Pathan - 2 in Hindi Drama by Pawan Kumar Saini books and stories PDF | Pathan - 2

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Pathan - 2

(2)

मिस्टर मेहरा - क्या? अब..... मतलब करते क्या हो, काम वाम?

अनूप - कुछ नहीं बस।

मिस्टर मेहरा - कुछ नहीं? रहते कहाँ हो? घर वर है या किराये पर।

अनूप - देख बूढ़े,मैं सीधी बात करता हूँ मैं प्रिया से प्यार करता हूँ और इसे मैं बहुत ख़ुश रखूँगा। (सुमन मेहरा की तरफ इशारा करते हुए ) यहाँ आओ बूढ़ी देखो देख बूढ़ी इस दुनिया का हर इंसान खेल रहा है बस, वों पैसे जोड़ जोड़ कर सबसे आगे जाकर दिखाना चाहता है। बस इस दिखावे में पूरा जीवन बिताता है। अगर इस सच को जान ले इंसान, तो उसके पास है, उसमे ख़ुश रह सकता है।

मिस्टर मेहरा - मैं मेरी बेटी को जों दिलाना चाहता हूँ, वों तुम नहीं दे सकते। अनूप को एक कोने में ले जाता है और कहता है, " देखो बेटे, हम ऊँचे खानदान के है। मेरी बेटी अभी बच्ची है। उसे सही और गलत का कुछ नहीं पता। मैंने जों मुकाम हासिल किया है, मैं ही जानता हूँ  कैसे? मैं मेरी बेटी की शादी उससे करूँगा, जों मेरी हैसियत के बराबर हो।

अनूप - देख बूढ़े, मैं बहुत तेज हूँ मेरी नज़र जिस पर पड़ जाती है, उसे मैं हासिल करके ही छोड़ता हूँ।

मिस्टर मेहरा - तेरा मैं वों हश्र कर दूंगा, ना तू खाने लायक रहेगा, ना कमाने लायक। निकल जा मेरे घर से।

अनूप - ठीक है, बूढ़े। मैं जाता हूँ लेकिन अंत में मैं यहीं कहता हूँ। मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काज़ी?

मिस्टर मेहरा प्रिया को पास बुलाता है और कहता है, ' देखो बेटी तुम अभी अभी बच्ची हो तुझे अभी सही और गलत की प्रख नहीं है। जब तुम्हे अहसास होगा, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। तुम्हारे पास पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। ये सिर्फ तुम्हारे पैसो के पीछे है।'

अनूप - देख प्रिया तू मेरी बात सुन। अनूप प्रिया की तरफ हाथ उठाकर समजाता है। ये बूढा तुम्हे बहका रहा है। इसके बहकावे में मत आना। मैं तुम्हे बहुत ख़ुश रखूँगा।तू बड़ी हो चुकी तुझे सब पता की तेरी लाइफ के लिए क्या सही है और क्या गलत। सही कहा ना मैंने।तू समझ रही है, मेरी बात। तू समझ बात को प्रिया।

प्रिया - हां,हाँ, हाँ।(शिर को हिलाते हुए) हम्म्म याह, वाकेही समझ गयी। प्रिया मिस्टर मेहरा से बोलती है, 'पापा, मैं शादी इसी से करुँगी।'

मिस्टर मेहरा - मैं तुम्हे अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करने दूंगा।

मिस्टर मेहरा - (अनूप से) तू निकल यहाँ से।

प्रिया - नहीं पापा। पापा आप समझ नहीं रहे मैं इससे प्यार करती हूँ।

मिस्टर मेहरा - तू जाता है या नहीं।

अनूप वहां से चला जाता है।

(इससे पहले की बात बिगड़े अनूप प्रिया को कोर्ट मैरिज के राज़ी कर लेता है और प्रिया अपने पापा के ऑफिस आशीर्वाद लेने जाती है।)

जेडकॉम हेड ऑफिस eastern एक्सप्रेस हाईवे मुंबई यह एक मॉडर्न और स्मार्ट बिल्डिंग है।जिसमें सोलर पैनल,रेनवाटर हार्वेस्टिंग,सेंसर है।

दरवाजे  पर दो सिक्योरिटी गार्ड (हरी और श्याम ) होता है, जो बिल्डिंग में entry करने वाले लोगों को चेक करता है, उनके ID कार्ड्स स्कैन करता है, वह building की safety ensure करता है।

