Wrong Number - 17 in Hindi Love Stories by Madhu books and stories PDF | Wrong Number - 17

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Wrong Number - 17

हाँ हाँ वैसे भी तेरे से कुछ होने से रहा अच्छा हुआ तेरे डैड हि ने तेरा ब्याह तय कर दिया l कहकर खुलकर मुस्कुरा पडा l
तेरे कहने क्या मतलब तेरे से कुछ होने से रहा कहकर एक धौल जमा दि शिखर के पीठ पर l
ऊऊऊऊउ माँ मार डाला रे! इतनी तेज चीखा कि मैत्री भागते हुये कमरे आ गई क्या हुआ इतने जोर क्यों चीखे? हैरान परेशान सी बोली l
सामर्थ्य कुछ नहीं इसे दौरा पड़ने लगते हैं वक़्त पर वक़्त बेपरवाही से सामर्थ्य मैत्री से बोला l
सामर्थ्य कि बात सुन मैत्री बड़ी बड़ी आंखों से शिखर को देखने लगी कभी सामर्थ्य को देखती कभी शिखर को!
साले रुक तू , मैं बताता हूँ तुझे उठकर सामर्थ्य को मारने दौड़ पड़ता है शिखर के उठते हि सामर्थ्य फ़ौरन हि कमरे से भाग लेता है l
रुक तू ,भाग कहाँ रहा है साले l
सामर्थ्य आगे आगे शिखर पीछे पीछे l
"उन दोनों को ऐसे देख मैत्री के चेहरे मुस्कुराहट आ गई "l
सामर्थ्य अभी भाग हि रहा था कि सामने अपने डैड को देख खामोश सा खड़ा हो गया l ऐसे जैसे कुछ हुआ हि ना हो l
रुक क्यों गया साले सामर्थ्य को जैसे ही मारने चला उसके डैड को देख सामर्थ्य के गले लग गया हा हा हा कुछ नहीं अंकल आप ऐसे हमे क्यों देख रहे हैं हम लोग तो यूही बात कर रहे थे l
हा डैड सामर्थ्य भी शिखर कि बात पर हाँ में हाँ मिलाने लगा l उनको ऐसे करता देख दोनों को घूरते हुये चले गए कुछ कहा नहीं l
उनके जाते हि शिखर सामर्थ्य कि पीठ पर मुक्का जड़ दिया l मुझे दौरे पड़ते हैं अब देख फिर से एक और मुक्का जड़ दिया l
अरे बस पागल आदमी कल मेरा ब्याह है मेरी वाली देखेगी तो क्या सोचेगी उसका दुल्हा टूटा फ़ुटा सा है l शरारत से बोला l
हट बे टूटा फ़ूटा कहकर मुंह सिकोड लिया l
अब यू लडकियो के जैसे मुहँ मत सिकोडो l चल अब छुटकी से बोले थे उसके लिए शोपिग करने को l सामर्थ्य अपना कालर ठीक करते हुये बोला l
अरे अब ये क्या बात हुई भला कि मुहँ सिकोड़ना लडकियो का कापीराइट है फिर से मुहँ सिकोड़ दिया कहकर शिखर l अच्छा चल मेरे बाप तू ठीक मैं गलत कहकर सामर्थ्य भी मुहँ सिकोड़ दिया l
शिखर उसे देख फिर दोनों एक दूसरे को देख ठहाका लगा दिया l
अब चलो भाई मैं रेडी हो गई! आज कितने दिनों बाद मैत्री सहज व्यहवार कर रही थी l उसको ऐसे देख सामर्थ्य मुस्कुरा पड़ा l उससे कुछ छिपा नहीं था मैत्री कि हालत उसकी माँ मैत्री के हाल चाल बताती रहती थी l
चल मिट्ठू उसके सिर पर हाथ फ़ेर दिया ऐसे हि रहा खुश l शिखर भी सामर्थ्य कि हाँ में हाँ मिला दिया l मिट्ठू चल जल्दी से आज तेरे भाई कि जेब ढीली करवाते है l
हा बिल्कुल भाई और आपकी भी......!! कहकर मैत्री खिलखिला पड़ी l


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याचना का घर!


अयाची सामाने देख उसकी आँखें सिकुड़ गई l भौओ उचकाते हुये मानो पूछ रहा हो क्यों घूर रहे हो? कितने दिनों बाद देख उसे उसका मन अजीब लय में धड़का l उसको एक टक देखता रहा l
हो भई कहाँ खोये हुये हो उसके कन्धे पर हाथ धर दिया इतना काम पडा है तू है कि खड़ा पता नहीं किसे घूर रहा है l अर्जुन जो कुछ काम कर अयाची को बुलाने आया था उसे कहिं खोया हुआ देख बोला l
अयाची खुद को सम्भाल कर.... अ... कुछ नहीं l
चल ठीक है मैं जरा अंकल के साथ किसी काम के लिये जा रहा हूँ तू यहाँ देख लियो l कहकर अर्जुन चला गया l

अयाची~ अब वही खड़ी घूरती रहोगी कि अंदर भी आना है l और तुम्हें किसी ने सिखाया नहीं ऐसे बडो को घूरते नहीं है मिस चन्द्रा !
वही से चिल्लाता हुआ याचू देख चन्द्रा आई है जो बहुत देर से मुझे हि घूर रही है अयाची उसे घूरते हुये बोला l

इतनी तेज से क्यों चिल्ला रहे हो तुम्म्म्म्म ? बड़े हो तो मैं क्या करू ऐसे बड़े होने से क्या फ़ायदा जो अपनी हि बहन कि खुशी नहीं मालूम किसमे है किसमे नहीं l नहीं पता है वो इस शादी से खुश भी रहेगी कि नहीं l अयाची को घूरते हुये उसकी सुने बगैर हि तेजी से याचना के पास जाने लगी जो कि वो आ रही थी उसका हाथ पकड सीधे उसके कमरे चली गई l
अयाची कुछ नहीं बोला बस चुपचाप सुनता रहा l जो किसी कि नहीं सुनता आज कोई सुने कर चला गया उसने एक बार भी पलट कर चंद्रा को जवाब नहीं दिया l कुछ वर्कर सजावट में लगे अयाची को ऐसे देख अचम्भित हो गये l

अयाची ऐसे क्या देख रहे हो चुपचाप अपना काम करो नहीं तो ........!ज्यादा ताका झाकी मत करो गुस्से से सभी को देख बोला l
सब तुरंत हि अपने काम पर ध्यान देने लगे l

अरे ऐसे कहाँ खीचे लिये जा रही है रुक तू पता नहीं दादा क्या कह रहे थे?पीछे मुडकर दादा को देखने लगी जो उन दोनों को हि देख रहा था l याचना के देखने पर झट से पलट गया l
अयाची के ऐसे पलटते देख याचना कि आंख नम हो गई l
कुछ नहीं कह रहे तेरे दादा वादा समझी चुपकर चल मेरे साथ l उसे लगभग अपनी तरफ़ खिचते हुये बोली l






क्रमशः!