जैसे ही विचित्रवीर ने जुझार सिंह का हाथ पकड़ा तो जुझार सिंह गुस्से से लाल पीला होकर विचित्रवीर से बोला....
"आपकी इतनी जुर्रत कि आप दो टके की लड़की के लिए मेरा हाथ पकड़ते हैं"
"हाँ! पकड़ा मैंने आपका हाथ,लेकिन ये तो बताइए कि इनका कूसूर क्या है?", विचित्रवीर बने मोरमुकुट सिंह ने पूछा...
"इसने बहुत बड़ा गुनाह किया है,इस लड़की की वजह से मेरे बेटे की जिन्दगी बर्बाद हो गई है,इसका फरेब वो बरदाश्त ना कर सका और अब वो धीरे धीरे मौत के मुँह में जा रहा है,मेरे बेटे की बरबादी का कारण यही लड़की है",जुझार सिंह बोला...
"इन्होंने कुछ नहीं किया जुझार सिंह जी! दिल लगाने से पहले आपके बेटे को सोच लेना चाहिए था कि उसका अन्जाम क्या होगा,आपका बेटा बड़े कमजोर दिल का निकला जो इतना सा ग़म बरदाश्त ना कर सका,इसमें इस बेचारी का कोई कूसूर नहीं",विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला....
"आप बीच में ना ही पड़े तो अच्छा होगा विचित्रवीर जी! इस दो टके की नाचने वाले के लिए आप अपना वक्त जाया ना करें,ऐसी लड़कियाँ हमदर्दी के काबिल नहीं होतीं,जो मेरे बेटे का दिल तोड़ सकती है वो आपका भी दिल तोड़कर किसी और के साथ जा सकती है",जुझार सिंह बोला....
"मुझे इसकी परवाह नहीं जुझार सिंह जी! क्योंकि मैं आपके बेटे की तरह बिल्कुल भी नहीं हूँ,मैं कौन सा शरीफ़ हूँ जो किसी के छोड़कर जाने पर अपनी जान देने पर आमादा हो जाऊँगा"विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला...
"अब आप अपनी हदें पार कर रहें हैं विचित्रवीर जी! मैं तब से आपकी दादी का लिहाज़ करके कुछ कह नहीं रहा हूँ तो इसका मतलब ये नहीं है कि मुझे बोलना नहीं आता",जुझार सिंह बोला....
"जो करना है कर लो,मैं क्या किसी से डरता हूँ और तू उस मनहूस बुढ़िया की बात ना कर,मैं तो कब से इसी ताक में हूँ कि वो कब मरे और उसकी सारी दौलत मेरे पास आ जाए",विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला...
"मतलब मैं अब तक गलत इन्सान से बात कर रहा था,जो अपनी दादी का नहीं,वो किसी का सगा नहीं हो सकता",जुझार सिंह बोला....
"जुझार सिंह अब तू अपनी औकात से ज्यादा बोल रहा है,कहीं ऐसा ना हो कि तुझे इसका खामियाजा भुगतना पड़े",विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला....
तभी माधुरी बोली....
"अरे! रायजादा साहब! आप भी भला किसके मुँह लगते हैं,ये दो कौड़ी का इन्सान है,इससे क्यों उलझते हैं,जरा अपनी हैसियत का ख्याल तो कीजिए",
"शायद! आप ठीक कहतीं हैं माधुरी जी! इसकी औकात तो मेरे आगें खड़े होने की भी नहीं है",विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला...
"तेरी ये जुर्रत विचित्रवीर! अब देखना मैंने भी तुझे दिन में तारे ना दिखा दिए तो मेरा नाम भी जुझार सिंह नहीं",जुझार सिंह बोला....
"अरे! जा....जा! ये मुँह और मसूर की दाल,ये गीदड़भभकी मुझे मत दिखा,बहुत देखें हैं तेरे जैसे" विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला....
"बच्चू! तूने जुझार सिंह से पंगा लिया है,अब देखना कि मैं क्या करता हूँ",जुझार सिंह बोला....
"हाँ...हाँ...देख लूँगा,अब ज्यादा दिमाग मत खा और जा यहाँ से",विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला...
"हाँ...हाँ जा रहा हूँ,लेकिन अपने किए का फल भुगतने के लिए तैयार रहना",
और ऐसा कहकर जुझार सिंह वहाँ से चला गया,जुझार सिंह के जाते ही माधुरी बोली....
