4.
प्रेम के इस नदी में उतरती गई
इतना डूब गई मैं डूबती ही गई
सांस सांसों के बंधन से ऐसा बँधा
कितना भी लहर आया मैं तैरती रही
हवा के थपेड़ों से मैं जुझती रही
फिर भी अपने दम पर खड़ी ही रही
कई कांटा मेरे राहों में आए मगर
हर कांटों से मैं खुद को बचाती रही
प्यार में खुशियां कम गम ज्यादा मिले
पर उस खुशी के लिए मैं मिटती रही
प्रियतम को माना है अपना खुदा
खुदा को पाने को मैं मचलती रही
प्रीत का बंधन ऐसा बंधा सारे बंधन
मुझसे जुदा हो गए
ये अलौकिक बंधन है सबसे जुदा
इसपर ही तो मैं मरती रही
प्यार में मुझे जीना आ गया
प्रेम पर मुझे मरना आ गया
मोहब्बत निभाने के लिए ही
मुझे जमाने से लड़ना आ गया
पर जुदा ना हो मेरा प्यार कभी
ईश्वर से हमने मांगा आशीष
हाथ खुदा का हमारे सर पर रहे
मेरे प्रियतम हमेशा मेरे साथ रहे !
5.
थमी-थमी सी ये हवा ये मौसमे बहार है
ये वादियाँ गवाह है मुझे उसी से प्यार है
न रोकना न टोकना कदम अगर बहक गये
ज़रा सम्भालना हमें चढ़ा अभी खुमार है
दवा दुआ न काम के न नींद है न चैन है
अजीब दर्द रोग का बढ़े चले बुख़ार है
पहुँच चुका रूह तक हुई ख़बर मुझे नहीं
सभी पहर उसी के अब बहार ही बहार है
उमंग है हुलास भी निशान लाल गाल भी
खिला हुआ गुलाब आज शबनमी फुहार है
मची हुई खलबली लहर उठी शबो -सहर
मिले कहाँ वो हमनसीं न चैन है क़रार है
दिलों के बीच फासले मिटे तो अजब हुआ
नजर तलाशते अभी उसी का इंतज़ार है
सियासतें करें सभी फरक नहीं मुझे कभी
निसार ज़िंदगी सीमा न खुद पे इख़्तियार है