Aehivaat - 23 in Hindi Women Focused by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | एहिवात - भाग 23

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एहिवात - भाग 23

कहते है समय स्वंय में ईश्वरीय स्वरूप है ईश्वर कि तरह समय काल वक्त भी अदृश्य है ना जलता है ना मरता है ना समाप्त होता है समय आदि अनंत है जैसा कि ईश्वर है ।
समस्याएं भी देता है समय और निराकरण भी यही सत्य जुझारू और तीखा के परिवार का था सौभाग्य के विवाह हेतु प्रथम शुभ आयोजन वर का वरण(गोड़ धोइया ) कि निर्धारित तिथि 9 मार्च भी आ गयी जुझारू नेवाड़ी और मंझारी के कोल परिवारों के साथ पुत्री सौभाग्य के लिए राखु के वरण हेतु निकले अपनी शक्ति के अनुसार जो दे सकने में समर्थ थे साथ ले जा रहे थे आमदनी का कोई जरिया तो था नही खेती बारी भी बहुत नही थी फिर भी जो भी था उनकी पहुँच में व्यवस्था किया था ।
गांव से निकलने के बाद मध्यान्ह जुझारू अपने गांव जवार के हित मित्रों के साथ देवी मंदिर पहुंचे जहां पुजारी कुम्भज इंतज़ार कर रहे थे पुजारी कुम्भज ने सभी का स्वागत गुड़ और दही के शर्बत से किया और सबके लिए माता के प्रसाद के रूप में भोजन कि व्यवस्था की जुझारू ने पुजारी जी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करनी चाही पुजारी जी बोले जुझारू कौनो एहसान हम नाही किए है तोहार सौभाग्य विलक्षण बिटिया ह हमरो बिटिया ही ह साथ ही साथ माई (देवी माँ) के आदेश रहल ह कि हमहु कुछ करी तू निश्चित होइके जा ।
जुझारू अपने इष्ट मित्रों के साथ परम का पुरवा के लिए चल पड़े शाम तक जुझारू जगन के दरवाजे पंहुचे जगन अपने इलाके में कोल समाज मे रसूखदार व्यक्ति थे उनके एकलौते बेटे के वैवाहिक कार्यक्रमो का शुभारंभ हो रहा था अतः उन्होंने कोई तैयारी में कोई कोर कसर नही उठा रखी थी ।
जगन ने पाहुनो का स्वागत ऐसा किया कि जुझारू के साथ आए नेवाड़ी और मंझारी गांव के कोल परिवारों के सदस्यों को जुझारू कि किस्मत और सौभाग्य के भाग्य पर गर्व भी था और रश्क भी रात्रि को पण्डित मंगल तिवारी जो पहले से ही निमंत्रित थे ने विधि विधान से वर वरण मांगलिक कार्य विधि विधान से सम्पन्न कराया ।
जगन ने रात्रि में जुझारू एव साथ आये पाहुनो को आदिवासी एव अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों से भोज कराया पाहुनो के भोज के उपरांत गांव जवार के लोंगो कि पंगत बैठती भोजन करती और जगन का सर्वोत्तम आयोजन के लिए आभार व्यक्त करती यह शिलशिला मध्य रात्रि तक चलता रहा ।
सुबह सुबह जुझारू और उनके साथ आए सभी ने जगन की मेहमाननवाजी और परम का पुरवा के लोंगो के व्यवहार के कायल मुक्त कंठ से सराहना करते नही थकते और बार बार जुझारू को यही कहते जुझारू तोहार करम और भग्यवान कि मेहरबानी दोनों एक साथ तोहरे ऊपर मेहरबान है जेकरे कारण इतना बढ़िया रिश्ता मिला है सौभग्यवा राज करी जुझारू सम्मान में सर झुकाए सबका आभार व्यक्त करते नही थकते।

जुझारू ने समधी जगन से कहा आपके व्यवस्था और स्वागत से हम सब धन्य हो जी हो गईल हई अब चले के इज़ाजत दिहल जा जगन ने बड़ी विनम्रता से कहा कि सुबह के कुछ जर जलपान हो जा और लौटे में तीज़हर हो जाय ए लिए रास्ते खातिर पहुंन लोगन के खाना रखवा देइत है ।

जुझारू ने विनम्रता से समधी जगन के आग्रह को शिरोधार्य किया जगन ने सभी पाहुनो को यथोचित सम्मान के साथ विदा किया ।
जुझारू अपने गांव के लोंगो के साथ गांव को प्रस्थान किए रास्ते भर जगन के स्वागत और सौभाग्य के भाग्य पर सभी आपस मे चर्चा करते रहे रास्ते मे पुनः जुझारू देवी मंदिर पर रुके पुजारी कुम्भज ने सबको देवी माँ का प्रसाद दिया शाम ढलते सभी लोग जुझारू के साथ गांव पहुंचे और अपने अपने घर चले गए।

जुझारू पत्नी तीखा और गांव के अन्य महिलाएं सौभाग्य के होने वाले ससुराल से आएं सामान मिठाई आदि को देखकर सभी आश्चर्य में थे कि जुझारू के वेवत ऐसन घरे बिटिया वियाहे के ना बा ई त सौभग्यवा आपन भाग्य बनाइके आइल बा तीखा ने मंझारी और नेवाड़ी में कोल परिवारों में सौभाग्य के ससुराल से आई मिठाई को बंटवाया जुझारू और तीखा बेटी के वियाहे खातिर वेवत अनुसार व्यवस्था में लग गए।

होली का त्योहार निकट था जलेबा काकी फिर तीखा से मिलने आईं पहले तो सौभाग्य के ससुराल के जेतना तारीफ हो सकता था करने के बाद तीखा से बोली सुन तीखा हम जोगी काका से सौभाग्यवा के मांग में सिंदूर कि बात बताए रहे ऊहै हमे भेजे है उनकर सनेसा ई बा कि होली के दीनहु ऊ लड़िकवा जेकरे गलती से सौभग्यवा के मांग भरी गईं रहा जरूर आए तोहन लोग कौनो ऐसन व्यवहार जिन करिह जैसे वोकरा लगे कि वोकरे अबीर गुलाल से नया बखेड़ा खड़ा होई गइल बा और सौभाग्यवा भी अपने तरफ से पहिले जईसन ही व्यवहार करें आई रंग गुलाल लगाए चला जाए ।
तीखा बाती के गांठ बाधि ल कौनो बखेड़ा नाही खड़ा होवे के चाही नाही त इतना अच्छा रिश्ता टूट जाए और नेवाड़ी मंझारी के बहुत लोग चाहतों ऐसे होय कि कौनो पेंच फंसे जुझारू कि रिश्ता में जैसे कि ऊ अपनी बिटिया के वियाह करी सके ।
तीखा जलेबा काकी कि बाते बड़े ध्यान से सुन रही थी उसने काकी को आश्वस्त किया जलेबा काकी ने कहा अच्छा अब हम चलित है तीखा ने उन्हें बड़े आदर सम्मान के साथ विदा किया और पति जुझारू को काकी के सारे निर्देशो से को बताया।