है इश्क........
है इश्क......
है इश्क...
3.
नफ़रतें दिल से हटा प्रेम जो फैलाओगे
ख़ूबसूरत ये जहाँ तुमसब तभी पाओगे
रंगीनियाँ साथ में रौनक लिए आएँगी
फूल से काँटे हटा बाग जो महकाओगे
लौटकर वक्त न वापस फिर आएगा
गलतियाँ कर बहुत अंत में पछताओगे
वायदे करके जो लोग निभाते नहीं हैं
कैसे उस पर ये विश्वास तुम लाओगे
हो सबको मालूम हकीकत बहुत कड़वी
ख़्वाब झूठे उसे कब तलक दिखाओगे
लोभ में क्यों परिंदे को फँसाते हो तुम
आह लग जाए तो कैसे खुद को बचाओगे
है बहुत मासूम "सीमा" के दिल को न तोड़ो
होगी बहुत तकलीफ जो प्रीत ना निभाओगे
4.
जब ये हमारी आँखे चार ना होती
जब हमारी आँखों से बात ना होती
ना सपने संजोती ये आँखें हमारी
आँखों से फिर ये बरसात ना होती
ना आँखें तड़पती तेरी झलक को
दिल की दिल से मुलाकात ना होती
न आँखें हमारी मिलन को मचलती
होते जो पास तुम मैं बेबात ना रोती
आँखों की शरारत ने दीवाना बनाया
न होती दीवानी ये हालात ना होती
गुंजन को बनाया आंखों की दीवानी
ना मिलते अगर ये जज़्बात ना होती
5.
गिरा के अपनी अदा की बिजलियाँ दिल पर
चला रहा है कोई अपनी मनमर्ज़ियाँ दिल पर
लगी हुई जहां भर की सख्तियाँ दिल पर
उमंगें फिर भी लगाती हैं अर्ज़ियाँ दिल पर
तमाम उम्र जिसे भूल हम नहीं पाते
असर वो छोड़ जाती हैं बेवफाईयाँ दिल पर
इलाज़ उनका नहीं पास है हकीमों के
जो घाव ग़हरे लगाती हैं तल्खियाँ दिल पर
सुकून जिसके मधुर बोल दिल को देते हैं
उसी के तंज़ चलाते हैं बर्छियाँ दिल पर
नाकाम होंगी तेरी कोशिशें सभी गुंजन
चली कहाँ हैं ज़माने की नीतियाँ दिल पर
6.
तुमको लिखे खत दिल की ज़मीन पर
टाँके कितने कागजात आलपीन पर
ये इश्क़ अल्फ़ाज़ से तुलता नहीं यार
क्यूँ तुमने ख़ार बो दिये मेरे यकीन पर
तुम्हारी थोड़ी सी चुप्पी जां जलाती है
जलते है बोसे बोसे वो मेरी ज़बीन पर
ढूँढा मैंने तुमको बड़ी मुश्किलों के बाद
पानी सा फिर गया मेरी छान - बीन पर
जादू गुंजन का ना जाने कैसे उतर गया
ताबीज़ ए वफ़ा बाँधा था आस्तीन पर
7.
खुश होती रही तू जिंदगी मुश्किलें डाल - डाल के
फिर भी तुझे जिया रास्ते निकाल - निकाल के
थाम के रखते इसे तो शायद महफूज ही रहता
खुद तोड़ लिया दिल अपना उछाल-उछाल के
भर ही जाता जख्म जो वक्त पर दवा कर लेते
नासूर बना बैठे हैं मर्ज को टाल - टाल के
खुद बढ़ा हाथ इनको खतम कर के फिर देख
कुछ ना मिलेगा दिल में इनको पाल - पाल के
वो सब शिकवे गिले जो उनसे किये ना जा सके
जहर बना लिया है दिल में संभाल-संभाल के
कातिल ने मेरे कत्ल का एक भी निशां ना छोड़ा
थक गए हैं सब मौके को खंगाल - खंगाल के
शायरी करनी है तो गुंजन अभी और फरेब खा
शेर निकलेंगे दिल से फिर कमाल - कमाल के