kulfi wala in Hindi Short Stories by Diksha Raghuwanshi books and stories PDF | कुल्फी वाला

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कुल्फी वाला

नीरू अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ी बाहर निहार रही थी। ठंड का मौसम था, हाथ में एक कप चाय लिए अपने बीते हुए पलों को याद कर रही थी। आज भी याद था वह दिन जब वह महज 10 साल की थी। निकली थी सुबह घर से स्कूल जाने के लिए अपने दोस्तों के साथ। उस दिन भी वह हमेशा की तरह यह सोच कर स्कूल गई थी कि वह रोज की तरह पढ़ाई करेगी और अपने दोस्तों के साथ खूब मस्ती करेगी। उसे क्या पता था कि आज का यह दिन उसके लिए ऐसा दिन बन जाएगा जो वह शायद ही कभी भूल पाए।

छुट्टी होने के बाद नीरू हमेशा की तरह अपने दोस्तों के साथ कुल्फी खाने गई। कुल्फी वाला नीरू के स्कूल के बाहर ही खड़ा होता था। नीरू को कुल्फी खाना बहुत पसंद था, चाहे सर्दी हो या गर्मी साल के कितने भी मौसम क्यों ना आ जाए उसे तो कुल्फी खाए बिना घर जाने का मन ही नहीं होता था। कुल्फी वाले का नाम ‘श्याम’ था, बिचारा लंगड़ा था पर यह उसकी कमजोरी नहीं थी।

सारे शहर वाले उसे बुरा समझते थे। यहां तक कि नीरू की मां भी उसे कुल्फी वाले से बात करने से मना करती थीं। कुल्फी खाने के बाद नीरू अपने दोस्तों के साथ घर के लिए निकल पड़ी जितना प्यार उससे कुल्फी से था उतना ही प्यार उसे जानवरों से भी था। चलते चलते उसे रास्ते के किनारे एक कुत्ते का बच्चा नजर आया। फिर क्या था उसे देखते ही नीरू उसकी तरफ दौड़ चली, दोस्तों की भी उस पर निगाह नहीं पड़ी।

नीरू के दोस्त घर के लिए निकल पड़े और नीरू अकेले वहीं रह गई। नीरू उस कुत्ते के बच्चे के साथ खेलने में इतनी मग्न हो गई थी कि उसे यह भी पता नहीं चला कि उसके सारे दोस्त घर जा चुके हैं और अब शाम होने लगी थी। ठंड के मौसम की वह हल्की सी धूप कहीं छिपने लगी थी। नीरू के कंधे पर किसी ने हाथ रखा और नीरू चौक गई, वह कोई और नहीं बल्कि कुल्फी वाला ‘श्याम’ ही था।

कुल्फी वाले ने नीरू से पूछा “तुम अभी तक घर नहीं गई तुम्हारे तो सारे दोस्त घर जा चुके हैं तुम यहां क्या कर रही हो?” श्याम के कहने पर नीरू उसके साथ चल पड़ी। काफी अंधेरा हो चुका था करीब रात के 7:00 बज रहे थे। नीरू को श्याम का हौसला तो मिल चुका था पर उसके चेहरे की मुस्कान कहीं गायब हो गई थी। श्याम के पूछने पर नीरू ने उसे अपने घर का पता बताया। वह घर तो जा रही थी पर आज उसे यह रास्ते डरावने लग रहे थे।

ठंड इतनी थी कि नीरू के रोंगटे खड़े हो रहे थे पर अब किया भी क्या जा सकता था। श्याम ने उसे अपने बदन पे लिपटी शॉल से ढक दिया। आज नीरू को उसके श्याम अंकल भी किसी भूत की तरह नजर आ रहे थे। नीरू ने सामने देखा उसका घर और बाहर बैठा उसका परिवार, उसके मां-बाप फूट-फूट कर रो रहे थे। नीरू दौड़ कर अपनी मां के गले लग गई और कहने लगी 'मां अब ऐसा कभी नहीं करूंगी।'

मां की नजर श्याम पर पड़ी और मां अपने हाथ जोड़कर श्याम से माफी मांगने लगी। अब उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि वह आज तक शाम के बारे में जो भी कहती और सुनती आई है वह सब झूठ था। आज उन्हें अपनी गलतियों पर बहुत ही पछतावा हो रहा था। नीरू ने देखा उसके कप में चाय खत्म हो चुकी है और वह मुस्कराते हुए बीते पलों से बाहर निकल आईं।