Aehivaat - 24 in Hindi Women Focused by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | एहिवात - भाग 24

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एहिवात - भाग 24

विल्सन आस्ट्रेलिया में अपने थीसिस गाइड थॉमस रीड से सौभाग्य के विषय मे बताया कि सौभाग्य में दृढ़ इच्छा शक्ति साहस अकल्पनीय उपलब्धियों को हासिल करने कि क्षमताओं को भारत प्रवास के दौरान सौभाग्य के परिवार में साथ रहने के दौरान देखी परखी थी ।
थॉमस रीड विल्सन कि बातों को ध्यान से सुना विल्सन ने थॉमस रीड के समक्ष प्रस्ताव रखा की क्यो न सौभाग्य को ऑस्ट्रेलिया में बुलाकर शिक्षित किया जाए थॉमस रीड बोले मिस्टर विल्सन तुम कुछ ज्यादा भाऊक हो रहे हो तुम्हारे साथ जो घटना घटी वह एक अनियोजित दुर्घटना एव सौभाग्य से तुम्हारा मिलना एक संयोग था ।
विल्सन ने कहा सर मेरी हार्दिक इच्छा है कि सौभाग्य को ऑस्ट्रेलिया बुलाकर शिक्षित किया जाय मुझे विश्वास है कि सौभाग्य भारत ही नही वैश्विक मानवीय समाज के लिए महत्वपूर्ण प्रमाणित होगी थॉमस रीड किसी तरह से विल्सन से सहमत नही हुए उनका तर्क था कि भारत के आदिवासी परिवार की बेटी को हज़ारों किलोमीटर दूर आस्ट्रेलिया लाना उचित नही होगा और शायद इसके लिए सौभाग्य का परिवार भी सहमत ना हो और एक दो दिन कि बात तो है नही पांच दस वर्ष अपनी बेटी को वह समाज जो अपने ही देश मे अशिक्षा भय का शिकार है उंसे आस्ट्रेलिया लाने का विचार उचित नही है ।
विल्सन ने थॉमस रीड से कहा सर आपकी बात जायज है लेकिन जोख़िम सदा ही ख़तरनाक साबित नही होते कभी कभी शुभ मंगल भी होते है मेरा मानना है कि सौभाग्य को ऑस्ट्रेलिया लाना एव शिक्षित करना शुभ कि आकांक्षा का जोखिम है ।
थॉमस रीड ने पुनः विल्सन को समझाते हुए कहा सौभाग्य लड़की है उंसे अकेले लाना रखना कोई ऊंच नीच हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे फिर भी मैं उच्च अधिकारियों से तुम्हारी मंशा के परिपेक्ष्य में विचार विमर्श करूंगा विल्सन ने कहा सर मुझे विश्वास है कि आप मेरे इस उद्देश्य में मेरा सहयोग करेंगे।

होली का त्योहार धीरे धीरे नजदीक आ रहा था सभी लोग त्योहार कि तैयारी में थे लेकिन जुझारू और तीखा इस बात को लेकर दुविधा में थे कि पता नही होली के दिन सौभाग्य के साथ क्या हो जाय ?चिन्मय कुछ ऐसा वैसा ना कर दे पति पत्नी इसी चिंता में परेशान थे दोनों अपने कुल देवी देवताओं से यही मनाते की होली किसी तरह से बीत जाय और सौभाग्य का वियाह हो जाय।

शेरू और सौभाग्य अपने मे मगन थे दोनों साथ जंगलों में घण्टो घूमते सौभाग्य कुछ लकड़िया बटोर लाती लेकिन पहले कि तरह वह नियमित लकड़ी नही बिनती जुझारू और तीखा इसके लिए बिटिया पर कोई दबाव भी नही बनाते आखिरकार जिस दिन को लेकर तीखा और जुझारू बहुत परेशान थे आ ही गयी होली।

