1. मिलो की दूरी उपस्तिथि तुम्हारी
सर्वस्व तो समर्पित कर दिया है प्रेम में
अब इस नश्वर तन का क्या मोल भला
प्रेम में तन का मिलन तो
औपचारिकता मात्र है
मन से मन का मेल हुआ तो प्रेम हुआ
जब तुम्हारे मखमली,प्रेम में भीगे,
शब्दो ने मुझे छुआ,
और मैने शर्म से नजरे झुकाई,
तो तुम्हारे प्रेम ने मुझे छुआ
मीलों की दूरी हो, और सामने बैठे
उपस्थिति तुम्हारी हो,
तो प्रेम ने दर्श तेरा दिया ये प्रेम हुआ !
कोई मिलन की आस ना हो,
और स्वप्न पे अधिकार तुम्हारा हो
तो कुछ और नहीं ये तुम्हारा प्रेम ही हुआ
तारों से भरा आसमा,और चांदनी रात हो
मेरी हर कविताओं में सिर्फ तुम्हारी बात हो
सुनो ये सिर्फ और सिर्फ प्रेम ही हुआ
इसलिए मैने तुम्हे अपना सर्वस्व दिया
2. प्रेम का स्थान रिक्त रखूंगी
ना मांगूंगी कभी स्थान रुक्मणि का,
ना हृदय में राधा बनकर रहूंगी,
मै बनुगी तुम्हारे प्रेम में बस मीरा ,
सर्वदा तुम्हारे प्रेम की प्रतीक्षा करूंगी
अभिलाषा नहीं सदा पाऊं प्रेम तुम्हारा
पर तुम बिन प्रेम का स्थान रिक्त रखुंगी...
3. विश्वास की डोर
विश्वास की पक्की डोर
जिसे हम प्रेम समझने की भूल कर बैठे थे
दरसल वो तो किसी और के लिए महज
वक्त गुजारने का जरिया भर था
क्यों सही कहा ना ?
वक्त ही तो गुजारना था ना तुम्हे
और कमबख्त मैं पागल, झल्ली
तुम पर यकीं कर बैठी
अपने विश्वास की पक्की डोर
तुमसे जोड़ बैठी,
तुम पर अंधभक्त की तरह विश्वास
मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी
जिसकी क्षति मैं जीवन भर
पूर्ण नहीं कर पाऊंगी, तुमने सिर्फ
मेरे ह्रदय को ही नही बल्कि
मेरे आत्मसम्मान को भी
गहरी चोट पहुंचाई है
जानते हो तुम ! तुम्हारे बाद
तुम पर क्या मैं कभी किसी
पर भी भरोसा नहीं कर पाऊंगी
विश्वास की पक्की डोर कभी
किसी से ना जोड़ पाऊंगी....
4. उत्कृष्ट प्रेम
जब प्रेमी, प्रेमिकाएं प्रेम में पड़ते है तो बहुत
अद्भुत अनुभूति होती है। किंतु जब प्रेम में
बिछड़ते है तो अत्यंत पीड़ा झेलनी पड़ती है
क्या असल में प्रेम इतना उत्कृष्ट होता है ?
जितना प्रेम में पड़ते ही सारे प्रेमी या कवी,
कवित्री उसका उल्लेख करते है ?
कभी चांद तो कभी सितारे या फूलों, रंगों से
प्रेमी / प्रेमिका की उपमा देते है उनकी
व्याख्या करते है। और प्रेम को बेहद
खूबसूरत बना देते है
सत्य तो ये है की प्रेम में झूठ की शुरुवात
ही शायद लोग वहीं से करते है जिस पर
विश्वास कर क्षणिक मात्र प्रेम में लोग
वार देते है अपना सर्वस्व
अपने प्रियतम / प्रेयसी पर....
प्रेम पे जितना लिखे कम ही होगा
प्रेम जितना खूबसूरत है उतना हृदविदारक भी
प्रेम तो किस्सो कहानियों की बातें रह गई बस
अब तो प्रेम के नाम पर सिर्फ खिलवाड़ होता है
कहा किसी को किसी से सच्चा प्यार होता है ।
मेरे लिए प्रेम पाना नही बल्कि प्रेम को हार कर
उसे जीत लेना है...
5. छलित एहसास
मैं अक्सर ही रातों को चौक कर
गहरी निंद्रा से जाग जाती हूं
और मन में शुरू हो जाता है एक अंतर्द्वंद
उस क्षण मैं सोचती हूं की आखिर क्यों
मुझे अक्सर मध्य रात्रि गए ये कैसी
अनुभूति होती है
ये कैसी संवेदना है मुझे जैसे किसी ने
पीड़ा भरे स्वर से पुकारा हो
जानती हूं मेरे मन का वहम ही होता है
पर मैं स्वयं को सांत्वना की थपकी
देकर सुलाने की निरंतर कोशिश करती हूं
और समझाती हूं पीड़ित ह्रदय को की
कोई नही है यहां कोई प्रेम की पुकार नही है
ये जो करुणामय स्वर सुनाई देता है ये कोई
छलित मन का एहसास है बस...