भाव का भूखा
एक अमीर आदमी बहुत ही संकट में था । उसे लाखों - करोड़ों का नुकसान जो हुआ था, और सारी जीवन की कमाई डूबने के करीब थी ! जीवन की नाव डगमगा रही थी । वह कभी मंदिर नहीं गया था, वह कभी पूजा पाठ भी नहीं किया था । उसे कभी फुरसत ही न मिली थी !
पूजा पाठ करने के लिए उसने पुजारी रखे हुए थे, उसने अनेक मंदिर भी बनवाये थे, जहां वे उसके नाम से नियमित पूजा पाठ किया करते थे लेकिन इस दुःख की घड़ी में कांपते हाथों वह भी मंदिर गया!
वह सुबह जल्दी गया, ताकि परमात्मा से पहली मुलाकात उसी की हो, पहली पूजा पाठ वही कर सके ताकि कोई दूसरा पहले मांग कर परमात्मा ( ईश्वर ) का मन खराब न कर दे ! सुबह - सुबह बोहनी की आदत जो होती है, कमबख्त यहां भी नहीं छूटी है । सो सुबह - सुबह पहुंचा मन्दिर ।
परंतु वह यह देख कर बहुत हैरान हुआ कि गांव का एक भिखारी उससे पहले ही मन्दिर में मौजूद था। वहा घना अंधेरा था, वह भी पीछे जा कर खड़ा हो गया,और सोचने लगा कि भिखारी क्या मांग रहा है? वह अमीर आदमी सोचता है, कि मेरे पास तो मुसीबतें ही मुसीबतें हैं; और भिखारी के पास क्या मुसीबतें हो सकती हैं? और भिखारी सोचता है, कि मुसीबतें तो मेरे पास हैं और इस अमीर आदमी के पास क्या मुसीबतें होंगी ? एक भिखारी की मुसीबत दूसरे भिखारी के लिए बहुत बड़ी नही थी !
उसने सुना, कि भिखारी कह रहा है - हे परमात्मा ! अगर आज उसे पांच रुपए न मिलें तो जीवन नष्ट हो जाएगा। और आत्महत्या कर लूंगा। और पत्नी बीमार है और दवा के लिए पांच रुपए होना बहुत ही मेरे लिए आवश्यक हैं ! मेरा जीवन संकट में कट रहा है !
अमीर आदमी ने यह सुना और वह भिखारी बंद ही नहीं हो रहा है; कहे जा रहा है कहे जा रहा है और अरदास जारी है ! तो उसने झल्लाकर अपने जेब से पांच रुपए निकाल कर उस भिखारी को दिए और कहा - ये लो भाई पांच रुपए, और घर जाओ जल्दी से यहां से !
अब वह ईश्वर के सम्मुख हुआ और बोला - हे प्रभु, अब आप ध्यान मेरी तरफ दें, इस भिखारी की तो यह हमेशा की आदत है। दरअसल मुझे तीन करोड़ रुपए की जरूरत पड़ी है ! मेरा बहुत बड़ा नुकसान जो हुआ है।
तभी भगवान मुस्करा उठे ओर बोले - एक छोटे भिखारी से तो तूने मुझे छुटकारा दिला दिया, लेकिन तुझसे छुटकारा पाने के लिए तो मुझको तुमसे भी बड़ा भिखारी ढूंढना पड़ेगा ! तुम सब लोग यहां कुछ न कुछ मांगने ही आते हो, कभी मेरी जरूरत का भी ख्याल आया है तुम्हें ?
धनी आश्चर्यचकित हुआ और बोला - हे प्रभु आपको क्या चाहिए ?
भगवान बोले - प्रेम ! मैं भाव का भूखा हूँ । मुझे निस्वार्थ प्रेम व समर्पित भक्त प्रिय है ! कभी इस भाव से मुझ तक आओ; फिर तुम्हे कुछ मांगने की आवश्यकता ही नही पड़ेगी ।