(हरी दोनों को अंदर आने देता है। दोनों दाहिने और गाड़ी पार्क करते है और मैंन एंट्रेंस door से अंदर जाते है  )

CEO (chief executive officer)  का कमरा building के दाहिने और है,जहां CEO सुमित मेहरा बैठा करते है। सुमित मेहरा के office में गिलास वॉल्स,वुडेन फर्नीचर , लार्ज विंडोज , जो ऑफिस को स्पेशस और elegant लुक देते हैं। खिड़की के पास ग्लास डेस्क रखी है उसपर एक लैपटॉप दूसरी तरफ कुछ फ़ाइल रखी है और बिच में एक नेमक्षेप रखा है जिसपर मिस्टर मेहरा (CEO) लिखा है।नेमक्षेप के बगल में दो पेपरवेट रखे है, जिनके निचे कुछ पर्चीया दबी हुई है। दोनों बगलो में दो फूलों से सजे मर्तबान रखे है। सामने तीन चेयर रखी है।

रिसर्च एंड डेवलपमेंट टीम मैनेजर (शिवानी) और  इंजीनियर अजय चेयर पर बैठ है। सुमित मेहरा खड़े खड़े शिवानी और अजय से कुछ डिसकस कर रहे है।

तभी प्रिया और अनूप वहाँ पहुंच जाते है।)

प्रिया-  हाय पापा ।

सुमित मेहरा - आओ बेटी।

मिस्टर मेहरा अजय और शिवानी को जाने को कहता है। दोनों चलें जाते है।

 मिस्टर मेहरा प्रिया के साथ अनूप को देखकर गुसा हो जाता है, तभी उसकी नज़र प्रिया के कपड़ो और उसके सिर के सिंदूर पर पडती है। मिस्टर मेहरा आग बबूला हो जाता है। प्रिया और अनूप दोनों मिस्टर मेहरा के पैर छूते है 

मिस्टर मेहरा-  प्रिया मेरे समझाने के बाद भी गलती की ।

अनूप - हम लोगो ने कोई गलती नहीं बूढ़े।

हम दोनों प्यार करते थे तो शादी तो करनी थी 

मिस्टर मेहरा - तुमने मेरी बेटी को फसाया है।

प्रिया - नहीं पापा।

मिस्टर मेहरा - प्रिया, तुमने इसमें क्या पसंद किया? इसके पास कुछ नहीं और तुम इससे शादी कर ली । ये तुम्हे कुछ नहीं दे सकता। तुम्हारी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी। ये तुम्हे वो खुशी वो ऐस नहीं दे सकता। मैं तुम्हारी जिंदगी बर्बाद नहीं होने दूंगा, बेटे। छोड़ दो इसे।

प्रिया - पापा मैंने इससे शादी कर ली है और अब, मैं शादीशुदा हूँ। शादी कोई खेल नहीं है।

मिस्टर मेहरा - प्रिया तुम छोड़ सकती हो अब भी इसे 

अनूप - सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं। ये स्वामी विवेक आनंद ने कहा था।

मिस्टर मेहरा - क्या? मिस्टर मेहरा प्रिया को कोने में ले जाता है और समझाने लगता है।

देखो प्रिया शादी दो दिन खेल नहीं, पूरी जिंदगी का खेल है। मैं तुमसे उम्र में बड़ा हूँ। मुझे जिंदगी के तजुर्बे और मायने पता है।

प्रिया - पापा, अब मैं शादी कर चुकी। अब इसका कोई फायदा नहीं। जों कुछ भी होगा मेरी जिंदगी में अच्छा हो, बुरा हो मुझे ही भोगना पड़ेगा।

मिस्टर मेहरा - तुम गलती कर रही हो मेरी बेटी।

प्रिया - पापा अब मैं चलती हूँ।

प्रिया और अनूप दोनों वहाँ से अपने घर शौरभ विला के लिए निकल जाते है

सौरभ विला" मालाबर हिल, बैंड्रा (पश्चिम), मुंबई

प्रिया अनूप की गोद में बैठी हुई है अनूप उसके गालों पर क़िस कर रहा है। अनूप बोलता है, 'मेरी प्रिया '

अनूप - क्या मुझे कॉफी मिल सकती है?

प्रिया - क्यों नहीं, अभी बनाती हूँ।( प्रिया उठकर कमरे से आने लगती है अनूप प्रिया को रोकता है।' सुन प्रिया।', अनूप बोलता है। प्रिया दरवाजे के पास खड़ी हुई है। अनूप उसके पास जाता है और उसके चेहरे की तरफ एक टक देखता है।

प्रिया भी उसकी आँखों में आंखे मिलाकर देख रही है।

अनूप - देख प्रिया तुम्हे मेरे बारे में लोग बहकाएंगे तुम्हे मेरे खिलाफ भड़कायेंगे । लोग जलेंगे तुम्हे देख कर कि इसको इतनी सुन्दर हँसीन लड़की कैसे मिल गयी और तुम्हे समझ दार बनना है और तुम समज़दार हो मुझे पता है। तुम समझ रही हो, प्रिया।

प्रिया - हाँ मैं समझ रही हूँ, हम्म्म याह वाकेही।

और?

अनूप - और ये दुनिया में सिर्फ दिखावे खेल चल रहा है।लोग सिर्फ यहाँ दिखावा कर रहे, दिखा दिखा कर खेल रहे है।बस उन्हें औरों से बेहतर करके दिखाना है, औरों से आगे जाकर दिखाना है। बस इसी दिखावे में लोग अपना जीवन बिताते है।

और दुनिया हर चीज मानकर लिखी गयी है,

हर चीज के नाम मानकर रखे गये है,

अंक अक्सर सब मानकर लिखे गये।

 और मैं एक दिन बड़ा आदमी बनूँगा, सच में हम्म्म याह। तुम समझ रही हो ना।

प्रिया - हाँ, हाँ, मैं समझ रही हूँ , हम्म्म याह । प्रिया हसती है और कहती है, ' तेरी तो बड़े पांच आदमियों में भी इज़त है।'

अनूप - तुम मेरा मज़ाक उड़ा रही हो। तुम देखना एक दिन मैं बड़ा आदमी बनके दिखावूंगा।

प्रिया - बस, तुम कोई छोटा मोटा काम करलो।

महीने के 15 हजार भी कमावोगे मेरे लिए प्रयाप्त है।

अनूप - मैं ढूंढ़ता हूँ कोई अच्छा सा काम।

( प्रिया सीढ़ियों से नीचे आ जाती है और अनूप के लिए कॉफ़ी बनाने के लिए देखती है कि पठान निचे खड़ा है।प्रिया को देख लेता है )

पठान - ओ प्रिया मेरी बच्ची मेरे पास तो आ।

पठान प्रिया को गले लगाता है। प्रिया को पिता के समान प्रतीत हुआ। देख मेरी बच्ची अनूप अच्छा लड़का है। अनूप कभी भी तुम्हे परेशान करेगा मैं हूँ जबतक। अनूप पर मेरा आर्डर चलता है। तू इस घर में रानी बनकर रहोगी। मेरी बच्ची तुम्हे कभी भी कोई प्रॉब्लम हो ;मुझे याद करना। घर मुश्किल से बनता है और तुम लोगो ने घर बनाया है।मेरा इस घर में आना जाना रहता है। अनूप पठान की आवाज सुनकर नीचे आता है।

अनूप सीढ़ियों से कहते हुए उतरता है, "पठान,उन्होंने वहीँ शाम में रखा है,

ये जों दर्द है तेरी रूह में कब से

बताया इसकी दवा को मैंने जाम में रखा है।

साहिल पर लहरे तरासती है जिस पत्थर को,

कोई नीलम बताकर उसे ऊँचे दाम में रखा है।"

पठान - मेरे बच्चे तू नक़ल करने में भी माहिर नहीं है। क्या मुझे अब प्रिया कॉपी के लिए भी नहीं पूछेगी। प्रिया के घर आज पठान आया है।

