Uljhan - Part - 9 in Hindi Fiction Stories by Ratna Pandey books and stories PDF | उलझन - भाग - 9

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उलझन - भाग - 9

बुलबुल के बारे में पता लगाने के लिए प्रतीक ने ऑफिस में फ़ोन लगाकर अपने दोस्त महेश से पूछा, “महेश तुझे पता है, बुलबुल कहाँ है? वह फ़ोन ही नहीं उठा रही है यार, क्या हुआ है?”

“अरे प्रतीक उसके पापा मम्मी आए थे, शायद उन्हें तुम दोनों के विषय में मालूम पड़ गया है। इसलिए वह उसे अपने साथ वापस ले गए।”

यह सुनकर प्रतीक ने एक गहरी ठंडी सांस ली।

वह सोच रहा था शायद उन्होंने ही उसका फ़ोन ले लिया होगा। कोई बात नहीं वहाँ जाकर उसके पापा मम्मी से भी बात कर लूंगा और उन्हें मना भी लूंगा। बुलबुल की शादी पक्की होने की तो कानों कान किसी को ख़बर नहीं थी।

उधर कमला और गोपी ने निर्मला को समझाया, “इस तरह से हार नहीं मानते बेटा। धैर्य रखो सब ठीक हो जाएगा।”

निर्मला ने कहा, “बाबूजी मुझे थोड़े दिनों के लिए यहाँ से कहीं दूर जाना है। मेरा मन इस समय बहुत दुखी है। मैं ऐसे इंसान के साथ कैसे रहूँ जो मुझे प्यार ही नहीं करता। जो मुझे उस पर जबरदस्ती थोपा गया बोझ समझता है।”

कमला और गोपी उसकी इन दलीलों का कोई जवाब ना दे पाए।

निर्मला कुछ दिनों का कहकर वहाँ से जाने लगी। जाते समय उसने कमला से कहा, “माँ मेरे अम्मा बाबूजी को अभी कुछ भी मत बताना। यदि उनका फ़ोन आएगा तब तो मैं बात कर लूंगी लेकिन यदि अभी रक्षा बंधन पर वह मुझे घर बुलाने के लिए पूछें तो झूठ कह देना वह प्रेगनेंट है और डॉक्टर ने आराम की सलाह दी है। मेरा यह दुख मेरे माँ-बाप बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।”

“ठीक है बेटा जैसी तुम्हारी मर्जी।”

इसके बाद निर्मला कुछ दिनों के लिए अपनी एक सहेली के घर चली गई।

इसी बीच निर्मला की माँ आरती का फ़ोन कमला के पास आया, “हैलो कमला …”

“हाँ बोलो आरती।”

“एक ख़ुश ख़बर है।”

“क्या है बताइए?”

“हमारे बेटे गोविंद का विवाह तय हो गया है। अब मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती है इसलिए जल्दी मुहूर्त निकाला है। लड़की वाले भी तैयार हैं।”

“अरे वाह यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है।”

“हाँ तो आप लोग कब आ रहे हैं?”

“अरे आरती यहाँ निर्मला प्रेगनेंट है। डॉक्टर ने उसे आराम करने को कहा है। हम लोगों का आ पाना मुश्किल है। आप लोग चिंता बिल्कुल मत करना, मैं निर्मला का ध्यान रख रही हूँ।”

“अच्छा ज़रा उससे बात करा दीजिए।”

कमला ने कहा, “आरती अभी वह सो रही है, उठेगी तब बात कराती हूँ।”

इधर गोविंद और बुलबुल के विवाह का दिन नज़दीक आ गया।

आरती ने निर्मला को फ़ोन लगाया तो निर्मला ने कहा, “माँ चिंता मत करो मैं ठीक हूँ पर सफ़र कर के वहाँ नहीं आ पाऊंगी। बाद में उन दोनों को मुझसे मिलने यहाँ भेज देना।”

“ठीक है बेटा, जैसी भगवान की मर्जी।”

निर्मला को अपने भाई के विवाह में ना पहुँच पाने का बहुत दुख था किंतु इस समय उसका दुख उसे कहीं भी चैन से रहने नहीं दे रहा था।

उधर गोविंद और बुलबुल का विवाह संपन्न हो गया। बुलबुल अब ख़ुश थी। उसे गोविंद में वह सब कुछ मिल रहा था, जो एक अच्छे जीवनसाथी में होना चाहिए।

गोविंद के अम्मा बाबूजी विवाह के एक हफ्ते बाद अपने गाँव लौट गए।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः