सदमें में
दोनों जहान है
हौषले जो रुकते नहीं
हिम्मत भी अब झुकती नहीं
मेरे परों में अब उड़ान है
मेरे परों में अब उड़ान है ...!

8.
चाँद माथे के टीका सा
फूल, लाल गहना पहने
हवाओं में डोले
नन्ही कली मुस्काई सी
बदलो का काफ़िला चलता रहा
चाँद छुपता और निकलता रहा

9.
बिन कारण प्यार जताती माँ

बीन बोले सुन जाती माँ

प्यास लगे तो पानी बन जाती

भूख से पहले खाना लाती

एक तू है मेरी, बिना शर्त के

दुनिया तो शर्तो में बाधें

तेरे आँचल में छाया है मिलती

हरदम छोटा मैं होता

गोद में तेरे फ़िर सो जाता

घनी धूप में छाया देती

एक तेरी याद ही मुझको

माया देती

बिन कारण प्यार जताती माँ

बिन बोले सब सुन जाती माँ

10.
भूख और भोजन का नाता
आपस में गहरा, मदमाता
भोजन की मिठास,
दावतों का स्वाद,
रसोईघर की गहराईयों में छिपी
स्वाद के कितने राज़
चमचमाता है ताजगी से
सब्ज़ी हो या साग
दाल-चावल की मिलन की खुशबू
रोटी की रोशनी में छुपी
एक माँ की मेहनत और प्यार
पापड़ हो या मीठी चटनी
सब कुछ करता व्यक्त कुछ ख़ास
इस रंग-बिरंगे थाली की अपनी शान
भोजन जो प्यार की पहचान
मुह से आत्मा में उतरती
देश चाहे कोई हो
भोजन से सबको है प्यार
चलो बैठे रसोई में
साझा करें खुशियों का अन्नदान !
11.
इस अंबर पर सैकड़ों तारे
झिलमिलाते से, कई अनजाने
कुछ पहचाने से
एक विशाल भू - खण्ड
उसे पूर्णता देता ये अंबर
कितना हलचल, कितना शोर
जैसे कहीं पहुंचने की होड़
कुछ पा लेने की दौड़
और कई खामोशियां
कुछ तन्हाईयां...
कभी चांद - तारों से बाते
कई रबायते
कुछ संस्कार
कितनी हंसी, खिलखिलाहट
कुछ थोड़े आंसू
कितने दोस्त और हबीब
कुछ रकीब
इन सबके साथ
चलती ये जिंदगी
गिरती संभलती
रुकती, भागती ये जिंदगी
इन सबके साथ
कुछ अछूता सा
है हर पल साथ ...!