Ek thi Nachaniya - 36 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया - भाग(३६)

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एक थी नचनिया - भाग(३६)

इधर जुझार सिंह ने शुभांकर को कलकत्ता से बुलवा लिया और खुद वो कलकत्ता चला गया,क्योंकि कलकत्ते का कारोबार भी तो देखने वाला कोई ना कोई चाहिए था,अभी शुभांकर को आए दो ही दिन हुए थे,वो वैसे भी कलकत्ता छोड़कर यहाँ आना चाहता था क्योंकि उसे माधुरी से मिलने का बहाना चाहिए था और योजना के तहत शुभांकर को एक दिन माधुरी ने थियेटर बुलवा भेजा,शुभांकर वहाँ पहुँचा तो उसने वहाँ मौजूद लोगों से माधुरी के बारें में पूछा तो लोगों ने कहा कि माधुरी जी शायद मेकअप रुप में होगीं,वो वहाँ अपना मेकअप करवा रहीं होगीं,शुभांकर खुशी खुशी मेकअप रुम की तरफ चल पड़ा, वो माधुरी को पूरी तरह से अपना समझता था इसलिए वो मेकअप रुम के दरवाजे पर बिना दस्तक दिए ही कमरे के भीतर जा पहुँचा और वहाँ का नज़ारा देखकर एक पल को वो स्तब्ध रह गया,लेकिन फिर खुद को सम्भालते हुए बोला....
"माँफ कीजिए,मैं बिना दस्तक दिए ही यहाँ आ गया,लगता है आप इस वक्त थोड़ी मसरूफ़ हैं"
उस समय माधुरी और मोरमुकुट सिंह एक ही सोफे पर थे,मतलब माधुरी की गोद में मोरमुकुट सिंह का सिर था और वो उसके बालों को बड़े प्यार से सहला रही थी,जो कि नाटक का एक हिस्सा था,क्योंकि माधुरी ने मेकअप रुम की खिड़की से ही शुभांकर की कार देख ली थी और योजना भी यही थी कि शुभांकर के मन में माधुरी के प्रति शक़ का बीज बोना था,जो कि योजना के अनुसार हुआ था.....
शुभांकर की बात सुनकर विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला....
"माधुरी जी! कौन है ये बतमीज,जो आपकी बिना इजाजत के मेकअप रुम में घुस आया",
"जी! होगा कोई मेरा प्रसंशक,मैं इन्हें नहीं जानती",माधुरी बोली....
"जनाब! आप इनसे कुछ मत कहिए,गलती तो मेरी है,मुझे इस तरह से मेकअप रुम में नहीं आना चाहिए था,खैर! जो हुआ अच्छा हुआ,कम से कम आज मेरी गलतफहमी तो दूर हो गई,आज इन रंगे पुते चेहरों के पीछे की सच्चाई तो मेरे सामने आ गई",शुभांकर बोला....
"आप कौन साहब हैं जो हमारी महबूबा से बदजुबानी कर रहे हैं",विचित्रवीर बना मोरमुकुट सिंह बोला....
तब शुभांकर बोला...
"मैं कौन हूँ ये आपकी महबूबा आपको अच्छी तरह से बता सकतीं हैं,अच्छा तो मैं चलता हूँ"
और ऐसा कहकर शुभांकर जाने लगा तो मोरमुकुट सिंह बोला...
"आपको बताने में कुछ तकलीफ़ हैं क्या कि आप कौन हैं"?
तब शुभांकर बोला....
"जी! एक निकम्मा! इश्क़ का मारा,इससे ज्यादा परिचय नहीं है मेरा"

"इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के"

