Ek thi Nachaniya - 34 in Hindi Women Focused by Saroj Verma books and stories PDF | एक थी नचनिया - भाग(३४)

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एक थी नचनिया - भाग(३४)

श्यामा के साथी उससे बोले कि सरदार कोई भी हो लेकिन अब भी वो उनकी टोली की डकैत है और उनके साथ ही बीहड़ो में रहकर उन सभी का मार्गदर्शन करे क्योंकि उसका तजुर्बा उन लोगों से कहीं ज्यादा है,इसलिए श्यामा ने अभी बीहड़ में रहने का फैसला किया,वैसे भी अभी उसे रामखिलावन ने ऐसा कोई भी संदेश नहीं दिया था,शायद अभी जुझार सिंह को खतम करने का वक्त नहीं आया था,लेकिन तब भी श्यामा ने अपने साथी डकैत को रामखिलावन के पास स्थिति का जायजा लेने के लिए भेजा और रामखिलावन ने श्यामा के साथी से कहा कि श्यामा जीजी से कह देना कि वे अभी खुद को पुलिस से सुरक्षित रखें,अभी जुझार सिंह का खात्मा करने का वक्त नहीं आया है,जैसे ही कोई योजना बनती है तो उन्हें यहाँ आने के लिए संदेशा भेज दूँगा,बस वे पुलिस से सावधान रहें और श्यामा के साथी डकैत ने रामखिलावन का ये संदेशा श्यामा तक पहुँचा दिया और श्यामा बीहड़ो में फिर से रम गई....
और जेलर बृजभूषण परिहार ने अब तक ना तो श्यामा के जेल से भागने का इश्तिहार अखबार में दिया था और ना ही रागिनी के जेल से भागने का,वे नहीं चाहते थे कि ये खबर हर जगह फैल जाएँ और उन्होंने पूरी कोशिश की कि ये बात जेल की चारदीवारी तक ही सीमित रहे....
और इधर रामकली बनी रागिनी काम पर जाती तो जुझार सिंह उसकी ओर टकटकी लगाए देखता रहता कि कब उसका घूँघट खुल जाए और वो उसका चेहरा देख सके,लेकिन रामकली बनी रागिनी जुझार सिंह को इसका मौका ही नहीं देती,ऐसे ही रामकली बनी रागिनी को वहाँ का काम करते पन्द्रह दिन होने को आए थे, एक दिन रागिनी तसले में गारा भरकर लेकर जा रही थी,तब उसके पैर के नीचे एक पत्थर आ गया और वो गिर पड़ी,जुझार सिंह वहीं खड़ा साइट का काम देख रहा था, रागिनी को गिरता हुआ देखकर वो भागकर उसके पास आया और उससे बोला....
"अरे! रामकली! कहीं चोट तो नहीं लगी"
"नहीं! मैं ठीक हूँ,ज्यादा फिकर करने की जरूरत ना है,ऐसी चोटें तो लगती रहतीं हैं मुझे",रामकली बोली....
उस समय रामकली का घूँघट खुल चुका था और उसके रुप की चकाचौंध से जुझार सिंह की आँखें चौंधिया कर रह गईं थीं और वो उसे एकटक निहारता रह गया,उसे निहारता हुआ देखकर रामकली बनी रागिनी धरती से खड़ी होकर हाथ में तसला उठाकर उससे बोली....
"क्यों? सेठ! कभी कोई औरत नहीं देखी क्या"?
"देखी तो है लेकिन इसनी खूबसूरत नहीं देखी",जुझार सिंह बोला...
"तो अब इरादा क्या है तेरा?",रामकली ने पूछा...
"इरादा तो बहुत नेक है रामकली! बस तू एक बार हाँ कर दे तो तुझे मैं दुनिया का हर सुख दे सकता हूँ", जुझार सिंह बोला....
"शरम नहीं आती सेठ! बेटी की उमर की लड़की पर गन्दी नज़र रखते हुए",रामकली बोली....
"बड़ा घमण्ड है तुझे अपने रुप का,मैंने अच्छे अच्छो का घमण्ड तोड़ा है रानी! तो तू किस खेत की मूली है", जुझार सिंह बोला...
"तो कान खोलकर तू भी सुन ले सेठ!,रामकली जान दे देगी लेकिन अपनी इज्ज़त का सौदा कभी नहीं करेगी और आज से मैं तेरा यहाँ काम भी नहीं करूँगीं",
और ऐसा कहकर रामकली ने तसला उठाकर धरती पर दे मारा और वहाँ से पैर पटकते हुए चली गई ,उसे जाता हुआ देखकर जुझार सिंह अपने मन में बोला....
