I am becoming yours in Hindi Anything by DINESH KUMAR KEER books and stories PDF | तेरा होने लगा हूँ

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तेरा होने लगा हूँ

1.
सीखा ही नहीं हमने डरना कभी गैरों से
डर लगता है हमको तो इस शहर में भी अपनों से

कोई काट दे पर मेरे डर हमको नहीं अब उनका
हमने तो है सीखा उड़ाना भी परकटे परिंदों से

लगी डेस मेरे दिल को अपनों की ही बातों से
खाया है हमने तो धोखा बेईमान फरिश्तों से

अंजाम भी हमने देख लिया चल करके उसूलों पे
ईमान खरीदेंगे, अब यहां बेईमान, शरीफों से

कोई बात करें अब क्यों इन बेनूर चिरागों से
होती है यहां रोशन रातें,अब रातों के अंधेरों से

मेरी आंख का आंसू है वो रहता तेरी आंखों में
बन मोती टपकता है जो पलकों के किनारे से

अब बाज बहुत आई "साहिबा"इन झूठे रिश्तो से
तौबा कर ली हमने तो अब ऐसे रकीबों से

2.
प्यार को प्यार की बंदगी चाहिए
यार को यार की दोस्ती चाहिए

काम आशिकों का आशिकी हो फ़क़त
दिलजलों को भी बस दिल्लगी चाहिए

चांदनी को तमन्ना चांद की है अगर
चांद को भी तो बस चांदनी चाहिए

सांस लेने को जिंदा कहते हैं अगर
जिंदा कहने को जिंदादिली चाहिए
इश्क करना कोई गुनाह तो नहीं
आशिकों की नज़र बस उठी चाहिए

मिलता मौका अगर तेरे दीदार का
मुझको दुनिया वहीं बस थमी चाहिए

प्यार की आग से जल रहा है ये दिल
आग दिल की लगी बस बुझी चाहिए

दर्द मिटता नहीं है दवाओं से अब हमको
दर्द ए दिल की दवा "साहिबा" चाहिए।।

3.
दिया एक तूफां में जलाने चला था
मैं आंधियों में घर बसाने चला था

पिघलते नहीं है अश्कों से पत्थर
संगदिल से मैं दिल लगाने चला था

मिलते नहीं है नदी के किनारे
जमीं आसमां को मिलाने चला था

खुदा तूने मुझको क्यों रोका नहीं था
मैं दरिया में समंदर डुबोने चला था

कभी मिट न पाए फांसले दो दिलों के
मैं दूरियों से फांसले घटाने चला था

दरमियां खड़ी करके दो दिलों मैं दीवारें
मैं प्यार अपना साहिबा आजमाने चला था।।

4.
बाज़ीगर उनको भी कहते हैं कभी
जो जीत कर भी हार जाते हैं कभी

खेल यह कैसा रचा है ए खुदा
अपनों से भी मात खाते हैं कभी

लो लग गई हैं बाजियां शतरंज की
मोहरा बनाकर सब नाचते हैं कभी

जीत कर भी उड़ गई हैं नींदें तेरी
हम हार कर भी चैन से सोते हैं कभी

मंजिलों का भी पता देती हैं ठोकरें
ठोकरें खाके ही मंजिलों को पाते हैं कभी

खत्म ये मेरा सफर ना होगा कभी
छोड़के एक मोड को दूसरे पे आते हैं कभी

रातदिन का खेल ही तो है रजनी ज़िदगी
रात को फिर देख क्यों घबराते हैं कभी।।

5.
ये शाम शानदार है
ये जश्न यादगार है
खिल रही है हर कली
हर फूल पर बहार है
दिलों के दरमियान
बस प्यार प्यार प्यार है
चांदनी भी चांद से
मिलन को बेकरार है
झुक गया ये आसमान
ज़मीं की ये पुकार है
रवि की ये लालिमा कर
रही धरती का श्रृंगार है
मदहोश करने वाली
देखो चल रही बयार है
पंछियों का देखो कैसा
हो रहा गूंजार है
नदी की अठखेलियों से
मानो बज रहा सितार है
हर तरफ सुकून है
और प्यार बेशुमार है
भंवरों पे भी छाया देखो
कैसा प्यार का ख़ुमार है
ना लूट ले कोई लुटेरा
ये बाग गुलज़ार है
ये शाम ढल जाए ना
बस आपका "साहिबा" इंतजार है