और ऐसा कहकर वो वहाँ से चला गया,उसके जाते ही माधुरी फूट फूटकर रो पड़ी ,वो कभी भी कुछ भी ऐसा नहीं चाहती थी,उसने अपनी बहन कस्तूरी के लिए ये सब किया था,तब उसे समझाते हुए मोरमुकुट सिंह बोला....
"चुप हो जाओ माधुरी! कभी कभी अपनो को खुशी देने के लिए थोड़े बहुत दुख उठाने ही पड़ते हैं",
"मैं जानती हूँ डाक्टर भइया! लेकिन शुभांकर बेचारा बेकसूर है,उसका दिल तोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगा",माधुरी बोली...
"लेकिन इसके सिवाय और कोई रास्ता भी तो नहीं था",मोरमुकुट सिंह बोला...
"मैं ये अच्छी तरह से समझती हूँ तभी तो मजबूर होकर मैंने ऐसा किया"माधुरी बोली...
"तुम अब ये सब ज्यादा मत सोचो,अभी आगें की योजना पर ध्यान देने का वक्त है",मोरमुकुट सिंह बोला...
"हाँ! शायद आप ठीक कहते हैं",माधुरी बोली....
और दोनों के बीच ऐसे ही बातें चलतीं रहीं,लेकिन इधर शुभांकर दिल टूटने के बाद खुद को सम्भाल नहीं पाया और होटल जाकर उसने खूब शराब पी,शराब पीकर वो रात को बेसुध सा होकर माधुरी से ये पूछने चल पड़ा कि उसने उसके साथ ऐसा क्यों किया,वो अपनी कार खुद ही बेतरतीब तरीके से ड्राइव कर रहा था और शराब पीने के कारण उसकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई,हादसे पर मौजूद लोगों ने उसे फौरन ही हाँस्पिटल पहुँचाया,पुलिस आई और उसकी गवाही ली गई,शुभांकर को बहुत ही गहरी चोटें आईं थीं,पुलिस ने उससे उसके घरवालों के बारें में पूछा तो शुभांकर ने कहा कि वो अभी यहाँ अकेला है,उसके पिताजी कलकत्ता में हैं,मैं आपको अपने घर का टेलीफोन नंबर बता देता हूँ तो आप उन्हें यहाँ बुलवा लीजिए,तब पुलिस ने ये भी कहा कि अगर यहाँ कोई उसका सगा सम्बन्धी हो तो जब तक आपके पिता यहाँ नहीं आ जाते तो उसको सूचित कर देते हैं ताकि आपकी ठीक तरह से देखभाल हो सकें,तब शुभांकर ने पुलिस को माधुरी के बारें में बताया और जब माधुरी के पास इस बात की सूचना पहुँची तो उसने शुभांकर के पास दुर्गेश को भेज दिया लेकिन खुद मिलने ना आई जिससे शुभांकर की रही सही उम्मीद भी खतम हो गई और उसने दवा लेना और खाना पीना भी छोड़ दिया...
माधुरी शुभांकर से तो ना मिलती थी लेकिन दुर्गेश से उसका हाल चाल जरूर पूछ लेती थी,माधुरी ने तो जैसे अपने सीने पर पत्थर ही रख लिया था, उसे शुभांकर की परवाह थी लेकिन वो उसके सामने जाकर इस बात को जाहिर नहीं करना चाहती थी,उसे शुभांकर की बहुत ज्यादा चिन्ता थी लेकिन वो मजबूर थी, इधर शुभांकर की हालत में सुधार होने के वजाय हालत और भी ज्यादा बिगड़ती जा रही थी,डाक्टर भी हैरान थे कि शुभांकर की हालत ठीक होने के बजाय दिनबदिन बिगड़ती क्यों जा रही है,लेकिन किसी को ये नहीं पता था कि शुभांकर ने दवाई के साथ साथ खाना पीना भी छोड़ रखा था,अब जुझार सिंह भी यामिनी के साथ कलकत्ता से आ चुका था और अपने बेटे की हालत देखकर परेशान हो उठा,शुभांकर की स्थिति दिनबदिन बड़ी दयनीय होती चली जा रही थी,जुझार सिंह ने डाक्टरों से पूछा तो डाक्टर बोले कि शायद आपके बेटे के मन को कोई ऐसी बात चुभ गई है जिससे उसके भीतर जीने की उम्मीद ही खतम हो चुकी है,इसमें डाक्टर सिवाय दवा के और कुछ नहीं कर सकते,आपके बेटे को ठीक होने का काम उसे खुद ही करना होगा,जब वो ठीक होने का मन बना लेगा तो फिर उसे ठीक होने से दुनिया की कोई भी ताकत नहीं रोक सकती....
अब जुझार सिंह ने डाक्टर की बात सुनकर शुभांकर से इस विषय पर बात करने का सोचा और शुभांकर ने अपने पिता और अपनी बहन यामिनी से सबकुछ कह दिया कि किस तरह से माधुरी ने उसे धोखा दिया और अब वो जीना नहीं चाहता,उसके जीने की इच्छा बिल्कुल से खतम हो चुकी है.....
ये सुनकर जुझार सिंह को बड़ा गुस्सा आया और उसने माधुरी से बात करने का मन बनाया,इसके बाद वो माधुरी से मिलने थियेटर पहुँच गया,इत्तेफाक से उस समय माधुरी से मिलने मोरमुकुट भी आया था,वो तो माधुरी को कस्तूरी का हाल चाल बताने आया था और जब उसने विचित्रवीर रायजादा को माधुरी के साथ देखा तो वो गुस्से से आगबबूला हो उठा और माधुरी से बोला....
"ओह...तो तू ये प्यार का नाटक मेरे बेटे के साथ कलकत्ते से करती चली आ रही हो,तूने तो खुद को यामिनी की सहेली बताया था,लेकिन तेरा खेल तो कुछ और ही था,मेरे भोले भाले बेटे को इस दशा में पहुँचाकर भला तुझे क्या मिल गया,वो तुझसे सच्चा प्यार करता था और तू उसे धोखा देती रही",
"तो भला मैं क्या करती? अब जब मुझे आपके बेटे से ज्यादा अमीर और खूबसूरत शख्स मिल गया है तो फिर मैं उसके साथ क्यों चिपकी रहती",माधुरी बोली....
"बदजुबान लड़की! तेरी इतनी हिम्मत"
और ऐसा कहकर जुझार सिंह ने माधुरी को थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ उठाया तो विचित्रवीर रायजादा बने मोरमुकुट सिंह ने उसका हाथ पकड़ लिया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....