"रामकली! कसम से जो तेरे ऊपर विचित्रवीर रायजादा का हाथ ना होता तो अभी तेरे पर कुतर देता,बहुत फड़फड़ा रही है,मैं भी देखता हूँ तू कब तक ऐसे फड़फड़ाती है,तेरा तो मैं वो हाल करूँगा कि तुझे तेरी नानी याद आ जाऐगी"
और इस तरह से जुझार सिंह रामकली पर काबू नहीं पा रहा था,रामकली ने सिनेमाहॉल का काम छोड़ दिया था लेकिन विचित्रवीर रायजादा के कहने पर वो फिर से सिनेमाहॉल में काम करने लगी थी,उधर यामिनी और शुभांकर भी गाँव छोड़कर फिर से कलकत्ता चले गए थे क्योंकि कलकत्ता का व्यापार सम्भालने वाला वहाँ कोई नहीं था, जुझार सिंह तो सिनेमाहॉल के काम में लगा हुआ था और इधर माधुरी कभी कभी शुभांकर को कलकत्ता टेलीफोन करती रहती और उसने उसे एक दो बार अपने थियेटर का डांस देखने का न्यौता भी दिया,शुभांकर खुशी खुशी माधुरी का डांस देखने आता,उसका इरादा माधुरी से मिलने का ज्यादा उसका डांस देखने का कम होता था,वो तो बस माधुरी की प्यारी प्यारी सूरत के दर्शन करने आता था....
ऐसे ही तीन महीने बीत चुके थे और इधर रामखिलावन ने सभी से कहा कि....
" अब जुझार सिंह का दूसरा पक्ष कमजोर करने का वक्त आ गया है,अब उसे ऐसा मानसिक आघात पहुँचना चाहिए जिसे वो झेल ना पाएंँ,अब बारी आ गई है ऐसी चाल चलने की जिससे वो चारों खाने चित हो जाएँ...."
"और अब वो अगली चाल क्या होगी?",माधुरी ने पूछा....
"अगली चाल होगी उसके बेटे का दिल तोड़ने की,जिससे वो तड़प कर रह जाए और जब उसका बेटा तड़पेगा तो उसकी पीड़ा जुझार सिंह को भी होगी"रामखिलावन बोला....
"लेकिन अब करना क्या होगा"?,मालती ने पूछा....
"अब माधुरी किसी और के साथ प्रेम का नाटक करेगी जिससे शुभांकर के दिल को ठेस पहुँचेगी" रामखिलावन बोला...
"भइया! ये मुझसे नहीं हो पाएगा",माधुरी बोली...
"कहीं तुम सच में तो शुभांकर से प्रेम नहीं करने लगी",मालती ने पूछा...
"पता नहीं भाभी! लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती",माधुरी बोली...
"ज्यादा जजबाती मत बनो माधुरी!,अब ये सब सोचने का वक्त नहीं है,इतना सब होने के बाद अब हम लोग पीछे नहीं हट सकते",रामखिलावन बोला...
"लेकिन शुभांकर बहुत ही अच्छा है,वो अपने पिता की तरह बिल्कुल भी नहीं है,क्या उसको धोखा देना ठीक रहेगा",माधुरी बोली...
"माधुरी! जरा अपनी बहन कस्तूरी के बारें में सोचो,तुमने प्रण लिया था कि तुम अपनी बहन को उस दशा में पहुँचाने वाले से बदला लोगी और अब तुम भावनाओं में बह रही हो",मालती बोली...
"हाँ! लेकिन शुभांकर का तो इस सब में कोई दोष नहीं था",माधुरी बोली....
"तुम्हें पता होना चाहिए माधुरी ! कि कभी कभी गेहूँ के साथ साथ घुन भी पिस जाता है,अपने पिता के किए कुकर्मों की सजा कभी कभी औलाद को भी भुगतनी पड़ती है",रामखिलावन बोला....
"लेकिन भइया! शुभांकर ने हम सभी का कुछ नहीं बिगाड़ा",माधुरी बोली...
"इसका मतलब है हम सभी ने फालतू में इतनी मेहनत की,ऊपर से डाक्टर बाबू को भी बीच में घुसाया,हम सभी की सारी मेहनत तो बेकार चली गई",मालती बोली...
"नहीं! भाभी! ऐसा कभी नहीं होगा,आप सभी ने मेरे और मेरी बहन के लिए बहुत कुछ किया है और बहुत कुछ सहा भी है,अब इस मोड़ पर आकर मैं अपने फर्ज से मुँह नहीं मोड़ सकती,मैं वही करूँगी जो आप लोग चाहते हैं,बस अब मुझे आगे की योजना बता दें",माधुरी बोली....
तब रामखिलावन बोला....
"अब आगे की ये योजना है कि तुम कभी कभी डाक्टर बाबू के साथ बन रहे सिनेमाहॉल की साइट पर जाओगी और जुझार सिंह के सामने डाक्टर बाबू के संग प्यार का झूठा नाटक करोगी, फिर इसके बाद मालती मतलब रुपतारा रायजादा के अभिनय की बारी है,बाकी सब वो सम्भाल लेगी",
"तो ठीक है आप ये बात डाक्टर भइया से भी कह दीजिएगा",माधुरी बोली...
"हाँ! वे जब भी यहाँ आऐगें तो मैं उनको भी ये सब बता दूँगा",रामखिलावन बोला....
और इस तरह से आगे की योजना तैयार होने लगी.....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....