सम्भत जली और सुबह होली खेलने बच्चों बुजुर्गों महिलाओं की टोली निकली पहले कीचड़ मिट्टी आदि कि होली खेलते नेवाड़ी मंझारी एव आस पास के कोल बस्ती के लोग निकले सभी होली कि मस्ती में सराबोर एव अपने आदिवासी रंग में झूमते नाचते फाग गाते एक दूसरे के गले लगते मिलते ।
होली के दिन कि प्रतीक्षा चिन्मय बड़ी बेशब्री से कर रहा था दोपहर तक गांव में होली खेलने के बाद वह बाहर जाने के लिए निकलने लगा माँ स्वाति ने कहा बेटा तू वर्ष वर्ष के त्योहार के दिन इतनी दूर सौभाग्य से मिलने जा रहा है चिन्मय बोला माँ तुम्हे कैसे पता स्वाति ने कहा बेटा आखिर मैं तेरी माँ हूँ नौ महीने कोख में रखा है पाल पोस कर इतना बड़ा किया है हमे ही नही मालूम होगा कि मेरा लाडला किस रास्ते जाना चाह रहा है मैं तुम्हे रोकूंगी नही जाओ लेकिन एक बात तुम्हे भी मालूम होगी कि तुम्हारी और सौभाग्य कि दोस्ती कम से कम पण्डित शोभराज तिवारी के खानदान को रास नही आएगी और दूसरी बात अनेकों परेशानियां अवश्य खड़ी हो जाएंगी ।
चिन्मय बोला माँ आज जाने दो इसके बाद तुम जो कहोगी मैं करूंगा स्वाति ने कहा ठिक है बेटा जाओ लेकिन संभाल कर क्योकि होली के दिन अक्सर लोग शराब भांग आदि पीते खाते है और सड़कों पर उटपटांग हरकते करते चलते है और कोई कुछ भी अनाप शनाप बोले ध्यान मत देना और सीधे जाना औऱ लौट आना ।
चिन्मय माँ के निर्देशों को आत्मसाथ कर घर से निकला उसके निकलते ही पण्डित शोभराज ने पत्नी स्वाति से कहा कहा जाए वदे अपने लाडले के शिक्षा देत रहूं स्वाति बोली लड़िका ह अपने संघतीयान के साथे गइल होई होली खेले।

पण्डित शोभराज को तसल्ली नही हुई उन्होंने कहा कि स्वाति माँ बेटे के हज़ार अवगुणों को छिपा लेती है और रक्षा भी करती है लेकिन मुझे विश्वास है तुम ऐसा नही करोगी और तिवारी खानदान कि नाक नही कटने दोगी ।

स्वाति ने कहा पण्डित जी हम आपकी पण्डिताइन है और हमारे माँ बाप ने भी हमे सांस्कार सिखाए है अतः आप निश्चिन्त रहे ना मैं ना ही आपका लाडला कुछ भी ऐसा करेगा जिससे कि मेरे मायके या ससुराल कि शाक प्रतिष्ठा पर आंच आए ।

पति पत्नी कि वार्ता के दौरान दरवाजे पर फाग कि टोली फाग गाते पहुंची और बोली का हो पण्डित जी घर से बाहर निकल पण्डित शोभराज बोले पण्डिताइन तू ठंडई आदि के व्यवस्था बनावे हम जात हई अपने दोस्तन में पण्डित जी ज्यो ही बाहर निकले सभी ने मिलकर पण्डित जी को रंग कर काला लाल हरा पिता नीला कर दिया पण्डित जी को पहचानना मुश्किल हो गया और फाग का दौर शुरू हुआ ।

इधर चिन्मय मन मे जाने कितने ख्यालो को संजोए जल्दी से जल्दी सौभाग्य के पास पहुँचना चाहता था रास्ते भर लोंगो के रंग गुलाल कीचड़ आदि से भीगता चिन्मय सौभाग्य के सौभाग्य के घर पहुंचा सौभाग्य घर मे बैठी थी जैसे वह चिन्मय का ही इंतजार कर रही हो चिन्मय ने पहुंचते ही शुभ शुभ पुकारना शुरू किया ज्यो ही सौभाग्य बाहर जाने के लिए तैयार हुई तीखा बोली बिटिया हम गरीबो कि इज़्ज़त तुम्हरे ही हाथ है इसे माटी में मत मिलाना क्योकि चिन्मय और तुममें जमीन आसमान का अंतर है।