प्रिया - अभी बनाती हूँ अंकल।

प्रिया कॉपी बनाने के लिए किचन में चली जाती है।

पठान और अनूप बातों में लग जाते है।

पठान - ये तुझे प्रिया लड़की मिल कैसे गयी।

इसका बाप मिस्टर मेहरा इतनी बड़ी जागीर का का मालिक तुझे अपनी बेटी दे दिया।

अनूप - पठान तुझे मुझ पर सक है।

पठान - मैं मज़ाक कर रहा हूँ। हा हा हा

दोनों हसते है।

प्रिया पठान और अनूप को कॉफी देती है।

पठान - अनूप अगर तुमने गलती से प्रिया को दौखा दिया चीट किया। मैं तेरा वों हश्र करूँगा। तू याद रखेगा। इसने तेरे लिए अपने बाप की शानो शौकत छोड़ दी, सिर्फ तेरे लिए।

प्रिया - बस ये कोई अच्छा सा काम करने लग जाये।

पठान सोफे पर बैठे बैठे कॉफी की चुस्कीया ले रहा है।

पठान - प्रिया बेटे तुम कॉफी जबरदस्त बनाती हो।

पठान कॉफ़ी फिनिश करता है और जाने की इज़ाज़त लेता है।

2 महीने बीत गये। लेकिन मिस्टर मेहरा को लगता है।प्रिया अब भी अनूप को छोड़ सकती है । मिस्टर मेहरा प्रिया को फ़ोन करके घंटो 

 समझाता। ऐसा कोई दिन नहीं जाता मिस्टर मेहरा उसे फ़ोन ना करता हो। प्रिया अपने पापा की बातें अनूप को बताती। अनूप कहता, " बूढ़ा मानेगा नहीं। तुम उसके बहकावे मत आना। "

चिंजौर गेराज : उत्तर पूर्वी मुंबई,

चिंचोटी अंजूर फाटा मार्ग 

चिंजौर गेराज में चारो तरफ 8 फ़ीट उची दिवार है।  गेराज के अंदर दक्षिण में चारो तरफ से बंद मजबूत दिवार का एक गुप्त कक्ष है, इस कक्ष में एक अंडर ग्राउंड टनल है जों लैब तक ले जाती है।

यहा अनूप एक पुराने स्पेस शिप पर काम कर रहा है।स्पेस शिप में कुछ sabotage करके उसे नये मॉडुल से तैयार कर रहा है। लैब में उतर में एक चैम्बर है। लैब इधर उधर garbage बिखरा पड़ा हुआ हुआ है ऐसा लगता है, मानों कई महीने हो गए इसकी सफाई किये हुए।पश्चिमी दिवार के पास तीन चार टूल बॉक्सेस है, बिच में वो स्पेस शिप पड़ा हुआ है।

Sasay और delia, जहाज की शील्ड को ठीक करने में लगे हुए है।

(SASAY और DELIA एक कम्प्यूटर विजन, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग,कंप्यूटर मशीन है 

अनूप  वहां एक विजुवल कंप्यूटर(anana )के सामने खड़ा होता है और जहाज का मॉडुल त्यार कर रहा है।

अनूप - कण्ट्रोल रूम की एक झलक दिखावो।

Anana - जी सर।

मुझे ये कुछ खास पसंद नहीं आया ना ना फिर से कोशिश करो।

अनूप -क्या जहाज के इंजन तैयार हो चुके है? हम्हे एक साल से पहले काम ख़तम करना है।

Anana - जी सर।

अनूप - ये क्या है?

Anana - ये ओब्ज़ेरवेशन रूम है, सर।

और अभी जहाज़ के ऑटो रिपेयर सिस्टम पर काम चल रहा है, सर ?

जहाज के डाटा बेस को इंक्रिप्टिड कर दो।

अनूप खड़ा होता है और शिप के पास जाता है।

-"। हम लोग एडवांस टेक्नोलॉजी का शिप बनाना चाहते है, बस हम इसमें कामयाब हो जाए।

अनूप sasay और delia के पास जाता है। और देखता है की आखिर वे कहाँ तक पहुचे?

