श्रीकमला (श्रीलक्ष्मी जी) भगवती लक्ष्मी जी विष्णुवल्लभा हैं, वे भगवान् विष्णु से अभिन्न हैं। उनके विषय में बताते हुए पराशर जी श्रीमैत्रेय जी से कहते हैं— हे द्विजश्रेष्ठ! भगवान् का कभी संग न छोड़ने वाली जगज्जननी लक्ष्मी जी नित्य हैं और जिस प्रकार श्री विष्णु भगवान् सर्वव्यापक हैं, वैसे ही ये भी हैं। विष्णु अर्थ हैं तो लक्ष्मीजी वाणी हैं; हरि न्याय हैं तो ये नीति हैं; भगवान् विष्णु बोध हैं तो ये बुद्धि हैं; तथा वे धर्म हैं तो लक्ष्मीजी सत्क्रिया हैं। मैत्रेय! भगवान् जगत्के स्रष्टा हैं तो लक्ष्मीजी सृष्टि हैं। श्रीहरि भूधर (पर्वत अथवा राजा) हैं तो लक्ष्मीजी भूमि हैं; भगवान् सन्तोष हैं तो लक्ष्मीजी नित्य-तुष्टि हैं। भगवान् काम हैं तो लक्ष्मीजी इच्छा हैं; वे यज्ञ हैं तो ये दक्षिणा हैं; श्रीजनार्दन पुरोडाश हैं तो देवी लक्ष्मीजी आज्याहुति (घृत की आहुति) हैं। मुने! मधुसूदन यजमानगृह हैं तो लक्ष्मी पत्नीशाला हैं; श्रीहरि यूप (यज्ञस्तम्भ) हैं तो लक्ष्मीजी चिति (इष्टका-चयन) हैं; भगवान् कुशा हैं तो लक्ष्मीजी समिधा हैं। भगवान् सामस्वरूप हैं तो श्रीकमलादेवी उद्गीति हैं; जगत्पति भगवान् वासुदेव हुताशन हैं तो लक्ष्मीजी (उनकी पत्नी) स्वाहा हैं। द्विजोत्तम! भगवान् विष्णु शंकर हैं तो श्रीलक्ष्मी जी गौरी हैं; इसी प्रकार हे मैत्रेय! श्रीकेशव सूर्य हैं तो कमलवासिनी श्रीलक्ष्मीजी उनकी प्रभा हैं। श्रीविष्णु पितृगण हैं तो श्रीकमला नित्य पुष्टिदायिनी (उनकी पत्नी) स्वधा हैं; विष्णु अति विस्तीर्ण सर्वात्मक आकाश हैं तो लक्ष्मीजी स्वर्गलोक हैं। भगवान् श्रीधर चन्द्रमा हैं तो श्रीलक्ष्मीजी उनकी अक्षय कान्ति हैं; श्रीहरि सर्वगामी वायु हैं तो लक्ष्मीजी जगच्चेष्टा (जगत्की गति) और धृति (आधार) हैं। हे महामुने ! श्रीगोविन्द समुद्र हैं तो हे द्विज ! लक्ष्मीजी उसकी तटभूमि हैं। भगवान् मधुसूदन देवराज इन्द्र हैं तो लक्ष्मीजी इन्द्राणी हैं। चक्रपाणि भगवान् साक्षात् यम हैं तो श्रीकमला यमपत्नी धूमोर्णा हैं; देवाधिदेव श्रीविष्णु स्वयं कुबेर हैं तो श्रीलक्ष्मीजी साक्षात् ऋद्धि हैं। श्रीकेशव स्वयं वरुण हैं तो महाभागा लक्ष्मीजी गौरी हैं; हे द्विजराज ! श्रीहरि देवसेनापति स्वामिकार्तिकेय हैं तो श्रीलक्ष्मीजी देवसेना हैं। हे द्विजोत्तम ! भगवान् गदाधर शक्ति के आधार हैं तो लक्ष्मीजी शक्ति हैं; भगवान् निमेष हैं तो लक्ष्मीजी काष्ठा हैं; वे मुहूर्त हैं तो ये कला हैं। सर्वेश्वर सर्वरूप श्रीहरि दीपक हैं तो श्रीलक्ष्मीजी ज्योति हैं; श्रीविष्णु वृक्षरूप हैं तो जगन्माता श्रीलक्ष्मीजी लता हैं। चक्र-गदाधर देव श्रीविष्णु दिन हैं तो लक्ष्मीजी रात्रि हैं; वरदायक श्रीहरि वर (दूल्हा) हैं तो पद्मनिवासिनी श्रीलक्ष्मीजी वधू (दुलहिन) हैं। भगवान् नद हैं तो श्रीजी नदी हैं। कमलनयन भगवान् ध्वजा (झण्डा) हैं तो कमलालया लक्ष्मीजी पताका हैं। जगदीश्वर परमात्मा नारायण लोभ हैं तो लक्ष्मीजी तृष्णा हैं तथा हे मैत्रेय! रति और राग भी साक्षात् श्रीलक्ष्मी और गोविन्दरूप ही हैं। अधिक क्या कहा जाय, संक्षेपमें यह कहना चाहिये कि देव, तिर्यक् और मनुष्य आदिमें पुरुषवाची तत्त्व भगवान् श्रीहरि हैं और स्त्रीवाची तत्त्व श्रीलक्ष्मीजी; इनके परे और कोई नहीं है।