"डाक्टर भइया! आज कुछ ज्यादा ही बेइज्जती हो गई जुझार सिंह की,अब वो ना जाने क्या करेगा",
"हाँ! अब हम सभी को बहुत ज्यादा सावधानियांँ बरतने की जरूरत है,अब वो कुछ भी कर सकता है",मोरमुकुट सिंह बोला....
"इसका अन्दाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता कि अब वो क्या करेगा?" माधुरी बोली....
"हाँ! क्योंकि वो बहुत ही शातिर है और बदला लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है" मोरमुकुट सिंह बोला...
"ये बात सबको बतानी होगी",माधुरी बोली....
"और रामखिलावन भइया से कहकर कल ही श्यामा जीजी के पास संदेशा भिजवा दो कि अब उनकी यहाँ जरूरत है,वे जल्द ही यहाँ आ जाएँ",मोरमुकुट सिंह बोला...
और फिर यही किया गया,श्यामा को बीहड़ो से जल्द ही बुलवा लिया गया और वो वेष बदलकर रागिनी के साथ सिनेमाहॉल की साइट पर काम करने लगी,क्योंकि वो जुझार सिंह को पहचानती नहीं थी,उसकी सूरत तो उसने कभी नहीं देखी थी,वो उसे देखना चाहती थी और रामकली बनी रागिनी ने श्यामा को ये कहकर मिलवाया कि वो उसकी बड़ी बहन चंपा है,वो भी अब से यहाँ काम करेगी.....
और उधर जुझार सिंह के मन में माधुरी और विचित्रवीर से बदला लेने की बात घर कर गई,इसलिए उसने अब रुपतारा रायजादा से मिलने का विचार बनाया,लेकिन अब जुझार सिंह के पास रुपतारा रायजादा का पता ठिकाना ही नहीं था,इसलिए अब जुझार सिंह ने रुपतारा रायजादा से मिलने की तरकीब निकालनी शुरू कर दी और उसने इस काम के लिए दो चार हट्टे कट्टे गुण्डे किराए पर रखे,फिर उसने उन गुण्डों को विचित्रवीर रायजादा और माधुरी के क्रियाकलापों को देखने के लिए लगा दिया,तब जुझार सिंह को पता चल गया था कि जिसे रुपतारा रायजादा मैनेजर खूबचन्द निगम करके उससे मिलवाती रही वो तो थियेटर का मालिक चमनलाल खुराना है और उसी थियेटर में माधुरी काम करती है,अब जुझार सिंह को दाल में कुछ काला नज़र आने लगा था और इसी दौरान उसे पता चला कि विचित्रवीर रुपतारा का पोता नहीं एक डाक्टर है जिसका नाम मोरमुकुट सिंह है और एक दिन वो वेष बदलकर उस के अस्पताल में पहुँचा.....
उसने पहले ही पता लगा लिया था कि उस समय मोरमुकुट सिंह अस्पताल में नहीं था,वो कहीं बाहर गया है और इसी बात का फायदा उठाकर वो अस्पताल में एक बूढ़े का वेष धरकर दाखिल हुआ,उसने सिर पर कम्बल डाल रखा था जिससे उसका पूरा चेहरा ढ़का हुआ था, हाथों में छड़ी ले रखी थी और वो अब अस्पताल का मुआयना कर रहा था फिर उसने वहाँ की नर्स ललिता से पूछा....
"क्या डाक्टर मोरमुकुट सिंह यहाँ काम करते हैं?"
"हाँ! यही काम करते हैं,लेकिन आपको उनसे क्या काम है",नर्स ललिता ने पूछा....
"जी! मेरी बेटी की मानसिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है,इसलिए उसका इलाज करवाने की सोच रहा हूँ",जुझार सिंह बोला....
"ठीक है तो आप अपना पता ठिकाना मुझे लिखवा दीजिए और कल अपने रोगी को लेकर यहाँ आ जाएगा,जब डाक्टर साहब आऐगें तो मैं उन्हें सब बता दूँगी" नर्स ललिता बोली...
"जी! कल मैं अपने बेटे को लेकर आऊँगा,तब ही अपना नाम पता भी लिखवा दूँगा,बहुत बहुत धन्यवाद"
और इतना कहकर जुझार सिंह अस्पताल से वापस आने लगा तो उसके पीछे से कस्तूरी भागती हुई आई और नर्स ललिता से बोली...
"ललिता! डाक्टर बाबू कब आऐगें,मैं कब से उनका इन्तजार कर रही हूँ"
कस्तूरी की आवाज़ सुनकर जुझार सिंह पीछे मुड़ा और उसने जैसे ही कस्तूरी को देखा तो उसका अतीत उसकी आँखों के सामने आ गया....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....