love (husband-wife) in Hindi Moral Stories by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | प्रेम ( पति - पत्नी का )

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प्रेम ( पति - पत्नी का )

प्रेम ( पति - पत्नी का )

एक साहूकार जी थे उनके घर में एक गरीब आदमी काम करता था । जिसका नाम था । मोहन लाल जैसे ही मोहन लाल के फ़ोन की घंटी बजी मोहन लाल डर गया । तब साहूकार जी ने पूछ लिया ?
"मोहन लाल तुम अपनी पत्नी से इतना क्यों डरते हो ?"
"मै डरता नही सर जी उसकी कद्र करता हूँ, उसका सम्मान करता हूँ ।" - मोहन लाल ने जबाव दिया ।
मैं हँसा और बोला -" ऐसा कया है उसमें । ना सुरत ना पढी लिखी ।"
जबाव मिला - " कोई फर्क नही पडता सर जी कि वो कैसी है पर मुझे सबसे प्यारा रिश्ता उसी का लगता है ।"
"जोरू का गुलाम । "मेरे मुँह से निकला ।" और सारे रिश्ते कोई मायने नही रखते तेरे लिये । "मैने पुछा ।
उसने बहुत इत्मिनान से जबाव दिया - "सर जी माँ बाप रिश्तेदार नही होते । वो भगवान होते हैं । उनसे रिश्ता नही निभाते उनकी पूजा करते हैं । भाई - बहन के रिश्ते जन्मजात होते हैं , दोस्ती का रिश्ता भी मतलब का ही होता है । आपका मेरा रिश्ता भी जरूरत और पैसे का है पर , पत्नी बिना किसी करीबी रिश्ते के होते हुए भी हमेशा के लिये हमारी हो जाती है अपने सारे रिश्ते को पीछे छोडकर । और हमारे हर सुख दुख की सहभागी बन जाती है आखिरी साँसो तक ।"
मै अचरज से उसकी बातें सुन रहा था । वह आगे बोला - " सर जी, पत्नी अकेला रिश्ता नही है , बल्कि वो पुरा रिश्तों की भण्डार है ।
जब वो हमारी सेवा करती है हमारी देख भाल करती है ,
हमसे दुलार करती है तो एक माँ जैसी होती है ।
जब वो हमे जमाने के उतार चढाव से आगाह करती है ,
और मैं अपनी सारी कमाई उसके हाथ पर रख देता हूँ
क्योकि जानता हूँ वह हर हाल मे मेरे घर का भला करेगी
तब पिता जैसी होती है ।
जब हमारा ख्याल रखती है हमसे लाड़ करती है , हमारी गलती पर डाँटती है , हमारे लिये खरीदारी करती है तब बहन जैसी होती है । जब हमसे नयी नयी फरमाईश करती है , नखरे करती है , रूठती है , अपनी बात मनवाने की जिद करती है तब बेटी जैसी होती है । जब हमसे सलाह करती है मशवरा देती है , परिवार चलाने के लिये नसीहतें देती है , झगडे करती है तब एक दोस्त जैसी होती है । जब वह सारे घर का लेन देन , खरीददारी , घर चलाने की जिम्मेदारी उठाती है तो एक मालकिन जैसी होती है । और जब वही सारी दुनिमा को यहाँ तक कि अपने बच्चो को भी छोडकर हमारे पास मे आती है । तब वह पत्नी , प्रेमिका , प्रेयसी , अर्धांगिनी , हमारी प्राण और आत्मा होती है जो अपना सब कुछ सिर्फ हम पर न्योछावर करती है ।"
मैं उसकी इज्जत करता हूँ तो क्या गलत करता हूँ सर ।"
उसकी बाते सुनकर सेठ जी के आखों में पानी आ गया ।
इसे कहते है पति पत्नी का प्रेम । ना की जोरू का गुलाम...?