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श्रीकमला (श्रीलक्ष्मी जी) भगवती लक्ष्मी जी विष्णुवल्लभा हैं, वे भगवान् विष्णु से अभिन्न हैं। उनके विषय में बताते हुए पराशर जी श्रीमैत्रेय जी से कहते हैं— हे द्विजश्रेष्ठ! भगवान् का कभी संग न छोड़ने वाली जगज्जननी लक्ष्मी जी नित्य हैं और जिस प्रकार श्री विष्णु भगवान् सर्वव्यापक हैं, वैसे ही ये भी हैं। विष्णु अर्थ हैं तो लक्ष्मीजी वाणी हैं; हरि न्याय हैं तो ये नीति हैं; भगवान् विष्णु बोध हैं तो ये बुद्धि हैं; तथा वे धर्म हैं तो लक्ष्मीजी सत्क्रिया हैं। मैत्रेय! भगवान् जगत्के स्रष्टा हैं तो लक्ष्मीजी सृष्टि हैं। श्रीहरि भूधर (पर्वत अथवा राजा) हैं तो लक्ष्मीजी भूमि हैं; भगवान् सन्तोष हैं तो लक्ष्मीजी नित्य-तुष्टि हैं। भगवान् काम हैं तो लक्ष्मीजी इच्छा हैं; वे यज्ञ हैं तो ये दक्षिणा हैं; श्रीजनार्दन पुरोडाश हैं तो देवी लक्ष्मीजी आज्याहुति (घृत की आहुति) हैं। मुने! मधुसूदन यजमानगृह हैं तो लक्ष्मी पत्नीशाला हैं; श्रीहरि यूप (यज्ञस्तम्भ) हैं तो लक्ष्मीजी चिति (इष्टका-चयन) हैं; भगवान् कुशा हैं तो लक्ष्मीजी समिधा हैं। भगवान् सामस्वरूप हैं तो श्रीकमलादेवी उद्गीति हैं; जगत्पति भगवान् वासुदेव हुताशन हैं तो लक्ष्मीजी (उनकी पत्नी) स्वाहा हैं। द्विजोत्तम! भगवान् विष्णु शंकर हैं तो श्रीलक्ष्मी जी गौरी हैं; इसी प्रकार हे मैत्रेय! श्रीकेशव सूर्य हैं तो कमलवासिनी श्रीलक्ष्मीजी उनकी प्रभा हैं। श्रीविष्णु पितृगण हैं तो श्रीकमला नित्य पुष्टिदायिनी (उनकी पत्नी) स्वधा हैं; विष्णु अति विस्तीर्ण सर्वात्मक आकाश हैं तो लक्ष्मीजी स्वर्गलोक हैं। भगवान् श्रीधर चन्द्रमा हैं तो श्रीलक्ष्मीजी उनकी अक्षय कान्ति हैं; श्रीहरि सर्वगामी वायु हैं तो लक्ष्मीजी जगच्चेष्टा (जगत्की गति) और धृति (आधार) हैं। हे महामुने ! श्रीगोविन्द समुद्र हैं तो हे द्विज ! लक्ष्मीजी उसकी तटभूमि हैं। भगवान् मधुसूदन देवराज इन्द्र हैं तो लक्ष्मीजी इन्द्राणी हैं। चक्रपाणि भगवान् साक्षात् यम हैं तो श्रीकमला यमपत्नी धूमोर्णा हैं; देवाधिदेव श्रीविष्णु स्वयं कुबेर हैं तो श्रीलक्ष्मीजी साक्षात् ऋद्धि हैं। श्रीकेशव स्वयं वरुण हैं तो महाभागा लक्ष्मीजी गौरी हैं; हे द्विजराज ! श्रीहरि देवसेनापति स्वामिकार्तिकेय हैं तो श्रीलक्ष्मीजी देवसेना हैं। हे द्विजोत्तम ! भगवान् गदाधर शक्ति के आधार हैं तो लक्ष्मीजी शक्ति हैं; भगवान् निमेष हैं तो लक्ष्मीजी काष्ठा हैं; वे मुहूर्त हैं तो ये कला हैं। सर्वेश्वर सर्वरूप श्रीहरि दीपक हैं तो श्रीलक्ष्मीजी ज्योति हैं; श्रीविष्णु वृक्षरूप हैं तो जगन्माता श्रीलक्ष्मीजी लता हैं। चक्र-गदाधर देव श्रीविष्णु दिन हैं तो लक्ष्मीजी रात्रि हैं; वरदायक श्रीहरि वर (दूल्हा) हैं तो पद्मनिवासिनी श्रीलक्ष्मीजी वधू (दुलहिन) हैं। भगवान् नद हैं तो श्रीजी नदी हैं। कमलनयन भगवान् ध्वजा (झण्डा) हैं तो कमलालया लक्ष्मीजी पताका हैं। जगदीश्वर परमात्मा नारायण लोभ हैं तो लक्ष्मीजी तृष्णा हैं तथा हे मैत्रेय! रति और राग भी साक्षात् श्रीलक्ष्मी और गोविन्दरूप ही हैं। अधिक क्या कहा जाय, संक्षेपमें यह कहना चाहिये कि देव, तिर्यक् और मनुष्य आदिमें पुरुषवाची तत्त्व भगवान् श्रीहरि हैं और स्त्रीवाची तत्त्व श्रीलक्ष्मीजी; इनके परे और कोई नहीं है।
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