my dream girl in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | मेरे सपनों की रानी

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मेरे सपनों की रानी

1.
प्रेम के इस नदी में उतरती गई
इतना डूब गई मैं डूबती ही गई
सांस सांसों के बंधन से ऐसा बँधा
कितना भी लहर आया मैं तैरती रही

हवा के थपेड़ों से मैं जुझती रही
फिर भी अपने दम पर खड़ी ही रही
कई कांटा मेरे राहों में आए मगर
हर कांटों से मैं खुद को बचाती रही

प्यार में खुशियां कम गम ज्यादा मिले
पर उस खुशी के लिए मैं मिटती रही
प्रियतम को माना है अपना खुदा
खुदा को पाने को मैं मचलती रही

प्रीत का बंधन ऐसा बंधा सारे बंधन
मुझसे जुदा हो गए
ये अलौकिक बंधन है सबसे जुदा
इसपर ही तो मैं मरती रही

प्यार में मुझे जीना आ गया
प्रेम पर मुझे मरना आ गया
मोहब्बत निभाने के लिए ही
मुझे जमाने से लड़ना आ गया

पर जुदा ना हो मेरा प्यार कभी
ईश्वर से हमने मांगा आशीष
हाथ खुदा का हमारे सर पर रहे
मेरे प्रियतम हमेशा मेरे साथ रहे !

2.
बजा बाँसुरी कान्हा सबका दिल लुभाते हैं
भुला सुध चली राधा पाँव रूक न पाते हैं

चला चाँद थक सोने रुका लौटकर आया
उठाती चाँदनी घुंघट नयन सबके लजाते हैं

महकती रातरानी और वन में मोर हैं नाचे
धरा नाचे गगन नाचे कन्हैयाजी नचाते हैं

चली गोपियाँ सज बजाती पाँव की पायल
भला कैसे न आये श्याम जो जादू चलाते हैं

मची धूम गोकुल में मगन हो झूँमते सारे
मधुर रस से भरी बंसी कन्हैया बजाते हैं

तुम्हे चाँद ने देखा तुम्हें देखा सितारों ने
सभी को श्याम देखें नज़र हम से चुराते हैं

रहे विकल हमेशा मन सुनो अर्जी लवी की
तुम्हें कैसे रिझाऊँ और गुर हमें न आते हैं

3.
कौन लगा सकता है प्रीत पर पहरा
प्रेम हर दीवार को तोड़ देता है
ये दिल की लगी है बहुत ख़ास
दो दिलों को ऐसे जोड़ देती है
जो एक जन्म तो क्या
जन्म जन्मांतर तक नहीं छूटता
ये ऐसा पवित्र बंधन है
ये मन को ऐसे डोर से जोड़ देती है
प्रीत को ना कोई रोक सकता है
ना कोई मार सकता है
ये प्रीत का अलौकिक रीत है
जो कभी मिट नहीं सकती है
प्रीत में बँधा मन ईश्वर तक से
नहीं डरता
फिर इस लौकिक जीवन की
कोई कोशिश उसे कैसे डरा सकती है
प्रीत में मदहोश मन
सिर्फ प्रेम करना जानता है
अपने प्रिय के अलावे दुनिया की
कोई भी जंजाल उसे नहीं दिखाई देती है!

4.
कौन लगा सकता है प्रीत पर पहरा
प्रेम हर दीवार को तोड़ देता है
ये दिल की लगी है बहुत ख़ास
दो दिलों को ऐसे जोड़ देती है
जो एक जन्म तो क्या
जन्म जन्मांतर तक नहीं छूटता
ये ऐसा पवित्र बंधन है
ये मन को ऐसे डोर से जोड़ देती है
प्रीत को ना कोई रोक सकता है
ना कोई मार सकता है
ये प्रीत का अलौकिक रीत है
जो कभी मिट नहीं सकती है
प्रीत में बँधा मन ईश्वर तक से
नहीं डरता
फिर इस लौकिक जीवन की
कोई कोशिश उसे कैसे डरा सकती है
प्रीत में मदहोश मन
सिर्फ प्रेम करना जानता है
अपने प्रिय के अलावे दुनिया की
कोई भी जंजाल उसे नहीं दिखाई देती है!