सौरभ विला" मालाबर हिल, बैंड्रा (पश्चिम), मुंबई

2 साल बीत गये है। प्रिया किचन में बर्तन धो रही है। अनूप बाहर सोफे पर बैठा है।प्रिया गुस्से में है। प्रिया बर्तनो को जोर जोर से गिरा रही है और रों रही है।

प्रिया - जों आशिक़बाज़ लड़के है वों सिर्फ अयासीयाँ करना जानते है; घर चलाना नहीं। तुम बड़े आदमी बनोगे, कितने बड़े बनोगे। एक तेरा वों पठान बड़ा आदमी। बड़ा आदमी है वों।ऐसे दोस्त है तुम्हारे। अबकी बार मुझे वों घर में नज़र आ गया तो देखना फिर। देखना तुम मैं क्या करती हूँ । घर में कभी आटा नहीं है कभी दाल नहीं।मुझे ही कमाना पड़ेगा। तुम कुछ मत करना। मैं तुम्हारे बडप्पन पर मर गयी। मैं इतने बड़े घर की लड़की थी। तुमसे शादी करके अपनी जिंदगी ख़राब कर ली। मेरे पापा मुझे सही समझाते थे। किसी बड़े घर शादी करती एस आराम की जिंदगी होती। मेरे पापा अभी भी मुझे तुझे छोड़ने के लिए कहते है। नहीं जा सकती, तुमसे शादी हो गयी। तुमसे प्यार हो गया था। मैं पागल हो गयी थी।

अनूप - मुझे पता है तुम किसके बहकावे में आई हुई हो। वों बूढ़ा तुझसे आज भी बातें करता है। देख प्रिया मैं एक दिन बड़ा आदमी बनूँगा। मेरी बड़े पांच आदमियों इज़त है।

ऐसा वैसा नहीं हूँ मैं।

प्रिया - बस, चुप हो जाओ। एक दम चुप। बड़ा आदमी।

इतने में पठान वहाँ आ जाता है।

पठान - लगता है मैं गलत जगह आ गया।

प्रिया - आओ पठान तुम्हारी ही कमी थी। तेरे जैसे इसके दोस्त रहेंगे, तो दुश्मनो की जरूरत नहीं । (  पठान चुप चाप खड़ा खड़ा प्रिया की तरफ देख रहा है।)

अनूप - पठान बड़ा आदमी है। उससे इस तरह से बात मत करो प्रिया। देख प्रिया मेरी बात सुन।

प्रिया - एक दम चुप बस, चुप हो जाओ।

देखा पठान  ये पठान बड़ा आदमी। कुछ काम वाम करता है ये।

पठान - (हसता है) लगता है मेरी घर में कोई इज़त रही। ( और पठान वहाँ से चला जाता है।) 

अनूप खामोश हो जाता है।

प्रिया अपने बेड पर सोते हुए यही सोच रही है कि मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। प्रिया अगले दिन एक बांद्रा के पास कैफे कॉफ़ी डे नाम के एक कॉफी शॉप पर 8000 रूपये पर मंथ पर  लग जाती है।

पूजा अनुप्रिया अनामिका प्रिया कुछ दिन बाद कॉपी शॉप के बाहर मिलती है।

अनामिका - अनूप से शादी करके तुमने तुम्हारी जिंदगी ख़राब कर ली।

तुम यहाँ काम कर रही हो और घर पर बैठ कर खा रहा है। क्या उसे शर्म नहीं आती? तुमने गलत लड़के से शादी कर ली

प्रिया - ऐसी बात नहीं धीरे धीरे वों भी समझ जायेगा जिम्मेदारीयों को।

पूजा - तो तुम बात क्यों नहीं करती हो इससे क्या हासिल होगा।

अनुप्रिया - तुम्हे उसे बैठकर समझाना होगा।

पूजा -मैं उसे उदय के साथ भेज सकती हूँ, अगर तुम चाहो तो।

प्रिया - मैं उसे बहुत दफा कह चुकी। कोई काम कर लो। नहीं समजता।

पूजा - सुनो मुझे यूनिवर्सल बुक store से नेहा के लिए बुक्स खरीदनी है मैं लेट हो रही हूँ, मैं चलती हूँ।

अनुप्रिया - हम सब बस चल रहे है।

पूजा - प्रिया अभी भी वक़्त है। तुम अनूप को छोड़ सकती हो। तुम्हारे पापा को हम सब मना लेंगे।

प्रिया - नहीं, मैं शादी कर चुकी और शादी सिर्फ एक बार होती है। वन सेकंड अनूप का फ़ोन आ रहा है 

पूजा - चलो अब निकलते है।

सौरभ विला" मालाबर हिल, बैंड्रा (पश्चिम), मुंबई

अनूप उससे बार बार कोशिश करता बोलने की। उसे पता होता है की प्रिया उसे कुछ नहीं बोलेगी, अनूप फिर भी उससे बातें करता रहता है जैसे मानो प्रिया उससे बात कर रही हो। अनूप रोज़ शराब पीकर घर आने लगा।

अनूप - देख प्रिया तुम ये काम बंद कर दो। अनूप ने जोर देकर फिर कहा।

प्रिया ने आज चुप्पी तोड़ी और कहा, मुझे क्या खिलाओगे भीख मांग मांग कर।

अनूप - तुम्हे पता है मैं जब छोटा था मेरे पापा ने मुझे बहुत पीटा। मैं घर से निकल गया और राजस्थान के सवाई माधोपुर पहुंच गया मेरे पास कुछ भी नहीं था। मैंने प्लान बनाया की काम वाम बाद में ढूढ़ लेंगे पहले कुछ दिन मांग मांग कर खा ले दो रोटी तो कही भी मिल जाएंगी एक घर नहीं तो दूसरे घर में। मैंने वैसा ही किया एक बिंजरे से तिरपाल लिया और अपना घर बना लिया। रोज दो चार घर में जाता और खाना मांगता एक घर में मिल जाता। वहीँ खाना खा के अपने टेंट में आ जाता। मैं सोच रहा था काम क्या किया जाये। मैं काम पर लगने वाला ही था कि पापा वहाँ पहुंच गये और मुझे वापस यहाँ ले आये। प्रिया देख तू मैं एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनूँगा।

प्रिया-  मूझसे बात मत करो। चुप बस, चुप।

अनूप - तू मुझे खुदको छूने क्यों नहीं देती हो। ना बात करती हो।

प्रिया- जैसी जिंदगी चल रही है चलने दे। 

रामायण मिस्टर मेहरा घर

अनूप गार्ड से झगड़ा कर रहा है अंदर जाने के लिए।

मिस्टर मेहरा बालकनी से अनूप को देखता है और नीचे आता है। गार्ड को अनूप को अंदर आने देने के लिए कहता है।

मिस्टर मेहरा उसके कंदे पर हाथ रखता है और कहता है, सुनाओ अनूप। तुमने शराब पी रखी है।

अनूप - मुझे पता है बूढ़े तेरी खुशी का राज़।तूने मेरे घर को बर्बाद कर दिया। तूने अपनी बेटी का घर ही बर्बाद कर दिया।

तू बूढ़े प्रिया से अभी भी बात करता है और उसको बहका रखा है। तू जैसे बोलता है वों वैसे ही करती है। मेरी बीवी मेरी बिलकुल इज़त नहीं करती। मेरी दोस्तों कि भी नहीं और पठान को तो पता नहीं क्या क्या बोलती है। ये सब तेरा कमाल है, बूढ़े।

मिस्टर मेहरा - देख तुझे अब भी समझाता हूँ तू मेरी बेटी को छोड़ दे। तुझे जों चाहिए वों सब मैं दूंगा।

अनूप - तू मेरी बीवी से बात करना छोड़ दे। बस मैं यहीं कहने आया हूँ। अनूप ऐसा बोल के वहाँ से चला जाता है।

सौरभ विला" मालाबर हिल, बैंड्रा (पश्चिम), मुंबई

मिस्टर मेहरा प्रिया को फ़ोन की सारी बातें बता देता है।

अनूप और पठान दोनों घर साथ आते है।प्रिया गुस्से से भर गयी। इससे आगे अनूप बोलता प्रिया ने कहा, " ये पठान ऐसे दोस्त हैँ तेरे। ये बड़ा आदमी पठान तू पठान देख मेरे पति के साथ रहना छोड़ दे तूने इसे बर्बाद कर दिया ना ये काम करता हैँ बस बड़ी बड़ी बात पठान बस निकल जा मेरे घर से अभी की अभी। पठान बोलता हैँ।अनूप प्रिया को रोकता है। और कहता है ये बड़ा आदमी है। पठान - नाराज़ मत हो मेरी बच्ची मैं जा रहा हूँ अनूप प्रिया का हाथ पकड़ता हैँ और बोलता हैँ क्या कर रही हो प्रिया- तुम चुप चाप यहाँ खड़े रहो।अनूप पठान को बोलता हैँ, "मत जा पठान।पठान बोलता हैँ, "पहले तुम मिया बीवी जगड़े से निपटो मैं चलता हूँ।पठान चला जाता हैँ,अनूप  मज़ाक से उसका हाथ अपने कांख में डालकर उसे सोफे तक ले जाता हैँ बोलता हैँ देखो प्रिया तुम्हे लगता हैँ कि मैं कुछ नहीं करता इससे पहले कुछ आगे बोले। प्रिया हाथ छुड़ाकर चली जाती हैँ।रात को जब अनूप बेड पर उसका हाथ पकड़ता हैँ उसे मनाने की फिर से कोशिश करता है तो प्रिया झठके से हाथ छुड़ा लेती हैँ कुछ दिनों से प्रिया अनूप को नज़दीक नहीं आने दे रही थी।

 अगले दिन सुबह

प्रिया के पापा मम्मी अनूप के फूफा जी बुआ जी अनूप के दोस्त पठान सब घर पर इकठा हो गए प्रिया अचानक चौंक गयी। समझ नहीं पा रही क्या हो रहा है।

अनूप -मेरा फैसला करवाओ।ये मेरा कहना नहीं मानती अपने ममी पापा का कहना मानती है। मेरी बिलकुल भी इज़त नहीं करती है।

पूछो इससे मूझसे बात किये कितने दिन हो गये।

फूफा जी - तो बात ये है तेरा फैसला करना है।

इस वजह से हम्हे इकट्ठा किया तुमने।

 देखो प्रिया ये रिस्ता हर हाल में निभाना पड़ेगा।तुमने प्यार किया था ; शादी की थी ये शादी से पहले सोचना चाहिए था अब जैसा भी हैँ ये तेरा पति हैँ।

अनूप बिच में बोलता हैँ, " मेरी बीवी मेरा कहना नहीं मानती;  अपने बाप का मानती हैँ। अपने बाप के कहने पर चलती हैँ। देख प्रिया, ये तेरा बाप जों मेरे घर को बर्बाद करना चाहता हैँ।ये अपनी बेटी का घर बर्बाद करना चाहता हैँ।

 पठान -कोई बात नहीं। प्रिया,अपने बाप का कहना नहीं मानेगी। तेरा कहना मानेगी।"

(अनूप बिच में बोल पड़ता हैँ)

अनूप - "देख प्रिया शादी कोई खेल नहीं इसे हर हाल में निभाना पड़ता हैँ।और मेरा बड़े आदमियों में उठना बैठना हैँ। क्या इज़त रह जाएगी मेरी।अनूप बड़ी बड़ी बातें करने लग जाता हैँ जैसे की उसकी आदत हैँ पठान अनूप को चुप करा देता हैँ और

पठान - देखो मेरी बच्ची

प्रिया पठान को चुप करा देती है।

 प्रिया -  चुप रह पठान।

अनूप - पठान बड़ा आदमी है।

प्रिया - ये पठान बड़ा आदमी। ऐसे है तेरे दोस्त।

अनूप -देखा तुमने ये। ये मेरे आदमियों की इज़त नहीं करती हैँ। ये अपने बाप के बहकावे में हैँ। सभी प्रिया को समझाते है।प्रिया मान जाती हैँ।

फूफा जी - अनूप,  अब ये तुमारी भी इज़त करेंगी और तुम्हारे दोस्त की भी। ठीक हैँ प्रिया। प्रिया हाँ बोलती हैँ।कुछ दिन सब कुछ ठीक चलता हैँ।प्रिया वापस वैसा ही बर्ताव करने लग जाती इस बार प्रिया हद पार कर देती हैँ। पठान और अनूप को दोनों को खूब सुनाती हैँ।अनूप गुस्से में आकर चला जाता है।

 चिंजौर पहुँचता है।

और अपने जहाज को उड़ान भरने का आदेश देता है

Anaa - बताती है कि जहाज का काम अभी पूरा नहीं हुआ है।

अनूप - फिर भी उसे उड़ान भरने का आदेश दे देता है।

अनूप का जहाज स्पेस में अचानक खुले एक वॉर्म हॉल में पहुंच जाता है 

आज दो साल हो गये लेकिन अनूप का कोई पता नहीं।